10 जुलाई 2025

डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी

 मेरे पूज्यपाद गुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी अब सशरीर हमारे बीच नहीं है । 


 डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी

इस वीडियो के माध्यम से आप मानसिक रूप से उन्हे गुरु मानकर गुरु दीक्षा ग्रहण कर सकते हैं । और गुरु मंत्र का जाप कर सकते हैं ।




जैसे जैसे आपका गुरु मंत्र का जाप बढ़ता जाएगा आपको स्वप्न मे या किसी न किसी माध्यम से साधनात्मक निर्देश या मार्ग प्राप्त हो जाएगा .... 

गुरु मंत्र
॥ ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः ॥

1.    गुरु मंत्र जाप के लिए ब्रह्म मुहूर्त अर्थात 3 से 6 बजे का समय सबसे बढ़िया है । संभव न हो तो कभी भी कर सकते हैं ।
2.  मंत्र जाप के काल मे शुद्ध आचार व्यवहार और विचार रखें ।
3.  सभी स्त्रियों को मातृवत समझें तथा उनका सम्मान करें ।
4. यथासंभव ब्रह्मचर्य का पालन करें ।
5.  संभव हो तो नित्य एक निश्चित समय पर बैठें ।
6.  जाप पूरा हो जाने के बाद उस स्थान पर कम से कम पाँच मिनट आँख बंद करके बैठे रहें ।  
7.   108 मनकों की माला से मंत्र जाप किया जाता है ।
8.  रुद्राक्ष या स्फटिक माला श्रेष्ठ है ।
9.  मंत्र जाप की गिनती करते समय एक माला के जाप को 100 मंत्र माना जाता है ।      
   

मंत्र जाप करते समय एक माला के 108 मे से बचे 8 मंत्र के जाप को उच्चारणकी त्रुटि या किसी प्रकार की अन्य त्रुटि के समाधान के लिए छोड़ दिया जाता है ।  

सवा लाख मंत्र जाप का एक पुरश्चरण माना जाता है । इसके लिए आपको 1250 माला मंत्र जाप करना होगा ।

किसी भी प्रकार की साधना करते समय सबसे पहले गुरु मंत्र का पुरश्चरण सवा लाख जाप कर लेना चाहिए । 

गुरुदेव अधिकांश साधकों को अपने उपस्थित होने का आभास कराते हैं । इनमे से कुछ आभास ऐसे होते हैं :-

स्वप्न मे या जागृति मे या ध्यान मे गुरुदेव के दर्शन । 

आपके आसपास गुलाब या अष्टगंध की खुशबू का आना ।

कमरे मे किसी श्वेत वस्त्रधारी के होने का आभास होना ।

अटके हुए काम बनने लगना ।

घर मे झगड़े होते हों तो वह कम हो जाना ।

बीमारी और बेवजह के खर्च मे कमी आना ।

घर का वातावरण सुकून देने लगना ।  

गुरुपुर्णिमा विशेष ब्रह्मांडीय गुरुमंडल साधना

  







गुरुपुर्णिमा विशेष ब्रह्मांडीय गुरुमंडल साधना
( दुर्लभ गुरु अष्टोत्तर शत नामावली सहित )
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यहां पर गुरुपौर्णिमा के पर्व पर करने के लिये मैं ब्रम्हांड के समस्त गुरुमंडल की एक छोटी साधना प्रस्तुत कर रहा हूँ जो की उन लोगों को ध्यान में रखकर बनायी है जो ज्यादा समय तक साधना नहीं कर सकते या जटिल पूजन विधि नहीं कर सकते। यह पूजन किसी एक गुरु परंपरा का नही वरन समस्त गुरुपरंपरा का है इसलिए इसे कोइ भी कर सकता है .. अगर आपके कोइ गुरु नही है तो भी करे .. आपको समस्त गुरुमंडल की कृपा प्राप्त होगी ..
1.       सब पहले आपके सामने गुरुदेव जी का गुरुमंडल अंतर्गत आनेवाले किसीभी योगी या संत का कोई भी चित्र या यंत्र या मूर्ति हो। इनमेसे कुछ भी नही तो आपके रत्न या रुद्राक्ष पर पूजन करे .
2.       घी का दीपक या तेल का दीपक या दोनों दीपक जलाये। 
3.       धुप अगरबत्ती जलाये।
4.       बैठने के लिए आसन हो। 
5.       जाप के लिए रुद्राक्ष माला या स्फटिक माला ले
6.       एक आचमनी पात्र जल पात्र रखे।
7.       हल्दी,कुंकुम ,चन्दन,अष्टगंध और अक्षत पुष्प ,नैवेद्य के लिए मिठाई या दूध या कोई भी वस्तु ,फल भी एकत्रित करे। 
8.       अगर यह सामग्री नहीं है तो मानसिक पूजन करे

सबसे पहले गुरु ,गणेश इन्हे वंदन करे

ॐ गुं गुरुभ्यो नम: 

ॐ श्री गणेशाय नम: 

ऐं ह्रीं श्रीं श्री ललितायै नम: 

ॐ श्री गुरुमंडलाय नम:

फिर आचमन करे 

ऐं आत्मतत्वाय स्वाहा 

ऐं विद्या तत्वाय स्वाहा 

ऐं शिव तत्वाय स्वाहा 

ऐं सर्व तत्वाय स्वाहा

फिर गुरु स्मरण करे और पुजन के लिये पुष्प अक्षत अर्पण करे

ॐ श्री गुरुभ्यो नम: 


ॐ श्री परम गुरुभ्यो नम: 


ॐ श्री पारमेष्ठी गुरुभ्यो नम:

 

अब आसन पर पुष्प अक्षत अर्पण करे

ॐ पृथ्वी देव्यै नमः


चारो तरफ दिशा बंधन हेतु अक्षत फेके और अपनी शिखा पर दाहिना हाथ रखे
फिर दीपक को प्रणाम करे


दीप देवताभ्यो नमः

कलश में जल डाले और उसमे चन्दन या सुगन्धित द्रव्य डाले

कलश देवताभ्यो नमः


अब अपने आप को तिलक करे
गणेश जी के लिये पुष्प अक्षत अर्पण करे

वक्रतुंड महाकाय सुर्यकोटी समप्रभ 

निर्विघ्नम कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा


अब आप हाथ मे जल ,अक्षत ,पुष्प लेकर तिथी वार नक्षत्र आदि का स्मरण कर संकल्प करे की आप आज गुरुपौर्णिमा के पावन पर्व पर अपने सदगुरुदेव एवं संपूर्ण गुरुमंडल की कृपा प्राप्ति हेतु गुरुपूजन संपन्न कर रहे है और उनकी कृपा प्राप्त हो और आपकी आध्यात्मिक एवं भौतिक उन्नती हो और आपकी जो भी समस्या है उसका निवारण हो ..

गुरुस्मरण कर सर्वप्रथम उनका आवाहन करे

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर: 

गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नम:

ध्यान मूलं गुरु: मूर्ति पूजा मूलं गुरो पदं 

मंत्र मूलं गुरुर्वाक्य मोक्ष मूलं गुरुकृपा

गुरुकृपा हि केवलं

गुरुकृपा हि केवलं 

गुरुकृपा हि केवलं

गुरुकृपा हि केवलं

 

श्री सदगुरु चरण कमलेभो नम: प्रार्थना पुष्पं समर्पयामि


श्री सदगुरु मम ह्रदये आवाहयामि स्थापयामि नम:
सदगुरुदेव का अब पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करे .. यहाँ पर पंचोपचार पूजन प्रस्तुत किया है ..

ॐ गुं गुरुभ्यो नम: गंधं समर्पयामि


ॐ गुं गुरुभ्यो नम: पुष्पम समर्पयामि


ॐ गुं गुरुभ्यो नम: धूपं समर्पयामि


ॐ गुं गुरुभ्यो नम: दीपं समर्पयामि


ॐ गुं गुरुभ्यो नम: नैवेद्यम समर्पयामि


अब गुरु पंक्ति का पूजन करे

ॐ गुरुभ्यो नम:
ॐ परम गुरुभ्यो नम:
ॐ परात्पर गुरुभ्यो नम:
ॐ पारमेष्ठी गुरुभ्यो नम:
ॐ दिव्यौघ गुरुपंक्तये नम:
ॐ सिद्धौघ गुरुपंक्तये नम:
ॐ मानवौघ गुरुपंक्तये नम:

अब गुरु अष्टोत्तर शत नामावली से एकेक नाम का उच्चारण करते हुये पुष्प अक्षत अर्पण करते जाये ..

श्री सदगुरु अष्टोत्तरशत नामावली
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1) ॐ सदगुरवे नम:
2) ॐ अज्ञान नाशकाय नम:
3) ॐ अदंभिने नम:
4) ॐ अद्वैतप्रकाशकाय नम:
5) ॐ अनपेक्षाय नम:
06) ॐ अनसूयवे नम:
07) ॐ अनुपमाय नम:
08) ॐ अभयप्रदात्रे नम:
09) ॐ अमानिने नम:
10) ॐ अहिंसामूर्तये नम:
11) ॐ अहैतुकस्दयासिंधवे नम:
12) ॐ अहंकारनाशकाय नम:
13) ॐ अहंकारवर्जिताय नम:
14) ॐ आचार्येंद्राय नम:
15) ॐ आत्मसंतुष्टाय नम:
16) ॐ आनंदमूर्तये नम:
17) ॐ आर्जवयुक्ताय नम:
18) ॐ उचितवाचे नम:
19) ॐ उत्साहिने नम:
20) ॐ उदासीनाय नम:
21) ॐ उपरताय नम:
22) ॐ ऐश्वर्ययुक्ताय नम:
23) ॐ कृतकृत्याय नम:
24) ॐ क्षमावते नम:
25) ॐ गुणातीताय नम:
26) ॐ चारुवाग्विलासाय नम:
27) ॐ चारुहासाय नम:
28) ॐ छिन्नसंशयाय नम:
29) ॐ ज्ञानदात्रे नम:
30) ॐ ज्ञानयज्ञतत्पराय नम:
31) ॐ तत्त्वदर्शिने नम:
32) ॐ तपस्विने नम:
33) ॐ तापहराय नम:
34) ॐ तुल्यनिंदास्तुतये नम:
35) ॐ तुल्यप्रियाप्रियाय नम:
36) ॐ तुल्यमानापमानाय नम:
37) ॐ तेजस्विने नम:
38) ॐ त्यक्तसर्वपरिग्रहाय नम:
39) ॐ त्यागिने नम:
40) ॐ दक्षाय नम:
41) ॐ दांताय नम:
42) ॐ दृढव्रताय नम:
43) ॐ दोषवर्जिताय नम:
44) ॐ द्वंद्वातीताय नम:
45) ॐ धीमते नम:
46) ॐ धीराय नम:
47) ॐ नित्यसंतुष्टाय नम:
48) ॐ निरहंकाराय नम:
49) ॐ निराश्रयाय नम:
50) ॐ निर्भयाय नम:
51) ॐ निर्मदाय नम:
52) ॐ निर्ममाय नम:
53) ॐ निर्मलाय नम:
54) ॐ निर्मोहाय नम:
55) ॐ निर्योगक्षेमाय नम:
56) ॐ निर्लोभाय नम:
57) ॐ निष्कामाय नम:
58) ॐ निष्क्रोधाय नम:
59) ॐ नि:संगाय नम:
60) ॐ परमसुखदाय नम:
61) ॐ पंडिताय नम:
62) ॐ पूर्णाय नम:
63) ॐ प्रमाण प्रवर्तकाय नम:
64) ॐ प्रियभाषिणे नम:
65) ॐ ब्रह्मकर्मसमाधये नम:
66) ॐ ब्रह्मात्मनिष्ठाय नम:
67) ॐ ब्रह्मात्मविदे नम:
68) ॐ भक्ताय नम:
69) ॐ भवरोगहराय नम:
70) ॐ भुक्तिमुक्तिप्रदात्रे नम:
71) ॐ मंगलकर्त्रे नम:
72) ॐ मधुरभाषिणे नम:
73) ॐ महात्मने नम:
74) ॐ महावाक्योपदेशकर्त्रे नम:
75) ॐ मितभाषिणे नम:
76) ॐ मुक्ताय नम:
77) ॐ मौनिने नम:
78) ॐ यतचित्ताय नम:
79) ॐ यतये नम:
80) ॐ यद इच्छा लाभ संतुष्टाय नम:
81) ॐ युक्ताय नम:
82) ॐ रागद्वेषवर्जिताय नम:
83) ॐ विदिताखिलशास्त्राय नम:
84) ॐ विद्याविनयसंपन्नाय नम:
85) ॐ विमत्सराय नम:
86) ॐ विवेकिने नम:
87) ॐ विशालहृदयाय नम:
88) ॐ व्यवसायिने नम:
89) ॐ शरणागतवत्सलाय नम:
90) ॐ शांताय नम:
91) ॐ शुद्धमानसाय नम:
92) ॐ शिष्यप्रियाय नम:
93) ॐ श्रद्धावते नम:
94) ॐ श्रोत्रियाय नम:
95) ॐ सत्यवाचे नम:
96) ॐ सदामुदितवदनाय नम:
97) ॐ समचित्ताय नम:
98) ॐ समाधिकस्वर्जिताय नम:
99) ॐ समाहितचित्ताय नम:
100) ॐ सर्वभूतहिताय नम:
101) ॐ सिद्धाय नम:
102) ॐ सुलभाय नम:
103) ॐ सुशीलाय नम:
104) ॐ सुह्रदये नम:
105) ॐ सूक्ष्मबुद्धये नम:
106) ॐ संकल्पवर्जिताय नम:
107) ॐ संप्रदायविदे नम:
108) ॐ स्वतंत्राय नम:

!! इति श्री सदगुरु अष्टोत्तरशत नामावली !!

अब एक आचमनी जल लेकर निम्न मंत्र पढकर अर्पण करे

अनेन श्री गुरु अष्टोत्तर शत नामावली द्वारा पूजनेन श्री गुरुदेव सहित समस्त गुरुमंडल देवता प्रीयतां न मम ..

जिन्हे गुरुमंडल का पूजन न करना हो वे सिधे पूजन के अंत मे जाकर अर्घ्य प्रदान करे और मंत्र जाप करे ..
जिंन्हे गुरुमंडल का पूजन करना हो वे आगे का पूजन continue रखे ..
वैसे सभी साधकों से निवेदन है वे यह पूजन अवश्य करे इस पूजन से समस्त गुरुओं का पूजन हो जाता है और गुरुपुर्णिमा के अवसर पर इस पूजन को करने से सभी गुरुओं की कृपा प्राप्त होती है ..

अब पहले हाथ मे पुष्प लेकर समस्त गुरुमंडल का ध्यान करे

नारायण समारंभा शंकराचार्य मध्यमाम
अस्मदाचार्य पर्यंतां वंदे गुरुपरंपराम !!
श्रीनाथादि गुरुत्रयं गणपतिं पीठत्रयं भैरवं
सिद्धौघ बटुकत्रयं पदयुगं दूतीक्रमं मंडलं !!
वीरांद्वष्ट चतुष्कषष्ठीनवकं वीरावलीपंचकं
श्रीमन्मालिनी मंत्रराजसहितं वंदे गुरोर्मंडलं !!

गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:
गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम: !!

अखंडमंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरं
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नम: !!

अज्ञानतिमिरांधस्य ज्ञानांजनशलाकया
चक्षुरुन्मिलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नम: !!

वंदे गुरुपदद्वंदवांग्मनस गोचरं
रक्त शुक्ल प्रभामिश्रमतर्क्यं मह : !!

नमोस्तु गुरवे तस्मै स्वेष्ट देविस्वरुपिणे
यस्य वाकममृतं हंति विषं संसारसंज्ञकम !!

समस्त गुरुमंडल आवाहयामि मम पूजा स्थाने स्थापयामि नम:

समस्त गुरुमंडल गुरुभ्यो नम: पंचोपचार पूजनं समर्पयामि

श्री गुरुमंडल गुरुभ्यो नम: गंध समर्पयामि
श्री गुरुमंडल गुरुभ्यो नम: पुष्प समर्पयामि
श्री गुरुमंडल गुरुभ्यो नम: धूपं समर्पयामि
श्री गुरुमंडल गुरुभ्यो नम: दीपं समर्पयामि
श्री गुरुमंडल गुरुभ्यो नम: नैवेद्यं समर्पयामि

अब गुरुमंडल का पूजन शुरु करे ..
गुरुमंडल अंतर्गत एकेक गुरु का नाम लेकर पूजयामि कहकर पुष्पअक्षत अर्पण करे और तर्पयामि कहकर एक आचमनी जल अर्पण करे ..

सबसे पहले श्री व्यास जी स्मरण करे

वेदव्यासं श्यामरुपं सत्यसंघं परायणम
शांतेंद्रियं जित्क्रोधं सशिष्यं प्रणमाम्यहम् !!

व्यास पंचकं

ॐ श्री व्यासाय नम: ! वेदव्यासं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम: !!
ॐ वैशंपायनाय नम: ! वैशंपायनं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम: !!

ॐ सुमंताय नम: ! सुमंतं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम: !!

ॐ जैमिनये नम: ! जैमिनिं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम: !!

ॐ पैलाय नम: ! पैलं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

!! इति व्यासपंचकं पूजनम !!

अब श्री शंकराचार्य जी का स्मरण करे

सर्वशास्त्रार्थतत्वज्ञम परमानंदविग्रहं
ब्रम्हण्यं शंकराचार्यं प्रणमामि विवेकिनम
परात्परतरं शांतं योगींद्रं योगसेविनं
शांतेंद्रियं जितक्रोधं सशिष्यं प्रणमाम्यहम् !!

शंकराचार्य पंचकं

ॐ शंकराचार्याय नम: ! शंकराचार्यं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ विश्वरुपाचार्याय नम:! विश्वरुपाचार्यं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ पद्मपादाचार्याय नम:! पद्मपादाचार्यं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ गौडपादाचार्याय नम: ! गौडपादाचार्यं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ हस्तामलकाचार्याय नम: ! हस्तमलकाचार्यं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ त्रोटकाचार्याय नम: ! त्रोटकाचार्यं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

!! इति शंकराचार्यं पूजनं !!

दिगंबरं कुमारं च विधिमानससनंदनं !
सनकं परंवैराग्यं मुनिमावाहयाम्यहम !!

ॐ सनकाय नम: सनकं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ सनंदनाय नम: सनंदनं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ सनतनाय नम: सनंदनं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ सनत्कुमाराय नम: सनत्कुमारम आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ सनत्सुजाताय नम: सनत्सुजातं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

!! इति सनकादि पूजनं !!

ॐ दत्तात्रेयाय नम: दत्तात्रेयं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ जीवन्मुक्ताय नम: जीवन्मुक्तं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ विधातृतनयाय नम: विधातृतनयं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ नारदाय नम: नारदं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ वामदेवाय नम: वामदेवं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ कपिलाय नम: कपिलं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ब्रम्हानंद परम सुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं
द्वंदातितं गगनसदृश्यम एकमस्यादि लक्ष्यं
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधिसाक्षिभूतं
भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरुं तं नमामि

ॐ स्वगुरवे नम :
स्वगुरु ( अपने गुरु का नाम यहां पर ले )
स्वगुरु आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ परम गुरवे नम:
परमगुरु आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ परात्पर गुरवे नम:
परात्पर गुरु आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ परमेष्ठी गुरवे नम:
परमेष्ठी गुरु आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ पर गुरवे नम:
पर गुरु आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ सदाशिवाय नम:
सदाशिव आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ ईश्वराय नम:
ईश्वर आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ विष्णवे नम:
विष्णु आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ ब्रम्हाचार्याय नम:
ब्रम्हाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ नकुलाचार्याय नम:
नकुलाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ गौरिशाचार्याय नम:
गौरीशाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ अर्चिषाचार्याय नम:
अर्चिषाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ मैत्रेयाचार्याय नम:
मैत्रेयाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ कपिलाचार्याय नम:
कपिलाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ सिद्धशांतनाचार्याय नम:
सिद्धशांतनाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ अगस्ताचार्याय नम:
अगस्ताचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ पिंगाक्षाचार्याय नम:
पिंगाक्षाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ मनुगणाचार्याय नम:
मनुगणाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ पुष्पदंताचार्याय नम:
पुष्पदंताचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ शांतनाचार्याय नम:
शांतनाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ विद्याचार्याय नम:
विद्याचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ पंचधाचार्याय नम:
पंचधाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ व्रताचार्याय नम:
व्रताचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ दुर्वासाचार्याय नम:
दुर्वासाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ कौंडिन्याचार्याय नम:
कौंडिन्याचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ कौशिकाचार्याय नम:
कौशिकाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ भैरवाष्टकाचार्याय नम:
भैरवाष्टकाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ एकाक्षराचार्याय नम:
एकाक्षराचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ विश्वनाथाचार्याय नम:
विश्वनाथाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ सोमेश्वराचार्याय नम:
सोमेश्वराचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ वसिष्ठाचार्याय नम:
वसिष्ठाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ वाल्मिक्याचार्याय नम:
वाल्मिक्याचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ अत्र्याचार्याय नम:
अत्र्याचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ गर्गाचार्याय नम:
गर्गाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ पराशराचार्याय नम:
पराशराचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ वेदव्यासाचार्याय नम:
वेदव्यासाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ शुक्राचार्याय नम:
शुक्राचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ गौडपादाचार्याय नम:
गौडपादाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ गोविंदपादाचार्याय नम:
गोविंदपादाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ शंकराचार्याय नम:
शंकराचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ ऱामानंदाचार्याय नम:
रामानंदाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ रामानुजाचार्याय नम:
रामानुजाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ हयग्रीवाचार्याय नम:
हयग्रीवाचार्याय आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ सच्चिदानंदाचार्याय नम:
सच्चिदानंदाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ दामोदराचार्याय नम:
दामोदराचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ वैष्णवाचार्याय नम:
वैष्णवाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ सुश्रुताचार्याय नम:
सुश्रुताचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ चरकाचार्याय नम:
चरकाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ वाग्भटाचार्याय नम:
वाग्भटाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ नागार्जुनाचार्याय नम:
नागार्जुनाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ नित्यनाथाचार्याय नम:
नित्यनाथाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ धंन्वंतराचार्याय नम:
धंन्वंतराचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ द्राविणाचार्याय नम:
द्राविणाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ विवर्णाचार्याय नम:
विवर्णाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

तद्वामत: समस्तविद्यासंप्रदायप्रवर्तकाचार्येभ्यो नम:
समस्तविद्यासंप्रदायप्रवर्तकाचार्यान आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम':

अब एक आचमनी जल अर्पण करे
अनेन पूजनेन स्वगुरु सहित समस्त गुरुमंडल देवता प्रीयतां मम !!

अब एक आचमनी जल मे चंदन मिलाकर अर्घ्य दे ..

ॐ गुरुदेवाय विद्महे परम गुरवे धीमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात्

ॐ परमहंसाय विद्महे महातत्त्वाय धीमहि तन्नो हंस: प्रचोदयात्

ॐ गुरुदेवाय विद्महे परमब्रम्हाय धीमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात्

अब गुरुमंत्र का यथाशक्ती जाप करे

जिन्होने किसी गुरु से गुरु दिक्षा ना ली हो वे " ऐं " इस एकाक्षर गुरु मंत्र बीज मंत्र का जाप करे ..

" ऐं " यह बीज ब्रह्माण्ड के सभी गुरुमंडल का बीज मंत्र है .. इस एकाक्षर मंत्र का यथाशक्ती स्फटिक माला या रुद्राक्ष माला से जाप करे ..

और निम्न गुरु मंत्र का भी यथाशक्ती जाप करे .. यह ब्रम्हाण्ड के शक्तिशाली गुरुपरंपरा का गुरुमंत्र है .. इसका नित्य जाप करने से सभी गुरुमंडल के गुरुओं की कृपा प्राप्त होती है ..

ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नम:

अब जप गुरुदेव को अर्पण करे

ॐ गुह्याति गुह्यगोप्ता त्वं गृहाणास्मत कृतं जपं
सिद्धिर्भवतु मे गुरुदेव त्वतप्रसादान्महेश्वर !!

अब एक आचमनी जल अर्पण करे

अनेन पूजनेन श्री गुरुदेव सहित समस्त गुरुमंडल देवता प्रीयंताम !!

 

9 जुलाई 2025

गुरु पूर्णिमा पर तांत्रोक्त गुरु पूजन

  गुरु पूर्णिमा पर तांत्रोक्त गुरु पूजन


गुरु पूर्णिमा के अवसर पर तंत्रोक्त गुरु पूजन की विधि प्रस्तुत है ।





जिसके माध्यम से आप अपने सदगुरुदेव का पूजन कर सकते हैं क्योंकि मेरे गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी ( डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी ) हैं इसलिए गुरुदेव जी के स्थान पर में उनका नाम ले रहा हूं आप अपने गुरु का नाम उनकी जगह पर ले सकते हैं ।


इस पूजन के लिए स्नानादि करके, पीले या सफ़ेद आसन पर पूर्वाभिमुखी होकर बैठें । लकड़ी की चौकी या बाजोट पर पीला कपड़ा बिछा कर उसपर पंचामृत या जल से स्नान कराके गुरु चित्र यंत्र या शिवलिंग जो भी आपके पास उपलब्ध हो उसे रख लें । अब पूजन प्रारंभ करें।



पवित्रीकरण

किसी भी कार्य को करने के पहले हम अपने आप को साफ सुथरा करते हैं ठीक वैसे ही पूजन करने से पहले भी अपने आप को पवित्र किया जाता है इसे पवित्रीकरण कहते हैं इसमें अपने ऊपर बायें हाथ में जल लेकर दायें हाथ की उंगलियों से छिड़कें या फूल या चम्मच जो भी आप इस्तेमाल करना चाहते हो उसके द्वारा अपने ऊपर थोड़ा सा जल छिड़क लें ।


ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।

यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।।


आचमन

आंतरिक शुद्धि के लिए निम्न मंत्रों को पढ़ आचमनी से तीन बार जल पियें -


ॐ आत्म तत्त्वं शोधयामि स्वाहा ।

ॐ ज्ञान तत्त्वं शोधयामि स्वाहा ।

ॐ विद्या तत्त्वं शोधयामि स्वाहा ।


सूर्य पूजन

भगवान सूर्य इस सृष्टि के संचालन करता है और उन्हीं के माध्यम से हम सभी का जीवन गतिशील होता है इसलिए उनकी पूजा अनिवार्य है ।

कुंकुम और पुष्प से सूर्य पूजन करें -


ॐ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च ।

हिरण्येन सविता रथेन देवो याति भुवनानि पश्यन ।।

ॐ पश्येन शरदः शतं श्रृणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतं ।जीवेम शरदः शतमदीनाः स्याम शरदः शतं भूयश्च शरदः शतात ।।



ध्यान

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर: ।

गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नम: ॥

ध्यान मूलं गुरु: मूर्ति पूजा मूलं गुरो पदं ।

मंत्र मूलं गुरुर्वाक्य मोक्ष मूलं गुरुकृपा ॥


आवाहन


ॐ स्वरुप निरूपण हेतवे श्री निखिलेश्वरानन्दाय गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि ।

ॐ स्वच्छ प्रकाश विमर्श हेतवे श्री सच्चिदानंद परम गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि ।

ॐ स्वात्माराम पिंजर विलीन तेजसे श्री ब्रह्मणे पारमेष्ठि गुरुवे नमः आवाहयामि स्थापयामि ।


षट चक्र स्थापन --


गुरुदेव को अपने षट्चक्रों में स्थापित करें -


श्री शिवानन्दनाथ पराशक्त्यम्बा मूलाधार चक्रे स्थापयामि नमः ।

श्री सदाशिवानन्दनाथ चिच्छक्त्यम्बा स्वाधिष्ठान चक्रे स्थापयामि नमः ।

श्री ईश्वरानन्दनाथ आनंद शक्त्यम्बा मणिपुर चक्रे स्थापयामि नमः ।

श्री रुद्रदेवानन्दनाथ इच्छा शक्त्यम्बा अनाहत चक्रे स्थापयामि नमः ।

श्री विष्णुदेवानन्दनाथ ज्ञान शक्त्यम्बा विशुद्ध चक्रे स्थापयामि नमः ।

श्री ब्रह्मदेवानन्दनाथ क्रिया शक्त्यम्बा सहस्त्रार चक्रे स्थापयामि नमः ।



गुरु चरणों मे समर्पित करें 


ॐ श्री उन्मनाकाशानन्दनाथ – जलं समर्पयामि ।

ॐ श्री समनाकाशानन्दनाथ – गंगाजल स्नानं समर्पयामि ।

ॐ श्री व्यापकानन्दनाथ – सिद्धयोगा जलं समर्पयामि ।

ॐ श्री शक्त्याकाशानन्दनाथ – चन्दनं समर्पयामि ।

ॐ श्री ध्वन्याकाशानन्दनाथ – कुंकुमं समर्पयामि ।

ॐ श्री ध्वनिमात्रकाशानन्दनाथ – केशरं समर्पयामि ।

ॐ श्री अनाहताकाशानन्दनाथ – अष्टगंधं समर्पयामि ।

ॐ श्री विन्द्वाकाशानन्दनाथ – अक्षतं समर्पयामि ।

ॐ श्री द्वन्द्वाकाशानन्दनाथ – सर्वोपचारम समर्पयामि ।


दीपम

सिद्ध शक्तियों को दीप दिखाएँ


श्री महादर्पनाम्बा सिद्ध ज्योतिं समर्पयामि ।

श्री सुन्दर्यम्बा सिद्ध प्रकाशम् समर्पयामि ।

श्री करालाम्बिका सिद्ध दीपं समर्पयामि ।

श्री त्रिबाणाम्बा सिद्ध ज्ञान दीपं समर्पयामि ।

श्री भीमाम्बा सिद्ध ह्रदय दीपं समर्पयामि ।

श्री कराल्याम्बा सिद्ध सिद्ध दीपं समर्पयामि ।

श्री खराननाम्बा सिद्ध तिमिरनाश दीपं समर्पयामि ।

श्री विधीशालीनाम्बा पूर्ण दीपं समर्पयामि ।



नीराजन --

पात्र में जल, कुंकुम, अक्षत और पुष्प लेकर गुरु चरणों मे समर्पित करें -


श्री सोममण्डल नीराजनं समर्पयामि ।

श्री सूर्यमण्डल नीराजनं समर्पयामि ।

श्री अग्निमण्डल नीराजनं समर्पयामि ।

श्री ज्ञानमण्डल नीराजनं समर्पयामि ।

श्री ब्रह्ममण्डल नीराजनं समर्पयामि ।


पञ्च पंचिका


अपने दोनों हाथों में पुष्प लेकर , दोनों हाथों को भिक्षापात्र के समान जोड़कर, निम्न पञ्च पंचिकाओं का उच्चारण करते हुए इन दिव्य महाविद्याओं की प्राप्ति हेतु गुरुदेव से निवेदन करें -


श्री विद्या लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री एकाकार लक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री महालक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री त्रिशक्तिलक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री सर्वसाम्राज्यलक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।


श्री विद्या कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री परज्योति कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री परिनिष्कल शाम्भवी कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री अजपा कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री मातृका कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।


श्री विद्या कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री त्वरिता कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री पारिजातेश्वरी कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री त्रिपुटा कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री पञ्च बाणेश्वरी कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।


श्री विद्या कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री अमृत पीठेश्वरी कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री सुधांशु कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री अमृतेश्वरी कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री अन्नपूर्णा कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।


श्री विद्या रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री सिद्धलक्ष्मी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री मातंगेश्वरी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री भुवनेश्वरी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।

श्री वाराही रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।



श्री मन्मालिनी मंत्र


अंत में तीन बार श्री मन्मालिनी का उच्चारण करना चाहिए जिससे गुरुदेव की शक्ति, तेज और सम्पूर्ण साधनाओं की प्राप्ति हो सके । इसके द्वारा सभी अक्षरों अर्थात स्वर व्यंजनों का पूजन हो जाता है जिससे मंत्र बनते हैं :-


ॐ अं आं इं ईं उं ऊं ऋं ॠं लृं ल्रृं एं ऐँ ओं औं अं अः ।

कं खं गं घं ङं ।

चं छं जं झं ञं ।

टं ठं डं ढं णं ।

तं थं दं धं नं ।

पं फं बं भं मं ।

यं रं लं वं शं षं सं हं क्षं हंसः सोऽहं गुरुदेवाय नमः ।


गुरु मंत्र जाप


इसके बाद गुरु मंत्र का यथा शक्ति जाप करें ।

यदि आपके पास कोई गुरु मंत्र हो तो उसका जाप करें ना हो तो निम्नलिखित मंत्र का जाप करें

ॐ गुरुभ्यो नमः ।।


प्रार्थना --

लोकवीरं महापूज्यं सर्वरक्षाकरं विभुम् ।

शिष्य हृदयानन्दं शास्तारं प्रणमाम्यहं ।।


त्रिपूज्यं विश्व वन्द्यं च विष्णुशम्भो प्रियं सुतं ।

क्षिप्र प्रसाद निरतं शास्तारं प्रणमाम्यहं ।।


मत्त मातंग गमनं कारुण्यामृत पूजितं ।

सर्व विघ्न हरं देवं शास्तारं प्रणमाम्यहं ।।


अस्मत् कुलेश्वरं देवं सर्व सौभाग्यदायकं ।

अस्मादिष्ट प्रदातारं शास्तारं प्रणमाम्यहं ।।


यस्य धन्वन्तरिर्माता पिता रुद्रोऽभिषक् तमः ।

तं शास्तारमहं वंदे महावैद्यं दयानिधिं ।।



समर्पण --

सम्पूर्ण पूजन गुरु के चरणों मे समर्पित करें :-


देवनाथ गुरौ स्वामिन देशिक स्वात्म नायक: ।

त्राहि त्राहि कृपा सिंधों , पूजा पूर्णताम कुरु ....


अनया पूजया श्री गुरु प्रीयंताम तदसद श्री सद्गुरु चरणार्पणमस्तु ॥


इतना कहकर गुरु चरणों मे जल छोड़ें ।


शांति


तीन बार जल छिडके...


ॐ शान्तिः । शान्तिः ।। शान्तिः ।।।


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आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं


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भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने के 108 मंत्र

 

8 जुलाई 2025

गुरू पूर्णिमा महत्व

 एक पत्थर की भी तकदीर बदल सकती है,


शर्त ये है कि सलीके से तराशा जाए....



रास्ते में पडा ! लोगों के पांवों की ठोकरें खाने वाला पत्थर ! जब योग्य मूर्तिकार के हाथ लग जाता है, तो वह उसे तराशकर ,अपनी सर्जनात्मक क्षमता का उपयोग करते हुये, इस योग्य बना देता है, कि वह मंदिर में प्रतिष्ठित होकर करोडों की श्रद्धा का केद्र बन जाता है। करोडों सिर उसके सामने झुकते हैं।


रास्ते के पत्थर को इतना उच्च स्वरुप प्रदान करने वाले मूर्तिकार के समान ही, एक गुरु अपने शिष्य को सामान्य मानव से उठाकर महामानव के पद पर बिठा देता है।


चाणक्य ने अपने शिष्य चंद्रगुप्त को सडक से उठाकर संपूर्ण भारतवर्ष का चक्रवर्ती सम्राट बना दिया।


विश्व मुक्केबाजी का महानतम हैवीवेट चैंपियन माइक टायसन सुधार गृह से निकलकर अपराधी बन जाता अगर उसकी प्रतिभा को उसके गुरू ने ना पहचाना होता।


यह एक अकाट्य सत्य है कि चाहे वह कल का विश्वविजेता सिकंदर हो या आज का हमारा महानतम बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर, वे अपनी क्षमताओं को पूर्णता प्रदान करने में अपने गुरु के मार्गदर्शन व योगदान के अभाव में सफल नही हो सकते थे।


हमने प्राचीन काल से ही गुरु को सबसे ज्यादा सम्माननीय तथा आवश्यक माना। भारत की गुरुकुल परंपरा में बालकों को योग्य बनने के लिये आश्रम में रहकर विद्याद्ययन करना पडता था, जहां गुरु उनको सभी आवश्यक ग्रंथो का ज्ञान प्रदान करते हुए उन्हे समाज के योग्य बनाते थे।


विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों नालंदा तथा तक्षशिला में भी उसी ज्ञानगंगा का प्रवाह हम देखते हैं। संपूर्ण विश्व में शायद ही किसी अन्य देश में गुरु को उतना सम्मान प्राप्त हो जितना हमारे देश में दिया जाता रहा है। यहां तक कहा गया किः-

गुरु गोविंद दोऊ खडे काके लागूं पांय ।

बलिहारी गुरु आपकी गोविंद दियो बताय ॥


अर्थात, यदि गुरु के साथ स्वयं गोविंद अर्थात साक्षात भगवान भी सामने खडे हों, तो भी गुरु ही प्रथम सम्मान का अधिकारी होता है, क्योंकि उसीने तो यह क्षमता प्रदान की है कि मैं गोविंद को पहचानने के काबिल हो सका।
आध्यात्मिक जगत की ओर जाने के इच्छुक प्रत्येक व्यक्ति का मार्ग गुरु और केवल गुरु से ही प्रारंभ होता है।

कुछ को गुरु आसानी से मिल जाते हैं, कुछ को काफी प्रयास के बाद मिलते हैं,और कुछ को नहीं मिलते हैं।

साधनात्मक जगत, जिसमें योग, तंत्र, मंत्र जैसी विद्याओं को रखा जाता है, में गुरु को अत्यंत ही अनिवार्य माना जाता है।

वे लोग जो इन क्षेत्रों में विशेषज्ञता प्राप्त करना चाहते हैं, उनको अनिवार्य रुप से योग्य गुरु के सानिध्य के लिये प्रयास करना ही चाहिये।

ये क्षेत्र उचित मार्गदर्शन की अपेक्षा रखते हैं।





गुरु का तात्पर्य किसी व्यक्ति के देह या देहगत न्यूनताओं से नही बल्कि उसके अंतर्निहित ज्ञान से होता है, वह ज्ञान जो आपके लिये उपयुक्त हो,लाभप्रद हो। गुरु गीता में कुछ श्लोकों में इसका विवेचन मिलता हैः-


अज्ञान तिमिरांधस्य ज्ञानांजन शलाकया ।

चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः ॥


अज्ञान के अंधकार में डूबे हुये व्यक्ति को ज्ञान का प्रकाश देकर उसके नेत्रों को प्रकाश का अनुभव कराने वाले गुरु को नमन ।

गुरु शब्द के अर्थ को बताया गया है कि :-


गुकारस्त्वंधकारश्च रुकारस्तेज उच्यते।

अज्ञान तारकं ब्रह्‌म गुरुरेव न संशयः॥


गुरु शब्द के पहले अक्षर 'गु' का अर्थ है, अंधकार जिसमें शिष्य डूबा हुआ है, और 'रु' का अर्थ है, तेज या प्रकाश जिसे गुरु शिष्य के हृदय में उत्पन्न कर इस अंधकार को हटाने में सहायक होता है, और ऐसे ज्ञान को प्रदान करने वाला गुरु साक्षात ब्रह्‌म के तुल्य होता है।


ज्ञान का दान ही गुरु की महत्ता है। ऐसे ही ज्ञान की पूर्णता का प्रतीक हैं भगवान शिव। भगवान शिव को सभी विद्याओं का जनक माना जाता है। वे तंत्र से लेकर मंत्र तक और योग से लेकर समाधि तक प्रत्येक क्षेत्र के आदि हैं और अंत भी। वे संगीत के आदिसृजनकर्ता भी हैं, और नटराज के रुप में कलाकारों के आराध्य भी हैं। वे प्रत्येक विद्या के ज्ञाता होने के कारण जगद्गुरु भी हैं। गुरु और शिव को आध्यात्मिक जगत में समान माना गया है।


कहा गया है कि :-


यः शिवः सः गुरु प्रोक्तः। यः गुरु सः शिव स्मृतः॥


अर्थात गुरु और शिव दोनों ही अभेद हैं, और एक दूसरे के पर्याय हैं।जब गुरु ज्ञान की पूर्णता को प्राप्त कर लेता है तो वह स्वयं ही शिव तुल्य हो जाता है, तब वह भगवान आदि शंकराचार्य के समान उद्घोष करता है कि ÷


शिवो s हं, शंकरो s हं'।


ऐसे ही ज्ञान के भंडार माने जाने वाले गुरुओं के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करने का पर्व है,

गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा

यह वो बिंदु है, जिसके वाद से सावन का महीना जो कि शिव का मास माना जाता है, प्रारंभ हो जाता है।

इसका प्रतीक रुप में अर्थ लें तो, जब गुरु अपने शिष्य को पूर्णता प्रदान कर देता है, तो वह आगे शिवत्व की प्राप्ति की दिशा में अग्रसर होने लगता है,और यह भाव उसमें जाग जाना ही मोक्ष या ब्रह्‌मत्व की स्थिति कही गयी है।

तीन मुखी रुद्राक्ष

   



  1. तीन मुखी रुद्राक्ष  त्रिदेव का प्रतीक है.
  2. यह त्रिगुणात्मक है |
  3. उच्च शिक्षा , मस्तिष्क विकास |
  4. बेरोजगारी हटाता है |


. . .

7 जुलाई 2025

गुरुमाता डॉ. साधना सिंह : एक सिद्ध तंत्र गुरु

   गुरुमाता डॉ. साधना सिंह : एक सिद्ध तंत्र गुरु




वात्सल्यमयी गुरुमाता डॉ. साधना सिंह जी महाविद्या बगलामुखी की प्रचंड , सिद्धहस्त साधिका हैं.
स्त्री कथावाचक और उपदेशक तो बहुत हैं पर तंत्र के क्षेत्र में स्त्री गुरु अत्यंत दुर्लभ हैं.

तंत्र के क्षेत्र में स्त्री गुरु का बहुत महत्व होता है.
माँ अपने शिशु को स्नेह और वात्सल्य के साथ जो कुछ भी देती है वह उसके लिए अनुकूल हो जाता है . 

स्त्री गुरु मातृ स्वरूपा होने के कारण उनके द्वारा प्रदत्त मंत्र साधकों को सहज सफ़लता प्रदायक होते हैं. स्त्री गुरु द्वारा प्रदत्त मंत्र स्वयं में सिद्ध माने गये हैं.

वे एक  योगाचार्य और विश्वविख्यात होम्यो पैथ भी हैं । उनके लेख वर्षों तक प्रतिष्ठित पत्रिका निरोगधाम में प्रकाशित होते रहे हैं । आप उनसे अपनी असाध्य बीमारियों पर भी सलाह एप्वाइंटमेंट लेकर ले सकते हैं।

मैने तंत्र साधनाओं की वास्तविकता और उनकी शक्तियों का अनुभव पूज्यपाद सदगुरुदेव स्वामी निखिलेश्वरानंद जी [डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी ] तथा उनके बाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शननाथ जी और गुरुमाता डॉ. साधना सिंह जी के सानिध्य में किया है ।

आप भी उनसे मिलकर प्रत्यक्ष मार्गदर्शन ले सकते हैं :-


जास्मीन - 429
न्यू मिनाल रेजीडेंसी
जे. के. रोड , भोपाल [म.प्र.]
दूरभाष : (0755)
4269368,4283681,4221116

वेबसाइट:-

www.namobaglamaa.org


यूट्यूब चेनल :-

https://www.youtube.com/@MahavidhyaSadhakPariwar

पाँच मुखी रुद्राक्ष

   पाँच मुखी रुद्राक्ष 




  • पञ्च मुखी रुद्राक्ष सहजता से मिल जाता है। 

  • यह पंच देवों का स्वरूप है । 

  • शिवकृपा देता है । 

  • उच्च रक्तचाप HIGH BP में लाभदायक है । 

  • शिवरात्रि या किसी सोमवार को 1008 बार "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप कर धारण करने से रक्षा कवच का काम करता है . इसे पहनने से नजर/तंत्र /टोटका से रक्षा मिलती है .

  • अमावस्या, कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी , शिवरात्रि या किसी सोमवार को अपने सामने चौकी मे इसे रखकर  1008 बार "ॐ नमः शिवाय" मंत्र का जाप बेलपत्र या पुष्प चढ़ाते हुए करे। इसे अपने वाहन मे रखें । दुर्घटनाओं मे रक्षा प्रदान करेगा । 

  • किसी को ऊपरी बाधा लग रही हो तो हनुमानजी को चोला चढ़ाने के समय पांचमुखी रुद्राक्ष उनके चरणों के पास रखें । हनुमान चालीसा का 11 पाठ करें । हर पाठ के बाद उनके बाएँ पांव से सिंदूर लेकर रुद्राक्ष पर लगाएँ ।  फिर पीड़ित को पहना दें । और फिर से 11 बार हनुमान चालीसा का पाठ करें । लाभ होगा । 

  • घर की रक्षा के लिए पाँच मुखी रुद्राक्ष के 11 दाने ले लें । उसे कटोरी मे गंगा जल मे डूबा दें । 1008 बार " ॐ नमः शिवाय शिवाय नमः ॐ " मंत्र का जाप करें । हर दिन जल बदल देंगे । पहले दिन के जल को घर मे छिड़क देंगे । 11 दिन तक नित्य ऐसा करें । 11 दिन के बाद सफ़ेद या लाल कपड़े मे बांधकर घर के मुख्य द्वार के ऊपर लटका दें । रोज धूप दिखाते रहें । 

  • इसे साथ मे रखने से ही बहुत सारी नकारात्मक शक्तियाँ भाग जाती हैं । 



6 जुलाई 2025

संक्षिप्त गुरुपूजन

    






संक्षिप्त गुरुपूजन
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यहाँ पर संक्षिप्त गुरुपूजन विधि प्रस्तुत कर रहा हूं .. इसे आप अपने नित्य दैनंदिन साधना मे कर सकते है ..
हाथ जोडकर प्रणाम करे
ॐ गुं गुरुभ्यो नम:
ॐ श्री गणेशाय नम:
ॐ ह्रीम दशमहाविद्याभ्यो नम:
फिर गुरुदेव का ध्यान करे
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:
गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम:
ध्यानमूलं गुरो मूर्ति : पूजामूलं गुरो: पदं
मंत्रमूलं गुरुर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरो: कृपा
गुरुकृपाहि केवल गुरुकृपाहि केवलं
गुरुकृपाहि केवलं गुरुकृपाहि केवलं
श्री सदगुरु चरण कमलेभ्यो नम: ध्यानं समर्पयामि
श्री सदगुरु स्वामी निखिलेश्वरानंद महाराज मम ह्रदय कमल मध्ये आवाहयामि स्थापयामि नम:
अगर आपके पास समय कम है तो आप सीधे गुरुमंत्र का जाप शुरु करे .. नही तो सदगुरुदेव का मानसिक पंचोपचार पूजन करे और पूजन के बाद गुरुपादुका पंचक स्तोत्र का भी पाठ अवश्य करे ..
अब सदगुरुदेव का मानसिक पूजन या उपलब्ध सामुग्री से पंचोपचार पूजन करे .. मानसिक पूजन करते समय पंचतत्वो की मुद्राये प्रदर्शित करे और सामुग्री से पूजन करते समय उचित सामुग्री का उपयोग करे
ॐ " लं " पृथ्वी तत्वात्मकं गंधं समर्पयामि श्री गुरवे नम:
ॐ " हं " आकाश तत्वात्मकं पुष्पम समर्पयामि श्री गुरवे नम:
ॐ " यं " वायु तत्वात्मकं धूपं समर्पयामि श्रीगुरवे नम:
ॐ " रं " अग्नी तत्वात्मकं दीपं समर्पयामि श्रीगुरवे नम:
ॐ " वं " जल तत्वात्मकं नैवेद्यं समर्पयामि श्रीगुरवे नम:
ॐ " सं " सर्व तत्वात्मकं तांबूलं समर्पयामि श्री गुरवे नम:
अब हाथ जोडकर गुरु पंक्ति का पूजन करे
ॐ गुरुभ्यो नम:
ॐ परम गुरुभ्यो नम:
ॐ परात्पर गुरुभ्यो नम:
ॐ पारमेष्ठी गुरुभ्यो नम:
ॐ दिव्यौघ गुरुपंक्तये नम:
ॐ सिद्धौघ गुरुपंक्तये नम:
ॐ मानवौघ गुरुपंक्तये नम:
आप चाहे तो निम्न गुरुपादुका पंचक स्तोत्र का पाठ करे .. अगर स्तोत्र पाठ नही करना है तो सीधे आगे का पूजन करे
गुरुपादुका पंचक स्तोत्र
ॐ नमो गुरुभ्यो गुरुपादुकाभ्यां
नम: परेभ्य: परपादुकाभ्यां
आचार्य सिद्धेश्वर पादुकाभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! १ !!
ऐंकार ह्रींकार रहस्ययुक्त
श्रीं कार गूढार्थ महाविभूत्या
ॐकार मर्म प्रतिपादिनीभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! २ !!
होमाग्नि होत्राग्नि हविष्यहोतृ
होमादि सर्वाकृति भासमानं
यद ब्रह्म तद बोध वितारिणाभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! ३ !!
अनंत संसार समुद्रतार
नौकायिताभ्यां स्थिर भक्तिदाभ्यां
जाड्याब्धि संशोषण बाडवाभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! ४ !!
कामादिसर्प व्रजगारुडाभ्यां
विवेक वैराग्य निधिप्रदाभ्यां
बोधप्रदाभ्यां द्रुत मोक्षदाभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! ५ !!
अब एक आचमनी जल मे चंदन मिलाकर अर्घ्य दे या मानसिक स्तर पर अर्घ्य दे ..
ॐ गुरुदेवाय विद्महे परम गुरवे धीमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात्
अब गुरुमंत्र का यथाशक्ती जाप करे
ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नम:
अंत मे जप गुरुदेव को अर्पण करे
ॐ गुह्याति गुह्यगोप्ता
त्वं गृहाणास्मत कृतं जपं
सिद्धिर्भवतु मे गुरुदेव त्वतप्रसादान्महेश्वर !!
अब एक आचमनी जल अर्पण करे
अनेन पूजनेन श्री गुरुदेव प्रीयंता मम !!