एक प्रयास सनातन धर्म[Sanatan Dharma] के महासमुद्र मे गोता लगाने का.....कुछ रहस्यमयी शक्तियों [shakti] से साक्षात्कार करने का.....गुरुदेव Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji [ Nikhileswaranand Ji] की कृपा से प्राप्त Mantra Tantra Yantra विद्याओं को समझने का...... Kali, Sri Yantra, Laxmi,Shiv,Kundalini, Kamkala Kali, Tripur Sundari, Maha Tara ,Tantra Sar Samuchhay , Mantra Maharnav, Mahakal Samhita, Devi,Devata,Yakshini,Apsara,Tantra, Shabar Mantra, जैसी गूढ़ विद्याओ को सीखने का....
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25 फ़रवरी 2014
24 फ़रवरी 2014
23 फ़रवरी 2014
दक्षिणामूर्ति शिव :आदि गुरु स्वरूप
दक्षिणामूर्ति शिव भगवान शिव का सबसे तेजस्वी स्वरूप है । यह उनका आदि गुरु स्वरूप है । इस रूप की साधना सात्विक भाव वाले सात्विक मनोकामना वाले तथा ज्ञानाकांक्षी साधकों को करनी चाहिये ।
22 फ़रवरी 2014
महा शिवरात्रि साधना शिविर 26-27 फरवरी
शिवरात्रि साधना शिविर
26 - 27 फरवरी ,
निखिलधाम , भोजपुर , भोपाल में.
[0755] , 4269368, 4283681
- इस शिविर में होगा :-
- भगवान् शिव का सम्पूर्ण तंत्रोक्त पूजन
- भगवान् शिव का सबसे प्रिय पूजन घनपाठ.
- ब्रह्मास्त्र विद्या से कवचिकरण
साधकों के लिए सुअवसर :-
- विविध साधनों से सम्बंधित दीक्षाएं. तथा मंत्र , गुरूजी तथा माताजी द्वारा व्यक्तिगत रूप से साधकों को प्रदान किया जाएगा तथा साधनात्मक रहस्यों से अवगत कराया जायेगा.
- विविध समस्याओं के समाधान के लिए व्यक्तिगत मार्गदर्शन.
21 फ़रवरी 2014
निखिलधाम
परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी [ डा नारायण दत्त श्रीमाली जी ] का यह दिव्य मंदिर है.
इसका निर्माण परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी [Dr. Narayan dutta Shrimali Ji ] के प्रिय शिष्य स्वामी सुदर्शननाथ जी तथा डा साधना सिंह जी ने करवाया है.
यह [ Nikhildham ] भोपाल [ मध्यप्रदेश ] से लगभग २५ किलोमीटर की दूरी पर भोजपुर के पास लगभग ५ एकड के क्षेत्र में बना हुआ है.
यहां पर महाविद्याओं के अद्भुत तेजस्वितायुक्त विशिष्ठ मन्दिर बनाये गये हैं.
20 फ़रवरी 2014
परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी
परम हंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी
॥ ॐ श्रीं ब्रह्मांड स्वरूपायै निखिलेश्वरायै नमः
॥
॥
...नमो निखिलम...
......नमो निखिलम......
........नमो निखिलम........
- यह परम तेजस्वी गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी का तान्त्रोक्त मन्त्र है.
- पूर्ण ब्रह्मचर्य / सात्विक आहार/आचार/विचार के साथ जाप करें.
- पूर्णिमा से प्रारंभ कर अगली पूर्णिमा तक करें.
- तीन लाख मंत्र का पुरस्चरण होगा.
- नित्य जाप निश्चित संख्या में करेंगे .
- रुद्राक्ष की माला से जाप होगा.
- जाप के बाद वह माला गले में धारण कर लेंगे.
- यथा संभव मौन रहेंगे.
- किसी पर क्रोध नहीं करेंगे.
- यह साधना उन लोगों के लिए है जो साधना के मार्ग पर आगे बढ़ना चाहते हैं.
- यह साधना आपके अन्दर शिवत्व और गुरुत्व पैदा करेगी.
- यह साधना वैराग्य की साधना है.
- यह साधना जीवन का सौभाग्य है.
- यह साधना आपको धुल से फूल बनाने में सक्षम है.
- इस साधना से श्रेष्ट कोई और साधना नहीं है.
18 फ़रवरी 2014
उल्लासमय शिव : नटराज
यह मंत्र उनके लिए है जो .....
जीवन को एक उत्सव मानते हैं ....
उल्लास जिनकी जीवन शैली है ....
मुस्कान जिनके होंठों का श्रृंगार है.....
सहजता जिनकी प्रवृत्ति है ..................
....................यह शिवत्व की यात्रा है...........
जीवन को एक उत्सव मानते हैं ....
उल्लास जिनकी जीवन शैली है ....
मुस्कान जिनके होंठों का श्रृंगार है.....
सहजता जिनकी प्रवृत्ति है ..................
....................यह शिवत्व की यात्रा है...........
17 फ़रवरी 2014
16 फ़रवरी 2014
15 फ़रवरी 2014
14 फ़रवरी 2014
पंचदशाक्षरी महामृत्युन्जय मन्त्रम
पंचदशाक्षरी महामृत्युन्जय मन्त्रम :-
यदि खुद कर रहे हैं तो:-
॥ ॐ जूं सः मां पालय पालय सः जूं ॐ॥
यदि किसी और के लिये [उदाहरण : मान लीजिये "अनिल" के लिये ] कर रहे हैं तो :-
॥ ॐ जूं सः ( अनिल) पालय पालय सः जूं ॐ ॥
- यदि रोगी जाप करे तो पहला मंत्र करे.
- यदि रोगी के लिये कोइ और करे तो दूसरा मंत्र करे. नाम के जगह पर रोगी का नाम आयेगा.
- रुद्राक्ष माला धारण करें.
- रुद्राक्ष माला से जाप करें.
- सामान्य रोगों के लिए ११००० जाप करें.
- गंभीर रोगों के लिए १,११,००० जाप करें. दशांश हवन करें.
- बेल पत्र चढायें.
- भस्म [अगरबत्ती की राख] से तिलक करें.
13 फ़रवरी 2014
शिव तान्डव स्तोत्रम.....
भगवान शिव के प्रिय शिष्य लंकाधिपति रावण के द्वारा अनेक प्रचंड स्तोत्रों की रचना की गयी है...
उनमे से भगवान शिव का सबसे प्रिय स्तोत्र है शिव तान्डव स्तोत्रम.....
यह गेय स्तोत्र है सुमधुर स्वर में इसका पाठ करने से हृदय अत्यंत आनंदित होता है..
शिव ताण्डव स्तोत्र
जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थले, गलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयं, चकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिवो शिवम् ॥१॥
जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरी, विलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावके, किशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥२॥
धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुरस्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥
जटाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्रभा-कदंबकुंकुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदांधसिंधुरस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूतभर्तरि ॥४॥
सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर-प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः।
भुजंगराजमालयानिबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥
ललाटचत्वरज्वलद्धनंजयस्फुलिङ्गभा-निपीतपंचसायकंनमन्निलिंपनायकम्।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥
करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके।
धराधरेंद्रनंदिनीकुचाग्रचित्रपत्रकप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥
नवीनमेघमंडलीनिरुद्धदुर्धरस्फुरत्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥
प्रफुल्लनीलपंकजप्रपंचकालिमप्रभा-विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्।
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥
अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥
जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजंगमस्फुरद्धगद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदंगतुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥
दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकमस्रजोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥
कदा निलिंपनिर्झरी निकुञ्जकोटरे वसन् विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् ॥१३॥
निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥
प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम् ॥१५॥
इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन् ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥
पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥
॥ इति शिव ताण्डव स्तोत्रं संपूर्णम् ॥
12 फ़रवरी 2014
11 फ़रवरी 2014
9 फ़रवरी 2014
शिव शासनतः ! शिव शासनतः !! शिव शासनतः !!!
शिवलिंग की महिमा
भगवान शिव के पूजन मे शिवलिंग का प्रयोग होता है। शिवलिंग के निर्माण के लिये स्वर्णादि विविध धातुओं, मणियों, रत्नों, तथा पत्थरों से लेकर मिटृी तक का उपयोग होता है।इसके अलावा रस अर्थात पारे को विविध क्रियाओं से ठोस बनाकर भी लिंग निर्माण किया जाता है,
इसके बारे में कहा गया है कि,
इसके बारे में कहा गया है कि,
मृदः कोटि गुणं स्वर्णम, स्वर्णात्कोटि गुणं मणिः,
मणेः कोटि गुणं बाणो, बाणात्कोटि गुणं रसः
रसात्परतरं लिंगं न भूतो न भविष्यति ॥
मणेः कोटि गुणं बाणो, बाणात्कोटि गुणं रसः
रसात्परतरं लिंगं न भूतो न भविष्यति ॥
अर्थात मिटृी से बने शिवलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल सोने से बने शिवलिंग के पूजन से, स्वर्ण से करोड गुणा ज्यादा फल मणि से बने शिवलिंग के पूजन से, मणि से करोड गुणा ज्यादा फल बाणलिंग से तथा बाणलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल रस अर्थात पारे से बने शिवलिंग के पूजन से प्राप्त होता है। आज तक पारे से बने शिवलिंग से श्रेष्ठ शिवलिंग न तो बना है और न ही बन सकता है।
शिवलिंगों में नर्मदा नदी से प्राप्त होने वाले नर्मदेश्वर शिवलिंग भी अत्यंत लाभप्रद तथा शिवकृपा प्रदान करने वाले माने गये हैं। यदि आपके पास शिवलिंग न हो तो अपने बांये हाथ के अंगूठे को शिवलिंग मानकर भी पूजन कर सकते हैं ।
शिवलिंग कोई भी हो जब तक भक्त की भावना का संयोजन नही होता तब तक शिवकृपा नही मिल सकती।
शिवलिंग कोई भी हो जब तक भक्त की भावना का संयोजन नही होता तब तक शिवकृपा नही मिल सकती।
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