27 नवंबर 2021

श्री गणेश अष्टोत्तर शत नाम

  श्री गणेश अष्टोत्तर शत नाम



‘कलौ चण्डी-विनायकौ’-कलियुग में ‘चण्डी’ और ‘गणेश’ की साधना ही श्रेयस्कर है।

मेरे गुरुदेव ने बताया था कि कलयुग में चंडी अर्थात भगवती जगदंबा की साधना और विनायक अर्थात गणेश भगवान की साधना या पूजा करने से ज्यादा लाभप्रद होता है ।

गणेश भगवान की साधना सरल है और उसमें बहुत ज्यादा विधि-विधान और जटिलता की आवश्यकता नहीं है इसीलिए सर्वसामान्य में गणेश भगवान की पूजन का बहुत ज्यादा प्रचलन है जो हम गणेशोत्सव के रूप में प्रतिवर्ष देखते हैं ।
गणेश भगवान के पूजन के लिए आप पंचोपचार व षोडशोपचार जैसे पूजन विधान का प्रयोग कर सकते हैं लेकिन उसमें संस्कृत श्लोकों का ज्यादा प्रयोग होता है जो पढ़ने में सामान्य जन को थोड़ी दिक्कत होती है ।
अष्टोत्तर शतनाम का मतलब होता है गणेश भगवान के 108 नाम के साथ उनका प्रणाम करते हुए पूजन करना जोकि सरल है और हर कोई कर सकता है ।

आप इन नाम का उच्चारण करने के बाद हर बार नम: बोलते समय अपनी श्रद्धा अनुसार
फूल,
चावल के दाने,
अष्टगंध,
दूर्वा ,
चंदन या जो आपकी श्रद्धा हो वह चढ़ा सकते हैं ।
इस प्रकार से बेहद सरलता से आप गणेश भगवान का पूजन संपन्न कर पाएंगे ।


1 गं विनायकाय नम: ॥
2 गं द्विजप्रियाय नम: ॥
3 गं शैलेंद्र तनुजोत्संग खेलनोत्सुक मानसाय नम: ॥
4 गं स्वलावण्य सुधा सार जित मन्मथ विग्रहाय नम: ॥
5 गं समस्तजगदाधाराय नम: ॥
6 गं मायिने नम: ॥
7 गं मूषकवाहनाय नम: ॥
8 गं हृष्टाय नम: ॥
9 गं तुष्टाय नम: ॥
10 गं प्रसन्नात्मने नम: ॥
11 गं सर्व सिद्धि प्रदायकाय नम: ॥
12 गं अग्निगर्भच्छिदे नम: ॥
13 गं इंद्रश्रीप्रदाय नम: ॥
14 गं वाणीप्रदाय नम: ॥
15 गं अव्ययाय नम: ॥
16 गं सिद्धिरूपाय नम: ॥
17 गं शर्वतनयाय नम: ॥
18 गं शर्वरीप्रियाय नम: ॥
19 गं सर्वात्मकाय नम: ॥
20 गं सृष्टिकत्रै नम: ॥
21 गं विघ्नराजाय नम: ॥
22 गं देवाय नम: ॥
23 गं अनेकार्चिताय नम: ॥
24 गं शिवाय नम: ॥
25 गं शुद्धाय नम: ॥
26 गं बुद्धिप्रियाय नम: ॥
27 गं शांताय नम: ॥
28 गं ब्रह्मचारिणे नम: ॥
29 गं गजाननाय नम: ॥
30 गं द्वैमातुराय नम: ॥
31 गं मुनिस्तुत्याय नम: ॥
32 गं गौरीपुत्राय नम: ॥
33 गं भक्त विघ्न विनाशनाय नम: ॥
34 गं एकदंताय नम: ॥
35 गं चतुर्बाहवे नम: ॥
36 गं चतुराय नम: ॥
37 गं शक्ति संयुक्ताय नम: ॥
38 गं लंबोदराय नम: ॥
39 गं शूर्पकर्णाय नम: ॥
40 गं हस्त्ये नम: ॥
41 गं ब्रह्मविदुत्तमाय नम: ॥
42 गं कालाय नम: ॥
43 गं गणेश्वराय नम: ॥
44 गं ग्रहपतये नम: ॥
45 गं कामिने नम: ॥
46 गं सोम सूर्याग्नि लोचनाय नम: ॥
47 गं पाशांकुश धराय नम: ॥
48 गं चण्डाय नम: ॥
49 गं गुणातीताय नम: ॥
50 गं निरंजनाय नम: ॥
51 गं अकल्मषाय नम: ॥
52 गं स्वयं सिद्धाय नम: ॥
53 गं सिद्धार्चित पदांबुजाय नम: ॥
54 गं स्कंदाग्रजाय नम: ॥
55 गं बीजापूर फलासक्ताय नम: ॥
56 गं वरदाय नम: ॥
57 गं शाश्वताय नम: ॥
58 गं कृतिने नम: ॥
59 गं सर्व प्रियाय नम: ॥
60 गं वीतभयाय नम: ॥
61 गं गतिने नम: ॥
62 गं चक्रिणे नम: ॥
63 गं इक्षु चाप धृते नम: ॥
64 गं श्री प्रदाय नम: ॥
65 गं अव्यक्ताय नम: ॥
66 गं अजाय नम: ॥
67 गं उत्पल कराय नम: ॥
68 गं श्री पतये नम: ॥
69 गं स्तुति हर्षिताय नम: ॥
70 गं कुलाद्रिभेत्रे नम: ॥
71 गं जटिलाय नम: ॥
72 गं कलि कल्मष नाशनाय नम: ॥
73 गं चंद्रचूडामणये नम: ॥
74 गं कांताय नम: ॥
75 गं पापहारिणे नम: ॥
76 गं भूताय नम: ॥
77 गं समाहिताय नम: ॥
78 गं आश्रिताय नम: ॥
79 गं श्रीकराय नम: ॥
80 गं सौम्याय नम: ॥
81 गं भक्त वांछित दायकाय नम: ॥
82 गं शांतमानसाय नम: ॥
83 गं कैवल्य सुखदाय नम: ॥
84 गं सच्चिदानंद विग्रहाय नम: ॥
85 गं ज्ञानिने नम: ॥
86 गं दयायुताय नम: ॥
87 गं दक्षाय नम: ॥
88 गं दांताय नम: ॥
89 गं ब्रह्मद्वेष विवर्जिताय नम: ॥
90 गं प्रमत्त दैत्य भयदाय नम: ॥
91 गं श्रीकण्ठाय नम: ॥
92 गं विबुधेश्वराय नम: ॥
93 गं रामार्चिताय नम: ॥
94 गं विधये नम: ॥
95 गं नागराज यज्ञोपवितवते नम: ॥
96 गं स्थूलकण्ठाय नम: ॥
97 गं स्वयंकर्त्रे नम: ॥
98 गं अध्यक्षाय नम: ॥
99 गं साम घोष प्रियाय नम: ॥
100 गं परस्मै नम: ॥
101 गं स्थूल तुंडाय नम: ॥
102 गं अग्रण्यै नम: ॥
103 गं धीराय नम: ॥
104 गं वागीशाय नम: ॥
105 गं सिद्धि दायकाय नम: ॥
106 गं दूर्वा बिल्व प्रियाय नम: ॥
107 गं अव्यक्त मूर्तये नम: ॥
108 गं अद्भुत मूर्ति मते नम: ॥


अंत में हाथ जोड़कर प्रणाम करें और दोनों कान पकड़कर किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थना करते हुए भगवान गणेश से अपने इच्छित मनोकामना को पूर्ण करने की याचिका करें ।


25 नवंबर 2021

सर्व मनोकामना प्रदायक : महादुर्गा साधना

 

सर्व मनोकामना प्रदायक : महादुर्गा साधना 


॥ ॐ क्लीं दुर्गायै नमः ॥

  • यह काम बीज से संगुफ़ित दुर्गा मन्त्र है.
  • यह सर्वकार्यों में लाभदायक है.
  • इसका जाप आप नवरात्रि में चलते फ़िरते भी कर सकते हैं.
  • अनुष्ठान के रूप में २१००० जाप करें.
  • २१०० मंत्रों से हवन नवमी को करें.
  • विशेष लाभ के लिये विजयादशमी को हवन करें.
  • सात्विक आहार आचार विचार रखें ।
  • हर स्त्री को मातृवत सम्मान दें ।
  • ब्रह्मचर्य का पालन करें । 

22 नवंबर 2021

रुद्राक्ष : एक अद्भुत आध्यात्मिक फल

  रुद्राक्ष : एक अद्भुत आध्यात्मिक फल 


रुद्राक्ष दो शब्दों से मिलकर बना है रूद्र और अक्ष । 

रुद्र = शिव, अक्ष = आँख 

ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के आंखों से गिरे हुए आनंद के आंसुओं से रुद्राक्ष के फल की उत्पत्ति हुई थी । 

रुद्राक्ष एक मुखी से लेकर इक्कीस मुखी तक पाए जाते हैं । 

रुद्राक्ष साधकों के लिए एक महत्वपूर्ण चीज है लगभग सभी साधनाओं में रुद्राक्ष की माला को स्वीकार किया जाता है एक तरह से आप इसे माला के मामले में ऑल इन वन कह सकते हैं 


अगर आप तंत्र साधनाएं करते हैं या किसी की समस्या का समाधान करते हैं तो आपको रुद्राक्ष की माला अवश्य पहननी चाहिए ।


यह एक तरह की आध्यात्मिक बैटरी है जो आपके मंत्र जाप और साधना के द्वारा चार्ज होती रहती है और वह आपके इर्द-गिर्द एक सुरक्षा घेरा बनाकर रखती है जो आपकी रक्षा तब भी करती है जब आप साधना से उठ जाते हैं और यह रक्षा मंडल आपके चारों तरफ दिनभर बना रहता है ।

पंचमुखी रुद्राक्ष सबसे सुलभ और सस्ते होते हैं । जैसे जैसे मुख की संख्या कम होती जाती है उसकी कीमत बढ़ती जाती है । एक मुखी रुद्राक्ष सबसे दुर्लभ और सबसे महंगे रुद्राक्ष है । इसी प्रकार से पांच मुखी रुद्राक्ष के ऊपर मुख वाले रुद्राक्ष की मुख की संख्या के हिसाब से उसकी कीमत बढ़ती जाती है । 21 मुखी रुद्राक्ष भी बेहद दुर्लभ और महंगे होते हैं ।

पांच मुखी रुद्राक्ष सामान्यतः हर जगह उपलब्ध हो जाता है और आम आदमी उसे खरीद भी सकता है पहन भी सकता है । पाँच मुखी रुद्राक्ष के अंदर भी आध्यात्मिक शक्तियों को समाहित करने के गुण होते हैं ।


गृहस्थ व्यक्ति , पुरुष या स्त्री , पांच मुखी रुद्राक्ष की माला धारण कर सकते हैं और अगर एक दाना धारण करना चाहे तो भी धारण कर सकते हैं ।

रुद्राक्ष की माला से बीपी में भी अनुकूलता प्राप्त होती है


रुद्राक्ष पहनने के मामले में सबसे ज्यादा लोग नियमों की चिंता करते हैं ।

मुझे ऐसा लगता है कि जैसे भगवान शिव किसी नियम किसी सीमा के अधीन नहीं है, उसी प्रकार से उनका अंश रुद्राक्ष भी परा स्वतंत्र हैं । उनके लिए किसी प्रकार के नियमों की सीमा का बांधा जाना उचित नहीं है


रुद्राक्ष हर किसी को सूट नहीं करता यह भी एक सच्चाई है और इसका पता आपको रुद्राक्ष की माला पहनने के महीने भर के अंदर चल जाएगा । अगर रुद्राक्ष आपको स्वीकार करता है तो वह आपको अनुकूलता देगा ।

आपको मानसिक शांति का अनुभव होगा आपको अपने शरीर में ज्यादा चेतना में महसूस होगी......

आप जो भी काम करने जाएंगे उसमें आपको अनुकूलता महसूस होगी ....

ऐसी स्थिति में आप रुद्राक्ष को धारण कर सकते हैं वह आपके लिए अनुकूल है !!!


इसके विपरीत स्थितियाँ होने से आप समझ जाइए कि आपको रुद्राक्ष की माला नहीं पहननी है ।


इसके बाद सबसे ज्यादा संशय की बात होती है कि रुद्राक्ष असली है या नहीं है । आज के युग में 100% शुद्धता की बात करना बेमानी है । ऑनलाइन में कई प्रकार के सर्टिफाइड रुद्राक्ष भी उपलब्ध है । उनमें से भी कई नकली हो सकते हैं, ऐसी स्थिति में मेरे विचार से आप किसी प्रामाणिक गुरु से या आध्यात्मिक संस्थान से रुद्राक्ष प्राप्त करें तो ज्यादा बेहतर होगा ।




तमिलनाडु में कोयंबटूर नामक स्थान पर सद्गुरु के नाम से लोकप्रिय आध्यात्मिक संत जग्गी वासुदेव जी के द्वारा ईशा फाउंडेशन नामक एक संस्था की स्थापना की गई है । जो आदियोगी अर्थात भगवान शिव के गूढ़ रहस्यों को जन जन तक पहुंचाने के लिए निरंतर गतिशील है । उनके द्वारा एक अद्भुत और संभवतः विश्व के सबसे बड़े पारद शिवलिंग की स्थापना भी की गई है । यही नहीं एक विशालकाय आदियोगी भगवान शिव की प्रतिमा का भी निर्माण किया गया है , जिसके प्रारंभ के उत्सव में स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भी उपस्थित थे ।


ईशा फाउंडेशन के द्वारा कुछ विशेष अवसरों पर निशुल्क प्राण प्रतिष्ठित रुद्राक्ष भी उपलब्ध कराए जाते हैं जैसा कि शिवरात्रि के अवसर पर इस वर्ष किया गया था ।


इसके अलावा रुद्राक्ष की छोटे मनको वाली और बड़े मनको वाली माला जोकि सदगुरुदेव द्वारा प्राण प्रतिष्ठित होती है, वह आप ऑनलाइन प्राप्त कर सकते हैं । ज्यादा जानकारी के लिए आप ईशा फाउंडेशन गूगल में सर्च करके देख सकते हैं ।

उनकी वेबसाइट का एड्रेस है . 

https://www.ishalife.com/in/


19 नवंबर 2021

साधना सिद्धि विज्ञान : रुद्र विशेषांक

 




साधना सिद्धि विज्ञान का हर अंक एक विशिष्ट देवता के दुर्लभ पूजन विधियों और स्तोत्र मंत्रों का संग्रह होता है । 
यह अंक भगवान रुद्र को समर्पित एक संग्रहणीय अंक है । 

आप ऑनलाइन इसे नीचे लिखे लिंक से सब्सक्राइब कर सकते हैं । 



3 नवंबर 2021

पद्मावती स्तोत्र

 पूरे भारत में सबसे समृद्ध संप्रदाय है 

जैन संप्रदाय 
और उनकी अधिष्टात्री देवी है 
पद्मावती 



दिव्योवताम वे पद्मावती त्वं, लक्ष्मी त्वमेव धन धन्य सुतान्वदै  च |
पूर्णत्व देह परिपूर्ण मदैव तुल्यं, पद्मावती त्वं प्रणमं नमामि ||

ज्ञानेव सिन्धुं ब्रह्मत्व नेत्रं , चैतन्य देवीं भगवान भवत्यम |
देव्यं प्रपन्नाति हरे प्रसीद, प्रसीद,प्रसीद, प्रसीद,प्रसीद ||

धनं धान्य रूपं, साम्राज्य रूपं,ज्ञान स्वरुपम् ब्रह्म स्वरुपम् |
चैतन्य रूपं परिपूर्ण रूपं , पद्मावती त्वं  प्रणमं नमामि ||

न मोहं न क्रोधं न ज्ञानं न चिन्त्यं परिपुर्ण रूपं भवताम वदैव |
दिव्योवताम सूर्य तेजस्वी रूपं  , पद्मावती त्वं  प्रणमं नमामि ||

सन्यस्त रूप मपरम पूर्ण गृहस्थं, देव्यो सदाहि भवताम श्रियेयम |
पद्मावती त्वं, हृदये पद्माम, कमालत्व रूपं पद्मम प्रियेताम ||





|| इति परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद कृत पद्मावती स्तोत्रं सम्पूर्णं ||


विधि :-
  1. सबसे पहले  तीन बार " ॐ निखिलेश्वराय नमः "  मन्त्र का जोर से बोलकर उच्चारण करें |
  2. इस स्तोत्र को अमावस्या से प्रारंभ करके अगले मॉस की पूर्णिमा पर समाप्त करें |
  3. नित्य 1,3,5,11 जैसे आपकी क्षमता हो वैसा पाठ करें |
  4. सात्विक आहार /विचार /व्यवहार  रखें |
  5. क्रोध ना करें |
  6. किसी स्त्री का अपमान ना करें |
  7. जिस दिनपाठ पूर्ण हो जाए उस दिन किसी गरीब विवाहित महिला को लाल साड़ी दान करें|
  8. लक्ष्मी मंदिर या दुर्गा मंदिर में अपनी क्षमतानुसार गुलाब या कमल के फूल चढ़ाएं और देवी पद्मावती से कृपा करने की प्रार्थना करके सीधे वापस घर आ जाएँ |
  9. घर आने के बाद एक बार और पाठ करें |
  10. फिर से 3 बार " ॐ निखिलेश्वराय नमः " मन्त्र का जोर से बोलकर उच्चारण करें |
  11. घर में या परिचय में कोई वृद्ध महिला हो तो उसके चरण स्पर्श करें और कुछ भेंट दें , भेंट आप अपनी क्षमतानुसार कुछ भी दे सकते हैं |
  12.  इस प्रकार पूजन संपन्न हुआ | आगे आप चाहें तो नित्य एक बार पाठ करते रहें |

सहस्राक्षरी लक्ष्मी स्तोत्र

सहस्राक्षरी लक्ष्मी स्तोत्र

दीपावली भगवती महालक्ष्मी की कृपा प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण मुहूर्त है. प्रत्येक गृहस्थ को इस अवसर पर देवी महालक्ष्मी का पूजन विधि विधान से संपन्न करना ही चाहिए क्योंकि गृहस्थ जीवन का आधार ही महालक्ष्मी हैं. महालक्ष्मी पूजन विविध प्रकार से किए जा सकते हैं लेकिन देवराज इंद्रकृत सहस्राक्षरी लक्ष्मी स्तोत्र अपने आप में अत्यंत ही प्रभावशाली तथा शीघ्र फलप्रदायक है. इस अवसर पर आप चाहें तो महालक्ष्मी के किसी भी मंत्र का जाप कर सकते हैं जिससे आपको अनुकूलता प्राप्त होगी


यह स्तोत्र लक्ष्मी जी के यंत्र चित्र या मूर्ति के सामने करना चाहिए.

पहले लघु पूजन करें. तदुपरांत स्तोत्र का पाठ करें.

महालक्ष्मी पूजनः-


श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः गंधम समर्पयामि । (इत्र कुंकुम चढायें)

श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः पुष्पम समर्पयामि । (फूल चढायें )

श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः धूपम समर्पयामि । (अगरबत्ती दिखायें)

श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः दीपम समर्पयामि । (दीपक दिखायें )

श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः नैवेद्यम समर्पयामि । (प्रसाद चढायें )


क्षमतानुसार 11, 21,51 या 108 बार सहस्राक्षरी स्तोत्र मंत्र का पाठ करेंः-


(हाथ में जल लेकर)विनियोगः-

ऊँ अस्य श्री सर्व महाविद्या महारात्रि गोपनीय मंत्र रहस्याति रहस्यमयी पराशक्ति श्री मदाद्या भगवती सिद्ध लक्ष्मी सहस्राक्षरी सहस्र रूपिणि महाविद्याया श्री इंद्र ऋषिं गायत्रयादि नाना छंदांसि नवकोटि शक्तिरूपा श्री मदाद्या भगवती सिद्ध लक्ष्मी देवता श्री मदाद्या भगवती सिद्ध लक्ष्मी प्रसादादखिलेष्टार्थ जपे पाठे विनियोगः । (जल जमीन पर छोड़ दें )

अपने हाथ मे एक पुष्प रखें । एक पाठ पूरा हो जाने पर उसे देवी के चरणों मे चढ़ा दें और उनकी कृपा प्राप्ति की प्रार्थना करें ।.


स्तोत्र मंत्र :-


ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं हसौं श्रीं ऐं ह्रीं क्लीं सौः सौः ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं जय जय महालक्ष्मी, जगदाद्ये,विजये सुरासुर त्रिभुवन निदाने दयांकुरे सर्व तेजो रूपिणी विरंचि संस्थिते, विधि वरदे सच्चिदानंदे विष्णु देहावृते महामोहिनी नित्य वरदान तत्परे महासुधाब्धि वासिनी महातेजो धारिणी सर्वाधारे सर्वकारण कारिणे अचिंत्य रूपे इंद्रादि सकल निर्जर सेविते सामगान गायन परिपूर्णोदय कारिणी विजये जयंति अपराजिते सर्व सुंदरि रक्तांशुके सूर्य कोटि संकाशे चंद्र कोटि सुशीतले अग्निकोटि दहनशीले यम कोटि वहनशीले ऊँकार नाद बिंदु रूपिणी निगमागम भाग्यदायिनी त्रिदश राज्य दायिनी सर्व स्त्री रत्न स्वरूपिणी दिव्य देहिनि निर्गुणे सगुणे सदसद रूप धारिणी सुर वरदे भक्त त्राण तत्परे बहु वरदे सहस्राक्षरे अयुताक्षरे सप्त कोटि लक्ष्मी रूपिणी अनेक लक्षलक्ष स्वरूपे अनंत कोटि ब्रहमाण्ड नायिके चतुर्विंशति मुनिजन संस्थिते चतुर्दश भुवन भाव विकारिणे गगन वाहिनी नाना मंत्र राज विराजिते सकल सुंदरी गण सेविते चरणारविंद्र महात्रिपुर सुंदरी कामेश दायिते करूणा रस कल्लोलिनी कल्पवृक्षादि स्थिते चिंतामणि द्वय मध्यावस्थिते मणिमंदिरे निवासिनी विष्णु वक्षस्थल कारिणे अजिते अमले अनुपम चरिते मुक्तिक्षेत्राधिष्ठायिनी प्रसीद प्रसीद सर्व मनोरथान पूरय पूरय सर्वारिष्टान छेदय छेदय सर्वग्रह पीडा ज्वराग्र भय विध्वंसय विध्वंसय सर्व त्रिभुवन जातं वशय वशय मोक्ष मार्गाणि दर्शय दर्शय ज्ञानमार्ग प्रकाशय प्रकाशय अज्ञान तमो नाशय नाशय धनधान्यादि वृद्धिं कुरूकुरू सर्व कल्याणानि कल्पय कल्पय माम रक्ष रक्ष सर्वापदभ्यो निस्तारय निस्तारय वज्र शरीरं साधय साधय ह्रीं सहस्राक्षरी सिद्ध लक्ष्मी महाविद्यायै नमः ।

2 नवंबर 2021

शाबर लक्ष्मी मंत्र

 शाबर मंत्र सामान्य जन की भाषा में लिखे हुए मंत्र होते हैं और उसमें व्याकरण की त्रुटि या शब्दों का अर्थ निकालने का प्रयास नहीं करना चाहिए और वे जैसे हैं वैसे ही पाठ कर लेना चाहिए ।

इसमें अलग-अलग स्रोतों के हिसाब से शब्दों में फर्क पड़ सकता है जो कि अलग-अलग साधकों के द्वारा अपने ढंग से प्रस्तुत किए जाते हैं लेकिन सभी सुखद परिणाम देते हैं।
पढ़ने में सरल होते हैं इसलिए कोई भी व्यक्ति से कर सकता है ।
इन मंत्रों का प्रयोग पुरुष या स्त्री कोई भी कर सकता है ।

मंत्र

ॐ नमो आदेश गुरु को |
नमो सिद्ध गणपति प्रसादात विघ्न हर्तुम गणपत गणपत वसो मसाण |
जो फल चाहूं सो फल आण , पञ्च लाडूँ , सिर सिन्दूर , रिद्धि सिद्धि आण |
गौरी का पुत्र सिंहासन बैठा |
राजा काम्पै प्रजा काम्पै दृष्टे राजा सिम चाम्पे| पञ्च कोष पूर्व पश्चिम से आण उत्तर से आण दक्षिण से आण |
इतनी कर रिद्धि सिद्धि मेरे घर द्वार आण|
राजा प्रजा अभी मेरो पड़े पाँव न पड़े तो लाजे मैया गौरी |
जो मै देखूं गणेश बाला कर मंत्र का सत की फट फट स्वाहा |


विधि:-

भोजपत्र पर इस मंत्र को लिख कर उसके सामने 1008  बार जाप करें . भोजपत्र न मिले तो कागज या रेशमी कपडे पर लिख सकते हैं . लिखने के लिए अष्टगंध या कुमकुम का प्रयोग करें . 

जाप के समय गुग्गुल का धुप जलता रहे तो अच्छा है.
जाप के बाद ताबीज में भरकर पहन लें या धन रखने के स्थान में रख लें.
दूकान हो तो वहां गल्ले में भी रख सकते हैं.

महालक्ष्मी के 108 नाम

 श्री लक्ष्म्यष्टोत्तरशतनाम या महालक्ष्मी के 108 नाम  


सबसे पहले महालक्ष्मी जी को हाथ जोड़कर ध्यान करलें :-



सरसिज निलये सरोज हस्ते धवलतरांशुक गन्ध माल्य शोभे ।

भगवति हरि वल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवन भूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥


हिन्दी भावार्थ - हे महामाया महालक्ष्मी ! आप कमल फूलो से भरे हुए वन में निवास करनेवाली हो, आपके हाथों में सुंदर कमल है। आपके वस्त्र अत्यन्त उज्ज्वल हैं । आपके दिव्य देह पर अत्यंत मनोहर गन्ध और सुंदर सुंदर मालाएँ डाली हुई हैं । हे भगवान श्री हरी की प्रिया आपका स्वरूप अत्यंत मनमोहक है । आपकी कृपा से त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्राप्त हो सकता है आप मुझपर प्रसन्न होकर कृपा करें । 

ऐसा ध्यान करेंगे । 


इसके बाद अपने पूजा स्थान/दुकान/ एकांत कक्ष मे अपने सामने लक्ष्मी चित्र/ यंत्र/ श्रीयंत्र/ चाँदी सिक्का/ लक्ष्मी मूर्ति (जो आपके पास उपलब्ध हो ) रखकर भगवती लक्ष्मी के 108 नामों का उच्चारण करें और हर बार नम:  के साथ फूल /कुमकुम/ चावल/ अष्टगंध चढ़ाएं । 


  1. ॐ श्रीं अदित्यै नमः ।

  2. ॐ श्रीं अनघायै नमः ।

  3. ॐ श्रीं अनुग्रहप्रदायै नमः ।

  4. ॐ श्रीं अमृतायै नमः ।

  5. ॐ श्रीं अशोकायै नमः ।

  6. ॐ श्रीं आह्लादजनन्यै नमः ।

  7. ॐ श्रीं इन्दिरायै नमः ।

  8. ॐ श्रीं इन्दुशीतलायै नमः । 

  9. ॐ श्रीं उदाराङ्गायै नमः ।

  10. ॐ श्रीं कमलायै नमः ।

  11. ॐ श्रीं करुणायै नमः ।

  12. ॐ श्रीं कान्तायै नमः ।

  13. ॐ श्रीं कामाक्ष्यै नमः ।

  14. ॐ श्रीं क्रोधसम्भवायै नमः ।

  15. ॐ श्रीं चतुर्भुजायै नमः ।

  16. ॐ श्रीं चन्द्ररूपायै नमः ।

  17. ॐ श्रीं चन्द्रवदनायै नमः ।

  18. ॐ श्रीं चन्द्रसहोदर्यै नमः ।

  19. ॐ श्रीं चन्द्रायै नमः ।

  20. ॐ श्रीं जयायै नमः ।

  21. ॐ श्रीं तुष्टयै नमः । 

  22. ॐ श्रीं त्रिकालज्ञानसम्पन्नायै नमः ।

  23. ॐ श्रीं दारिद्र्यध्वंसिन्यै नमः ।

  24. ॐ श्रीं दारिद्र्यनाशिन्यै नमः । 

  25. ॐ श्रीं दित्यै नमः ।

  26. ॐ श्रीं दीप्तायै नमः ।

  27. ॐ श्रीं देव्यै नमः ।

  28. ॐ श्रीं धनधान्यकर्यै नमः ।

  29. ॐ श्रीं धन्यायै नमः ।

  30. ॐ श्रीं धर्मनिलयायै नमः ।

  31. ॐ श्रीं नवदुर्गायै नमः ।

  32. ॐ श्रीं नारायणसमाश्रितायै नमः ।

  33. ॐ श्रीं नित्यपुष्टायै नमः ।

  34. ॐ श्रीं नृपवेश्मगतानन्दायै नमः ।

  35. ॐ श्रीं पद्मगन्धिन्यै नमः ।

  36. ॐ श्रीं पद्मनाभप्रियायै नमः ।

  37. ॐ श्रीं पद्मप्रियायै नमः ।

  38. ॐ श्रीं पद्ममालाधरायै नमः ।

  39. ॐ श्रीं पद्ममुख्यै नमः ।

  40. ॐ श्रीं पद्मसुन्दर्यै नमः ।

  41. ॐ श्रीं पद्महस्तायै नमः ।

  42. ॐ श्रीं पद्माक्ष्यै नमः ।

  43. ॐ श्रीं पद्मायै नमः ।

  44. ॐ श्रीं पद्मालयायै नमः ।

  45. ॐ श्रीं पद्मिन्यै नमः ।

  46. ॐ श्रीं पद्मोद्भवायै नमः ।

  47. ॐ श्रीं परमात्मिकायै नमः ।

  48. ॐ श्रीं पुण्यगन्धायै नमः ।

  49. ॐ श्रीं पुष्टयै नमः ।

  50. ॐ श्रीं प्रकृत्यै नमः ।

  51. ॐ श्रीं प्रभायै नमः ।

  52. ॐ श्रीं प्रसन्नाक्ष्यै नमः । 

  53. ॐ श्रीं प्रसादाभिमुख्यै नमः ।

  54. ॐ श्रीं प्रीतिपुष्करिण्यै नमः ।

  55. ॐ श्रीं बिल्वनिलयायै नमः ।

  56. ॐ श्रीं बुद्धये नमः ।

  57. ॐ श्रीं ब्रह्माविष्णुशिवात्मिकायै नमः ।

  58. ॐ श्रीं भास्कर्यै नमः ।

  59. ॐ श्रीं भुवनेश्वर्यै नमः । 

  60. ॐ श्रीं मङ्गळा देव्यै नमः ।

  61. ॐ श्रीं महाकाल्यै नमः ।

  62. ॐ श्रीं महादीप्तायै नमः ।

  63. ॐ श्रीं महादेव्यै नमः ।

  64. ॐ श्रीं यशस्विन्यै नमः ।

  65. ॐ श्रीं रमायै नमः ।

  66. ॐ श्रीं लक्ष्म्यै नमः । 

  67. ॐ श्रीं लोकमात्रे नमः ।

  68. ॐ श्रीं लोकशोकविनाशिन्यै नमः ।

  69. ॐ श्रीं वरलक्ष्म्यै नमः । 

  70. ॐ श्रीं वरारोहायै नमः ।

  71. ॐ श्रीं वसुधायै नमः ।

  72. ॐ श्रीं वसुधारिण्यै नमः ।

  73. ॐ श्रीं वसुन्धरायै नमः । 

  74. ॐ श्रीं वसुप्रदायै नमः ।

  75. ॐ श्रीं वाचे नमः । 

  76. ॐ श्रीं विकृत्यै नमः ।

  77. ॐ श्रीं विद्यायै नमः ।

  78. ॐ श्रीं विभावर्यै नमः ।

  79. ॐ श्रीं विभूत्यै नमः ।

  80. ॐ श्रीं विमलायै नमः ।

  81. ॐ श्रीं विश्वजनन्यै नमः ।

  82. ॐ श्रीं विष्णुपत्न्यै नमः ।

  83. ॐ श्रीं विष्णुवक्षस्स्थलस्थितायै नमः ।

  84. ॐ श्रीं शान्तायै नमः ।

  85. ॐ श्रीं शिवकर्यै नमः ।

  86. ॐ श्रीं शिवायै नमः ।

  87. ॐ श्रीं शुक्लमाल्याम्बरायै नमः ।

  88. ॐ श्रीं शुचये नमः ।

  89. ॐ श्रीं शुभप्रदाये नमः ।

  90. ॐ श्रीं शुभायै नमः ।

  91. ॐ श्रीं श्रद्धायै नमः ।

  92. ॐ श्रीं श्रियै नमः ।

  93. ॐ श्रीं सत्यै नमः ।

  94. ॐ श्रीं समुद्रतनयायै नमः ।

  95. ॐ श्रीं सर्वभूतहितप्रदायै नमः ।

  96. ॐ श्रीं सर्वोपद्रव वारिण्यै नमः ।

  97. ॐ श्रीं सिद्धये नमः ।

  98. ॐ श्रीं सुधायै नमः ।

  99. ॐ श्रीं सुप्रसन्नायै नमः । 

  100. ॐ श्रीं सुरभ्यै नमः ।

  101. ॐ श्रीं स्त्रैणसौम्यायै नमः ।

  102. ॐ श्रीं स्वधायै नमः ।

  103. ॐ श्रीं स्वाहायै नमः ।

  104. ॐ श्रीं हरिण्यै नमः ।

  105. ॐ श्रीं हरिवल्लभायै नमः ।

  106. ॐ श्रीं हिरण्मय्यै नमः ।

  107. ॐ श्रीं हिरण्यप्राकारायै नमः ।

  108. ॐ श्रीं हेममालिन्यै नमः ।




अन्त मे हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना कर लें ।


यह पूजन आप रात्री मे कर सकते हैं । अगर ऐसा संभव ना हो तो आप दिन में किसी भी समय इसे कर सकते हैं ।  


अगर आपने श्री यंत्र के ऊपर पूजन किया है तो पूजा करने के बाद उस यंत्र को आप पूजा स्थान में या अपने पैसा रखने वाले गल्ले में रख सकते हैं ।


सदगुरुदेव नारायण दत्त श्रीमाली जी दिवाली साधना शिविर 1995 (९) Sadgurudev...

भगवती लक्ष्मी का विशेष मन्त्र


॥  ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महा लक्ष्मै नमः ॥


  • भगवती लक्ष्मी का विशेष मन्त्र है.
  • गुलाबी या लाल रंग के वस्त्र तथा आसन का प्रयोग करें.न हों तो कोई भी साफ धुला वस्त्र पहन कर बैठें.
  • अगरबत्ती इत्र आदि से पूजा स्थल को सुगन्धित करें.
  • विवाहित हों तो पत्नी सहित बैठें तो और लाभ मिलेगा.
  •  रात्रि 9 से 5 के बीच यथा शक्ति जाप करें.
  • क्षमता हो तो घी का दीपक लगायें ।

भूलोक के पालन कर्ता हैं भगवान् विष्णु और उनकी शक्ति हैं महामाया महालक्ष्मी ....

इस संसार में जो भी चंचलता है अर्थात गति है उसके मूल में वे ही हैं.....
उनके अभाव में गृहस्थ जीवन अधूरा अपूर्ण अभावयुक्त और अभिशापित है....
लक्ष्मी की कृपा के बिना सुखद गृहस्थ जीवन बेहद कठिन है............... बाकी आप स्वयं समझदार हैं...

 

दीपावली महालक्ष्मी पूजन विधियाँ : ई बूक




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