25 जनवरी 2020

गुप्त नवरात्रि विशेष : तारा साधना मंत्रम


तारा साधना मंत्रम
तारा साधना जीवन का सौभाग्य है। यह साधना मनुष्यत्व से ब्रह्मत्व की यात्रा है। .........
शक्ति साधकों के लिए गुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी ने तारा शाक्त मन्त्र नवरात्री शिविर 1995 कराला में प्रदान किया था. यह साधना आर्थिक लाभ प्रदायक है .


·      यह साधना गुरु दीक्षा और गुरु अनुमति से ही करनी चाहिए.

·      भगवती तारा महाविद्या की साधना में एक बार संकल्प ले लेने के बाद गलतियों की छूट नहीं होती. इसलिए अपने पर पूरा विश्वास होने पर ही संकल्प लें. संकल्प में अपनी मनोकामना बोले और नित्य जाप की संख्या बताएं। नित्य उतनी ही संख्या में जाप करें। कम ज्यादा जाप ना करें  

  • ·      सहस्रनाम और कवच का पाठ साथ में करने से अतिरिक्त लाभ होता है.
  • ·      भगवती तारा अपने साधक को उसी प्रकार साधना पथ पर आगे लेकर जाती है जैसे एक माँ ऊँगली पकड़कर अपने शिशु को ले जाती है.

|| ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीं तारायै नमः ||
·      इसके अलावा भी सैकड़ों मंत्र हैं गुरु के निर्देशानुसार उस मन्त्र का जाप करें.
·      साधना गुरूवार से प्रारम्भ करें.
·      रात्रिकालीन साधना है |
·      उत्तर दिशा की और देखते हुए बैठें.
·      एकांत कमरा होना चाहिए साधनाकाल में कोई दूसरा उस कक्ष में ना आये |
·      दिन में भी मन ही मन मन्त्र जाप करते रहें .

·         


गुप्त नवरात्रि विशेष : नील सरस्वती तारा साधना




तंत्र में दस महाविद्याओं को शक्ति के दस प्रधान स्वरूपों के रूप में प्रतिष्ठित किया गया हैये दस महाविद्यायें हैं
कालीताराषोडशीछिन्नमस्ताबगलामुखीत्रिपुरभैरवीमातंगीधूमावतीभुवनेश्वरी तथा कमला.
इनको दो कुलों में बांटा गया हैपहला काली कुल तथा दूसरा श्री कुल
काली कुल की प्रमुख महाविद्या है तारा
इस साधना से जहां एक ओर आर्थिक समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है वहीं ज्ञान तथा विद्या का विकास भी होता हैइस महाविद्या के साधकों में जहां महर्षि विश्वामित्र जैसे प्राचीन साधक रहे हैं वहीं वामा खेपा जैसे साधक वर्तमान युग में बंगाल प्रांत में हो चुके हैंविश्वप्रसिद्ध तांत्रिक तथा लेखक गोपीनाथ कविराज के आदरणीय गुरूदेव स्वामी विशुद्धानंद जी तारा साधक थेइस साधना के बल पर उन्होने अपनी नाभि से कमल की उत्पत्ति करके दिखाया था.
तिब्बत को साधनाओं का गढ माना जाता हैतिब्बती लामाओं या गुरूओं के पास साधनाओं की अतिविशिष्ठ तथा दुर्लभ विधियां आज भी मौजूद हैंतिब्बती साधनाओं के सर्वश्रेष्ठ होने के पीछे भी उनकी आराध्या देवी मणिपद्मा का ही आशीर्वाद हैमणिपद्मा तारा का ही तिब्बती नाम हैइसी साधना के बल पर वे असामान्य तथा असंभव लगने वाली क्रियाओं को भी करने में सफल हो पाते हैंतारा महाविद्या साधना सवसे कठोर साधनाओं में से एक हैइस साधना में किसी प्रकार की नियमों में शिथिलता स्वीकार्य नही होतीइस विद्या के तीन रूप माने गये हैं :-

1.       नील सरस्वती.
2.     एक जटा.
3.     उग्रतारा.
नील सरस्वती तारा साधना

तारा के नील सरस्वती स्वरूप की साधना विद्या प्राप्ति तथा ज्ञान की पूर्णता के लिये सर्वश्रेष्ठ हैइस साधना की पूर्णता साधक को जहां ज्ञान के क्षेत्र में अद्वितीय बनाती है वहीं साधक को स्वयं में कवित्व शक्ति भी प्रदान कर देती हैअर्थात वह कविता या लेखन की क्षमता भी प्राप्त कर लेता है.

नील सरस्वती साधना की एक गोपनीय विधि मुझे स्वामी आदित्यानंदजी से प्राप्त हुयी थी जो कि अत्यंत ही प्रभावशाली हैइस साधना से निश्चित रूप से मानसिक क्षमता का विकास होता ही हैयदि इसे नियमित रूप से किया जाये तो विद्यार्थियों के लिये अत्यंत लाभप्रद होता है.

नील सरस्वती बीज मंत्रः-

॥ ऐं ॥

यह बीज मंत्र छोटा है इसलिये करने में आसान होता हैजिस प्रकार एक छोटा सा बीज अपने आप में संपूर्ण वृक्ष समेटे हुये होता है ठीक उसी प्रकार यह छोटा सा बीज मंत्र तारा के पूरे स्वरूप को समेटे हुए है.
साधना विधिः-
1.       इस मंत्र का जाप अमावस्या से प्रारंभ करके पूर्णिमा तक या नवरात्रि में करना सर्वश्रेष्ठ होता हैअपनी सामर्थ्य के अनुसार १०८ बार कम से कम तथा अधिकतम तीन घंटे तक नित्य करें.
2.     कांसे की थाली में केसर से उपरोक्त बीजमंत्र को लिखेंअब इस मंत्र के चारों ओर चार चावल के आटे से बने दीपक घी से जलाकर रखेंचारों दीयों की लौ ऐं बीज की तरफ होनी चाहियेकुंकुम या केसर से चारों दीपकों तथा बीज मंत्र को घेरते हुये एक गोला थाली के अंदर बना लेंयह लिखा हुआ साधना के आखिरी दिन तक काम आयेगादीपक रोज नया बनाकर लगाना होगा.
3.     सर्वप्रथम हाथ जोडकर ध्यान करें :-
नील वर्णाम त्रिनयनाम ब्रह्‌म शक्ति समन्विताम
कवित्व बुद्धि प्रदायिनीम नील सरस्वतीं प्रणमाम्यहम.
4.    हाथ मे जल लेकर संकल्प करें कि मां आपको बुद्धि प्रदान करें.
5.     ऐं बीज को देखते हुये जाप करेंपूरा जाप हो जाने के बाद त्रुटियों के लिये क्षमा मांगें.
6.     साधना काल में ब्रह्मचर्य का पालन करें.
7.      कम से कम बातचीत करेंकिसी पर क्रोध न करें.
8.     किसी स्त्री का अपमान न करें.
9.     वस्त्र सफेद रंग के धारण करें.

बुद्धि की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की यह तांत्रिक साधना हैपूरे विश्वास तथा श्रद्धा से करने पर तारा निश्चित रूप से अभीष्ठ सिद्धि प्रदान करती है.



गुप्त नवरात्रि विशेष : नवार्ण मन्त्र

माघ प्रतिपदा से गुप्त नवरात्रि प्रारंभ होती है 
गुप्त नवरात्रि आज 25 जनवरी 2020 से प्रारम्भ है 

नवरात्रि के समान ही यह देवी साधनाओं मे सफलता दायक है 




  ॥    ऐं ह्रीं क्लीं चामुन्डायै विच्चै  ॥


यह नवार्ण मन्त्र है.

इसमे 

ऐं =  भगवती महासरस्वती का बीज मन्त्र है. 
ह्रीं =  भगवती महालक्ष्मी का बीज मन्त्र है.

क्लीं =  
भगवती महाकाली का बीज मन्त्र है.


इससे तीनों देवियों की कृपा मिलती है.

 इस मन्त्र का यथा शक्ति जप करने से महामाया की कॄपा प्राप्त होती है .

विधि ---

  1. रात्रि काल में जाप होगा.
  2. रत्रि ९ बजे से सुबह ४ बजे के बीच का समय रात्रि काल है.
  3. लाल रंग का आसन तथा वस्त्र होगा.
  4. दिशा पूर्व या उत्तर की तरफ़ मुंह करके बैठना है.
  5. हो सके तो साधना स्थल पर ही रात को सोयें.
  6. सात्विक आहार तथा आचार विचार रखें.
  7. किसी स्त्री का अपमान न करें.
  8. किसी पर साधन काल में क्रोध न करें.
  9. किसी को ना तो कोसें और ना ही व्यर्थ का प्रलाप करें.
  10. यथा संभव मौन रखें.
  11. साधना में बैठने से पहले हल्का भोजन करें.
  12. बहुत आवश्यक हो तो पत्नी से संपर्क रख सकते हैं.


. . .
सभी साधनाओं के लिए सामान्य साधनात्मक दिशा निर्देश 
=
साधना में गुरु की आवश्यकता
Y      मंत्र साधना के लिए गुरु धारण करना श्रेष्ट होता है.
Y      साधना से उठने वाली उर्जा को गुरु नियंत्रित और संतुलित करता है, जिससे साधना में जल्दी सफलता मिल जाती है.
Y      गुरु मंत्र का नित्य जाप करते रहना चाहिए. अगर बैठकर ना कर पायें तो चलते फिरते भी आप मन्त्र जाप कर सकते हैं.
Y      रुद्राक्ष या रुद्राक्ष माला धारण करने से आध्यात्मिक अनुकूलता मिलती है .
Y      रुद्राक्ष की माला आसानी से मिल जाती है आप उसी से जाप कर सकते हैं.
Y      गुरु मन्त्र का जाप करने के बाद उस माला को सदैव धारण कर सकते हैं. इस प्रकार आप मंत्र जाप की उर्जा से जुड़े रहेंगे और यह रुद्राक्ष माला एक रक्षा कवच की तरह काम करेगा.
गुरु के बिना साधना
Y         स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
Y         जिन मन्त्रों में 108 से ज्यादा अक्षर हों उनकी साधना बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
Y         शाबर मन्त्र तथा स्वप्न में मिले मन्त्र बिना गुरु के जाप कर सकते हैं .
Y         गुरु के आभाव में स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ करने से पहले अपने इष्ट या भगवान शिव के मंत्र का एक पुरश्चरण यानि १,२५,००० जाप कर लेना चाहिए.इसके अलावा हनुमान चालीसा का नित्य पाठ भी लाभदायक होता है.
    
मंत्र साधना करते समय सावधानियां
Y      मन्त्र तथा साधना को गुप्त रखेंढिंढोरा ना पीटेंबेवजह अपनी साधना की चर्चा करते ना फिरें .
Y      गुरु तथा इष्ट के प्रति अगाध श्रद्धा रखें .
Y      आचार विचार व्यवहार शुद्ध रखें.
Y      बकवास और प्रलाप न करें.
Y      किसी पर गुस्सा न करें.
Y      यथासंभव मौन रहें.अगर सम्भव न हो तो जितना जरुरी हो केवल उतनी बात करें.
Y      ब्रह्मचर्य का पालन करें.विवाहित हों तो साधना काल में बहुत जरुरी होने पर अपनी पत्नी से सम्बन्ध रख सकते हैं.
Y      किसी स्त्री का चाहे वह नौकरानी क्यों न हो, अपमान न करें.
Y      जप और साधना का ढोल पीटते न रहें, इसे यथा संभव गोपनीय रखें.
Y      बेवजह किसी को तकलीफ पहुँचाने के लिए और अनैतिक कार्यों के लिए मन्त्रों का प्रयोग न करें.
Y      ऐसा करने पर परदैविक प्रकोप होता है जो सात पीढ़ियों तक अपना गलत प्रभाव दिखाता है.
Y      इसमें मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों का जन्म लगातार गर्भपातसन्तान ना होना अल्पायु में मृत्यु या घोर दरिद्रता जैसी जटिलताएं भावी पीढ़ियों को झेलनी पड सकती है |
Y      भूतप्रेतजिन्न,पिशाच जैसी साधनाए भूलकर भी ना करें इन साधनाओं से तात्कालिक आर्थिक लाभ जैसी प्राप्तियां तो हो सकती हैं लेकिन साधक की साधनाएं या शरीर कमजोर होते ही उसे असीमित शारीरिक मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है ऐसी साधनाएं करने वाला साधक अंततः उसी योनी में चला जाता है |
Y      गुरु और देवता का कभी अपमान न करें.
मंत्र जाप में दिशाआसनवस्त्र का महत्व
ü  साधना के लिए नदी तटशिवमंदिरदेविमंदिरएकांत कक्ष श्रेष्ट माना गया है .
ü  आसन में काले/लाल कम्बल का आसन सभी साधनाओं के लिए श्रेष्ट माना गया है .
ü  अलग अलग मन्त्र जाप करते समय दिशाआसन और वस्त्र अलग अलग होते हैं .
ü  इनका अनुपालन करना लाभप्रद होता है .
ü  जाप के दौरान भाव सबसे प्रमुख होता है जितनी भावना के साथ जाप करेंगे उतना लाभ ज्यादा होगा.
ü  यदि वस्त्र आसन दिशा नियमानुसार ना हो तो भी केवल भावना सही होने पर साधनाएं फल प्रदान करती ही हैं .
ü  नियमानुसार साधना न कर पायें तो जैसा आप कर सकते हैं वैसे ही मंत्र जाप करें लेकिन साधनाएं करते रहें जो आपको साधनात्मक अनुकूलता के साथ साथ दैवीय कृपा प्रदान करेगा |
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गुप्त नवरात्रि विशेष : आदि गुरु साधना

माघ प्रतिपदा से गुप्त नवरात्रि प्रारंभ होती है 
गुप्त नवरात्रि आज 25 जनवरी 2020 से प्रारम्भ है 

नवरात्रि के समान ही यह देवी साधनाओं मे सफलता दायक है 




दक्षिणामूर्ति शिव भगवान शिव का सबसे तेजस्वी स्वरूप है । यह उनका आदि गुरु स्वरूप है । इस रूप की साधना सात्विक भाव वाले सात्विक मनोकामना वाले तथा ज्ञानाकांक्षी साधकों को करनी चाहिये ।




॥ऊं ह्रीं दक्षिणामूर्तये नमः ॥

  • ब्रह्मचर्य का पालन करें.
  • ब्रह्ममुहूर्त यानि सुबह ४ से ६ के बीच जाप करें.
  • सफेद वस्त्र , आसन , होगा.
  • दिशा इशान( उत्तर और पूर्व के बीच ) की तरफ देखकर करें.
  • भस्म से त्रिपुंड लगाए . 
  • रुद्राक्ष की माला पहने .
  • रुद्राक्ष की माला से जाप करें.
.
------------------- विशेष ---------------------  साधना में गुरु की आवश्यकता
Y   मंत्र साधना के लिए गुरु धारण करना श्रेष्ट होता है.
Y   साधना से उठने वाली उर्जा को गुरु नियंत्रित और संतुलित करता है, जिससे साधना में जल्दी सफलता मिल जाती है.
Y   गुरु मंत्र का नित्य जाप करते रहना चाहिए. अगर बैठकर ना कर पायें तो चलते फिरते भी आप मन्त्र जाप कर सकते हैं.
Y   रुद्राक्ष या रुद्राक्ष माला धारण करने से आध्यात्मिक अनुकूलता मिलती है .
Y   रुद्राक्ष की माला आसानी से मिल जाती है आप उसी से जाप कर सकते हैं.
Y   गुरु मन्त्र का जाप करने के बाद उस माला को सदैव धारण कर सकते हैं. इस प्रकार आप मंत्र जाप की उर्जा से जुड़े रहेंगे और यह रुद्राक्ष माला एक रक्षा कवच की तरह काम करेगा.
गुरु के बिना साधना
Y   स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
Y   जिन मन्त्रों में 108 से ज्यादा अक्षर हों उनकी साधना बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
Y   शाबर मन्त्र तथा स्वप्न में मिले मन्त्र बिना गुरु के जाप कर सकते हैं .
Y   गुरु के आभाव में स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ करने से पहले अपने इष्ट या भगवान शिव के मंत्र का एक पुरश्चरण यानि १,२५,००० जाप कर लेना चाहिए.इसके अलावा हनुमान चालीसा का नित्य पाठ भी लाभदायक होता है.
Y    
मंत्र साधना करते समय सावधानियां
Y   मन्त्र तथा साधना को गुप्त रखें, ढिंढोरा ना पीटें, बेवजह अपनी साधना की चर्चा करते ना फिरें .
Y   गुरु तथा इष्ट के प्रति अगाध श्रद्धा रखें .
Y   आचार विचार व्यवहार शुद्ध रखें.
Y   बकवास और प्रलाप न करें.
Y   किसी पर गुस्सा न करें.
Y   यथासंभव मौन रहें.अगर सम्भव न हो तो जितना जरुरी हो केवल उतनी बात करें.
Y   ब्रह्मचर्य का पालन करें.विवाहित हों तो साधना काल में बहुत जरुरी होने पर अपनी पत्नी से सम्बन्ध रख सकते हैं.
Y   किसी स्त्री का चाहे वह नौकरानी क्यों न होअपमान न करें.
Y   जप और साधना का ढोल पीटते न रहेंइसे यथा संभव गोपनीय रखें.
Y   बेवजह किसी को तकलीफ पहुँचाने के लिए और अनैतिक कार्यों के लिए मन्त्रों का प्रयोग न करें.
Y   ऐसा करने पर परदैविक प्रकोप होता है जो सात पीढ़ियों तक अपना गलत प्रभाव दिखाता है.
Y   इसमें मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों का जन्म , लगातार गर्भपात, सन्तान ना होना , अल्पायु में मृत्यु या घोर दरिद्रता जैसी जटिलताएं भावी पीढ़ियों को झेलनी पड सकती है |
Y   भूत, प्रेत, जिन्न,पिशाच जैसी साधनाए भूलकर भी ना करें , इन साधनाओं से तात्कालिक आर्थिक लाभ जैसी प्राप्तियां तो हो सकती हैं लेकिन साधक की साधनाएं या शरीर कमजोर होते ही उसे असीमित शारीरिक मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है | ऐसी साधनाएं करने वाला साधक अंततः उसी योनी में चला जाता है |
गुरु और देवता का कभी अपमान न करें.
मंत्र जाप में दिशा, आसन, वस्त्र का महत्व
Y   साधना के लिए नदी तट, शिवमंदिर, देविमंदिर, एकांत कक्ष श्रेष्ट माना गया है .
Y   आसन में काले/लाल कम्बल का आसन सभी साधनाओं के लिए श्रेष्ट माना गया है .
Y   अलग अलग मन्त्र जाप करते समय दिशा, आसन और वस्त्र अलग अलग होते हैं .
Y   इनका अनुपालन करना लाभप्रद होता है .
Y   जाप के दौरान भाव सबसे प्रमुख होता है , जितनी भावना के साथ जाप करेंगे उतना लाभ ज्यादा होगा.
Y   यदि वस्त्र आसन दिशा नियमानुसार ना हो तो भी केवल भावना सही होने पर साधनाएं फल प्रदान करती ही हैं .
Y   नियमानुसार साधना न कर पायें तो जैसा आप कर सकते हैं वैसे ही मंत्र जाप करें , लेकिन साधनाएं करते रहें जो आपको साधनात्मक अनुकूलता के साथ साथ दैवीय कृपा प्रदान करेगा |

गुरु क्या है ?


  • गुरु अपने आप में महामाया की सर्वश्रेष्ठ कृति है.
  • गुरुत्व साधनाओं से, पराविद्याओं की कृपा और सानिध्य से आता है.
  • वह एक विशेष उद्देश्य के साथ धरा पर आता है और अपना कार्य करके वापस महामाया के पास लौट जाता है.
  • बिना योग्यता के शिष्य को कभी गुरु बनने की कोशिश नही करनी चाहिये.
  • गुरु का अनुकरण यानी गुरु के पहनावे की नकल करने से या उनके अंदाज से बात कर लेने से कोई गुरु के समान नही बन सकता.
  • गुरु का अनुसरण करना चाहिये उनके बताये हुए मार्ग पर चलना चाहिये, इसीसे साधनाओं में सफ़लता मिलती है.
  • शिष्य बने रहने में लाभ ही लाभ हैं जबकि गुरु के मार्ग में परेशानियां ही परेशानियां हैं, जिन्हे संभालने के लिये प्रचंड साधक होना जरूरी होता है, अखंड गुरु कृपा होनी जरूरी होती है.
  • बेवजह गुरु बनने का ढोंग करने से साधक साधनात्मक रूप से नीचे गिरता जाता है और एक दिन अभिशप्त जीवन जीने को विवश हो जाता है .
  • गुरु भी सदैव अपने गुरु के प्रति नतमस्तक ही रहता है इसलिए साधकों को अपने गुरुत्व के प्रदर्शन में अपने गुरु के सम्मान को ध्यान रखना चाहिए .