30 सितंबर 2021

नवार्ण महामंत्र

   


नवार्ण महामंत्र 

नवार्ण महामंत्र 

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महादुर्गे नवाक्षरी नवदुर्गे नवात्मिके नवचंडी महामाये महामोहे महायोगे निद्रे जये मधुकैटभ विद्राविणि महिषासुर मर्दिनी धूम्रलोचन संहंत्री चंड मुंड विनाशिनी रक्त बीजान्तके निशुम्भ ध्वंसिनी शुम्भ दर्पघ्नी देवि अष्टादश बाहुके कपाल खट्वांग शूल खड्ग खेटक धारिणी छिन्न मस्तक धारिणी रुधिर मांस भोजिनी समस्त भूत प्रेतादी योग ध्वंसिनी ब्रह्मेंद्रादी स्तुते देवि माम रक्ष रक्ष मम शत्रून नाशय ह्रीं फट ह्वुं फट ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडाये विच्चे ||
  • यथाशक्ति जाप नित्य करें |
  • सर्वमनोकामना पूरक मन्त्र है |

बगलामुखी ब्रह्मास्त्र माला मंत्र

    


बगलामुखी ब्रह्मास्त्र माला मंत्र

ॐ नमो भगवति चामुण्डे नरकंक गृध्रोलूक परिवार सहिते श्मशानप्रिये नररुधिरमांस चरु भोजन प्रिये ! सिद्ध विद्याधर वृन्द वंदित चरणे बृह्मेशविष्णु वरुण कुबेर भैरवी भैरव प्रिये इन्द्रक्रोध विनिर्गत शरीरे द्वादशादित्य चण्डप्रभे अस्थि मुण्ड कपाल मालाभरणे शीघ्रं दक्षिण दिशि आगच्छ आगच्छ, मानय मानय, नुद नुद, सर्व शत्रुणां मारय मारय, चूर्णय चूर्णय, आवेशय आवेशय, त्रुट त्रुट, त्रोटय त्रोटय, स्फुट स्फुट, स्फोटय स्फोटय, महाभूतान् जृम्भय जृम्भय, ब्रह्मराक्षसान उच्चाटय उच्चाटय, भूत प्रेत पिशाचान् मूर्च्छय मूर्च्छय, मम शत्रुन उच्चाटय उच्चाटय,  शत्रून चूर्णय चूर्णय, सत्यं कथय कथय, वृक्षेभ्यः संन्नाशय संन्नाशय अर्कं स्तंभय स्तंभय , गरुड पक्षपातेन विषं निर्विषं कुरु कुरु, लीलांगालयवृक्षेभ्यः परिपातय परिपातय, शैलकाननमहीं मर्दय मर्दय, मुखं उत्पाटय उत्पाटय, पात्रं पूरय पूरय, भूतभविष्यं यत्सर्व कथय कथय, कृन्त कृन्त, दह दह, पच पच, मथ मथ, प्रमथ प्रमथ, घर्घर घर्घर, ग्रासय ग्रासय, विद्रावय विद्रावय उच्चाटय उच्चाटय, विष्णुचक्रेण वरुणपाशेन इन्द्रवज्रेण ज्वरं नाशय नाशय, प्रविदं स्फोटय स्फोटय , सर्वशत्रून मम वशं कुरु कुरु, पातालं प्रत्यंतरिक्षं आकाशग्रहं आनय आनय, करालि विकरालि महाकालि, रुद्रशक्ते पूर्वदिशं निरोधय निरोधयपश्चिमदिशं स्तम्भय स्तम्भयदक्षिणदिशं निधय निधयउत्तरदिशं बंधय बंधय, ह्रां ह्रीं ॐ बंधय बंधय, ज्वालामालिनी स्तम्भिनी मोहिनि, मुकुट विचित्र कुण्डल नागादि वासुकी कृत हारभूषणे मेखला चन्द्रार्कहास प्रभंजने विद्युत्स्फुरित सकाश साट्टहास निलय निलय, हुं फट्, हुं फट् विजृंभित शरीरे सप्तद्वीप कृते ब्रह्माण्ड विस्तारित स्तन युगले असि मुसल परशु तोमर क्षुरिपाश हलेषु वीरान् शमय शमय, सहस्त्र बाहु परापरादिशक्ति विष्णु शरीरे, शंकर ह्रदयेश्वरी बगलामुखी ! सर्वदुष्टान् विनाशय विनाशय, हुं फट् स्वाहा ।

ॐ ह्लीं बगलामुखी ये केचनापकारिणः सन्ति, तेषां वाचं मुखं स्तम्भय स्तम्भय, जिह्वां कीलय कीलय, बुद्धिं विनाशय विनाशय, ह्रीं ॐ स्वाहा !

ॐ ह्रीं हिली हिली सर्व शत्रुणां वाचं मुखं पदं स्तम्भय , शत्रुजिह्वां कीलय, शत्रूणां दृष्टिमुष्टि गति मति दंत तालु जिह्वां बंधय बंधय, मारय मारय, शोषय शोषय हुं फट् स्वाहा ।

 महाविद्या बगलामुखी की कृपा प्रदान करता है । 

स्तोत्र है इसलिए वे भी कर सकते हैं जिन्होंने गुरु दीक्षा नहीं ली है । लेकिन वे नित्य 11 पाठ से ज्यादा ना करें । 

नित्य क्षमतानुसार 1,3,5,7,9,11,16,21,33,51,108 पाठ करें ।


सामने सरसों के तेल का दीपक लगा लें । 
रात्री काल बेहतर है । 
पीले रंग का आसन और वस्त्र  । 
सात्विक विद्या है । 
ब्रह्मचर्य का पालन करें । 
सात्विक आचार विचार व्यवहार रखें  । 
नशा और मांसाहार निषेध है । 
उत्तर या पूर्व दिशा की ओर देखते हुए करें । 
शत्रु बाधा निवारण, तथा सर्वविध रक्षा के लिए उपयोगी है । 
नवरात्रि मे ज्यादा लाभ प्रदायक है । 

विधि :-

पहले दिन हाथ मे जल लेकर इच्छा बोलेंगे और माता के चरणों मे छोड़ देंगे । 

गुरु बनाया हो तो एक माला गुरु मंत्र की करें । 
अगर गुरु न हो तो एक माला निम्नलिखित मंत्र की करें :
।। ॐ गुं  गुरुभ्यो नमः ।। 

गुरु मंत्र का जाप रुद्राक्ष या किसी भी माला से कर सकते हैं । 

उसके बाद "ह्लीं " [ hleem ] मंत्र का उच्चारण करते हुए अपने शरीर को सर से पाँव तक छू लेंगे और ऐसी भावना करेंगे कि देवी बगलामुखी आपके शरीर मे स्थापित हो रही हैं । 
इसके बाद पाठ प्रारंभ करें । 
पाठ की गिनती आप किसी भी चीज से कर सकते हैं , कागज पेंसिल पर भी कर सकते हैं । 

आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं । 
इसे सुनकर उच्चारण करने से धीरे धीरे धीरे गुरुकृपा से आपका उच्चारण स्पष्ट होता जाएगा :-

 

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25 सितंबर 2021

पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा

  पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा




श्राद्ध पक्ष में यथा सम्भव जाप करें ।

॥ ऊं सर्व पितरेभ्यो, मम सर्व शापं प्रशमय प्रशमय, सर्व दोषान निवारय निवारय, पूर्ण शान्तिम कुरु कुरु नमः ॥


पितृमोक्ष अमावस्या के दिन एक थाली में भोजन सजाकर सामने रखें।

108 बार जाप करें |

सभी ज्ञात अज्ञात पूर्वजों को याद करें , उनसे कृपा मागें |

ॐ शांति कहते हुए तीन बार पानी से थाली के चारों ओर गोल घेरा बनायें।

अपने पितरॊं को याद करके ईस थाली को गाय कॊ खिला दें।

 इससे पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा आपकॊ प्राप्त होगी ।

सदगुरुदेव डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी द्वारा प्रदान नवार्ण मंत्र और उसका उच्चारण ...

23 सितंबर 2021

19 सितंबर 2021

पितृ स्तोत्र (गरुड पुराण)

  पितृ स्तोत्र (गरुड पुराण)

अमूर्त्तानां च मूर्त्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम

नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम !

इंद्रादीनां च नेतारो दक्षमारी चयोस्तथा !!

सप्तर्षीणां तथान्येषां तान नमस्यामि कामदान !

मन्वादीनां मुनींद्राणां सूर्य्यांचंद्रमसो तथा !!

तान नमस्यामि अहं सर्व्वान पितरश्च अर्णवेषु ये !

नक्षत्राणां ग्रहाणां च वायु अग्नि नभ तथा !!

द्यावा पृथ्वीव्योश्च तथा नमस्यामि कृतांजलि: !

देवर्षिणां ग्रहाणां च सर्वलोकनमस्कृतान !!

अभयस्य सदा दातृन नमस्येहं कृतांजलि:

नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ! !

स्वयंभुवे नमस्यामि ब्रम्हणे योग चक्षुषे !

सोमाधारान पितृगणान योगमूर्तिधरांस्तथा !!

नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम !

अग्निरुपां तथैव अन्यान नमस्यामि पितृं अहं !!

अग्निसोममयं विश्वं यत एदतशेषत:

ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्य्याग्निमूर्तय:!!

जगत्स्वरुपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरुपिण:

तेभ्यो अखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतमानसा: !

नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदंतु स्वधाभुज: !!

आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं । 
इसे सुनकर उच्चारण करने से धीरे धीरे धीरे गुरुकृपा से आपका उच्चारण स्पष्ट होता जाएगा :-

 

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अगर आपको संस्कृत में उच्चारण करने में दिक्कत हो तो आप इसका भावार्थ हिंदी में भी उच्चरित कर सकते हैं जो कि निम्नानुसार है


जो अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न हैं, उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूँ।


इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नायक हैं, सभी कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूँ।


मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी प्रणाम करता हूँ।


नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो प्रमुख हैं, उन पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ।


देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता, पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ।


प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा प्रणाम करता हूँ।


सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूँ।


चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूँ। 

सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूँ।

अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है।


जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूँ। 

समस्त पितरो को मैं बारम्बार नमस्कार करता हुआ उनकी कृपा का आकांक्षी हूं । 

वे स्वधाभोजी पितर मुझपर प्रसन्न हों। वह मुझ पर कृपालु हो और मेरे समस्त दोषों का प्रशमन करते हुए मुझे सर्व विध  अनुकूलता प्रदान करें .... 



विधि :-

एक थाली में भोजन तैयार करके रख ले तथा स्तोत्र का यथाशक्ति (1,3,7,9,11) पाठ करके किसी गाय को या किसी गरीब व्यक्ति को खिला दे । 


18 सितंबर 2021

पितृ पक्ष

  पितृ पक्ष






पितृ पक्ष में सभी लोग विधि विधान से पूजन नहीं कर पाते हैं । जो पितर पूजन करना चाहते हैं ,उनके लिए एक सरल विधि प्रस्तुत है जिसे आप आसानी से कर सकते है :-


|| ॐ सर्व पित्रेभ्यो नमः ||

Om sarva pitarebhyo namah 

 

भाव रखें कि - "मैं अपने सभी (ज्ञात और अज्ञात ) पूर्वजों को नमस्कार करता हूं तथा उनसे शांति की प्रार्थना करता हूं ।" 




आपके घर में जो भोजन बना हो उसे एक थाली में सजा लें .... 

उसको पूजा स्थान में अपने सामने रखकर इस मंत्र का १०८  बार जाप करें.


हाथ में पानी लेकर कहें " मेरे सभी ज्ञात अज्ञात पितरों की शांति हो " इसके बाद जल जमीन पर छोड़ दे.

अब उस थाली के भोजन को किसी गाय को या किसी गरीब भूखे को खिला दें. 

मन मे प्रार्थना करें कि " मेरे पूर्वजों को शांति प्राप्त हो ! 

 


16 सितंबर 2021

भगवान विश्वकर्मा के 108 नाम


 

भगवान विश्वकर्मा के 108 नाम

आप देवशिल्पी भगवान विश्वकर्मा के इन 108 नामों के साथ फूल, चावल , चंदन, कुमकुम , अष्टगंध आदि चढ़ा सकते हैं :-

 

1.   ऊँ अतलाय नमः

2.   ऊँ अतिसूक्ष्माय नमः

3.   ऊँ अदभुताय नमः

4.   ऊँ अनन्तकल्पाय नमः

5.   ऊँ अनन्तचक्षुसे नमः

6.   ऊँ अनन्तभुजाय नमः

7.   ऊँ अनन्तमुखाय नमः

8.   ऊँ अनन्तशक्तिभूते नमः

9.   ऊँ अनन्ताय नमः

10.                    ऊँ आघ्रात्मने नमः

11.                    ऊँ कंबीघराय नमः

12.                    ऊँ कमंडलधराय नमः

13.                    ऊँ कर्षपाय नमः

14.                    ऊँ कृतिपतये नमः

15.                    ऊँ गुणवल्लभाय नमः

16.                    ऊँ चतुर्भुजाय नमः

17.                    ऊँ जनलोकाय नमः

18.                    ऊँ ज्ञानमुद्राय नमः

19.                    ऊँ तपोलोकाय नमः

20.                    ऊँ तेजात्मने नमः

21.                    ऊँ त्रिगुणात्मने नमः

22.                    ऊँ त्रिनेत्राय नमः

23.                    ऊँ त्रिभुवनाय  नमः

24.                    ऊँ त्वष्टे नमः

25.                    ऊँ दुखहर्त्रे नमः

26.                    ऊँ दुर्लभाय नमः

27.                    ऊँ दुष्टदमनाय  नमः

28.                    ऊँ देवज्ञाय नमः

29.                    ऊँ देवधराय नमः

30.                    ऊँ देवाय नमः

31.                    ऊँ धराधराय नमः

32.                    ऊँ धर्मात्मने नमः

33.                    ऊँ धर्मिणे नमः

34.                    ऊँ धीराय नमः

35.                    ऊँ नाथाय नमः

36.                    ऊँ निराकाराय नमः

37.                    ऊँ निराधाराय नमः

38.                    ऊँ निरामयाय नमः

39.                    ऊँ निर्मोहाय नमः

40.                    ऊँ निर्विकल्पाय नमः

41.                    ऊँ निर्विधाय नमः

42.                    ऊँ पंचवक्त्राय नमः

43.                    ऊँ परम तत्वाय नमः

44.                    ऊँ परमात्मने नमः

45.                    ऊँ परमेश्वराय नमः

46.                    ऊँ पवित्राय नमः

47.                    ऊँ पातालाय नमः

48.                    ऊँ पीतवस्त्राय नमः

49.                    ऊँ पुरुषाय नमः

50.                    ऊँ पूर्णप्रभाय नमः

51.                    ऊँ पूर्णानंदाय नमः

52.                    ऊँ ब्रहमांडाय नमः

53.                    ऊँ भुवनपतये नमः

54.                    ऊँ भूकल्पाय नमः

55.                    ऊँ महलोकाय नमः

56.                    ऊँ महशिल्पिने  नमः

57.                    ऊँ महातलाय नमः

58.                    ऊँ महादुर्लभाय नमः

59.                    ऊँ मोक्षदात्रे नमः

60.                    ऊँ मोहरहिताय नमः

61.                    ऊँ रसातलाय नमः

62.                    ऊँ वरदाय नमः

63.                    ऊँ वर्मिणे नमः

64.                    ऊँ वासपात्रे नमः

65.                    ऊँ वास्तोष्पतये नमः

66.                    ऊँ वितलाय नमः

67.                    ऊँ विरजे नमः

68.                    ऊँ विशभुंजाय नमः

69.                    ऊँ विश्व आधाराय नमः

70.                    ऊँ विश्व धर्माय नमः

71.                    ऊँ विश्वकराय नमः

72.                    ऊँ विश्वकर्मणे नमः

73.                    ऊँ विश्वधराय नमः

74.                    ऊँ विश्वम्भराय नमः

75.                    ऊँ विश्वरक्षकाय नमः

76.                    ऊँ विश्वरुपाय नमः

77.                    ऊँ विश्ववल्लभाय नमः

78.                    ऊँ विश्वविस्मयाय नमः

79.                    ऊँ विश्वव्यापक नमः

80.                    ऊँ विश्वव्यापिने नमः

81.                    ऊँ विश्वात्मने नमः

82.                    ऊँ विश्वेशाधिपतये नमः

83.                    ऊँ विश्वेश्वराय नमः

84.                    ऊँ विष्णवे नमः

85.                    ऊँ वेदधारिणे नमः

86.                    ऊँ शांतिदात्रे नमः

87.                    ऊँ शांतिमुर्तये नमः

88.                    ऊँ श्वेतांगाय नमः

89.                    ऊँ सत्यलोकाय नमः

90.                    ऊँ सत्यात्मने नमः

91.                    ऊँ सनातनाय नमः

92.                    ऊँ सर्वाभयदाय नमः

93.                    ऊँ सर्वेश्वरांय नमः

94.                    ऊँ सानन्दाय नमः

95.                    ऊँ सुखकत्रे नमः

96.                    ऊँ सुतलाय नमः

97.                    ऊँ सूक्ष्माय नमः

98.                    ऊँ सूत्रधराय नमः

99.                    ऊँ सूत्रात्मने नमः

100.              ऊँ सृष्टीकराय  नमः

101.              ऊँ स्थिर मानसाय नमः

102.              ऊँ स्थिराय नमः

103.              ऊँ स्थूलातिसूक्ष्माय  नमः

104.              ऊँ स्वर्गलोकाय नमः

105.              ऊँ स्वर्णमुकुटधारिणे नमः

106.              ऊँ हंसवाहनाय नमः

107.              ऊँ हर्षाय नमः

108.              ऊँ ह्रदयवासिने नमः