अघोरेश्वरं महा सिद्ध रूपम,
निखिल प्राण रूपं प्रणम्यम सदैव ॥१॥
अघोर
शक्तियों के स्वामी,, साक्षात अघोरेश्वर,, शिव स्वरूप , सिद्धों के भी सिद्ध,, भैरव से शरभेश्वर तक. और, उच्चिष्ठ
चाण्डालिनी से गुह्याकाली तक, हर गुह्यतम साधना के ज्ञाता,
मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ, जो
प्रातः स्मरणीय परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत, प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग
प्रणाम करता हूं.
प्रचण्डातिचण्डम शिवानंद कंदम,
निखिल प्राण रूपं प्रणम्यम सदैव ॥२॥
प्रचंडता
की साक्षात मूर्ति, शिवत्व के जाज्वल्यमान स्वरूप,
जिन्होंने तंत्र ग्रंथों और तांत्रिक अनुष्ठानों की गोपनीय विधियों को साधकों को सहज सुलभ कराया, ऐसे
मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ, जो प्रातः
स्मरणीय परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.
सुदर्शनोत्वं परिपूर्ण रूपम,
निखिल प्राण रूपं प्रणम्यम सदैव ॥३॥
सौन्दर्य
की पूर्णता को साकार करने वाले, साक्षात
कामेश्वर, पूर्णत्व युक्त, शिव के
प्रतीक, मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ, जो प्रातः स्मरणीय परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण
स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.
ब्रह्माण्ड रूपम, गूढातिगूढम,
निखिल प्राण रूपं प्रणम्यम सदैव ॥४॥
जो
स्वयं अपने अंदर संपूर्ण ब्रह्मांड को समेटे हुए हैं, जो अहं ब्रह्मास्मि के नाद से गुन्जरित हैं, जो गूढ
से भी गूढ अर्थात गोपनीय से भी गोपनीय विद्याओं के ज्ञाता हैं, महाकाल संहिता और गुह्य काली संहिता जैसे दुर्लभ ग्रंथों का जिन्होंने
पुनरुद्धार किया है , ऐसे मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी
सुदर्शन नाथ जो प्रातः स्मरणीय परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और
प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.
योगेश्वरोत्वम, कृष्ण स्वरूपम,
निखिल प्राण रूपं प्रणम्यम सदैव ॥५॥
जो
योग के सभी अंगों के सिद्धहस्त आचार्य हैं, जिनका
शरीर योग के जटिलतम आसनों को भी सहजता से करने में सिद्ध है, जो योग मुद्राओं के प्रतिष्ठित आचार्य हैं, जो
साक्षात कृष्ण के समान, प्रेममय, योगमय,
आह्लादमय, सहज व्यक्तित्व के स्वामी हैं.
ऐसे मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ, जो प्रातः स्मरणीय परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण
स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.
महाकाल तत्वम घोरातिघोरम,
निखिल प्राण रूपं प्रणम्यम सदैव ॥६॥
काल
भी जिससे घबराता है, ऐसे महाकाल और महाकाली युगल के
उपासक, साक्षात महाकाल स्वरूप, अघोरत्व
के जाज्वल्यमान स्वरूप, महाकाली के महासिद्ध साधक मेरे
पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ, जो प्रातः स्मरणीय परमहंस
स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके
चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.
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