4 जनवरी 2025

जनदेवता : भगवान गणेश

  जनदेवता : भगवान गणेश 


जनसामान्य में व्यापक लोकप्रियता रखने वाले इस अद्भुत देवता के गूणों की चर्चा करना लगभग असंभव है। वे गणों के अधिपति हैं तो देवताओें के सम्पूर्ण मण्डल में प्रथम पूज्य भी हैं। बुद्धि कौशल तथा चातुर्य को  प्रदान करने वाले है तो कार्य के मार्ग में आने वाली बाधाओें को दूर करने वाले भी हैं। समस्त देव सेना और शिवगणों को पराजित करने वाले हेैं तो दूसरी ओर महाभारत जैसे ग्रंथ के लेखक भी हैं। ऐसे सर्वगुण संपन्न देवता की आराधना न सिर्फ भौतिक जीवन बल्कि आध्यात्मिक जीवन की भी समस्त विध मनोकामनाओं की पूर्ति करने में सक्षम हैं।

 

भगवान गणेश की आराधना या साधना उनके तीन स्वरूपों में की जाती है। उनके तीनों स्वरूप, राजसी तामसी तथा सात्विक स्वरूप साधक की इच्ठा तथा क्षमता के अनुसार कार्यसिद्धि प्रदान करते ही हैं।

 

भारतीय संस्कृति में जो परंपरा है उसके अनुसार तो प्रत्येक कार्य के प्रारंभ में गणपति का स्मरण किया ही जाता है। यदि नित्य न किया जाये तो भी गणेश चतुर्थी जैसे अवसरों पर तो गृहस्थों को उनका पूजन व ध्यान करना चाहिए।

 

व्यापार, सेल्स, मार्केटिंग, एडवर्टाइजिंग जैसे क्षेत्रों में जहां वाकपटुता तथा चातुर्य की नितांत आवश्यकता होती है, वहां गणपति साधना तथा ध्यान विशेष लाभप्रद होता है।

 

 

यदि गणपति साधना करना चाहें तो आप आगे लिखी विधि के अनुसार करें।

 

गणपति साधना

 

गणपति साधना का यह विवरण सामान्य गृहस्थों के लिए है। इसे किसी भी जाति, लिंग, आयु का व्यक्ति कर सकता है।

 

मंत्र का जाप प्रतिदिन निश्चित संख्या या समय तक करना चाहिये ।

 

माला की व्यवस्था हो सके तो माला से तथा अभाव में किसी भी गणनायोग्य वस्तु से गणना कर सकते हैं ।

 

ऐसा न कर सकें तो एक समयावधि निश्चित समयावधि जैसे पांच, दस, पंद्रह मिनट, आधा या एक घंटा अपनी क्षमता के अनुसार निश्चित कर लें ।

 

इस प्रकार 1, 3, 7, 9, 11, 16, 21, 33, या 51 दिनों तक करें। यदि किसी दिन जाप न कर पायें तो साधना खण्डित मानी जायेगी । अगले दिन से पुनः प्रारंभ करना पडेगा। इसलिये दिनोें की संख्या का चुनाव अपनी क्षमता के अनुसार ही करें। 


महिलायें रजस्वला होने पर जाप छोडकर उस अवधि के बाद पुनः जाप कर सकती हैं। इस अवस्था में साधना खण्डित नही मानी जायेगी।

 

यदि संभव हो तो प्रतिदिन निश्चित समय पर ही बैठने का प्रयास करें ।

 

जप करते समय दीपक जलता रहना चाहिये ।

 

साफ वस्त्र पहनकर स्नानादि करके जाप करें । पूर्व की ओर देखते हुए बैठें। सामने गणपति का चित्र, मूर्ति या यंत्र रखें।

 

गणपति मंत्र

 

। ऊं ग्लौं गं गणपतये नमः ।

 

वे साधक जो माता गायत्री के भक्त हैं वे गणेश गायत्री मंत्र का जाप उपरोक्त मंत्र के स्थान पर कर सकते हैं जो उनके लिए ज्यादा लाभप्रद होगा।

 

 

गणपति गायत्री मंत्र

 

। ऊं तत्पुरूषाय विद्यहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ति प्रचोदयात ।


साधना लक्ष्य प्राप्ति की सहायक क्रिया है। पुरूषार्थ के साथ-साथ साधना भी हो तो इष्ट देवता की शक्तियां मार्ग की बाधाओं को दूर करने में सहायक होती हैं। जिससे सफलता की संभावनायें बढ जाती हैं।


3 जनवरी 2025

महालक्ष्मी की कृपा प्रदायक : पारद श्री यंत्र

   



गृहस्थ के जीवन में लक्ष्मी नही है तो कुछ भी नही है । यह हम सभी जानते हैं ।

सम्पूर्ण ऐश्वर्य और समृद्धि के लिए श्री यंत्र का अनादि काल से उपयोग हों रहा है । आप इसकी विशिष्ठता इसी बात से समझ सकते हैं कि लगभग सभी उच्च कोटि के तंत्र पीठों में इसकी स्थापना अनिवार्यं रूप से की जाती है ।
श्री यंत्र तांबा,पीतल,सोना,चाँदी,जैसे धातुओं से बनाए जाते हैं । 

पारा भी तंत्र मे अत्यंत विशिष्ट धातु माना गया है । उससे बने विग्रह विशेष लाभदायक भी कहे गए हैं । 
पारे से बने कुछ छोटे पारद श्री यंत्र अभिमंत्रित करके ₹1008/[एक हजार आठ रुपये ] मे उपलब्ध हैं । 

इस यंत्र को आप अपने पूजा स्थान मे रख सकते हैं । चाहें तो गल्ले तिजोरी या अलमारी मे भी रख सकते हैं । जो पाठक इच्छुक हैं वे मुझे 7000630499 पर  संपर्क करके इसे प्राप्त कर सकते हैं ।


यंत्र आपके नाम से सिद्ध करने के लिए निम्नलिखित जानकारी लगेगी जो आप भेज देंगे :-

भेजे गए शुल्क की रसीद की फोटो ।  
आपका एक ताजा खींचा हुआ फोटो 
नाम 
गोत्र (अगर मालूम हो )
जन्मतिथि (अगर मालूम हो )
जन्म का समय (अगर मालूम हो )
जन्म का स्थान (अगर मालूम हो )

पूरा पता , पिन कोड के साथ, जिसमे आपको यंत्र भेजना है ।
आपका व्हाट्सएप्प  नंबर जिसपर आपको मंत्र तथा यंत्र भेजने की सूचना भेजी जाएगी । 

आप पेमेंट के लिए इस QR code का भी प्रयोग कर सकते हैं



संतान/पुत्र प्राप्ति गणेश स्तोत्र

 संतान/पुत्र प्राप्ति गणेश स्तोत्र


नमोस्तु गणनाथाय सिद्धि बुद्धि युताय च।

सर्वेश्वर्यप्रदाय देवाय पुत्र वृद्धि प्रदाय च ।

गुरुवराय पुरवे गोप्त्रे गुहयासिताय ते ।

गोप्याय गोपिता शेष भुवनाय चिदात्मने ।

विश्वमूलाय भव्याय विश्वसृष्टिकराय ते ।

नमो नमस्ते सत्याय सत्यपूर्णाय शुंडिने ।

एकदंताय शुद्धाय सुमुखाय नमो नमः ।

प्रपन्न जन पालाय प्रणतार्ति विनाशिने ।

शरणम भव देवेश संततिम सुदृढ़म कुरु ।

भविष्यन्ती च ये पुत्रा मत्कुले गणनायक ।

ते सर्वे तव पूजार्थ निरताः स्युर्वरो मत: ।

पुत्रप्रदमिदम स्तोत्रम सर्वसिध्धी प्रदायकम ॥


विधि :-

भगवान गणेश का ध्यान पूजन करके नित्य क्षमतानुसार 1,3,5,11 बार इस स्तोत्र का पाठ करें तो संतान/पुत्र प्राप्ति मे आने वाले विघ्नों को विघ्नकर्ता महागणपती हटाकर अनुकूलता प्रदान करते हैं .....  



1 जनवरी 2025

श्री गणेश अष्टोत्तर शत नाम

श्री गणेश अष्टोत्तर शत नाम




‘कलौ चण्डी-विनायकौ’-कलियुग में ‘चण्डी’ और ‘गणेश’ की साधना ही श्रेयस्कर है।

मेरे गुरुदेव ने बताया था कि कलयुग में चंडी अर्थात भगवती जगदंबा की साधना और विनायक अर्थात गणेश भगवान की साधना या पूजा करने से ज्यादा लाभप्रद होता है ।

गणेश भगवान की साधना सरल है और उसमें बहुत ज्यादा विधि-विधान और जटिलता की आवश्यकता नहीं है इसीलिए सर्वसामान्य में गणेश भगवान की पूजन का बहुत ज्यादा प्रचलन है जो हम गणेशोत्सव के रूप में प्रतिवर्ष देखते हैं ।
गणेश भगवान के पूजन के लिए आप पंचोपचार व षोडशोपचार जैसे पूजन विधान का प्रयोग कर सकते हैं लेकिन उसमें संस्कृत श्लोकों का ज्यादा प्रयोग होता है जो पढ़ने में सामान्य जन को थोड़ी दिक्कत होती है । लेकिन करते करते उच्चारण स्पष्ट हो जाता है । 
पूजन की एक अन्य विधि है अष्टोत्तर शतनाम !

अष्टोत्तर शतनाम का मतलब होता है, गणेश भगवान के 108 नाम के साथ उनका प्रणाम करते हुए पूजन करना जो कि सरल है और हर कोई कर सकता है ।

आप इन नाम का उच्चारण करने के बाद हर बार नम: बोलते समय अपनी श्रद्धा अनुसार
फूल,
चावल के दाने,
अष्टगंध,
दूर्वा ,
चंदन या जो आपकी श्रद्धा हो वह चढ़ा सकते हैं ।
इस प्रकार से बेहद सरलता से आप गणेश भगवान का पूजन संपन्न कर पाएंगे ।


1 गं विनायकाय नम: ॥
2 गं द्विजप्रियाय नम: ॥
3 गं शैलेंद्र तनुजोत्संग खेलनोत्सुक मानसाय नम: ॥
4 गं स्वलावण्य सुधा सार जित मन्मथ विग्रहाय नम: ॥
5 गं समस्तजगदाधाराय नम: ॥
6 गं मायिने नम: ॥
7 गं मूषकवाहनाय नम: ॥
8 गं हृष्टाय नम: ॥
9 गं तुष्टाय नम: ॥
10 गं प्रसन्नात्मने नम: ॥
11 गं सर्व सिद्धि प्रदायकाय नम: ॥
12 गं अग्निगर्भच्छिदे नम: ॥
13 गं इंद्रश्रीप्रदाय नम: ॥
14 गं वाणीप्रदाय नम: ॥
15 गं अव्ययाय नम: ॥
16 गं सिद्धिरूपाय नम: ॥
17 गं शर्वतनयाय नम: ॥
18 गं शर्वरीप्रियाय नम: ॥
19 गं सर्वात्मकाय नम: ॥
20 गं सृष्टिकत्रै नम: ॥
21 गं विघ्नराजाय नम: ॥
22 गं देवाय नम: ॥
23 गं अनेकार्चिताय नम: ॥
24 गं शिवाय नम: ॥
25 गं शुद्धाय नम: ॥
26 गं बुद्धिप्रियाय नम: ॥
27 गं शांताय नम: ॥
28 गं ब्रह्मचारिणे नम: ॥
29 गं गजाननाय नम: ॥
30 गं द्वैमातुराय नम: ॥
31 गं मुनिस्तुत्याय नम: ॥
32 गं गौरीपुत्राय नम: ॥
33 गं भक्त विघ्न विनाशनाय नम: ॥
34 गं एकदंताय नम: ॥
35 गं चतुर्बाहवे नम: ॥
36 गं चतुराय नम: ॥
37 गं शक्ति संयुक्ताय नम: ॥
38 गं लंबोदराय नम: ॥
39 गं शूर्पकर्णाय नम: ॥
40 गं हस्त्ये नम: ॥
41 गं ब्रह्मविदुत्तमाय नम: ॥
42 गं कालाय नम: ॥
43 गं गणेश्वराय नम: ॥
44 गं ग्रहपतये नम: ॥
45 गं कामिने नम: ॥
46 गं सोम सूर्याग्नि लोचनाय नम: ॥
47 गं पाशांकुश धराय नम: ॥
48 गं चण्डाय नम: ॥
49 गं गुणातीताय नम: ॥
50 गं निरंजनाय नम: ॥
51 गं अकल्मषाय नम: ॥
52 गं स्वयं सिद्धाय नम: ॥
53 गं सिद्धार्चित पदांबुजाय नम: ॥
54 गं स्कंदाग्रजाय नम: ॥
55 गं बीजापूर फलासक्ताय नम: ॥
56 गं वरदाय नम: ॥
57 गं शाश्वताय नम: ॥
58 गं कृतिने नम: ॥
59 गं सर्व प्रियाय नम: ॥
60 गं वीतभयाय नम: ॥
61 गं गतिने नम: ॥
62 गं चक्रिणे नम: ॥
63 गं इक्षु चाप धृते नम: ॥
64 गं श्री प्रदाय नम: ॥
65 गं अव्यक्ताय नम: ॥
66 गं अजाय नम: ॥
67 गं उत्पल कराय नम: ॥
68 गं श्री पतये नम: ॥
69 गं स्तुति हर्षिताय नम: ॥
70 गं कुलाद्रिभेत्रे नम: ॥
71 गं जटिलाय नम: ॥
72 गं कलि कल्मष नाशनाय नम: ॥
73 गं चंद्रचूडामणये नम: ॥
74 गं कांताय नम: ॥
75 गं पापहारिणे नम: ॥
76 गं भूताय नम: ॥
77 गं समाहिताय नम: ॥
78 गं आश्रिताय नम: ॥
79 गं श्रीकराय नम: ॥
80 गं सौम्याय नम: ॥
81 गं भक्त वांछित दायकाय नम: ॥
82 गं शांतमानसाय नम: ॥
83 गं कैवल्य सुखदाय नम: ॥
84 गं सच्चिदानंद विग्रहाय नम: ॥
85 गं ज्ञानिने नम: ॥
86 गं दयायुताय नम: ॥
87 गं दक्षाय नम: ॥
88 गं दांताय नम: ॥
89 गं ब्रह्मद्वेष विवर्जिताय नम: ॥
90 गं प्रमत्त दैत्य भयदाय नम: ॥
91 गं श्रीकण्ठाय नम: ॥
92 गं विबुधेश्वराय नम: ॥
93 गं रामार्चिताय नम: ॥
94 गं विधये नम: ॥
95 गं नागराज यज्ञोपवितवते नम: ॥
96 गं स्थूलकण्ठाय नम: ॥
97 गं स्वयंकर्त्रे नम: ॥
98 गं अध्यक्षाय नम: ॥
99 गं साम घोष प्रियाय नम: ॥
100 गं परस्मै नम: ॥
101 गं स्थूल तुंडाय नम: ॥
102 गं अग्रण्यै नम: ॥
103 गं धीराय नम: ॥
104 गं वागीशाय नम: ॥
105 गं सिद्धि दायकाय नम: ॥
106 गं दूर्वा बिल्व प्रियाय नम: ॥
107 गं अव्यक्त मूर्तये नम: ॥
108 गं अद्भुत मूर्ति मते नम: ॥


अंत में हाथ जोड़कर प्रणाम करें और दोनों कान पकड़कर किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थना करते हुए भगवान गणेश से अपने इच्छित मनोकामना को पूर्ण करने की याचिका करें ।


16 दिसंबर 2024

नव वर्ष आन लाइन श्री विद्या साधना शिविर

नव वर्ष आन लाइन श्री विद्या साधना शिविर

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(31दिसंबर व 1जनवरी 2025)

 


महाविद्या साधक परिवार भोपाल के तत्वाधान में निखिल कृपा से श्री विद्योपासक गुरुदेव श्री सुदर्शन नाथ जी एवं गुरु मां डां. साधना सिंह जी के सानिध्य मे 

दिनाँक 31 दिसंबर 2024 को 

रात्रि 9 बजे से 12 बजे रात तक !

एवं 1 जनवरी 2025 को 

दोपहर 12 बजे से शाम तक 

अति विशेष श्री विद्या साधना शिविर का आयोजन किया गया है! 


नववर्ष ऑनलाइन शिविर के कार्यक्रम का विवरण 

प्रथम दिवस :(31 दिसंबर 2024 )

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नववर्ष की पूर्व रात्रि के अवसर पर 31 दिसंबर की रात्री 

9 बजे से 12 बजे तक गुरुदेव और माता जी द्वारा विशेष पूजन और प्रवजन, संबोधन!


द्वितीय दिवस:( 1 जनवरी 2025 )

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नव वर्ष के उपलक्ष मे विशेष पूजन एवं दीक्षाएं 

दोपहर 12 बजे से शाम तक माता जी के द्वारा महागणपति पूजन, श्री विद्या अनुष्ठान एवं दीक्षा  संस्कार संपन्न होगी !

श्री विद्या साधना करने के इच्छुक सभी साधकगण अति विशेष "नव वर्ष आयोजन शिविर" में शामिल हेतु पंजीयन करा सकते हैं । 

                 

                

1. आन लाइन शिविर पंजीयन शुल्क 2100/रु

2. केवल फोटो से दीक्षा हेतु शुल्क 1100/रु 

विशेष जानकारी हेतु सम्पर्क:

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मनोहर दास सरजाल 

भटगांव,जिला सारंगगढ़, बिलाईगढ़ (छग) पिन 493222 

मो.9009160861,9752944865       

बैंक खाता नंबर  34869639865

IFSC Code - SBIN0015771

गुगल, फोन पे नंबर -  9009160861


12 दिसंबर 2024

साधना सिद्धि विज्ञान मासिक पत्रिका

 

साधना सिद्धि विज्ञान  मासिक पत्रिका का प्रकाशन वर्ष 1999 से भोपाल से हो रहा है. 
यह पत्रिका साधनाओं के गूढतम रहस्यों को साधकों के लिये  स्पष्ट कर उनका मार्गदर्शन करने में अग्रणी है. 





गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी तथा गुरुमाता साधनाजी के साधनात्मक अनुभव के प्रकाश मे प्रकाशित साधनात्मक ज्ञान आप को स्वयम अभिभूत कर देगा 

[ Sadhana Siddhi Vigayan monthly magazine,a knowledge bank of Tantra, Mantra, Yantra Sadhana

साधना सिद्धि विज्ञान पत्रिका की सदस्यता

समस्त प्रकार की साधनात्मक जानकारियों से भरपूर शुद्द पूजन तथा प्रयोगों की जानकारी के लिये 

साधना सिद्धि विज्ञान पढें:-

वार्षिक सदस्यता शुल्क 250 रुपये मनीआर्डर द्वारा निम्नलिखित पते पर भेजें .

अगले माह से आपकी सदस्यता प्रारंभ कर दी जायेगी

साधना सिद्धि विज्ञान 
जास्मीन - 429
न्यू मिनाल रेजीडेंसी 
जे. के. रोड , भोपाल  [म.प्र.]

दूरभाष : (0755) --- 4269368,4283681,4221116

आप चाहें तो पत्रिका कार्यालय मे इस नंबर पर संपर्क कर सकते हैं, और यूपीआई से भी पेमेंट कर सकते हैं । 
श्री संजय सिंह 94256-68111


साधना सिद्धि विज्ञान
अब तक प्रकाशित साधनात्मक जानकारी से परिपूर्ण अंक :-
वर्ष 1999 से 2007 तक की पत्रिकाओं का लिंक 
साधना सिद्धि विज्ञान
वर्ष 1999








वर्ष 2000















 












वर्ष -2001
















































5 दिसंबर 2024

श्री बगलामुखी अष्टोत्तर शतनाम

 श्री बगलामुखी अष्टोत्तर शतनाम

 


बगलामुखी बीज मंत्र है [ह्लीं ] उच्चारण होगा [hleem]

 

देवी के सामने पीले पुष्प, पीले चावल, हल्दी नमः के उच्चारण के साथ समर्पित कर सकते हैं ।

 

1.   ह्लीं कठिनायै नमः ।

2.   ह्लीं कपर्दिन्यै नमः ।

3.   ह्लीं कलकारिण्यै नमः ।

4.   ह्लीं कलहायै नमः ।

5.   ह्लीं कलायै नमः ।

6.   ह्लीं कलिदुर्गतिनाशिन्यै नमः ।

7.   ह्लीं कलिहरायै नमः ।

8.   ह्लीं कल्किरूपायै नमः ।

9.   ह्लीं काल्यै नमः ।

10.                    ह्लीं किशोर्यै नमः ।

11.                    ह्लीं कृत्यायै नमः ।

12.                    ह्लीं कृष्णायै नमः ।

13.                    ह्लीं केवलायै नमः ।

14.                    ह्लीं केशवस्तुतायै नमः ।

15.                    ह्लीं केशवाराध्यायै नमः ।

16.                    ह्लीं केशव्यै नमः ।

17.                    ह्लीं कैवल्यदायिन्यै नमः ।

18.                    ह्लीं कोटिकन्दर्पमोहिन्यै नमः ।

19.                    ह्लीं कोटिसूर्यप्रतीकाशायै नमः ।

20.                    ह्लीं घनायै नमः ।

21.                    ह्लीं जामदग्न्यस्वरूपायै नमः ।

22.                    ह्लीं देवदानवसिद्धौघपूजितापरमेश्वर्यै नमः ।

23.                    ह्लीं नक्षत्रपतिवन्दितायै नमः ।

24.                    ह्लीं नक्षत्ररूपायै नमः ।

25.                    ह्लीं नक्षत्रायै नमः ।

26.                    ह्लीं नक्षत्रेशप्रपूजितायै नमः ।

27.                    ह्लीं नक्षत्रेशप्रियायै नमः ।

28.                    ह्लीं नगराजप्रपूजितायै नमः ।

29.                    ह्लीं नगात्मजायै नमः ।

30.                    ह्लीं नगाधिराजतनयायै नमः ।

31.                    ह्लीं नरसिंहप्रियायै नमः । 

32.                    ह्लीं नवीनायै नमः ।

33.                    ह्लीं नागकन्यायै नमः ।

34.                    ह्लीं नागजनन्यै नमः । 

35.                    ह्लीं नागराजप्रवन्दितायै नमः ।

36.                    ह्लीं नागर्यै नमः ।

37.                    ह्लीं नागिन्यै नमः ।

38.                    ह्लीं नागेश्वर्यै नमः ।

39.                    ह्लीं नित्यायै नमः ।

40.                    ह्लीं नीरदायै नमः ।

41.                    ह्लीं नीलायै नमः ।

42.                    ह्लीं परतन्त्रविनाशिन्यै नमः ।

43.                    ह्लीं पराणुरूपापरमायै नमः ।

44.                    ह्लीं पीतपुष्पप्रियायै नमः ।

45.                    ह्लीं पीतवसनापीतभूषणभूषितायै नमः ।

46.                    ह्लीं पीतस्वरूपिण्यै नमः ।

47.                    ह्लीं पीतहारायै नमः ।

48.                    ह्लीं पीतायै नमः ।

49.                    ह्लीं बगलायै नमः ।

50.                    ह्लीं बलदायै नमः ।

51.                    ह्लीं बहुदावाण्यै नमः ।

52.                    ह्लीं बहुलायै नमः ।

53.                    ह्लीं बुद्धभार्यायै नमः ।

54.                    ह्लीं बुद्धिरूपायै नमः ।

55.                    ह्लीं बौद्धपाखण्डखण्डिन्यै नमः ।

56.                    ह्लीं ब्रह्मरूपावराननायै नमः ।

57.                    ह्लीं भामिन्यै नमः ।

58.                    ह्लीं महाकूर्मायै नमः ।

59.                    ह्लीं महामत्स्यायै नमः ।

60.                    ह्लीं महारावणहारिण्यै नमः ।

61.                    ह्लीं महावाराहरूपिण्यै नमः ।

62.                    ह्लीं महाविष्णुप्रस्वै नमः ।

63.                    ह्लीं मायायै नमः ।

64.                    ह्लीं मोहिन्यै नमः ।

65.                    ह्लीं यक्षिण्यै नमः ।

66.                    ह्लीं रक्तायै नमः ।

67.                    ह्लीं रम्यायै नमः ।

68.                    ह्लीं रागद्वेषकर्यै नमः ।

69.                    ह्लीं रात्र्यै नमः ।

70.                    ह्लीं रामप्रपूजितायै नमः ।

71.                    ह्लीं रामायै नमः ।

72.                    ह्लीं रिपुत्रासकर्यै नमः ।

73.                    ह्लीं रुद्रदेवतायै नमः ।

74.                    ह्लीं रुद्रमूर्त्यै नमः ।

75.                    ह्लीं रुद्ररूपायै नमः ।

76.                    ह्लीं रुद्राण्यै नमः ।

77.                    ह्लीं रेखायै नमः ।

78.                    ह्लीं रौरवध्वंसकारिण्यै नमः ।

79.                    ह्लीं लङ्कानाथकुलहरायै नमः ।

80.                    ह्लीं लङ्कापतिध्वंसकर्यै नमः ।

81.                    ह्लीं लङ्केशरिपुवन्दितायै नमः ।

82.                    ह्लीं वटुरूपिण्यै नमः ।

83.                    ह्लीं वरदाऽऽराध्यायै नमः ।

84.                    ह्लीं वरदानपरायणायै नमः ।

85.                    ह्लीं वरदायै नमः ।

86.                    ह्लीं वरदेशप्रियावीरायै नमः ।

87.                    ह्लीं वसुदायै नमः ।

88.                    ह्लीं वामनायै नमः ।

89.                    ह्लीं विष्णुवनितायै नमः ।

90.                    ह्लीं विष्णुशङ्करभामिन्यै नमः ।

91.                    ह्लीं वीरभूषणभूषितायै नमः ।

92.                    ह्लीं वेदमात्रे नमः ।

93.                    ह्लीं शत्रुसंहारकारिण्यै नमः ।

94.                    ह्लीं शुभायै नमः ।

95.                    ह्लीं शुभ्रायै नमः ।

96.                    ह्लीं श्यामायै नमः ।

97.                    ह्लीं श्वेतायै नमः ।

98.                    ह्लीं सिद्धनिवहायै नमः ।

99.                    ह्लीं सिद्धिरूपिण्यै नमः ।

100.              ह्लीं सिद्धेशायै नमः ।

101.              ह्लीं सुन्दर्यै नमः ।

102.              ह्लीं सौन्दर्यकारिण्यै नमः ।

103.              ह्लीं सौभगायै नमः ।

104.              ह्लीं सौभाग्यदायिन्यै नमः ।

105.              ह्लीं सौम्यायै नमः ।

106.              ह्लीं स्तम्भिन्यै नमः ।

107.              ह्लीं स्वर्गतिप्रदायै नमः ।

108.              ह्लीं स्वर्णाभायै नमः ।