3 नवंबर 2021

सहस्राक्षरी लक्ष्मी स्तोत्र

सहस्राक्षरी लक्ष्मी स्तोत्र

दीपावली भगवती महालक्ष्मी की कृपा प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण मुहूर्त है. प्रत्येक गृहस्थ को इस अवसर पर देवी महालक्ष्मी का पूजन विधि विधान से संपन्न करना ही चाहिए क्योंकि गृहस्थ जीवन का आधार ही महालक्ष्मी हैं. महालक्ष्मी पूजन विविध प्रकार से किए जा सकते हैं लेकिन देवराज इंद्रकृत सहस्राक्षरी लक्ष्मी स्तोत्र अपने आप में अत्यंत ही प्रभावशाली तथा शीघ्र फलप्रदायक है. इस अवसर पर आप चाहें तो महालक्ष्मी के किसी भी मंत्र का जाप कर सकते हैं जिससे आपको अनुकूलता प्राप्त होगी


यह स्तोत्र लक्ष्मी जी के यंत्र चित्र या मूर्ति के सामने करना चाहिए.

पहले लघु पूजन करें. तदुपरांत स्तोत्र का पाठ करें.

महालक्ष्मी पूजनः-


श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः गंधम समर्पयामि । (इत्र कुंकुम चढायें)

श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः पुष्पम समर्पयामि । (फूल चढायें )

श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः धूपम समर्पयामि । (अगरबत्ती दिखायें)

श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः दीपम समर्पयामि । (दीपक दिखायें )

श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः नैवेद्यम समर्पयामि । (प्रसाद चढायें )


क्षमतानुसार 11, 21,51 या 108 बार सहस्राक्षरी स्तोत्र मंत्र का पाठ करेंः-


(हाथ में जल लेकर)विनियोगः-

ऊँ अस्य श्री सर्व महाविद्या महारात्रि गोपनीय मंत्र रहस्याति रहस्यमयी पराशक्ति श्री मदाद्या भगवती सिद्ध लक्ष्मी सहस्राक्षरी सहस्र रूपिणि महाविद्याया श्री इंद्र ऋषिं गायत्रयादि नाना छंदांसि नवकोटि शक्तिरूपा श्री मदाद्या भगवती सिद्ध लक्ष्मी देवता श्री मदाद्या भगवती सिद्ध लक्ष्मी प्रसादादखिलेष्टार्थ जपे पाठे विनियोगः । (जल जमीन पर छोड़ दें )

अपने हाथ मे एक पुष्प रखें । एक पाठ पूरा हो जाने पर उसे देवी के चरणों मे चढ़ा दें और उनकी कृपा प्राप्ति की प्रार्थना करें ।.


स्तोत्र मंत्र :-


ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं हसौं श्रीं ऐं ह्रीं क्लीं सौः सौः ऊँ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं जय जय महालक्ष्मी, जगदाद्ये,विजये सुरासुर त्रिभुवन निदाने दयांकुरे सर्व तेजो रूपिणी विरंचि संस्थिते, विधि वरदे सच्चिदानंदे विष्णु देहावृते महामोहिनी नित्य वरदान तत्परे महासुधाब्धि वासिनी महातेजो धारिणी सर्वाधारे सर्वकारण कारिणे अचिंत्य रूपे इंद्रादि सकल निर्जर सेविते सामगान गायन परिपूर्णोदय कारिणी विजये जयंति अपराजिते सर्व सुंदरि रक्तांशुके सूर्य कोटि संकाशे चंद्र कोटि सुशीतले अग्निकोटि दहनशीले यम कोटि वहनशीले ऊँकार नाद बिंदु रूपिणी निगमागम भाग्यदायिनी त्रिदश राज्य दायिनी सर्व स्त्री रत्न स्वरूपिणी दिव्य देहिनि निर्गुणे सगुणे सदसद रूप धारिणी सुर वरदे भक्त त्राण तत्परे बहु वरदे सहस्राक्षरे अयुताक्षरे सप्त कोटि लक्ष्मी रूपिणी अनेक लक्षलक्ष स्वरूपे अनंत कोटि ब्रहमाण्ड नायिके चतुर्विंशति मुनिजन संस्थिते चतुर्दश भुवन भाव विकारिणे गगन वाहिनी नाना मंत्र राज विराजिते सकल सुंदरी गण सेविते चरणारविंद्र महात्रिपुर सुंदरी कामेश दायिते करूणा रस कल्लोलिनी कल्पवृक्षादि स्थिते चिंतामणि द्वय मध्यावस्थिते मणिमंदिरे निवासिनी विष्णु वक्षस्थल कारिणे अजिते अमले अनुपम चरिते मुक्तिक्षेत्राधिष्ठायिनी प्रसीद प्रसीद सर्व मनोरथान पूरय पूरय सर्वारिष्टान छेदय छेदय सर्वग्रह पीडा ज्वराग्र भय विध्वंसय विध्वंसय सर्व त्रिभुवन जातं वशय वशय मोक्ष मार्गाणि दर्शय दर्शय ज्ञानमार्ग प्रकाशय प्रकाशय अज्ञान तमो नाशय नाशय धनधान्यादि वृद्धिं कुरूकुरू सर्व कल्याणानि कल्पय कल्पय माम रक्ष रक्ष सर्वापदभ्यो निस्तारय निस्तारय वज्र शरीरं साधय साधय ह्रीं सहस्राक्षरी सिद्ध लक्ष्मी महाविद्यायै नमः ।

2 नवंबर 2021

शाबर लक्ष्मी मंत्र

 शाबर मंत्र सामान्य जन की भाषा में लिखे हुए मंत्र होते हैं और उसमें व्याकरण की त्रुटि या शब्दों का अर्थ निकालने का प्रयास नहीं करना चाहिए और वे जैसे हैं वैसे ही पाठ कर लेना चाहिए ।

इसमें अलग-अलग स्रोतों के हिसाब से शब्दों में फर्क पड़ सकता है जो कि अलग-अलग साधकों के द्वारा अपने ढंग से प्रस्तुत किए जाते हैं लेकिन सभी सुखद परिणाम देते हैं।
पढ़ने में सरल होते हैं इसलिए कोई भी व्यक्ति से कर सकता है ।
इन मंत्रों का प्रयोग पुरुष या स्त्री कोई भी कर सकता है ।

मंत्र

ॐ नमो आदेश गुरु को |
नमो सिद्ध गणपति प्रसादात विघ्न हर्तुम गणपत गणपत वसो मसाण |
जो फल चाहूं सो फल आण , पञ्च लाडूँ , सिर सिन्दूर , रिद्धि सिद्धि आण |
गौरी का पुत्र सिंहासन बैठा |
राजा काम्पै प्रजा काम्पै दृष्टे राजा सिम चाम्पे| पञ्च कोष पूर्व पश्चिम से आण उत्तर से आण दक्षिण से आण |
इतनी कर रिद्धि सिद्धि मेरे घर द्वार आण|
राजा प्रजा अभी मेरो पड़े पाँव न पड़े तो लाजे मैया गौरी |
जो मै देखूं गणेश बाला कर मंत्र का सत की फट फट स्वाहा |


विधि:-

भोजपत्र पर इस मंत्र को लिख कर उसके सामने 1008  बार जाप करें . भोजपत्र न मिले तो कागज या रेशमी कपडे पर लिख सकते हैं . लिखने के लिए अष्टगंध या कुमकुम का प्रयोग करें . 

जाप के समय गुग्गुल का धुप जलता रहे तो अच्छा है.
जाप के बाद ताबीज में भरकर पहन लें या धन रखने के स्थान में रख लें.
दूकान हो तो वहां गल्ले में भी रख सकते हैं.

महालक्ष्मी के 108 नाम

 श्री लक्ष्म्यष्टोत्तरशतनाम या महालक्ष्मी के 108 नाम  


सबसे पहले महालक्ष्मी जी को हाथ जोड़कर ध्यान करलें :-



सरसिज निलये सरोज हस्ते धवलतरांशुक गन्ध माल्य शोभे ।

भगवति हरि वल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवन भूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥


हिन्दी भावार्थ - हे महामाया महालक्ष्मी ! आप कमल फूलो से भरे हुए वन में निवास करनेवाली हो, आपके हाथों में सुंदर कमल है। आपके वस्त्र अत्यन्त उज्ज्वल हैं । आपके दिव्य देह पर अत्यंत मनोहर गन्ध और सुंदर सुंदर मालाएँ डाली हुई हैं । हे भगवान श्री हरी की प्रिया आपका स्वरूप अत्यंत मनमोहक है । आपकी कृपा से त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्राप्त हो सकता है आप मुझपर प्रसन्न होकर कृपा करें । 

ऐसा ध्यान करेंगे । 


इसके बाद अपने पूजा स्थान/दुकान/ एकांत कक्ष मे अपने सामने लक्ष्मी चित्र/ यंत्र/ श्रीयंत्र/ चाँदी सिक्का/ लक्ष्मी मूर्ति (जो आपके पास उपलब्ध हो ) रखकर भगवती लक्ष्मी के 108 नामों का उच्चारण करें और हर बार नम:  के साथ फूल /कुमकुम/ चावल/ अष्टगंध चढ़ाएं । 


  1. ॐ श्रीं अदित्यै नमः ।

  2. ॐ श्रीं अनघायै नमः ।

  3. ॐ श्रीं अनुग्रहप्रदायै नमः ।

  4. ॐ श्रीं अमृतायै नमः ।

  5. ॐ श्रीं अशोकायै नमः ।

  6. ॐ श्रीं आह्लादजनन्यै नमः ।

  7. ॐ श्रीं इन्दिरायै नमः ।

  8. ॐ श्रीं इन्दुशीतलायै नमः । 

  9. ॐ श्रीं उदाराङ्गायै नमः ।

  10. ॐ श्रीं कमलायै नमः ।

  11. ॐ श्रीं करुणायै नमः ।

  12. ॐ श्रीं कान्तायै नमः ।

  13. ॐ श्रीं कामाक्ष्यै नमः ।

  14. ॐ श्रीं क्रोधसम्भवायै नमः ।

  15. ॐ श्रीं चतुर्भुजायै नमः ।

  16. ॐ श्रीं चन्द्ररूपायै नमः ।

  17. ॐ श्रीं चन्द्रवदनायै नमः ।

  18. ॐ श्रीं चन्द्रसहोदर्यै नमः ।

  19. ॐ श्रीं चन्द्रायै नमः ।

  20. ॐ श्रीं जयायै नमः ।

  21. ॐ श्रीं तुष्टयै नमः । 

  22. ॐ श्रीं त्रिकालज्ञानसम्पन्नायै नमः ।

  23. ॐ श्रीं दारिद्र्यध्वंसिन्यै नमः ।

  24. ॐ श्रीं दारिद्र्यनाशिन्यै नमः । 

  25. ॐ श्रीं दित्यै नमः ।

  26. ॐ श्रीं दीप्तायै नमः ।

  27. ॐ श्रीं देव्यै नमः ।

  28. ॐ श्रीं धनधान्यकर्यै नमः ।

  29. ॐ श्रीं धन्यायै नमः ।

  30. ॐ श्रीं धर्मनिलयायै नमः ।

  31. ॐ श्रीं नवदुर्गायै नमः ।

  32. ॐ श्रीं नारायणसमाश्रितायै नमः ।

  33. ॐ श्रीं नित्यपुष्टायै नमः ।

  34. ॐ श्रीं नृपवेश्मगतानन्दायै नमः ।

  35. ॐ श्रीं पद्मगन्धिन्यै नमः ।

  36. ॐ श्रीं पद्मनाभप्रियायै नमः ।

  37. ॐ श्रीं पद्मप्रियायै नमः ।

  38. ॐ श्रीं पद्ममालाधरायै नमः ।

  39. ॐ श्रीं पद्ममुख्यै नमः ।

  40. ॐ श्रीं पद्मसुन्दर्यै नमः ।

  41. ॐ श्रीं पद्महस्तायै नमः ।

  42. ॐ श्रीं पद्माक्ष्यै नमः ।

  43. ॐ श्रीं पद्मायै नमः ।

  44. ॐ श्रीं पद्मालयायै नमः ।

  45. ॐ श्रीं पद्मिन्यै नमः ।

  46. ॐ श्रीं पद्मोद्भवायै नमः ।

  47. ॐ श्रीं परमात्मिकायै नमः ।

  48. ॐ श्रीं पुण्यगन्धायै नमः ।

  49. ॐ श्रीं पुष्टयै नमः ।

  50. ॐ श्रीं प्रकृत्यै नमः ।

  51. ॐ श्रीं प्रभायै नमः ।

  52. ॐ श्रीं प्रसन्नाक्ष्यै नमः । 

  53. ॐ श्रीं प्रसादाभिमुख्यै नमः ।

  54. ॐ श्रीं प्रीतिपुष्करिण्यै नमः ।

  55. ॐ श्रीं बिल्वनिलयायै नमः ।

  56. ॐ श्रीं बुद्धये नमः ।

  57. ॐ श्रीं ब्रह्माविष्णुशिवात्मिकायै नमः ।

  58. ॐ श्रीं भास्कर्यै नमः ।

  59. ॐ श्रीं भुवनेश्वर्यै नमः । 

  60. ॐ श्रीं मङ्गळा देव्यै नमः ।

  61. ॐ श्रीं महाकाल्यै नमः ।

  62. ॐ श्रीं महादीप्तायै नमः ।

  63. ॐ श्रीं महादेव्यै नमः ।

  64. ॐ श्रीं यशस्विन्यै नमः ।

  65. ॐ श्रीं रमायै नमः ।

  66. ॐ श्रीं लक्ष्म्यै नमः । 

  67. ॐ श्रीं लोकमात्रे नमः ।

  68. ॐ श्रीं लोकशोकविनाशिन्यै नमः ।

  69. ॐ श्रीं वरलक्ष्म्यै नमः । 

  70. ॐ श्रीं वरारोहायै नमः ।

  71. ॐ श्रीं वसुधायै नमः ।

  72. ॐ श्रीं वसुधारिण्यै नमः ।

  73. ॐ श्रीं वसुन्धरायै नमः । 

  74. ॐ श्रीं वसुप्रदायै नमः ।

  75. ॐ श्रीं वाचे नमः । 

  76. ॐ श्रीं विकृत्यै नमः ।

  77. ॐ श्रीं विद्यायै नमः ।

  78. ॐ श्रीं विभावर्यै नमः ।

  79. ॐ श्रीं विभूत्यै नमः ।

  80. ॐ श्रीं विमलायै नमः ।

  81. ॐ श्रीं विश्वजनन्यै नमः ।

  82. ॐ श्रीं विष्णुपत्न्यै नमः ।

  83. ॐ श्रीं विष्णुवक्षस्स्थलस्थितायै नमः ।

  84. ॐ श्रीं शान्तायै नमः ।

  85. ॐ श्रीं शिवकर्यै नमः ।

  86. ॐ श्रीं शिवायै नमः ।

  87. ॐ श्रीं शुक्लमाल्याम्बरायै नमः ।

  88. ॐ श्रीं शुचये नमः ।

  89. ॐ श्रीं शुभप्रदाये नमः ।

  90. ॐ श्रीं शुभायै नमः ।

  91. ॐ श्रीं श्रद्धायै नमः ।

  92. ॐ श्रीं श्रियै नमः ।

  93. ॐ श्रीं सत्यै नमः ।

  94. ॐ श्रीं समुद्रतनयायै नमः ।

  95. ॐ श्रीं सर्वभूतहितप्रदायै नमः ।

  96. ॐ श्रीं सर्वोपद्रव वारिण्यै नमः ।

  97. ॐ श्रीं सिद्धये नमः ।

  98. ॐ श्रीं सुधायै नमः ।

  99. ॐ श्रीं सुप्रसन्नायै नमः । 

  100. ॐ श्रीं सुरभ्यै नमः ।

  101. ॐ श्रीं स्त्रैणसौम्यायै नमः ।

  102. ॐ श्रीं स्वधायै नमः ।

  103. ॐ श्रीं स्वाहायै नमः ।

  104. ॐ श्रीं हरिण्यै नमः ।

  105. ॐ श्रीं हरिवल्लभायै नमः ।

  106. ॐ श्रीं हिरण्मय्यै नमः ।

  107. ॐ श्रीं हिरण्यप्राकारायै नमः ।

  108. ॐ श्रीं हेममालिन्यै नमः ।




अन्त मे हाथ जोड़कर क्षमा प्रार्थना कर लें ।


यह पूजन आप रात्री मे कर सकते हैं । अगर ऐसा संभव ना हो तो आप दिन में किसी भी समय इसे कर सकते हैं ।  


अगर आपने श्री यंत्र के ऊपर पूजन किया है तो पूजा करने के बाद उस यंत्र को आप पूजा स्थान में या अपने पैसा रखने वाले गल्ले में रख सकते हैं ।


सदगुरुदेव नारायण दत्त श्रीमाली जी दिवाली साधना शिविर 1995 (९) Sadgurudev...

भगवती लक्ष्मी का विशेष मन्त्र


॥  ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं महा लक्ष्मै नमः ॥


  • भगवती लक्ष्मी का विशेष मन्त्र है.
  • गुलाबी या लाल रंग के वस्त्र तथा आसन का प्रयोग करें.न हों तो कोई भी साफ धुला वस्त्र पहन कर बैठें.
  • अगरबत्ती इत्र आदि से पूजा स्थल को सुगन्धित करें.
  • विवाहित हों तो पत्नी सहित बैठें तो और लाभ मिलेगा.
  •  रात्रि 9 से 5 के बीच यथा शक्ति जाप करें.
  • क्षमता हो तो घी का दीपक लगायें ।

भूलोक के पालन कर्ता हैं भगवान् विष्णु और उनकी शक्ति हैं महामाया महालक्ष्मी ....

इस संसार में जो भी चंचलता है अर्थात गति है उसके मूल में वे ही हैं.....
उनके अभाव में गृहस्थ जीवन अधूरा अपूर्ण अभावयुक्त और अभिशापित है....
लक्ष्मी की कृपा के बिना सुखद गृहस्थ जीवन बेहद कठिन है............... बाकी आप स्वयं समझदार हैं...

 

दीपावली महालक्ष्मी पूजन विधियाँ : ई बूक




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7 अक्तूबर 2021

अष्टकाली साधना

  



॥  ऊं अष्टकाल्यै क्रीं श्रीं ह्रीं क्रीं सिद्धिं मे देहि दापय नमः ॥


  1.  
कमजोर मनस्थिति वाले पुरुष/महिलाएं/बच्चे इस साधना को ना करें |
  1. दक्षिण दिशा की ओर मुख करके जाप करें.
  2. दिगम्बर अवस्था में जाप करें या काले रंग का आसन वस्त्र रखें.
  3. 108 दाने वाली रुद्राक्ष या काली हकीक माला से जाप करें.
  4. पुरश्चरण 1,25,000 मन्त्रों का होगा.यानि 1250 माला . 
  5. 11000, 21000, 51000 की संख्या मे भी कर सकते हैं , यानि 110, 210, 510 माला । 
  6. रात्रिकाल में जाप करें.
  7. दशमी के दिन काली मिर्च/ तिल/दशांग/घी/ चमेली के तेल  से दशांश  हवन  करें |
हवन होने के बाद किसी बालिका को यथाशक्ति दान दें |

6 अक्तूबर 2021

नवरात्रि हवन की सरल विधि

नवरात्रि हवन की सरल विधि:-

 

नवरात्रि मे आप चाहें तो रोज या फिर आखिरी मे हवन कर सकते हैं ।

यह विधि सामान्य गृहस्थों के लिए है जो ज्यादा विधि विधान नहीं कर सकते हैं ।. जो साधक हैं या कर्मकाँड़ी हैं वे अपने गुरु से प्राप्त विधि विधान या प्रामाणिक ग्रंथों से विधि देखकर सम्पन्न करें ।। मेरी राय मे चंडी प्रकाशन, गीता प्रेस, चौखम्बा प्रकाशन, आदि से प्रकाशित ग्रंथों मे त्रुटियाँ काम रहती हैं ।. 

आवश्यक सामग्री :-

1. दशांग या हवन सामग्री , दुकान पर आपको मिल जाएगा .

2. घी ( अच्छा वाला लें , भले कम लें , पूजा वाला घी न लें क्योंकि वह ऐसी चीजों से बनता है जिसे आपको खाने से दुकानदार मना करता है तो ऐसी चीज आप देवी को कैसे अर्पित कर सकते हैं )

3. कपूर आग जलाने के लिए .

4. एक नारियल गोला या सूखा नारियल पूर्णाहुति के लिए ,

5. हवन कुंड या गोल बर्तन ।. 

 

हवनकुंड/ वेदी को साफ करें.

हवनकुंड न हो तो गोल बर्तन मे कर सकते हैं .

फर्श गरम हो जाता है इसलिए नीचे स्टैन्ड या ईंट , रेती रखें उसपर पात्र रखें.

कुंड मे लकड़ी जमा लें और उसके नीचे में कपूर रखकर जला दें.

हवनकुंड की अग्नि प्रज्जवलित हो जाए तो पहले घी की आहुतियां दी जाती हैं.

सात बार अग्नि देवता को आहुति दें और अपने हवन की पूर्णता की प्रार्थना करें

ॐ अग्नये स्वाहा

 

इन मंत्रों से शुद्ध घी की आहुति दें-

ॐ प्रजापतये स्वाहा । इदं प्रजापतये न मम् ।

ॐ इन्द्राय स्वाहा । इदं इन्द्राय न मम् ।

ॐ अग्नये स्वाहा । इदं अग्नये न मम ।

ॐ सोमाय स्वाहा । इदं सोमाय न मम ।

ॐ भूः स्वाहा ।

 

उसके बाद हवन सामग्री से हवन करें .

नवग्रह मंत्र :-

ऊँ सूर्याय नमः स्वाहा

ऊँ चंद्रमसे नमः स्वाहा

ऊं भौमाय नमः स्वाहा

ऊँ बुधाय नमः स्वाहा

ऊँ गुरवे नमः स्वाहा

ऊँ शुक्राय नमः स्वाहा

ऊँ शनये नमः स्वाहा

ऊँ राहवे नमः स्वाहा

ऊँ केतवे नमः स्वाहा

गायत्री मंत्र :-

 

ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात् ।

 

ऊं गणेशाय नम: स्वाहा,

ऊं भैरवाय नम: स्वाहा,

ऊं गुं गुरुभ्यो नम: स्वाहा,

 

ऊं कुल देवताभ्यो नम: स्वाहा,

ऊं स्थान देवताभ्यो नम: स्वाहा,

ऊं वास्तु देवताभ्यो नम: स्वाहा,

ऊं ग्राम देवताभ्यो नम: स्वाहा,

ॐ सर्वेभ्यो गुरुभ्यो नमः स्वाहा ,

 

ऊं सरस्वती सहित ब्रह्माय नम: स्वाहा,

ऊं लक्ष्मी सहित विष्णुवे नम: स्वाहा,

ऊं शक्ति सहित शिवाय नम: स्वाहा

 

माता के नर्वाण मंत्र से 108 बार आहुतियां दे

 

ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चै स्वाहा

 

हवन के बाद नारियल के गोले में कलावा बांध लें. चाकू से उसके ऊपर के भाग को काट लें. उसके मुंह में घी, हवन सामग्री आदि डाल दें.

पूर्ण आहुति मंत्र पढ़ते हुए उसे हवनकुंड की अग्नि में रख दें.

पूर्णाहुति मंत्र-

ऊँ पूर्णमद: पूर्णम् इदम् पूर्णात पूर्णम उदिच्यते ।

पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवा वशिष्यते ।।

 

इसका अर्थ है :-

वह पराशक्ति या महामाया पूर्ण है , उसके द्वारा उत्पन्न यह जगत भी पूर्ण हूँ , उस पूर्ण स्वरूप से पूर्ण निकालने पर भी वह पूर्ण ही रहता है ।

वही पूर्णता मुझे भी प्राप्त हो और मेरे कार्य , अभीष्ट मे पूर्णता मिले ....

 

इस मंत्र को कहते हुए पूर्ण आहुति देनी चाहिए.

उसके बाद यथाशक्ति दक्षिणा माता के पास रख दें,

फिर आरती करें.

अंत मे क्षमा प्रार्थना करें.

माताजी को समर्पित दक्षिण किसी गरीब महिला या कन्या को दान मे दें ।

 


महाकाली का बीज मन्त्र

 तंत्र साधना की मूल शक्ति है महाकाली ..

अगर आप साधना के क्षेत्र मे प्रवेश करना चाहते हैं तो महाकाली बीज मंत्र का जाप प्रारंभ करें । 

यदि आप साधना करने के लिए उपयुक्त व्यक्ति हैं तो आपको छह माह के अंदर अनुकूलता मिलेगी और मार्ग मिलेगा । 




॥ क्रीं 
kreem


  • महाकाली का बीज मन्त्र है. 
  • इसका जाप करने से महाकाली की कृपा प्राप्त होति है.
  • यथाशक्ति जाप करें.
  • चलते फिरते 24 घंटे जाप कर सकते हैं .