एक प्रयास सनातन धर्म[Sanatan Dharma] के महासमुद्र मे गोता लगाने का.....कुछ रहस्यमयी शक्तियों [shakti] से साक्षात्कार करने का.....गुरुदेव Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji [ Nikhileswaranand Ji] की कृपा से प्राप्त Mantra Tantra Yantra विद्याओं को समझने का......
Kali, Sri Yantra, Laxmi,Shiv,Kundalini, Kamkala Kali, Tripur Sundari, Maha Tara ,Tantra Sar Samuchhay , Mantra Maharnav, Mahakal Samhita, Devi,Devata,Yakshini,Apsara,Tantra, Shabar Mantra, जैसी गूढ़ विद्याओ को सीखने का....
Disclaimer
ब्लॉग पर दिखाये गए विज्ञापन गूगल तथा थर्ड पार्टी द्वारा दिखाये जाते हैं । उनकी प्रमाणकिता, प्रासंगिकता तथा उपयोगिता पर स्वविवेक से निर्णय लें ।
मेरे पूज्यपाद गुरुदेव डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी अब सशरीर हमारे बीच नहीं है ।
डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी
इस वीडियो के माध्यम से आप मानसिक रूप से उन्हे गुरु मानकर गुरु दीक्षा ग्रहण कर सकते हैं । और गुरु मंत्र का जाप कर सकते हैं ।
जैसे जैसे आपका गुरु मंत्र का जाप बढ़ता जाएगा आपको स्वप्न मे या किसी न किसी माध्यम से साधनात्मक निर्देश या मार्ग प्राप्त हो जाएगा ....
गुरु मंत्र
॥ ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः ॥
1.गुरु मंत्र जाप के लिए ब्रह्म मुहूर्त अर्थात 3 से 6 बजे का समय सबसे बढ़िया है । संभव न हो तो कभी भी कर सकते हैं ।
2.मंत्र जाप के काल मे शुद्ध आचार व्यवहार और विचार रखें ।
3.सभी स्त्रियों को मातृवत समझें तथा उनका सम्मान करें ।
4.यथासंभव ब्रह्मचर्य का पालन करें ।
5.संभव हो तो नित्य एक निश्चित समय पर बैठें ।
6.जाप पूरा हो जाने के बाद उस स्थान पर कम से कम पाँच मिनट आँख बंद करके बैठे रहें ।
7.108 मनकों की माला से मंत्र जाप किया जाता है ।
8.रुद्राक्ष या स्फटिक माला श्रेष्ठ है ।
9.मंत्र जाप की गिनती करते समय एक माला के जाप को 100 मंत्र माना जाता है ।
10. मंत्र जाप करते समय एक माला के 108 मे से बचे 8 मंत्र के जाप को उच्चारण की त्रुटि या किसी प्रकार की अन्य त्रुटि के समाधान के लिए छोड़ दिया जाता है ।
11.सवा लाख मंत्र जाप का एक पुरश्चरण माना जाता है ।
12.इसके लिए आपको 1250 माला मंत्र जाप करना होगा ।
13.किसी भी प्रकार की साधना करते समय सबसे पहले गुरु पूजन करें तथा उसके बाद आप गुरु मंत्र की एक माला करें तथा उसके बाद ही मंत्र जाप करें । इससे सफलता की संभावनाएं बढ़ जाती हैं ।
जिसके माध्यम से आप अपने सदगुरुदेव का पूजन कर सकते हैं क्योंकि मेरे गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी ( डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी ) हैं इसलिए गुरुदेव जी के स्थान पर में उनका नाम ले रहा हूं आप अपने गुरु का नाम उनकी जगह पर ले सकते हैं ।
इस पूजन के लिए स्नानादि करके, पीले या सफ़ेद आसन पर पूर्वाभिमुखी होकर बैठें । लकड़ी की चौकी या बाजोट पर पीला कपड़ा बिछा कर उसपर पंचामृत या जल से स्नान कराके गुरु चित्र यंत्र या शिवलिंग जो भी आपके पास उपलब्ध हो उसे रख लें । अब पूजन प्रारंभ करें।
पवित्रीकरण
किसी भी कार्य को करने के पहले हम अपने आप को साफ सुथरा करते हैं ठीक वैसे ही पूजन करने से पहले भी अपने आप को पवित्र किया जाता है इसे पवित्रीकरण कहते हैं इसमें अपने ऊपर बायें हाथ में जल लेकर दायें हाथ की उंगलियों से छिड़कें या फूल या चम्मच जो भी आप इस्तेमाल करना चाहते हो उसके द्वारा अपने ऊपर थोड़ा सा जल छिड़क लें ।
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ।।
आचमन
आंतरिक शुद्धि के लिए निम्न मंत्रों को पढ़ आचमनी से तीन बार जल पियें -
ॐ आत्म तत्त्वं शोधयामि स्वाहा ।
ॐ ज्ञान तत्त्वं शोधयामि स्वाहा ।
ॐ विद्या तत्त्वं शोधयामि स्वाहा ।
सूर्य पूजन
भगवान सूर्य इस सृष्टि के संचालन करता है और उन्हीं के माध्यम से हम सभी का जीवन गतिशील होता है इसलिए उनकी पूजा अनिवार्य है ।
कुंकुम और पुष्प से सूर्य पूजन करें -
ॐ आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च ।
श्री शिवानन्दनाथ पराशक्त्यम्बा मूलाधार चक्रे स्थापयामि नमः ।
श्री सदाशिवानन्दनाथ चिच्छक्त्यम्बा स्वाधिष्ठान चक्रे स्थापयामि नमः ।
श्री ईश्वरानन्दनाथ आनंद शक्त्यम्बा मणिपुर चक्रे स्थापयामि नमः ।
श्री रुद्रदेवानन्दनाथ इच्छा शक्त्यम्बा अनाहत चक्रे स्थापयामि नमः ।
श्री विष्णुदेवानन्दनाथ ज्ञान शक्त्यम्बा विशुद्ध चक्रे स्थापयामि नमः ।
श्री ब्रह्मदेवानन्दनाथ क्रिया शक्त्यम्बा सहस्त्रार चक्रे स्थापयामि नमः ।
ॐ श्री उन्मनाकाशानन्दनाथ – जलं समर्पयामि ।
ॐ श्री समनाकाशानन्दनाथ – गंगाजल स्नानं समर्पयामि ।
ॐ श्री व्यापकानन्दनाथ – सिद्धयोगा जलं समर्पयामि ।
ॐ श्री शक्त्याकाशानन्दनाथ – चन्दनं समर्पयामि ।
ॐ श्री ध्वन्याकाशानन्दनाथ – कुंकुमं समर्पयामि ।
ॐ श्री ध्वनिमात्रकाशानन्दनाथ – केशरं समर्पयामि ।
ॐ श्री अनाहताकाशानन्दनाथ – अष्टगंधं समर्पयामि ।
ॐ श्री विन्द्वाकाशानन्दनाथ – अक्षतं समर्पयामि ।
ॐ श्री द्वन्द्वाकाशानन्दनाथ – सर्वोपचारम समर्पयामि ।
दीपम
सिद्ध शक्तियों को दीप दिखाएँ
श्री महादर्पनाम्बा सिद्ध ज्योतिं समर्पयामि ।
श्री सुन्दर्यम्बा सिद्ध प्रकाशम् समर्पयामि ।
श्री करालाम्बिका सिद्ध दीपं समर्पयामि ।
श्री त्रिबाणाम्बा सिद्ध ज्ञान दीपं समर्पयामि ।
श्री भीमाम्बा सिद्ध ह्रदय दीपं समर्पयामि ।
श्री कराल्याम्बा सिद्ध सिद्ध दीपं समर्पयामि ।
श्री खराननाम्बा सिद्ध तिमिरनाश दीपं समर्पयामि ।
श्री विधीशालीनाम्बा पूर्ण दीपं समर्पयामि ।
नीराजन --
पात्र में जल, कुंकुम, अक्षत और पुष्प लेकर गुरु चरणों मे समर्पित करें -
श्री सोममण्डल नीराजनं समर्पयामि ।
श्री सूर्यमण्डल नीराजनं समर्पयामि ।
श्री अग्निमण्डल नीराजनं समर्पयामि ।
श्री ज्ञानमण्डल नीराजनं समर्पयामि ।
श्री ब्रह्ममण्डल नीराजनं समर्पयामि ।
पञ्च पंचिका
अपने दोनों हाथों में पुष्प लेकर , दोनों हाथों को भिक्षापात्र के समान जोड़कर, निम्न पञ्च पंचिकाओं का उच्चारण करते हुए इन दिव्य महाविद्याओं की प्राप्ति हेतु गुरुदेव से निवेदन करें -
श्री विद्या लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री एकाकार लक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री महालक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री त्रिशक्तिलक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री सर्वसाम्राज्यलक्ष्मी लक्ष्म्यम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री विद्या कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री परज्योति कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री परिनिष्कल शाम्भवी कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री अजपा कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री मातृका कोशाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री विद्या कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री त्वरिता कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री पारिजातेश्वरी कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री त्रिपुटा कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री पञ्च बाणेश्वरी कल्पलताम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री विद्या कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री अमृत पीठेश्वरी कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री सुधांशु कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री अमृतेश्वरी कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री अन्नपूर्णा कामदुघाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री विद्या रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री सिद्धलक्ष्मी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री मातंगेश्वरी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री भुवनेश्वरी रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री वाराही रत्नाम्बा प्राप्तिम् प्रार्थयामि ।
श्री मन्मालिनी मंत्र
अंत में तीन बार श्री मन्मालिनी का उच्चारण करना चाहिए जिससे गुरुदेव की शक्ति, तेज और सम्पूर्ण साधनाओं की प्राप्ति हो सके । इसके द्वारा सभी अक्षरों अर्थात स्वर व्यंजनों का पूजन हो जाता है जिससे मंत्र बनते हैं :-
नवार्ण मंत्र को भगवती के चैतन्य स्वरूप को समाहित करने का सबसे प्रमुख माध्यम माना जाता है । उसी नवार्ण मंत्र के द्वारा दी जाने वाली सर्वोच्च दीक्षा को सतोपंथी दीक्षा कहा जाता है । सद्गुरुदेव डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी ने अपने शिष्यों को अत्यंत दुर्लभ मंत्रों के माध्यम से सतोपंथी दीक्षा प्रदान की है जिसका ऑडियो सुनकर आप भी उस उर्जा का लाभ ले सकते हैं ।
जो साधक साधिका नवार्ण मंत्र का जाप करते हैं या अनुष्ठान करते हैं , यदि वे अपने अनुष्ठान के साथ-साथ नित्य इसे एक बार सुनते रहे तो उन्हें विशेष अनुभव प्राप्त होंगे और उनकी साधना में भी ज्यादा तीव्र गति से सफलता प्राप्त होगी ।
इस वीडियो को बार बार देखें और साथ ही यथा शक्ति नवार्ण मंत्र का जाप करें ।