21 अप्रैल 2019

गुरु साधना का महत्त्व


पूज्यपाद सदगुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्दजी (डॉ.नारायण दत्त श्रीमाली जी )
जन्मदिवस २१ अप्रेल 




एक पत्थर की भी तकदीर बदल सकती है,
शर्त ये है कि सलीके से तराशा जाए....


रास्ते में पडा ! लोगों के पांवों की ठोकरें खाने वाला पत्थर ! जब योग्य मूर्तिकार के हाथ लग जाता है, तो वह उसे तराशकर ,अपनी सर्जनात्मक क्षमता का उपयोग करते हुयेइस योग्य बना देता हैकि वह मंदिर में प्रतिष्ठित होकर करोडों की श्रद्धा का केद्र बन जाता है। करोडों सिर उसके सामने झुकते हैं।

रास्ते के पत्थर को इतना उच्च स्वरुप प्रदान करने वाले मूर्तिकार के समान हीएक गुरु अपने शिष्य को सामान्य मानव से उठाकर महामानव के पद पर बिठा देता है।

चाणक्य ने अपने शिष्य चंद्रगुप्त को सडक से उठाकर संपूर्ण भारतवर्ष का चक्रवर्ती सम्राट बना दिया।
विश्व मुक्केबाजी का महानतम हैवीवेट चैंपियन माइक टायसन सुधार गृह से निकलकर अपराधी बन जाता अगर उसकी प्रतिभा को उसके गुरू ने ना पहचाना होता।
यह एक अकाट्य सत्य है कि चाहे वह कल का विश्वविजेता सिकंदर हो या आज का हमारा महानतम बल्लेबाज सचिन तेंदुलकरवे अपनी क्षमताओं को पूर्णता प्रदान करने में अपने गुरु के मार्गदर्शन व योगदान के अभाव में सफल नही हो सकते थे।

हमने प्राचीन काल से ही गुरु को सबसे ज्यादा सम्माननीय तथा आवश्यक माना। भारत की गुरुकुल परंपरा में बालकों को योग्य बनने के लिये आश्रम में रहकर विद्याद्ययन करना पडता थाजहां गुरु उनको सभी आवश्यक ग्रंथो का ज्ञान प्रदान करते हुए उन्हे समाज के योग्य बनाते थे।

विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों नालंदा तथा तक्षशिला में भी उसी ज्ञानगंगा का प्रवाह हम देखते हैं। संपूर्ण विश्व में शायद ही किसी अन्य देश में गुरु को उतना सम्मान प्राप्त हो जितना हमारे देश में दिया जाता रहा है। यहां तक कहा गया किः-
गुरु गोविंद दोऊ खडे काके लागूं पांय ।
बलिहारी गुरु आपकी गोविंद दियो बताय ॥

अर्थातयदि गुरु के साथ स्वयं गोविंद अर्थात साक्षात भगवान भी सामने खडे होंतो भी गुरु ही प्रथम सम्मान का अधिकारी होता हैक्योंकि उसीने तो यह क्षमता प्रदान की है कि मैं गोविंद को पहचानने के काबिल हो सका।
·      आध्यात्मिक जगत की ओर जाने के इच्छुक प्रत्येक व्यक्ति का मार्ग गुरु और केवल गुरु से ही प्रारंभ होता है।
·      कुछ को गुरु आसानी से मिल जाते हैंकुछ को काफी प्रयास के बाद मिलते हैं,और कुछ को नहीं मिलते हैं।
·      साधनात्मक जगतजिसमें योगतंत्रमंत्र जैसी विद्याओं को रखा जाता हैमें गुरु को अत्यंत ही अनिवार्य माना जाता है।
·      वे लोग जो इन क्षेत्रों में विशेषज्ञता प्राप्त करना चाहते हैंउनको अनिवार्य रुप से योग्य गुरु के सानिध्य के लिये प्रयास करना ही चाहिये।
·      ये क्षेत्र उचित मार्गदर्शन की अपेक्षा रखते हैं।
गुरु का तात्पर्य किसी व्यक्ति के देह या देहगत न्यूनताओं से नही बल्कि उसके अंतर्निहित ज्ञान से होता हैवह ज्ञान जो आपके लिये उपयुक्त हो,लाभप्रद हो। गुरु गीता में कुछ श्लोकों में इसका विवेचन मिलता हैः-

अज्ञान तिमिरांधस्य ज्ञानांजन शलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः ॥

अज्ञान के अंधकार में डूबे हुये व्यक्ति को ज्ञान का प्रकाश देकर उसके नेत्रों को प्रकाश का अनुभव कराने वाले गुरु को नमन ।
गुरु शब्द के अर्थ को बताया गया है कि :-

गुकारस्त्वंधकारश्च रुकारस्तेज उच्यते।
अज्ञान तारकं ब्रह्‌म गुरुरेव न संशयः॥

गुरु शब्द के पहले अक्षर ÷गुका अर्थ हैअंधकार जिसमें शिष्य डूबा हुआ हैऔर ÷रुका अर्थ हैतेज या प्रकाश जिसे गुरु शिष्य के हृदय में उत्पन्न कर इस अंधकार को हटाने में सहायक होता हैऔर ऐसे ज्ञान को प्रदान करने वाला गुरु साक्षात ब्रह्‌म के तुल्य होता है।

ज्ञान का दान ही गुरु की महत्ता है। ऐसे ही ज्ञान की पूर्णता का प्रतीक हैं भगवान शिव। भगवान शिव को सभी विद्याओं का जनक माना जाता है। वे तंत्र से लेकर मंत्र तक और योग से लेकर समाधि तक प्रत्येक क्षेत्र के आदि हैं और अंत भी। वे संगीत के आदिसृजनकर्ता भी हैंऔर नटराज के रुप में कलाकारों के आराध्य भी हैं। वे प्रत्येक विद्या के ज्ञाता होने के कारण जगद्गुरु भी हैं। गुरु और शिव को आध्यात्मिक जगत में समान माना गया है। कहा गया है कि :-
यः शिवः सः गुरु प्रोक्तः। यः गुरु सः शिव स्मृतः॥
अर्थात गुरु और शिव दोनों ही अभेद हैंऔर एक दूसरे के पर्याय हैं।जब गुरु ज्ञान की पूर्णता को प्राप्त कर लेता है तो वह स्वयं ही शिव तुल्य हो जाता हैतब वह भगवान आदि शंकराचार्य के समान उद्घोष करता है कि ÷
शिवो s हंशंकरो s हं'
ऐसे ही ज्ञान के भंडार माने जाने वाले गुरुओं के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करने का पर्व हैगुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा । यह वो बिंदु हैजिसके वाद से सावन का महीना जो कि शिव का मास माना जाता हैप्रारंभ हो जाता है।
इसका प्रतीक रुप में अर्थ लें तोजब गुरु अपने शिष्य को पूर्णता प्रदान कर देता हैतो वह आगे शिवत्व की प्राप्ति की दिशा में अग्रसर होने लगता है,और यह भाव उसमें जाग जाना ही मोक्ष या ब्रह्‌मत्व की स्थिति कही गयी है।
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर हर शिष्य की इच्छा होती है कि वह गुरु के सानिध्य में पहुँच सके ताकि वे उसे शिवत्व का मार्ग बता सकें।
यदि किसी कारणवश आप गुरु को प्राप्त न कर पाये हों तो आप दो तरीकों से साधना पथ पर आगे की ओर गतिमान हो सकते हैं।
·      पहला यह कि आप अपने आराध्य या इष्टदेवता या देवी को गुरु मानकर आगे बढें
·      और दूसरा आप भगवान शिव को ही गुरु मानते हुये निम्नलिखित मंत्र का अनुष्ठान करें:-

॥ ॐ गुं गुरुभ्यो नमः ॥

1.       इस मंत्र का सवा लाख जाप करें।
2.       साधनाकाल में सफेद रंग के वस्त्रों को धारण करें।
3.       अपने सामने अपने गुरु के लिये भी सफेद रंग का एक आसन बिछाकररखें।
4.       यदि हो सके तो इस मंत्र का जाप प्रातः चार से छह बजे के बीच में करनाचाहिये।
5.       साधना पूर्ण होने तक आपके भाग्यानुकूल श्रेष्ठ गुरु हैं तो साधनात्मक रुप से आपको संकेत मिल जायेंगे।


6.       गुरु पूर्णिमा के अवसर पर प्रत्येक गृहस्थ को उपरोक्त मंत्र का कुछ समय तक जाप करना ही चाहियेहमारे पूर्वज ऋषियों तथा गुरुओं के प्रति सम्मान प्रकट करने का यह एक श्रेष्ठ तरीका है

निखिल समर्पण पंचकम



निखिलेश्वरम पूर्ण ब्रह्म स्वरूपम् , शिवत्व युक्तं शक्ति स्वरूपं |
त्वमेव साक्षात अर्धनारीश्वररूपं, त्वमेवं प्रणम्यं त्वमेवं प्रणम्यं ||

प्रिय स्वरूपं , प्राण स्वरूपम् , प्रेम स्वरूपम् पूर्णत्व रूपम् |
त्वमेव साक्षात कृष्णस्वरूपं, त्वमेवं प्रणम्यं त्वमेवं प्रणम्यं ||

मित्र स्वरूपम् सहयोग युक्तं, सद्मार्गदर्शक बन्धु स्वरूपम् |
त्वमेव साक्षात सखास्वरूपं, त्वमेवं प्रणम्यं त्वमेवं प्रणम्यं ||

लाडनयुक्तं ताडनयुक्तं, वात्सल्यभाव समाहित रूपम् |
त्वमेव साक्षात पितृस्वरूपं, त्वमेवं प्रणम्यं त्वमेवं प्रणम्यं ||

ममत्व युक्तम् सहज स्वरूपम्, मानस गर्भ धारण युक्तम्
त्वमेव साक्षात मातृ स्वरूपम्, त्वमेवं प्रणम्यं त्वमेवं प्रणम्यं ||


|| इति श्री निखिल् शिष्य अनिल कृत निखिल समर्पण पंचकम सम्पूर्णम ||

निखिल महात्म्य : गुरूदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी : चित्र संग्रह



Photographs of Dr. Narayan Dutta Shrimali Ji














































19 अप्रैल 2019

गीताप्रेस : अध्यात्मिक ग्रन्थ प्रकाशक

गीताप्रेस : अध्यात्मिक ग्रन्थ प्रकाशक
गीता प्रेस भारत के प्रमुख अध्यात्मिक प्रकाशनों में से एक है | यहाँ से कल्याण नमक पत्रिका निकलती है | विस्तृत जानकारी के लिए गीता प्रेस की वेब साईट :-




गीताप्रेस द्वारा मुख्य रूपसे हिन्दी तथा संस्कृतभाषामें गीताप्रेसका साहित्य प्रकाशित होता हैकिन्तु अहिन्दीभाषी लोगोंकी असुविधाको देखते हुए अब तमिलतेलुगुमराठीकन्नड़बँगला,गुजराती तथा ओड़िआ आदि प्रान्तीय भाषाओंमें भी पुस्तकें प्रकाशित की जा रही हैं और इस योजनासे लोगोंको लाभ भी हुआ है। अंग्रेजी भाषामें भी कुछ पुस्तकें प्रकाशित होती हैं। अब न केवल भारतमें अपितु विदेशोंमें भी यहाँका प्रकाशन बड़े मनोयोग एवं श्रद्धासे पढ़ा जाता है। प्रवासी भारतीय भी यहाँका साहित्य पढ़नेके लिये उत्कण्ठित रहते हैं । 

गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित पत्रिकाओं के लिए क्लिक करें :-





18 अप्रैल 2019

श्री हनुमान सामान्य हवन विधि





  • पहले एक हवन कुंड या पात्र में लकडियां जमायें.
  • अब उसमें "आं अग्नये नमः" मंत्र बोलते हुए आग लगायें.
  • ७ बार "ॐ अग्नये स्वाहा"  मंत्र से आहुति डालें.
  • ३ बार "ॐ गं गणपतये स्वाहा"  मंत्र से आहुति डालें.
  • ३ बार "ॐ भ्रं भैरवाय स्वाहा"  मंत्र से आहुति डालें.
  • २१ बार "ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः स्वाहा"  मंत्र से आहुति डालें.
  • 11 बार  "ॐ जानकी वल्लभाय स्वाहा"  मंत्र से आहुति डालें.
  • अब जिस हनुमान मन्त्र का जाप कर रहे थे उस मन्त्र से स्वाहा लगाकर  १०८ बार आहुति डालें.
  • अंत में अपने दोनों कान पकडकर गलतियों के लिये क्षमा मांगे.

17 अप्रैल 2019

साधना सिद्धि विज्ञान PDF : श्री हनुमान विशेषांक



साधना सिद्धि विज्ञान पत्रिका 
यह पत्रिका तंत्र साधनाओं के गूढतम रहस्यों को साधकों के लिये स्पष्ट कर उनका मार्गदर्शन करने में अग्रणी है. साधना सिद्धि विज्ञान पत्रिका में महाविद्या साधना भैरव साधनाकाली साधनाअघोर साधनाअप्सरा साधना इत्यादि के विषय में जानकारी मिलेगी . इसमें आपको विविध साधनाओं के मंत्र तथा पूजन विधि का प्रमाणिक विवरण मिलेगा . देश भर में लगने वाले विभिन्न साधना शिविरों के विषय में जानकारी मिलेगी . 
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वार्षिक सदस्यता शुल्क 250 रुपये मनीआर्डर द्वारा निम्नलिखित पते पर भेजें
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साधना सिद्धि विज्ञान शोप न. प्लाट न. 210 एम.पी.नगर भोपाल [म.प्र.] 462011 
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साधना सिद्धि विज्ञान एक मासिक पत्रिका है , 250 रुपये इसका वार्षिक शुल्क है . यह पत्रिका आपको एक साल तक हर महीने मिलेगी .
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पत्रिका सदस्यतासमस्या तथा विभिन्न साधनात्मक जानकारियों तथा निशुल्क दीक्षा के सम्बन्ध में जानकारी के लिए निचे लिखे नंबर पर संपर्क करें 
समय = सुबह दस बजे से शाम पांच बजे तक [ रविवार अवकाश ] phone -[0755]-4283681

हनुमान जी पर सिन्दूर चोला



  • हनुमान जी पर सिन्दूर घोलकर लेप करने को चोला चढाना कहते हैं .

  • हनुमान जी पर चोला चढाने के लिये सिन्दूर को तेल में घोलकर पूरी मूर्ति पर लेप किया जाता है.

  • लेप करने के बाद उनके चरणों से सिन्दूर लेकर अपने माथे तथा हृदय पर लगाना चाहिये.कम से कम एक बार हनुमान चालीसा का पाठ अवश्य करें.
  •  यदि संभव हो तो सुंदर कांड का पाठ भी लाभदायक रहेगा.
  • चोला चढाने से पहले कम से कम एक दिन का ब्रह्मचर्य जरूर रखें. चोला चढाने के बाद कम से कम एक दिन सात्विक आहार आचार व्यवहार रखें तो ज्यादा लाभ होगा.

साथ में बंदरों को चने या उनके पसंद की कोई सामग्री खिलाना भी लाभ प्रद होगा.








16 अप्रैल 2019

रुद्ररूप हनुमान साधना





॥ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं रुद्ररूपाय महासिद्धाय ह्रीं ह्रीं ह्रीं नमः 

यह तान्त्रिक बीज मन्त्र युक्त मन्त्र है.  
जाप प्रारंभ करने से पहले अपनी मनोकामना प्रभु के सामने व्यक्त करें. 
ब्रह्मचर्य का पालन करें. 
एक समय भोजन करें. बीच में चाहें तो फ़लाहार कर सकते हैं.
दक्षिण दिशा में मुख करके वज्रासन या वीरासन में बैठें. 
रात्रि ९ से ३ के बीच जाप करें. 
लाल वस्त्र पहनकर लाल आसन पर बैठ कर  जाप करें. 
गुड तथा चने का भोग लगायें. 
यथाशक्ति जाप जोर से बोल कर करें.
११००० जाप करें ११०० मन्त्रों से हवन करें. 


साधना पूर्ण होने पर एक छोटे गरीब बालक को उसकी पसंद का वस्त्र लेकर दें.

15 अप्रैल 2019

तंत्रोक्त हनुमान साधना


॥ ॐ ऎं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं  ह्स्फ़्रें ख्फ़्रें ह्स्त्रौं ह्स्ख्फ़्रें ह्सौं ॐ हनुमते नमः ॥



  •  दक्षिण दिशा में मुख करके वज्रासन या वीरासन में बैठें.
  • रात्रि ९ से ३ के बीच जाप करें.
  • ११००० जाप करें.
  • लाल वस्त्र पहनकर लाल आसन पर बैठ कर  जाप करें.
  • यथाशक्ति जाप जोर से बोल कर करें. 

14 अप्रैल 2019

बीज मंत्रात्मक हनुमान साधना



॥ ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः ॐ ॥

  • यह तान्त्रिक बीज मन्त्र युक्त मन्त्र है. 
  • जाप प्रारंभ करने से पहले अपनी मनोकामना प्रभु के सामने व्यक्त करें.
  • ब्रह्मचर्य का पालन करें.
  • एक समय भोजन करें.
  • बीच में चाहें तो फ़लाहार कर सकते हैं.
  • दक्षिण दिशा में मुख करके वज्रासन या वीरासन में बैठें.
  • रात्रि ९ से ३ के बीच जाप करें.
  • लाल वस्त्र पहनकर लाल आसन पर बैठ कर  जाप करें.
  • गुड तथा चने का भोग लगायें.
  • यथाशक्ति जाप जोर से बोल कर करें.

  • ११००० जाप करें
  • ११०० मन्त्रों से हवन करें.
  • साधना पूर्ण होने पर एक छोटे बालक को उसकी पसंद का वस्त्र लेकर दें.

हनुमान मन्त्र - साधना के नियम


  • ब्रह्मचर्य का पालन किया जाना चाहिये.
  • साधना का समय रात्रि ९ से सुबह ६ बजे तक.
  • साधना कक्ष में हो सके तो किसी बाहरी व्यक्ति को प्रवेश न दें.
  • जाप संख्या ११,००० होगी.
  • प्रतिदिन चना,गुड,बेसन लड्डू,बूंदी में से किसी एक वस्तु का भोग लगायें.
  • हवन ११०० मन्त्र का होगा, इसमें जाप किये जाने वाले मन्त्र के अन्त में स्वाहा लगाकर सामग्री अग्नि में डालना होता है.
  • हवन सामग्री में गुड का चूरा मिला लें.
  • वस्त्र तथा आसन लाल रंग का होगा.
  • रुद्राक्ष की माला से जाप होगा.
  • 6 अप्रैल 2019

    देवी सरस्वती साधना




    ॥ ऎं श्रीं ऎं ॥ 


    लाभ - विद्या तथा वाकपटुता 


    विधि ---

    पूणिमा से पूर्णिमा तक या नवरात्रि में सवा लाख जाप करें |
    रात्रि काल में जाप होगा.
    रत्रि ९ बजे से सुबह ४ बजे के बीच का समय रात्रि काल है.
    सफ़ेद रंग का आसन तथा वस्त्र होगा.
    दिशा पूर्व या उत्तर की तरफ़ मुंह करके बैठना है.
    हो सके तो साधना स्थल पर ही रात को सोयें.
    सात्विक आहार तथा आचार विचार रखें.
    किसी स्त्री का अपमान न करें.
    किसी पर साधन काल में क्रोध न करें.
    किसी को ना तो कोसें और ना ही व्यर्थ का प्रलाप करें.
    यथा संभव मौन रखें.
    साधना में बैठने से पहले हल्का भोजन करें.
    साधना पूर्ण होने पर एक छोटे गरीब बालक को उसकी पसंद का वस्त्र लेकर दें.

    5 अप्रैल 2019

    तारा साधना मंत्रम


    तारा साधना जीवन का सौभाग्य है। यह साधना मनुष्यत्व से ब्रह्मत्व की यात्रा है। ......... 

    ·      यह साधना गुरु दीक्षा और गुरु अनुमति से ही करनी चाहिए.
    ·      भगवती तारा महाविद्या की साधना में एक बार संकल्प ले लेने के बाद गलतियों की छूट नहीं होती. इसलिए अपने पर पूरा विश्वास होने पर ही संकल्प लें. संकल्प में अपनी मनोकामना बोले और नित्य जाप की संख्या बताएं। नित्य उतनी ही संख्या में जाप करें। कम ज्यादा जाप ना करें  

    ·      सहस्रनाम और कवच का पाठ साथ में करने से अतिरिक्त लाभ होता है.
    ·      भगवती तारा अपने साधक को उसी प्रकार साधना पथ पर आगे लेकर जाती है जैसे एक माँ ऊँगली पकड़कर अपने बालक को ले जाती है.
    || ॐ तारा त्रिपुरायै नमः ऋद्धिं वृद्धिम कुरु कुरु स्वाहा ||
    ·      इसके अलावा भी सैकड़ों मंत्र हैं गुरु के निर्देशानुसार उस मन्त्र का जाप करें.
    ·      साधना गुरूवार से प्रारम्भ करें.
    ·      रात्रिकालीन साधना है |
    ·      उत्तर दिशा की और देखते हुए बैठें.
    ·      एकांत कमरा होना चाहिए | साधनाकाल में कोई दूसरा उस कक्ष में ना आये चाहे वह आपकी पत्नी या बालक ही क्यों न हो |
    ·      दिन में भी मन ही मन मन्त्र जाप करते रहें .

    ·