एक प्रयास सनातन धर्म[Sanatan Dharma] के महासमुद्र मे गोता लगाने का.....कुछ रहस्यमयी शक्तियों [shakti] से साक्षात्कार करने का.....गुरुदेव Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji [ Nikhileswaranand Ji] की कृपा से प्राप्त Mantra Tantra Yantra विद्याओं को समझने का...... Kali, Sri Yantra, Laxmi,Shiv,Kundalini, Kamkala Kali, Tripur Sundari, Maha Tara ,Tantra Sar Samuchhay , Mantra Maharnav, Mahakal Samhita, Devi,Devata,Yakshini,Apsara,Tantra, Shabar Mantra, जैसी गूढ़ विद्याओ को सीखने का....
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29 जुलाई 2018
28 जुलाई 2018
दक्षिणामूर्ति शिव
दक्षिणामूर्ति शिव भगवान शिव का सबसे तेजस्वी स्वरूप है । यह उनका आदि गुरु स्वरूप है । इस रूप की साधना सात्विक भाव वाले सात्विक मनोकामना वाले तथा ज्ञानाकांक्षी साधकों को करनी चाहिये ।
27 जुलाई 2018
गुरु साधना का महत्त्व
एक पत्थर की भी तकदीर बदल सकती है,
शर्त ये है कि सलीके से तराशा जाए....
रास्ते में पडा ! लोगों के पांवों की ठोकरें खाने वाला पत्थर ! जब
योग्य मूर्तिकार के हाथ लग जाता है, तो वह उसे तराशकर ,अपनी सर्जनात्मक क्षमता का उपयोग करते हुये, इस
योग्य बना देता है, कि वह मंदिर में प्रतिष्ठित होकर
करोडों की श्रद्धा का केद्र बन जाता है। करोडों सिर उसके सामने झुकते हैं।
रास्ते के पत्थर को इतना उच्च स्वरुप
प्रदान करने वाले मूर्तिकार के समान ही, एक गुरु अपने
शिष्य को सामान्य मानव से उठाकर महामानव के पद पर बिठा देता है।
चाणक्य ने अपने शिष्य चंद्रगुप्त को सडक से उठाकर
संपूर्ण भारतवर्ष का चक्रवर्ती सम्राट बना दिया।
विश्व मुक्केबाजी का महानतम हैवीवेट चैंपियन माइक
टायसन सुधार गृह से निकलकर अपराधी बन जाता अगर उसकी प्रतिभा को उसके गुरू ने ना
पहचाना होता।
यह एक अकाट्य सत्य है कि चाहे वह कल का
विश्वविजेता सिकंदर हो या आज का हमारा महानतम बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर, वे अपनी क्षमताओं को पूर्णता प्रदान करने में अपने गुरु के मार्गदर्शन व
योगदान के अभाव में सफल नही हो सकते थे।
हमने प्राचीन काल से ही गुरु को सबसे
ज्यादा सम्माननीय तथा आवश्यक माना। भारत की गुरुकुल परंपरा में बालकों को योग्य
बनने के लिये आश्रम में रहकर विद्याद्ययन करना पडता था, जहां गुरु उनको सभी आवश्यक ग्रंथो का ज्ञान प्रदान करते हुए उन्हे समाज के
योग्य बनाते थे।
विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों
नालंदा तथा तक्षशिला में भी उसी ज्ञानगंगा का प्रवाह हम देखते हैं। संपूर्ण विश्व
में शायद ही किसी अन्य देश में गुरु को उतना सम्मान प्राप्त हो जितना हमारे देश
में दिया जाता रहा है। यहां तक कहा गया किः-
गुरु गोविंद दोऊ खडे
काके लागूं पांय ।
बलिहारी गुरु आपकी
गोविंद दियो बताय ॥
अर्थात, यदि गुरु के साथ
स्वयं गोविंद अर्थात साक्षात भगवान भी सामने खडे हों, तो
भी गुरु ही प्रथम सम्मान का अधिकारी होता है, क्योंकि
उसीने तो यह क्षमता प्रदान की है कि मैं गोविंद को पहचानने के काबिल हो सका।
·
आध्यात्मिक जगत की ओर जाने के इच्छुक
प्रत्येक व्यक्ति का मार्ग गुरु और केवल गुरु से ही प्रारंभ होता है।
·
कुछ को गुरु आसानी से मिल जाते हैं, कुछ को काफी प्रयास के बाद मिलते हैं,और कुछ को नहीं
मिलते हैं।
·
साधनात्मक जगत, जिसमें योग, तंत्र, मंत्र
जैसी विद्याओं को रखा जाता है, में गुरु को अत्यंत ही
अनिवार्य माना जाता है।
·
वे लोग जो इन क्षेत्रों में विशेषज्ञता
प्राप्त करना चाहते हैं, उनको अनिवार्य रुप से योग्य गुरु के सानिध्य के लिये
प्रयास करना ही चाहिये।
·
ये क्षेत्र उचित मार्गदर्शन की अपेक्षा
रखते हैं।
गुरु का तात्पर्य किसी व्यक्ति के देह
या देहगत न्यूनताओं से नही बल्कि उसके अंतर्निहित ज्ञान से होता है, वह ज्ञान जो आपके लिये उपयुक्त हो,लाभप्रद हो। गुरु
गीता में कुछ श्लोकों में इसका विवेचन मिलता हैः-
अज्ञान तिमिरांधस्य
ज्ञानांजन शलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन
तस्मै श्री गुरुवे नमः ॥
अज्ञान के अंधकार में डूबे हुये
व्यक्ति को ज्ञान का प्रकाश देकर उसके नेत्रों को प्रकाश का अनुभव कराने वाले गुरु
को नमन ।
गुरु शब्द के अर्थ को बताया गया है कि :-
गुकारस्त्वंधकारश्च
रुकारस्तेज उच्यते।
अज्ञान तारकं ब्रह्म
गुरुरेव न संशयः॥
गुरु शब्द के पहले अक्षर ÷गु' का अर्थ है, अंधकार
जिसमें शिष्य डूबा हुआ है, और ÷रु' का अर्थ है, तेज
या प्रकाश जिसे गुरु शिष्य के हृदय में उत्पन्न कर इस अंधकार को हटाने में सहायक
होता है, और ऐसे ज्ञान को प्रदान करने वाला गुरु
साक्षात ब्रह्म के तुल्य होता है।
ज्ञान का दान ही गुरु की महत्ता है।
ऐसे ही ज्ञान की पूर्णता का प्रतीक हैं भगवान शिव। भगवान शिव को सभी विद्याओं का
जनक माना जाता है। वे तंत्र से लेकर मंत्र तक और योग से लेकर समाधि तक प्रत्येक
क्षेत्र के आदि हैं और अंत भी। वे संगीत के आदिसृजनकर्ता भी हैं, और नटराज के रुप में कलाकारों के आराध्य भी हैं। वे प्रत्येक विद्या के
ज्ञाता होने के कारण जगद्गुरु भी हैं। गुरु और शिव को आध्यात्मिक जगत में समान
माना गया है। कहा गया है कि :-
यः शिवः सः गुरु
प्रोक्तः। यः गुरु सः शिव स्मृतः॥
अर्थात गुरु और शिव दोनों ही अभेद हैं, और एक दूसरे के पर्याय हैं।जब गुरु ज्ञान की पूर्णता को प्राप्त कर लेता
है तो वह स्वयं ही शिव तुल्य हो जाता है, तब वह भगवान
आदि शंकराचार्य के समान उद्घोष करता है कि ÷
शिवो s हं, शंकरो s हं'।
ऐसे ही ज्ञान के भंडार माने जाने वाले
गुरुओं के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करने का पर्व है, गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा । यह वो बिंदु है, जिसके वाद से सावन का महीना जो कि शिव का मास माना जाता है, प्रारंभ हो जाता है।
इसका प्रतीक रुप में अर्थ लें तो, जब गुरु अपने शिष्य को पूर्णता प्रदान कर देता है, तो वह आगे शिवत्व की प्राप्ति की दिशा में अग्रसर होने लगता है,और यह भाव उसमें जाग जाना ही मोक्ष या ब्रह्मत्व की स्थिति कही गयी है।
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर हर शिष्य की
इच्छा होती है कि वह गुरु के सानिध्य में पहुँच सके ताकि वे उसे शिवत्व का मार्ग
बता सकें।
यदि किसी कारणवश आप गुरु को प्राप्त न
कर पाये हों तो आप दो तरीकों से साधना पथ पर आगे की ओर गतिमान हो सकते हैं।
· पहला यह कि आप अपने
आराध्य या इष्ट, देवता या देवी को गुरु मानकर आगे बढें
· और दूसरा आप भगवान
शिव को ही गुरु मानते हुये निम्नलिखित मंत्र का अनुष्ठान करें:-
॥ ॐ गुं गुरुभ्यो नमः ॥
1. इस मंत्र का सवा लाख
जाप करें।
2. साधनाकाल में सफेद
रंग के वस्त्रों को धारण करें।
3. अपने सामने अपने
गुरु के लिये भी सफेद रंग का एक आसन बिछाकररखें।
4. यदि हो सके तो इस
मंत्र का जाप प्रातः चार से छह बजे के बीच में करनाचाहिये।
5. साधना पूर्ण होने तक
आपके भाग्यानुकूल श्रेष्ठ गुरु हैं तो साधनात्मक रुप से आपको संकेत मिल जायेंगे।
6. गुरु पूर्णिमा के
अवसर पर प्रत्येक गृहस्थ को उपरोक्त मंत्र का कुछ समय तक जाप करना ही चाहिये, हमारे पूर्वज ऋषियों तथा गुरुओं के प्रति सम्मान प्रकट करने का यह एक
श्रेष्ठ तरीका है
26 जुलाई 2018
अघोरेश्वराय महाकालाय नमः
॥ ऊं अघोरेश्वराय महाकालाय नमः ॥
- १,२५,००० मंत्र का जाप .
- दिगंबर/नग्न अवस्था में जाप करें
- अघोरी साधक श्मशान की चिताभस्म का पूरे शरीर पर लेप करके जाप करते हैं.
- लेकिन गृहस्थ साधकों के लिए चिताभस्म निषिद्ध है. वे इसका उपयोग नहीं करें. यह गम्भीर नुकसान कर सकता है.अशरीरी शक्तियां घर में आ सकती हैं तथा पारिवारिक सदस्यों को और स्वयं साधक को नुक्सान पहुंचा सकती है |
- गृहस्थ साधक अपने शरीर पर गोबर के कंडे की राख से त्रिपुंड बनाएं . यदि सम्भव हो तो पूरे शरीर पर लगाएं.
- जाप के बाद स्नान करने के बाद सामान्य कार्य कर सकते हैं.
- जाप से प्रबल ऊर्जा उठेगी, किसी पर क्रोधित होकर या स्त्री सम्बन्ध से यह उर्जा विसर्जित हो जायेगी . इसलिए पूरे साधना काल में क्रोध और काम से बचकर रहें.
- शिव कृपा होगी.
- रुद्राक्ष पहने तथा रुद्राक्ष की माला से जाप करें.
25 जुलाई 2018
शिवलिंग
शिवलिंग की महिमा
भगवान शिव के पूजन मे शिवलिंग का प्रयोग होता है। शिवलिंग के निर्माण के लिये स्वर्णादि विविध धातुओं, मणियों, रत्नों, तथा पत्थरों से लेकर मिटृी तक का उपयोग होता है।इसके अलावा रस अर्थात पारे को विविध क्रियाओं से ठोस बनाकर भी लिंग निर्माण किया जाता है,
इसके बारे में कहा गया है कि,
मृदः कोटि गुणं स्वर्णम, स्वर्णात्कोटि गुणं मणिः,
मणेः कोटि गुणं बाणो, बाणात्कोटि गुणं रसः
रसात्परतरं लिंगं न भूतो न भविष्यति ॥
अर्थात मिटृी से बने शिवलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल
सोने से बने शिवलिंग के पूजन से,
स्वर्ण से करोड गुणा ज्यादा फल
मणि से बने शिवलिंग के पूजन से,
मणि से करोड गुणा ज्यादा फल
बाणलिंग के पूजन से
तथा
बाणलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल
रस अर्थात पारे से बने शिवलिंग के पूजन से प्राप्त होता है।
आज तक पारे से बने शिवलिंग से श्रेष्ठ शिवलिंग न तो बना है और न ही बन सकता है।
शिवलिंगों में नर्मदा नदी से प्राप्त होने वाले नर्मदेश्वर शिवलिंग भी
अत्यंत लाभप्रद तथा शिवकृपा प्रदान करने वाले माने गये हैं। यदि आपके पास शिवलिंग न हो तो
अपने बांये हाथ के अंगूठे को
शिवलिंग मानकर भी पूजन कर सकते हैं ।
शिवलिंग कोई भी हो जब तक
भक्त की भावना का संयोजन नही होता
तब तक शिवकृपा नही मिल सकती।
24 जुलाई 2018
23 जुलाई 2018
दीक्षा और गुरु क्यों ?
किसी भी साधना को करने से पहले दीक्षा ले लेना चाहिए ऐसा क्यों कहा जाता है ?
यह एक सामान्य प्रश्न है जो हर किसी के दिल में उठता है
गुरुदेव डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी के सानिध्य में मिले अपने अल्प ज्ञान के द्वारा थोडा सा प्रकाश डालने का प्रयास कर रहा हूँ :-
यह एक सामान्य प्रश्न है जो हर किसी के दिल में उठता है
गुरुदेव डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी के सानिध्य में मिले अपने अल्प ज्ञान के द्वारा थोडा सा प्रकाश डालने का प्रयास कर रहा हूँ :-
- साधना से शरीर में उर्जा [एनर्जी फील्ड ] उठती है इसको नियंत्रित रखना जरुरी होता है.कई बार ऐसा अनुभव होता है जैसे तेज बुखार चढ़ गया हो .
- जब साधनात्मक उर्जा अनियंत्रित होती है तो वह अनियंत्रित उर्जा दो तरह से बह सकती है प्रथम तो वासना के रूप में दूसरी क्रोध के रूप में, ये दोनों ही प्रवाह साधक को दुष्कर्म के लिए प्रेरित करते हैं.इसे नियंत्रित करने का काम गुरु करता है.
- गुरु दीक्षा के द्वारा गुरु अपने शिष्य के साथ एक लिंक जोड़ देता है . जब भी साधनात्मक उर्जा बढ़ कर साधक के लिए परेशानी का कारन बन्ने की संभावना होती है तब गुरु उस उर्जा को नियंत्रित करने का काम करता है और शिष्य सुरक्षित रहता है.
- कई बार मन्त्र जाप करते करते ऐसी स्थिति आती है कि साधक को छूने से बिजली के हल्के झटके जैसा एहसास भी होता है .
- हर मंत्र अपने आप में एक विशेष प्रकार का एनर्जी फील्ड पैदा करता है. यह फील्ड साधक के शरीर के इर्दगिर्द घूमता है.
- हर मंत्र हर साधक के लिए अनुकूल नहीं होता , यदि वह अनुकूल मंत्र का जाप करता है तो उसे लाभ मिलता है अन्यथा हानि भी हो सकती है.
- गुरु एक ऐसा व्यक्ति होता है जो विभिन्न साधनों में सिद्धहस्त होता है, उसे यह पता होता है की किस साधना का एनर्जी फील्ड किस साधक के अनुकूल होगा . इस बात को ध्यान में रखकर गुरु, उसके अनुकूल मंत्र अपने शिष्य को प्रदान करता है.
वर्त्तमान में डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी के शिष्य गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी तथा गुरुमाता डॉ. साधना सिंह जी विभिन्न साधनाओं से सम्बंधित दीक्षाएं नि:शुल्क प्रदान कर साधकों का साधनात्मक मार्ग दर्शन कर रहे हैं.
यदि आप भी किसी प्रकार की साधना के बारे में मार्गदर्शन या दीक्षा प्राप्त करने के इच्छुक हैं तो संपर्क करें:-
समय = सुबह दस बजे से शाम सात बजे तक [ रविवार अवकाश ]
गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी तथा गुरुमाता डॉ. साधना सिंह
साधना सिद्धि विज्ञान
जैस्मिन - 429
न्यू मिनाल रेजीडेंसी
जे.के.रोड
भोपाल [म.प्र.] 462011
phone -[0755]-4283681, [0755]-4269368,[0755]-4221116
22 जुलाई 2018
आगामी साधना शिविर - 2018
पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी
एवं
पूज्यपाद गुरुमाता डॉ.साधना सिंह जी
के सानिध्य में
आगामी साधना शिविरों की जानकारी
2018
माह
|
दिनांक
|
स्थान
|
संपर्क
|
मोबाइल
|
जुलाई
|
26 - 27
|
लखीमपुर खीरी , उत्तर प्रदेश
|
कौशल किशोर वर्मा
|
9918710658
|
अगस्त |
5
|
छिंदवाडा , मध्यप्रदेश
| रजनीश आचार्य |
9425146518
|
अगस्त
|
19
|
गुना, मध्यप्रदेश
|
विनय शर्मा
|
9685224686
|
सितम्बर
|
2- 3
|
गाजियाबाद, उत्तरप्रदेश
|
स्वाति शर्मा
|
9958862952
|
अक्टूबर
|
24
|
इलाहाबाद, उत्तरप्रदेश
| अरुण प्रताप सिंह |
9695027027
|
नवम्बर
|
18
|
झुंझुनू, राजस्थान
|
नवीन
|
9828088205
|
दिसम्बर
|
1 - 2
|
डोंगरगढ़, छत्तीसगढ़
|
लोकपाल बिसेन
|
8959688047
|
नीचे दिए नम्बरों पर सम्पर्क करें:-
साधना सिद्धि विज्ञान, कार्यालय
(0755) - 4269368, 4283681, 4221116
सूचना
Y शिविर की तिथि तथा स्थान में अपरिहार्य कारणों से परिवर्तन संभव है.
Y अतः शिविर में जाने से पूर्व साधना सिद्धि विज्ञान, कार्यालय के फ़ोन क्रमांक (0755)- 4269368,4283681,4221116 में सम्पर्क कर तस्दीक कर लें.
Y कार्यालय में फोन करने का समय सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक [रविवार अवकाश].
21 जुलाई 2018
परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी का तान्त्रोक्त मन्त्र
परम हंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी
॥ ॐ श्रीं ब्रह्मांड स्वरूपायै निखिलेश्वरायै नमः ॥
...नमो निखिलम...
......नमो निखिलम......
........नमो निखिलम........
- यह परम तेजस्वी गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी का तान्त्रोक्त मन्त्र है.
- पूर्ण ब्रह्मचर्य / सात्विक आहार/आचार/विचार के साथ जाप करें.
- पूर्णिमा से प्रारंभ कर अगली पूर्णिमा तक करें.
- तीन लाख मंत्र का पुरस्चरण होगा.
- नित्य जाप निश्चित संख्या में करेंगे .
- रुद्राक्ष की माला से जाप होगा.
- जाप के बाद वह माला गले में धारण कर लेंगे.
- यथा संभव मौन रहेंगे.
- किसी पर क्रोध नहीं करेंगे.
- यह साधना उन लोगों के लिए है जो साधना के मार्ग पर आगे बढ़ना चाहते हैं.
- यह साधना आपके अन्दर शिवत्व और गुरुत्व पैदा करेगी.
- यह साधना वैराग्य की साधना है.
- यह साधना जीवन का सौभाग्य है.
- यह साधना आपको धुल से फूल बनाने में सक्षम है.
- इस साधना से श्रेष्ट कोई और साधना नहीं है.
20 जुलाई 2018
साधना सिद्धि विज्ञान PDF : श्री महा अवधूत विशेषांक
यह पत्रिका तंत्र साधनाओं के गूढतम रहस्यों को साधकों के लिये स्पष्ट कर उनका मार्गदर्शन करने में अग्रणी है. साधना सिद्धि विज्ञान पत्रिका में महाविद्या साधना , भैरव साधना, काली साधना, अघोर साधना, अप्सरा साधना इत्यादि के विषय में जानकारी मिलेगी . इसमें आपको विविध साधनाओं के मंत्र तथा पूजन विधि का प्रमाणिक विवरण मिलेगा . देश भर में लगने वाले विभिन्न साधना शिविरों के विषय में जानकारी मिलेगी .
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वार्षिक सदस्यता शुल्क 250 रुपये मनीआर्डर द्वारा निम्नलिखित पते पर भेजें
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साधना सिद्धि विज्ञान शोप न. 5 प्लाट न. 210 एम.पी.नगर भोपाल [म.प्र.] 462011
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साधना सिद्धि विज्ञान एक मासिक पत्रिका है , 250 रुपये इसका वार्षिक शुल्क है . यह पत्रिका आपको एक साल तक हर महीने मिलेगी .
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समय = सुबह दस बजे से शाम पांच बजे तक [ रविवार अवकाश ] phone -[0755]-4283681
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