एक प्रयास सनातन धर्म[Sanatan Dharma] के महासमुद्र मे गोता लगाने का.....कुछ रहस्यमयी शक्तियों [shakti] से साक्षात्कार करने का.....गुरुदेव Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji [ Nikhileswaranand Ji] की कृपा से प्राप्त Mantra Tantra Yantra विद्याओं को समझने का...... Kali, Sri Yantra, Laxmi,Shiv,Kundalini, Kamkala Kali, Tripur Sundari, Maha Tara ,Tantra Sar Samuchhay , Mantra Maharnav, Mahakal Samhita, Devi,Devata,Yakshini,Apsara,Tantra, Shabar Mantra, जैसी गूढ़ विद्याओ को सीखने का....
Disclaimer
29 फ़रवरी 2024
28 फ़रवरी 2024
26 फ़रवरी 2024
24 फ़रवरी 2024
आज का शुभ मुहूर्त : 24 फरवरी 2024 शनिवार
आज का शुभ मुहूर्त : 24 फरवरी 2024 शनिवार
यह गणना भारतीय तिथि आधारित है इसलिए इसका समय सुबह 6 से अगली सुबह 6 तक रहेगा ।
यह गणना सद्गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी द्वारा लिखे गए ग्रंथ ज्योतिष और काल निर्णय पर आधारित है ।
अमृत काल :-
सुबह 10:30 से 12: 24
रात्रि 3:36 से 5:12
23 फ़रवरी 2024
22 फ़रवरी 2024
21 फ़रवरी 2024
18 फ़रवरी 2024
आज का शुभ मुहूर्त : 18 फरवरी 2024
आज का शुभ मुहूर्त : 18 फरवरी 2024
यह गणना भारतीय तिथि आधारित है इसलिए इसका समय सुबह 6 से अगली सुबह 6 तक रहेगा । यह गणना सद्गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी द्वारा लिखे गए ग्रंथ ज्योतिष और काल निर्णय पर आधारित है ।
रविवार
महेंद्र काल
प्रातः 6.00 से 6.48
रात्रि 6.48 से 7.36
रात्रि 3.36 से 4.24
अमृत काल
प्रातः 6.48 से 10.00
सायंकाल 5.12 से 6.00
रात्रि 8.24 से 10.00
रात्रि 4.24 से 6.00
17 फ़रवरी 2024
आज का शुभ मुहूर्त : 17 फरवरी 2024 शनिवार
आज का शुभ मुहूर्त : 17 फरवरी 2024 शनिवार
यह गणना भारतीय तिथि आधारित है इसलिए इसका समय सुबह 6 से अगली सुबह 6 तक रहेगा ।
यह गणना सद्गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी द्वारा लिखे गए ग्रंथ ज्योतिष और काल निर्णय पर आधारित है ।
अमृत काल :-
सुबह 10:30 से 12: 24
रात्रि 3:36 से 5:12
15 फ़रवरी 2024
आज का शुभ मुहूर्त : 15 फरवरी 2024
आज का शुभ मुहूर्त : 15 फरवरी 2024
=
गुरुवार
महेंद्र काल
रात्रि 7.36 से 9.12
अमृत काल
प्रातः 6.00 से 8.24
प्रातः 10.48 से 1.12
सायंकाल 4.24 से 6.00
रात्रि 9.12 से 10.00
रात्रि 1.12 से 2.48
रात्रि 4.24 से 6.00
====
यह गणना भारतीय तिथि आधारित है इसलिए इसका समय सुबह 6 से अगली सुबह 6 तक रहेगा । यह गणना सद्गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी द्वारा लिखे गए ग्रंथ ज्योतिष और काल निर्णय पर आधारित है । महेंद्र और अमृत काल सभी कार्यों में सफलता दायक हैं .
14 फ़रवरी 2024
आज का शुभ मुहूर्त : 14 फरवरी 2024 बुधवार
आज का शुभ मुहूर्त : 14 फरवरी 2024 बुधवार
यह गणना भारतीय तिथि आधारित है इसलिए इसका समय सुबह 6 से अगली सुबह 6 तक रहेगा । यह गणना सद्गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी द्वारा लिखे गए ग्रंथ ज्योतिष और काल निर्णय पर आधारित है ।
बुधवार
महेंद्र काल
दोपहर 3.36 से 4.24
रात्रि 9.12 से 10.48
अमृत काल
प्रातः 7.36 से 9.12
प्रातः 11.36 से 12.00
दोपहर 4.24 से 6.00
रात्रि 6.48 से 9.12
रात्रि 2.00 से 6.00
11 फ़रवरी 2024
आज का शुभ मुहूर्त : 11 फरवरी 2024
आज का शुभ मुहूर्त : 11 फरवरी 2024
यह गणना भारतीय तिथि आधारित है इसलिए इसका समय सुबह 6 से अगली सुबह 6 तक रहेगा । यह गणना सद्गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी द्वारा लिखे गए ग्रंथ ज्योतिष और काल निर्णय पर आधारित है ।
रविवार
महेंद्र काल
प्रातः 6.00 से 6.48
रात्रि 6.48 से 7.36
रात्रि 3.36 से 4.24
अमृत काल
प्रातः 6.48 से 10.00
सायंकाल 5.12 से 6.00
रात्रि 8.24 से 10.00
रात्रि 4.24 से 6.00
10 फ़रवरी 2024
माघ गुप्त नवरात्रि 2024 : देवी साधनायें करने का विशेष मुहूर्त
माघ गुप्त नवरात्रि 2024 : देवी साधनायें करने का विशेष मुहूर्त
इस वर्ष माघ गुप्त नवरात्रि 10 फरवरी से 18 फरवरी 2024 तक है ।.
इस अवसर पर कुछ मंत्र तथा विधियाँ जो गृहस्थ आसानी से कर सकें वह इस धारावाहिक " देवी साधनायें" के माध्यम से प्रस्तुत है ।.
यथासंभव विधियों को सरल रखा गया है ताकि सामान्य गृहस्थ भी इन साधनाओं को कर सकें, ।
पूर्ण शास्त्रीय विधि विधान से करने के इच्छुक साधक/ पाठक अपने गुरुदेव से प्राप्त करें या किसी प्रामाणिक ग्रंथ से विधि देख लें ।
यदि आप गृहस्थ में रहकर सात्विक विधियों से साधना करने के इच्छुक हैं तो आप गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी तथा गुरुमाता डा साधना सिंह जी से भोपाल जाकर दीक्षा प्राप्त कर सकते हैं और अपनी समस्याओं के अनुसार मंत्र प्राप्त करके उसके जाप से अनुकूलता प्राप्त कर सकते हैं .
साधना सिद्धि विज्ञान
जास्मीन - 429
न्यू मिनाल रेजीडेंसी
जे. के. रोड , भोपाल [म.प्र.]
दूरभाष : (0755)
4269368,4283681,4221116
वेबसाइट:-
www.namobaglamaa.org
यूट्यूब चेनल :-
https://www.youtube.co/@MahavidhyaSadhakPariwar
9 फ़रवरी 2024
नवार्ण मंत्र
नवार्ण मंत्र एक स्वयं सिद्ध मंत्र है ।.
कलयुग में देवी चंडिका और भगवान गणेश को सहज ही प्रसन्न होने वाला माना गया है इसलिए नवार्ण मंत्र का जाप करके आप साधना के क्षेत्र में धीरे-धीरे आगे बढ़ सकते हैं।
नवार्ण मंत्र
।। ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।।
इसमे तीन बीज मंत्र हैं जो क्रमशः महासरस्वती महालक्ष्मी और महाकाली के बीजमन्त्र हैं । इसलिए सभी मनोकामनाओं के लिए इसे जप सकते हैं ।
बहुत ज्यादा विधि विधान नहीं जानते हो तो आप केवल अपने सामने दीपक जलाकर मंत्र जाप कर सकते हैं ।
मंत्र जाप की संख्या अपनी क्षमता के अनुसार निर्धारित कर लें कम से कम 108 बार मंत्र जाप करना चाहिए ।
8 फ़रवरी 2024
नवार्ण महामंत्र
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महादुर्गे नवाक्षरी नवदुर्गे नवात्मिके नवचंडी महामाये महामोहे महायोगे निद्रे जये मधुकैटभ विद्राविणि महिषासुर मर्दिनी धूम्रलोचन संहंत्री चंड मुंड विनाशिनी रक्त बीजान्तके निशुम्भ ध्वंसिनी शुम्भ दर्पघ्नी देवि अष्टादश बाहुके कपाल खट्वांग शूल खड्ग खेटक धारिणी छिन्न मस्तक धारिणी रुधिर मांस भोजिनी समस्त भूत प्रेतादी योग ध्वंसिनी ब्रह्मेंद्रादी स्तुते देवि माम रक्ष रक्ष मम शत्रून नाशय ह्रीं फट ह्वुं फट ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडाये विच्चे ||
- 108 जाप नित्य करें |
- सर्वमानोकमना पूरक मन्त्र है |
सर्व मनोकामना प्रदायक : महादुर्गा साधना
सर्व मनोकामना प्रदायक : महादुर्गा साधना
॥ ॐ क्लीं दुर्गायै नमः ॥
- यह काम बीज से संगुफ़ित दुर्गा मन्त्र है.
- यह सर्वकार्यों में लाभदायक है.
- इसका जाप आप नवरात्रि में चलते फ़िरते भी कर सकते हैं.
- अनुष्ठान के रूप में २१००० जाप करें.
- २१०० मंत्रों से हवन नवमी को करें.
- सात्विक आहार आचार विचार रखें ।
- हर स्त्री को मातृवत सम्मान दें ।
- ब्रह्मचर्य का पालन करें ।
7 फ़रवरी 2024
नवरात्रि : अखंड ज्योति तथा दुर्गा पूजन की सरल विधि
नवरात्रि : अखंड ज्योति तथा दुर्गा पूजन की सरल विधि
यह विधि सामान्य गृहस्थों के लिए है जो ज्यादा पूजन नहीं जानते ।
जो साधक हैं वे प्रामाणिक ग्रन्थों के आधार पर विस्तृत पूजन क्षमतानुसार सम्पन्न करें .
यह पूजन आप देवी के चित्र, मूर्ति या यंत्र के सामने कर सकते हैं ।
यदि आपके पास इनमे से कुछ भी नही तो आप शिवलिंग, रत्न या रुद्राक्ष पर भी पूजन कर सकते हैं ।
अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार घी या तेल का दीपक जलाये। धुप अगरबत्ती जलाये।
अगर अखंड दीपक जलाना चाहते हैं तो बड़ा दीपक और लंबी बत्ती रखें । इसे बुझने से बचाने के लिए काँच की चिमनी का प्रयोग कर सकते हैं । पूजा करते समय आपका मुंह उत्तर या पूर्व की ओर देखता हुआ हो तो बेहतर है । दीपक की लौ को उत्तर या पूर्व की ओर रखें ।
बैठने के लिए लाल या काले कम्बल या मोटे कपडे का आसन हो।
जाप के लिए रुद्राक्ष माला का उपयोग कर सकते हैं।
इसके अलावा आपको निम्नलिखित वस्तुओं की आवश्यकता पड़ेगी :-
एक बड़ा पीतल,तांबा,मिट्टी का कलश,
जल पात्र,
हल्दी, कुंकुम, चन्दन, अष्टगंध,
अक्षत(बिना टूटे चावल),
पुष्प ,
फल,
मिठाई / प्रसाद .
अगर यह सामग्री नहीं है या नहीं ले सकते हैं तो अपने मन में देवी को इन सामग्रियों का समर्पण करने की भावना रखते हुए अर्थात मन से उनको समर्पित करते हुए मानसिक पूजन करे ।
सबसे पहले गुरु का स्मरण करे। अगर आपके गुरु नहीं है तो ब्रह्माण्ड के समस्त गुरु मंडल का स्मरण करे या जगद्गुरु भगवान् शिव का ध्यान कर लें ।
ॐ गुं गुरुभ्यो नमः।
श्री गणेश का स्मरण करे
ॐ श्री गणेशाय नमः।
भैरव बाबा का स्मरण करें
ॐ भ्रं भैरवाय नमः।
शिव शक्ति का स्मरण करें
ॐ साम्ब सदाशिवाय नमः।
चमच से चार बार बाए हाथ से दाहिने हाथ पर पानी लेकर पिए। एक मन्त्र के बाद एक बार पानी पीना है।
ॐ आत्मतत्वाय स्वाहा ।
ॐ विद्या तत्वाय स्वाहा ।
ॐ शिव तत्वाय स्वाहा ।
ॐ सर्व तत्वाय स्वाहा ।
गुरु सभी पूजन का आधार है इसलिए उनके लिए पूजन के स्थान पर पुष्प अक्षत अर्पण करे। नमः बोलकर सामग्री को छोड़ते हैं।
ॐ श्री गुरुभ्यो नमः
ॐ श्री परम गुरुभ्यो नमः
ॐ श्री पारमेष्ठी गुरुभ्यो नमः
हम पृथ्वी के ऊपर बैठकर पूजन कर रहे हैं इसलिए उनको प्रणाम करके उनकी अनुमति मांग के पूजन प्रारंभ किया जाता है जिसे पृथ्वी पूजन कहते हैं।
अपने आसन को उठाकर उसके नीचे कुमकुम से एक त्रिकोण बना दें उसे प्रणाम करें और निम्नलिखित मंत्र पढ़े और पुष्प अक्षत अर्पण करे।
ॐ पृथ्वी देव्यै नमः ।
देह न्यास :-
किसी भी पूजन को संपन्न करने से पहले संबंधित देवी या देवता को अपने शरीर में स्थापित होने और रक्षा करने के लिए प्रार्थना की जाती है इसके निमित्त तीन बार सर से पाँव तक हाथ फेरे। इस दौरान निम्नलिखित मंत्र का जाप करते रहे।
ॐ दुँ दुर्गायै नमः ।
कलश स्थापना :-
कलश को अमृत की स्थापना का प्रतीक माना जाता है। हमें जीवित रहने के लिए अमृत तत्व की आवश्यकता होती है। जो भी भोजन हम ग्रहण करते हैं उसका सार या अमृत जिसे आज वैज्ञानिक भाषा में विटामिन और प्रोटीन कहा जाता है वह जब तक हमारा शरीर ग्रहण न कर ले तब तक हम जीवित नहीं रह सकते। कलश की स्थापना करने का भाव यही है कि हम समस्त प्रकार के अमृत तत्व को अपने पास स्थापित करके उसकी कृपा प्राप्त करें और वह अमृत तत्व हमारे जीवन में और हमारे शरीर में स्थापित हो ताकि हम स्वस्थ निरोगी रह सकें।
कलश स्थापना के लिए निम्नलिखित मंत्र का उच्चारण करके मन में उपरोक्त भावना रखकर कलश की स्थापना कर सकते हैं।
ॐ अमृत कलशाय नमः ।
उसपर पुष्प,अक्षत,पानी छिड़के । ऐसी भावना करें कि जितनी पवित्र नदियां हैं उनका अमृततुल्य जल कलश मे समाहित हो रहा है ।
संकल्प :-(यह सिर्फ पहले दिन करना है )
संकल्प का तात्पर्य होता है कि आप महामाया के सामने एक प्रकार से एक एग्रीमेंट कर रहे हैं कि हे माता मैं आपके चरणों में अपने अमुक कार्य के लिए इतने मंत्र जाप का संकल्प लेता हूं और आप मुझे इस कार्य की सफलता का आशीर्वाद दें।
दाहिने हाथ में जल पुष्प अक्षत लेकर संकल्प (सिर्फ पहले दिन) करे।
“ मैं (अपना नाम और गोत्र
[गोत्र न मालूम हो तो भारद्वाज गोत्र कह सकते हैं ])
इस नवरात्री पर्व मे
भगवती दुर्गा की कृपा प्राप्त होने हेतु /अपनी समस्या निवारण हेतु /अपनी मनोकामना पूर्ति हेतु
( यहाँ समस्या या मनोकामना बोलेंगे )
यथा शक्ति (अगर रोज निश्चित संख्या मे नहीं कर सकते तो, अगर आप निश्चित संख्या में करेंगे तो वह संख्या यहाँ बोल सकते हैं जैसे 11 या 21 माला नित्य जाप )
करते हुए आपकी साधना नवरात्रि मे कर रहा हूँ। आप मेरी मनोकामना पूर्ण करें ”
इतना बोलकर जल छोड़े
(यह सिर्फ पहले दिन करना है )
अब गणेशजी का ध्यान करे
वक्रतुंड महाकाय सूर्य कोटि समप्रभ
निर्विघ्नं कुरु में देव सर्व कार्येषु सर्वदा
फिर भैरव जी का स्मरण करे
तीक्ष्ण दंष्ट्र महाकाय कल्पांत दहनोपम
भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातुमर्हसि
अब भगवती का ध्यान करे।
सर्व मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोस्तुते
इसके बाद आप अखंड ज्योति या दीपक जला सकते हैं ।
ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कृपालिनी
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।
अब भगवती को अपने पूजा स्थल मे आमंत्रित करें :-
ॐ दुँ दुर्गा देव्यै नमः ध्यायामि आवाहयामि स्थापयामि
पूजन के स्थान पर पुष्प अक्षत अर्पण करे ऐसी भावना करे की भगवती वहाँ साक्षात् उपस्थित है और आप उन्हें सारे उपचार अर्पण कर रहे है ।
भगवती का स्वागत कर पंचोपचार पूजन करे ,
अगर आपके पास सामग्री नहीं है तो मानसिक रूप से यानि उस वस्तु की भावना करते हुए पूजन करे।
ॐ दुँ दुर्गायै नमः गन्धम् समर्पयामि
(हल्दी कुमकुम चन्दन अष्टगंध अर्पण करे )
ॐ दुँ दुर्गायै नमः पुष्पम समर्पयामि
(फूल चढ़ाएं )
ॐ दुँ दुर्गायै नमः धूपं समर्पयामि
(अगरबत्ती या धुप दिखाएं )
ॐ दुँ दुर्गायै नमः दीपं समर्पयामि
(दीपक दिखाएँ )
ॐ दुँ दुर्गायै नमः नैवेद्यम समर्पयामि
(मिठाई दूध या फल अर्पण करे )
मां दुर्गा के 108 नाम से पूजन करें :-
· आप इनके सामने नमः लगाकर फूल,चावल,कुमकुम,अष्टगंध, हल्दी, सिंदूर जो आप चढ़ाना चाहें चढ़ा सकते हैं ।
· यदि कुछ न हो तो पानी चढ़ा सकते हैं ।
· वह भी न हो तो प्रणाम कर सकते हैं ।
( हर एक नाम मे "-" के बाद उस नाम का अर्थ लिखा हुआ है । आप केवल नाम का उच्चारण करके नमः लगा लेंगे । जैसे सती नमः , साध्वी नमः ..... )
1. सती- जो दक्ष यज्ञ की अग्नि में जल कर भी जीवित हो गई
2. साध्वी- सरल
3. भवप्रीता- भगवान शिव पर प्रीति रखने वाली
4. भवानी- ब्रह्मांड में निवास करने वाली
5. भवमोचनी- भव अर्थात संसारिक बंधनों से मुक्त करने वाली
6. आर्या- देवी
7. दुर्गा- अपराजेय
8. जया- विजयी
9. आद्य- जो सृष्टि का प्रारंभ है
10. त्रिनेत्र- तीन नेत्रों से युक्त
11. शूलधारिणी- शूल नामक अस्त्र को धारण करने वाली
12. पिनाकधारिणी- शिव का धनुष पिनाक को धारण करने वाली
13. चित्रा- सुरम्य
14. चण्डघण्टा- प्रचण्ड स्वर से घण्टा नाद करने वाली
15. सुधा- अमृत की देवी
16. मन- मनन-शक्ति की स्वामिनी
17. बुद्धि- सर्वज्ञाता
18. अहंकारा- अभिमान करने वाली
19. चित्तरूपा- वह जो हमारी सोच की स्वामिनी है
20. चिता- मृत्युशय्या
21. चिति- चेतना की स्वामिनी
22. सर्वमन्त्रमयी- सभी मंत्रों का ज्ञान रखने वाली
23. सत्ता- सत-स्वरूपा, जो सब से ऊपर है
24. सत्यानंद स्वरूपिणी- सत्य और आनंद के रूप वाली
25. अनन्ता- जिनके स्वरूप का कहीं अंत नहीं
26. भाविनी- सबको उत्पन्न करने वाली
27. भाव्या- भावना एवं ध्यान करने योग्य
28. भव्या-जो भव्यता की स्वामिनी है
29. अभव्या- जिससे बढ़कर भव्य कुछ नहीं
30. सदागति- हमेशा गतिशील या सक्रिय
31. शाम्भवी- शंभू की पत्नी
32. देवमाता- देवगण की माता
33. चिन्ता- चिन्ता की स्वामिनी
34. रत्नप्रिया- जो रत्नों को पसंद करती है उनकी की स्वामिनी है
35. सर्वविद्या- सभी प्रकार के ज्ञान की की स्वामिनी है
36. दक्षकन्या- प्रजापति दक्ष की बेटी
37. दक्षयज्ञविनाशिनी- दक्ष के यज्ञ को रोकने वाली
38. अपर्णा- तपस्या के समय पत्ते को भी न खाने वाली
39. अनेकवर्णा- अनेक रंगों वाली
40. पाटला- लाल रंग वाली
41. पाटलावती- गुलाब के फूल
42. पट्टाम्बरपरीधाना- रेशमी वस्त्र पहनने वाली
43. कलामंजीरारंजिनी- पायल की ध्वनि से प्रसन्न रहने वाली
44. अमेय- जिसकी कोई सीमा नहीं
45. विक्रमा- असीम पराक्रमी
46. क्रूरा- कठोर
47. सुन्दरी- सुंदर रूप वाली
48. सुरसुन्दरी- अत्यंत सुंदर
49. वनदुर्गा- जंगलों की देवी
50. मातंगी- महाविद्या
51. मातंगमुनिपूजिता- ऋषि मतंगा द्वारा पूजनीय
52. ब्राह्मी- भगवान ब्रह्मा की शक्ति
53. माहेश्वरी- प्रभु शिव की शक्ति
54. इंद्री- इंद्र की शक्ति
55. कौमारी- किशोरी
56. वैष्णवी- भगवान विष्णु की शक्ति
57. चामुण्डा- चंडिका
58. वाराही- वराह पर सवार होने वाली
59. लक्ष्मी- ऐश्वर्य और सौभाग्य की देवी
60. पुरुषाकृति- वह जो पुरुष रूप भी धारण कर ले
61. विमिलौत्त्कार्शिनी- आनन्द प्रदान करने वाली
62. ज्ञाना- ज्ञान की स्वामिनी है
63. क्रिया- हर कार्य की स्वामिनी
64. नित्या- जो हमेशा रहे
65. बुद्धिदा- बुद्धि देने वाली
66. बहुला- विभिन्न रूपों वाली
67. बहुलप्रेमा- सर्व जन प्रिय
68. सर्ववाहनवाहना- सभी वाहन पर विराजमान होने वाली
69. निशुम्भशुम्भहननी- शुम्भ, निशुम्भ का वध करने वाली
70. महिषासुरमर्दिनि- महिषासुर का वध करने वाली
71. मधुकैटभहंत्री- मधु व कैटभ का नाश करने वाली
72. चण्डमुण्ड विनाशिनि- चंड और मुंड का नाश करने वाली
73. सर्वासुरविनाशा- सभी राक्षसों का नाश करने वाली
74. सर्वदानवघातिनी- सभी दानवों का नाश करने वाली
75. सर्वशास्त्रमयी- सभी शास्त्रों को अपने अंदर समाहित करने वाली
76. सत्या- जो सत्य के साथ है
77. सर्वास्त्रधारिणी- सभी प्रकार के अस्त्र या हथियारों को धारण करने वाली
78. अनेकशस्त्रहस्ता- कई शस्त्र हाथों मे रखने वाली
79. अनेकास्त्रधारिणी- अनेक अस्त्र या हथियारों को धारण करने वाली
80. कुमारी- जिसका स्वरूप कन्या जैसा है
81. एककन्या- कन्या जैसे स्वरूप वाली
82. कैशोरी- किशोरी जैसे स्वरूप वाली
83. युवती- युवा स्त्री जैसे स्वरूप वाली
84. यति- जो तपस्वीयों मे श्रेष्ठ है
85. अप्रौढा- जो कभी वृद्ध ना हो
86. प्रौढा- जो वृद्ध भी है
87. वृद्धमाता- जो वृद्ध माता जैसे स्वरूप वाली है
88. बलप्रदा- शक्ति देने वाली
89. महोदरी- ब्रह्मांड को संभालने वाली
90. मुक्तकेशी- खुले बाल वाली
91. घोररूपा- भयंकर रूप वाली
92. महाबला- अपार शक्ति वाली
93. अग्निज्वाला- आग की ज्वाला की तरह प्रचंड स्वरूप वाली
94. रौद्रमुखी- विध्वंसक रुद्र की तरह भयंकर स्वरूप वाली
95. कालरात्रि- जो काल रात्री नामक महाशक्ति है
96. तपस्विनी- तपस्या में लगी हुई
97. नारायणी- भगवान नारायण की शक्ति
98. भद्रकाली- काली का भयंकर रूप
99. विष्णुमाया- भगवान विष्णु की माया
100. जलोदरी- जल में निवास करने वाली
101. शिवदूती- भगवान शिव की दूत
102. कराली- प्रचंड स्वरूपिणी
103. अनन्ता- जिसका ओर छोर नहीं है
104. परमेश्वरी- जो परम देवी है
105. कात्यायनी- महाविद्या कात्यायनी
106. सावित्री- देवी सावित्री स्वरूपिणी
107. प्रत्यक्षा- जो प्रत्यक्ष है
108. ब्रह्मवादिनी- ब्रह्मांड मे हर जगह वास करने वाली
अंत में एक आचमनी(चम्मच) जल चढ़ाये और प्रार्थना करें कि महाकाली महालक्ष्मी महासरस्वती स्वरूपा श्री दुर्गा जी मुझ पर कृपालु हों।
इसके बाद रुद्राक्ष माला से नवार्ण मन्त्र या दुर्गा मंत्र का यथाशक्ति या जो संख्या आपने निश्चित की है उतनी संख्या मे जाप करे ।
नवार्ण मंत्र :-
ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे
(ऐम ह्रीम क्लीम चामुंडायै विच्चे ऐसा उच्चारण होगा )
[Aim Hreem Kleem Chamundaaye vichche ]
सदगुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी (परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी) के अनुसार इसके प्रारम्भ में प्रणव अर्थात ॐ लगाने की जरुरत नहीं है ।
दुर्गा मंत्र:-
ॐ ह्रींम दुं दुर्गायै नम:
[Om Hreem doom durgaaye namah ]
रोज एक ही संख्या में जाप करे।
एक माला जाप की संख्या 100 मानी जाती है । माला में 108 दाने होते हैं । शेष 8 मंत्रों को उच्चारण त्रुटि या अन्य गलतियों के निवारण के लिए छोड़ दिया जाता है ।
अपनी क्षमतानुसार 1/3/5/7/11/21/33/51 या 108 माला जाप करे।
जब जाप पूरा हो जाये तो अपने दोनों कान पकड़कर किसी भी प्रकार की गलती के लिए क्षमा प्रार्थना करे .
उसके बाद भगवती का थोड़ी देर तक आँखे बंद कर ध्यान करे और वहीँ 5 मिनट बैठे रहें।
अंत मे आसन को प्रणाम करके उठ जाएँ।
आप चाहें तो इसे मेरे यूट्यूब चैनल पर देख और सुनकर उच्चारण कर सकते हैं