28 नवंबर 2025

निखिल धाम [ परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी को समर्पित मंदिर ]

     

निखिल धाम

[ परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्द जी को समर्पित मंदिर ]




परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी [ डा नारायण दत्त श्रीमाली जी ] का यह दिव्य मंदिर है.

इसका निर्माण परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी [Dr. Narayan dutta Shrimali Ji ] के प्रिय शिष्य स्वामी सुदर्शननाथ जी तथा डा साधना सिंह जी ने करवाया है.



यह [ Nikhildham ] भोपाल [ मध्यप्रदेश ] से लगभग २५ किलोमीटर की दूरी पर भोजपुर के पास लगभग ५ एकड के क्षेत्र में बना हुआ है.

यहां पर  महाविद्याओं के अद्भुत तेजस्वितायुक्त विशिष्ठ मन्दिर बनाये गये हैं.















21 नवंबर 2025

गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी : एक प्रचंड तंत्र साधक

 गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी : एक प्रचंड तंत्र साधक



साधना का क्षेत्र अत्यंत दुरुह तथा जटिल होता है. इसी लिये मार्गदर्शक के रूप में गुरु की अनिवार्यता स्वीकार की गई है.
गुरु दीक्षा प्राप्त शिष्य को गुरु का प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष मार्गदर्शन प्राप्त होता रहता है.
बाहरी आडंबर और वस्त्र की डिजाइन से गुरू की क्षमता का आभास करना गलत है.
एक सफ़ेद धोती कुर्ता पहना हुआ सामान्य सा दिखने वाला व्यक्ति भी साधनाओं के क्षेत्र का महामानव हो सकता है यह गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी से मिलकर मैने अनुभव किया.

भैरव साधना से शरभेश्वर साधना तक.......
कामकला काली से लेकर त्रिपुरसुंदरी तक .......
अघोर साधनाओं से लेकर तिब्बती साधना तक....
महाकाल से लेकर महासुदर्शन साधना तक सब कुछ अपने आप में समेटे हुए निखिल तत्व के जाज्वल्यमान पुंज स्वरूप...
गुरुदेव स्वामी सुदर्शननाथ जी
महाविद्या त्रिपुर सुंदरी के सिद्धहस्त साधक हैं.वर्तमान में बहुत कम महाविद्या सिद्ध साधक इतनी सहजता से साधकों के मार्गदर्शन के लिये उपलब्ध हैं.

आप चाहें तो उनसे संपर्क करके मार्गदर्शन ले सकते हैं :-

साधना सिद्धि विज्ञान
जास्मीन - 429
न्यू मिनाल रेजीडेंसी
जे. के. रोड , भोपाल [म.प्र.]
दूरभाष : (0755)
4269368,4283681,4221116

वेबसाइट:-

www.namobaglamaa.org


यूट्यूब चेनल :-

https://www.youtube.com/@MahavidhyaSadhakPariwar




17 नवंबर 2025

गुरुमाता डॉ. साधना सिंह : एक सिद्ध तंत्र गुरु

    गुरुमाता डॉ. साधना सिंह : एक सिद्ध तंत्र गुरु




वात्सल्यमयी गुरुमाता डॉ. साधना सिंह जी महाविद्या बगलामुखी की प्रचंड , सिद्धहस्त साधिका हैं.
स्त्री कथावाचक और उपदेशक तो बहुत हैं पर तंत्र के क्षेत्र में स्त्री गुरु अत्यंत दुर्लभ हैं.

तंत्र के क्षेत्र में स्त्री गुरु का बहुत महत्व होता है.
माँ अपने शिशु को स्नेह और वात्सल्य के साथ जो कुछ भी देती है वह उसके लिए अनुकूल हो जाता है . 

स्त्री गुरु मातृ स्वरूपा होने के कारण उनके द्वारा प्रदत्त मंत्र साधकों को सहज सफ़लता प्रदायक होते हैं. स्त्री गुरु द्वारा प्रदत्त मंत्र स्वयं में सिद्ध माने गये हैं.

वे एक  योगाचार्य और विश्वविख्यात होम्यो पैथ भी हैं । उनके लेख वर्षों तक प्रतिष्ठित पत्रिका निरोगधाम में प्रकाशित होते रहे हैं । आप उनसे अपनी असाध्य बीमारियों पर भी सलाह एप्वाइंटमेंट लेकर ले सकते हैं।

मैने तंत्र साधनाओं की वास्तविकता और उनकी शक्तियों का अनुभव पूज्यपाद सदगुरुदेव स्वामी निखिलेश्वरानंद जी [डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी ] तथा उनके बाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शननाथ जी और गुरुमाता डॉ. साधना सिंह जी के सानिध्य में किया है ।

आप भी उनसे मिलकर प्रत्यक्ष मार्गदर्शन ले सकते हैं :-


जास्मीन - 429
न्यू मिनाल रेजीडेंसी
जे. के. रोड , भोपाल [म.प्र.]
दूरभाष : (0755)
4269368,4283681,4221116

वेबसाइट:-

www.namobaglamaa.org


यूट्यूब चेनल :-

https://www.youtube.com/@MahavidhyaSadhakPariwar

14 नवंबर 2025

दस महाविद्याये तथा उनकी साधना से होने वाले लाभ

  दस महाविद्याये तथा उनकी साधना से होने वाले लाभ 


मेरे सदगुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी ने दसों महाविद्याओं के सम्बन्ध में विस्तृत विवेचन किया है . उनके प्रवचन के ऑडियो/वीडियो आप इंटरनेट पर सर्च करके या यूट्यूब पर सुन सकते हैं . तथा विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं .  


जितना मैंने जाना है उसके आधार पर मुझे ऐसा लगता है कि सभी महाविद्याओं से आध्यात्मिक शक्ति की वृद्धि तथा सर्व मनोकामना की पूर्ती होती है . इसके अलावा जो विशेष प्रयोजन सिद्ध होते हैं उनका उल्लेख इस प्रकार से किया गया है .  

महाकाली - मानसिक प्रबलता /सर्वविध रक्षा / कुण्डलिनी जागरण /पौरुष 

तारा - आर्थिक उन्नति / कवित्व / वाक्शक्ति 

त्रिपुर सुंदरी - आर्थिक/यश / आकर्षण 

भुवनेश्वरी - आर्थिक/स्वास्थ्य/प्रेम 

छिन्नमस्ता - तन्त्रबाधा/शत्रुबाधा / सर्वविध रक्षा

त्रिपुर भैरवी - तंत्र बाधा / शत्रुबाधा / सर्वविध रक्षा

धूमावती - शत्रु बाधा / सर्वविध रक्षा 

बगलामुखी - शत्रु स्तम्भन / वाक् शक्ति / सर्वविध रक्षा

मातंगी - सौंदर्य / प्रेम /आकर्षण/काव्य/संगीत  

कमला - आर्थिक उन्नति 


महाविद्याओं की साधना उच्चकोटि की साधना है . आप अपनी रूचि के अनुसार किसी भी महाविद्या की साधना कर सकते हैं . महाविद्या साधना आपको जीवन में सब कुछ प्रदान करने में सक्षम है .

यदि आप सात्विक पद्धति से गृहस्थ जीवन में रहते हुए ही , महाविद्या साधना सिद्धि करना चाहते हैं तो आप महाविद्या से सम्बंधित दीक्षा तथा मंत्र प्राप्त करने के लिए मेरे गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी से या गुरुमाता डा साधना सिंह जी से संपर्क कर सकते हैं .


विस्तृत जानकारी के लिए नीचे दिए गए वेबसाइट तथा यूट्यूब चैनल का अवलोकन कर सकते हैं . 

contact for details
वेबसाइट
namobaglamaa.org

यूट्यूब चैनल
https://youtube.com/c/MahavidhyaSadhakPariwar

11 नवंबर 2025

काल भैरव साधना

    




काल भैरव साधना निम्नलिखित परिस्थितियों में लाभकारी है :-
  • शत्रु बाधा.
  • तंत्र बाधा.
  • इतर योनी से कष्ट.
  • उग्र साधना में रक्षा हेतु.
काल भैरव मंत्र :-

|| ॐ भ्रं काल भैरवाय फट ||

विधि :-
  1. रात्रि कालीन साधना है.अमावस्या, नवरात्रि,कालभैरवाष्टमी, जन्माष्टमी या किसी भी अष्टमी से प्रारंभ करें.
  2. रात्रि 9 से 4 के बीच करें.
  3. काला आसन और वस्त्र रहेगा.
  4. रुद्राक्ष या काली हकिक माला से जाप करें.
  5. १०००,५०००,११०००,२१००० जितना आप कर सकते हैं उतना जाप करें.
  6. जाप के बाद १० वा हिस्सा यानि ११००० जाप करेंगे तो ११०० बार मंत्र में स्वाहा लगाकर हवन  कर लें.
  7. हवन सामान्य हवन सामग्री से भी कर सकते हैं.
  8. काली  मिर्च या  तिल का प्रयोग भी कर सकते हैं.
  9. अंत में एक कुत्ते को भरपेट भोजन करा दें. काला कुत्ता हो तो बेहतर.
  10. एक नारियल [पानीवाला] आखिरी दिन अपने सर से तीन बार घुमा लें, अपनी इच्छा उसके सामने बोल दें. 
  11. किसी सुनसान जगह पर बने शिव या काली मंदिर में छोड़कर बिना पीछे मुड़े वापस आ जाएँ. 
  12. घर में आकर स्नान कर लें. 
  13. दो अगरबत्ती जलाकर शिव और शक्ति से कृपा की प्रार्थना करें. 
  14. किसी भी प्रकार की गलती हो गयी हो तो उसके लिए क्षमा मांगे.
  15. दोनों अगरबत्ती घर के द्वार पर लगा दें.

10 नवंबर 2025

भैरव अष्टोत्तर शत नाम

 

     

    भैरव अष्टोत्तर शत नाम



    01) ॐ भैरवाय नम:
    02) ॐ भूतनाथाय नम: 
    03) ॐ भूतात्मने नम: 
    04) ॐ भूतभावनाय नम: 
    05) ॐ क्षेत्रदाय नम: 
    06) ॐ क्षेत्रपालाय नम: 
    07) ॐ क्षेत्रज्ञाय नम: 
    08) ॐ क्षत्रियाय नम: 
    09) ॐ विराजे नम: 
    10) ॐ श्मशानवासिने नम: 
    11) ॐ मांसाशिने नम: 
    12) ॐ खर्पराशिने नम: 
    13) ॐ स्मरांतकाय नम: 
    14) ॐ रक्तपाय नम: 
    15) ॐ पानपाय नम: 
    16) ॐ सिद्धाय नम: 
    17) ॐ सिद्धिदाय नम: 
    18) ॐ सिद्धसेविताय नम: 
    19) ॐ कंकालाय नम:
    20) ॐ कालशमनाय नम: 
    21) ॐ कलाकाष्ठाय नम: 
    22) ॐ तनये नम: 
    23) ॐ कवये नम:
    24) ॐ त्रिनेत्राय नम: 
    25) ॐ बहुनेत्राय नम: 
    26) ॐ पिंगललोचनाय नम: 
    27) ॐ शूलपाणये नम: 
    28) ॐ खडगपाणये नम: 
    29) ॐ कंकालिने नम: 
    30) ॐ धूम्रलोचनाय नम: 
    31) ॐ अभीरवे नम: 
    32) ॐ भैरवीनाथाय नम: 
    33) ॐ भूतपाय नम: 
    34) ॐ योगिनीपतये नम: 
    35) ॐ धनदाय नम: 
    36) ॐ अधनहारिणे नम: 
    37) ॐ धनवते नम: 
    38) ॐ प्रीतिवर्धनाय नम: 
    39) ॐ नागहाराय नम: 
    40) ॐ नागपाशाय नम: 
    41) ॐ व्योमकेशाय नम: 
    42) ॐ कपालभृते नम: 
    43) ॐ कालाय नम: 
    44) ॐ कपालमालिने नम: 
    45) ॐ कमनीयाय नम: 
    46) ॐ कलानिधये नम: 
    47) ॐ त्रिनेत्राय नम: 
    48) ॐ ज्वलन्नेत्राय नम: 
    49) ॐ त्रिशिखिने नम: 
    50) ॐ त्रिलोकपालाय नम: 
    51) ॐ त्रिवृत्ततनयाय नम: 
    52) ॐ डिंभाय नम: 
    53) ॐ शांताय नम: 
    54) ॐ शांतजनप्रियाय नम: 
    55) ॐ बटुकाय नम: 
    56) ॐ बटुवेशाय नम: 
    57) ॐ खट्वांगधराय नम: 
    58) ॐ भूताध्यक्षाय नम: 
    59) ॐ पशुपतये नम: 
    60) ॐ भिक्षकाय नम: 
    61) ॐ परिचारकाय नम: 
    62) ॐ धूर्ताय नम: 
    63) ॐ दिगंबराय नम: 
    64) ॐ शूराय नम: 
    65) ॐ हरिणे नम: 
    66) ॐ पांडुलोचनाय नम: 
    67) ॐ प्रशांताय नम: 
    68) ॐ शांतिदाय नम: 
    69) ॐ शुद्धाय नम: 
    70) ॐ शंकरप्रियबांधवाय नम: 
    71) ॐ अष्टमूर्तये नम: 
    72) ॐ निधीशाय नम: 
    73) ॐ ज्ञानचक्षुषे नम: 
    74) ॐ तपोमयाय नम: 
    75) ॐ अष्टाधाराय नम: 
    76) ॐ षडाधाराय नम: 
    77) ॐ सर्पयुक्ताय नम: 
    78) ॐ शिखिसखाय नम: 
    79) ॐ भूधराय नम: 
    80) ॐ भूधराधीशाय नम: 
    81) ॐ भूपतये नम: 
    82) ॐ भूधरात्मजाय नम: 
    83) ॐ कपालधारिणे नम: 
    84) ॐ मुंडिने नम: 
    85) ॐ नागयज्ञोपवीतवते नम: 
    86) ॐ जृंभणाय नम: 
    87) ॐ मोहनाय नम: 
    88) ॐ स्तंभिने नम: 
    89) ॐ मारणाय नम: 
    90) ॐ क्षोभणाय नम: 
    91) ॐ शुद्धनीलांजनप्रख्याय नम: 
    92) ॐ दैत्यघ्ने नम: 
    93) ॐ मुंडभूषिताय नम: 
    94) ॐ बलिभुजे नम: 
    95) ॐ बलिभुंगनाथाय नम: 
    96) ॐ बालाय नम: 
    97) ॐ बालपराक्रमाय नम: 
    98) ॐ सर्वापत्तारणाय नम: 
    99) ॐ दुर्गाय नम: 
    100) ॐ दुष्टभूतनिषेविताय नम: 
    101) ॐ कामिने नम: 
    102) ॐ कलानिधये नम: 
    103) ॐ कांताय नम: 
    104) ॐ कामिनीवशकृद्वशिने नम: 
    105) ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नम: 
    106) ॐ वैद्याय नम: 
    107) ॐ प्रभवे नम: 
    108) ॐ विष्णवे नम:

    विधि:-
    • काला/लाल वस्त्र पहनें.
    • दक्षिण दिशा की और मुख रखें .
    • भैरव यंत्र या चित्र या पंचमुखी रुद्राक्ष रखकर कर सकते हैं .
    • सरसों के तेल का दीपक जला सकते हैं .
    • हर मन्त्र के साथ सिंदूर या लाल पुष्प चढ़ाएं .

9 नवंबर 2025

भैरवं नमामि

  


भैरवं नमामि
यं यं यं यक्ष रूपं दश दिशि विदितं भूमि कम्पायमानं
सं सं सं संहार मूर्ति शुभ मुकुट जटा शेखरं चन्द्र विम्बं
दं दं दं दीर्घ कायं विकृत नख मुख चौर्ध्व रोमं करालं
पं पं पं पाप नाशं प्रणमतं सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ १ ॥
रं रं रं रक्तवर्णं कटक कटितनुं तीक्ष्णदंष्ट्रा विशालं
घं घं घं घोर घोषं घ घ घ घ घर्घरा घोर नादं
कं कं कं कालरूपं धग धग धगितं ज्वलितं कामदेहं
दं दं दं दिव्य देहं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ २ ॥
लं लं लं लम्ब दन्तं ल ल ल ल लुलितं दीर्घ जिह्वाकरालं
धूं धूं धूं धूम्रवर्ण स्फुट विकृत मुखंमासुरं भीम रूपं
रूं रूं रूं रुण्डमालं रुधिरमय मुखं ताम्र नेत्रं विशालं
नं नं नं नग्नरूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ ३ ॥
वं वं वं वायुवेगं प्रलय परिमितं ब्रह्मरूपं स्वरूपं
खं खं खं खड्गहस्तं त्रिभुवन निलयं भास्करं भीमरूपं
चं चं चं चालयन्तं चल चल चलितं चालितं भूत चक्रं
मं मं मं मायकायं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ ४ ॥
खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं काल कालान्धकारं
क्षि क्षि क्षि क्षिप्र वेग दह दह दहन नेत्रं सन्दीप्यमानं
हूं हूं हूं हूंकार शब्दं प्रकटित गहन गर्जितं भूमिकंपं
बं बं बं बाललीलम प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालं ॥ ५ ॥

  • भैरव प्रार्थना है.
  • उनकी कृपा प्रदान करती है .

8 नवंबर 2025

रक्षा कारक भैरव् यंत्र !

 रक्षा कारक भैरव् यंत्र  !



नकारात्मक शक्तियों से परेशान हैं ?

घर/दुकान पर तंत्र प्रयोग का संदेह है ?

तो आपको रक्षा प्रयोग करना चाहिए ....  

रक्षा कारक देवताओं में भगवान भैरव को सबसे महत्वपूर्ण माना गया है । इन्हें भगवान शिव का ही एक स्वरूप माना गया है । प्रत्येक पूजन में विघ्नों से रक्षा के लिए भगवान गणेश की पूजा के पश्चात सर्व विध रक्षा के लिए भगवान श्री भैरव का पूजन संपन्न किया जाता है . प्रमुख रूप से आठ प्रकार के भैरव माने गए हैं । कई तांत्रिक ग्रन्थों में 51 और 64 प्रकार के भैरव का भी उल्लेख मिलता है । 

यूट्यूब पर उपलब्ध विडियोस मे आप पाएंगे कि गुरुदेव डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी ने अपने प्रवचनों में कई बार भैरव साधना के विषय में महत्वपूर्ण जानकारियां दी है उनमें से एक महत्वपूर्ण जानकारी यह भी है कि भैरव यंत्र का पूजन करके अगर आप उसे घर के प्रमुख द्वार के ऊपर लटका दें तो नकारात्मक शक्तियों का घर के अंदर प्रवेश नहीं हो पाता है ।.

आपके नाम से भैरव यंत्र [शुल्क- पाँच सौ एक रुपये मात्र] अभिमंत्रित करके आपको स्पीड पोस्ट से भेजने की व्यवस्था हमारे प्रतिष्ठान " अष्टलक्ष्मी पूजा सामग्री" की तरफ से की जा सकती है, इसके लिए आप इस क्यूआर कोड़ का उपयोग भी कर सकते हैं :- 





यदि आप इच्छुक हो तो आप निम्नलिखित जानकारी मेरे व्हाट्सएप नंबर 7000630499 पर भेज देंगे  ➖

1> निर्धारित शुल्क 501 रुपये का शुल्क फोन पे/गूगल पे//पे टी एम  के द्वारा भेजे जाने की रसीद/स्क्रीन शॉट ।

2> आपका नाम ।

3> आपका गोत्र, जन्म तिथि,समय,स्थान (यदि मालूम हो तो )

4> बिना चश्मे के आपकी एक ताजा फोटो जिसमे आपका चेहरा और आँखें स्पष्ट दिखती हों ।

5> पिन कोड़ सहित, आपका पूरा डाक का पता, जिस पते पर पार्सल भेजना है । साथ मे आपका वह मोबाइल नंबर जिसपर पोस्टमेन आवश्यकता पड़ने पर आपसे पार्सल डिलिवरी के समय संपर्क कर सके ।



7 नवंबर 2025

काल भैरव अष्टकम

  


काल भैरव अष्टकम

देवराज सेव्यमान पावनांघ्रि पङ्कजं व्याल यज्ञ सूत्रमिन्दु शेखरं कृपाकरम् ।

नारदादि योगिवृन्द वन्दितं दिगंबरं काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ १॥

जिनके चरण कमलों की पूजा देवराज इन्द्र द्वारा की जाती हैजिन्होंने सर्प को एक यज्ञोपवीत के रूप में धारण किया हैजिनके ललाट पर चन्द्रमा शोभायमान है और जो अति करुणामयी हैंजिनकी स्तुति देवों के मुनि नारद और सभी योगियों द्वारा की जाती हैजो दिगंबर रूप में रहते हैंऐसे काशी नगरी के अधिपतिभगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।

भानुकोटि भास्वरं भवाब्धि तारकं परं नीलकण्ठमीप्सितार्थ दायकं त्रिलोचनम् ।

काल कालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ २॥

जिनकी आभा कोटि सूर्यों के प्रकाश के समान हैजो अपने भक्तों को जन्म मृत्यु के चक्र से रक्षा करते हैंऔर जो सबसे महान हैं जिनका कंठ नीला हैजो हमारी इच्छाओं और आशाओं को पूरा करते हैं और जिनके तीन नेत्र हैंजो स्वयं काल के लिए भी काल हैं और जिनके नयन पंकज के पुष्प जैसे हैंजिनके हाथ में त्रिशूल हैऐसे काशी नगरी के अधिपतिभगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।

शूलटंक पाशदण्ड पाणिमादिकारणं श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ।

भीमविक्रमं प्रभुं विचित्र ताण्डवप्रियं काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ३॥

जिनके हाथों में त्रिशूलकुल्हाड़ीपाश और दंड धारण किए हैंजिनका शरीर श्याम हैजो स्वयं आदिदेव हैं और अविनाशी हैं और सांसारिक दुःखों से परे हैंजो सर्वशक्तिमान हैंऔर विचित्र तांडव उनका प्रिय नृत्य हैऐसे काशी नगरी के अधिपतिभगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।

भुक्ति मुक्तिदायकं प्रशस्त चारुविग्रहं भक्तवत्सलं स्थितं समस्त लोकविग्रहम् ।

विनिक्वणन्मनोज्ञ हेमकिङ्किणीलसत्कटिं काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥ ४॥

जो अपने भक्तों की सभी इच्छाओं की पूर्ति और मुक्तिदोनों प्रदान करते हैं और जिनका रूप मनमोहक हैजो अपने भक्तों से सदा प्रेम करते हैं और समूचे ब्रह्मांड मेंतीनों लोकों में में स्थित हैंजिनकी कमर पर सोने की घंटियाँ बंधी हुई है और जब भगवान चलते हैं तो उनमें से सुरीले सुर निकलते हैंऐसे काशी नगरी के अधिपतिभगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।

धर्मसेतु पालकं त्वधर्म मार्गनाशनं कर्मपाश मोचकं सुशर्म धायकं विभुम् ।

स्वर्णवर्ण शेषपाश शोभितांग मण्डलं काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ५॥

काशी नगर के स्वामीभगवान कालभैरवजो सदैव धर्म की रक्षा और अधर्म का नाश करते हैंजो हमें कर्मों के बंधन से मुक्त करके हमारी आत्माओं को मुक्त करते हैंऔर जो अपने तन पर सुनहरे रंग के सर्प लपेटे हुए हैंऐसे काशी नगरी के अधिपतिभगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।

रत्नपादुका प्रभाभिरामपाद युग्मकं नित्यमद्वितीयमिष्ट दैवतं निरंजनम् ।

मृत्युदर्प नाशनं कराल दंष्ट्रमोक्षणं काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ६॥

जिनके दोनों पैरों में रत्नजड़ित पादुकायें हैंजो शाश्वत्अद्वैत इष्ट देव हैं और हमारी कामनाओं को पूरा करते हैंजो मृत्यु के देवतायम का दर्प नष्ट करने मे सक्षम हैंजिनके भयानक दाँत हमारे लिए मुक्तिदाता हैंऐसे काशी नगरी के अधिपतिभगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।

अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं दृष्टिपात्तनष्टपापजालमुग्रशासनम् ।

अष्टसिद्धि दायकं कपालमालिका धरं काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ७॥

जिनके हास्य की प्रचंड ध्वनि कमल जनित ब्रह्मा जी द्वारा रचित सृष्टियों को नष्ट कर देती हैंअर्थात् हमारे मन की भ्रांतियों को दूर करती हैजिनके एक दृष्टिपात मात्र से हमारे सभी पाप नष्ट हो जाते हैंजो अष्टसिद्धि के दाता हैं और जो खोपड़ियों से बनी माला धारण किए हुए हैंकाशी नगरी के अधिपतिभगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।

भूतसंघ नायकं विशाल कीर्तिदायकं काशिवास लोकपुण्यपापशोधकं विभुम् ।

नीतिमार्ग कोविदं पुरातनं जगत्पतिं काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ८॥

जो भूतों के संघ के नायक हैंजो अद्भुत कीर्ति प्रदान करते हैंजो काशी की प्रजा को उनके पापों और पुण्य दोनों से मुक्त करते हैंजो हमें नीति और सत्य का मार्ग दिखाते हैं और जो ब्रह्मांड के आदिदेव हैंऐसे काशी नगरी के अधिपतिभगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।

कालभैरवाष्टकं पठंति ये मनोहरं ज्ञान मुक्तिसाधनं विचित्र पुण्य वर्धनम्।

शोक मोह दैन्य लोभ कोप तापनाशनं ते प्रयान्ति कालभैरवांघ्रिसन्निधिं नरा ध्रुवम्॥९॥

यह अतिसुंदर काल भैरव अष्टकजो ज्ञान तथा मुक्ति का स्रोत हैजो व्यक्ति में सत्य और नीति के आदर्शों को स्थापित करने वाला हैजो दुःखरागनिर्धनतालोभक्रोधऔर ताप को नाश करने वाला है । इस स्तोत्र का जो पाठ करता है वह भगवान कालभैरव अर्थात् शिव चरणों को प्राप्त करता है ।


विधि :-

भगवान काल भैरव के इस अष्टक का नित्य 11 पाठ 11 दिन करें । 

सामने सरसों के तेल का दीपक जलाकर जाप करेंगे । 

काले रंग का वस्त्र और आसन पहनकर बैठें ।