18 सितंबर 2025

पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा

 पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा




श्राद्ध पक्ष में यथा सम्भव जाप करें ।

॥ ऊं सर्व पितरेभ्यो, मम सर्व शापं प्रशमय प्रशमय, सर्व दोषान निवारय निवारय, पूर्ण शान्तिम कुरु कुरु नमः ॥


पितृमोक्ष अमावस्या के दिन एक थाली में भोजन सजाकर सामने रखें।

108 बार जाप करें |

सभी ज्ञात अज्ञात पूर्वजों को याद करें , उनसे कृपा मागें |

ॐ शांति कहते हुए तीन बार पानी से थाली के चारों ओर गोल घेरा बनायें।

अपने पितरॊं को याद करके ईस थाली को गाय कॊ खिला दें।

 इससे पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा आपकॊ प्राप्त होगी ।

महाकाली का स्वयंसिद्ध मन्त्र

    

।। हुं हुं ह्रीं ह्रीं कालिके घोर दन्ष्ट्रे प्रचन्ड चन्ड नायिके दानवान दारय हन हन शरीरे महाविघ्न छेदय छेदय स्वाहा हुं फट ।।



यह महाकाली का स्वयंसिद्ध मन्त्र है.
तंत्र बाधा की काट , भूत बाधा आदि में लाभ प्रद है .
जन्माष्टमी की रात्रि मे इसका जाप करना ज्यादा लाभदायक है .
निशा काल अर्थात रात्रि 9 से 3 बजे के बीच १०८ बार जाप करें । क्षमता हो तो ज्यादा जाप भी कर सकते हैं . 

इस दौरान आप अपने सामने रुद्राक्ष , अंगूठी , माला आदि को सामने रखकर उसे मंत्र सिद्ध करके रक्षा के लिए बच्चों को भी पहना सकते हैं । 
इस मन्त्र का जाप करके रक्षा सूत्र बान्ध सकते हैं।



17 सितंबर 2025

नवरात्रि में देवी का विस्तृत पूजन

 नवरात्रि में देवी का विस्तृत पूजन



नवरात्रि में सभी की इच्छा रहती है कि देवी का विस्तृत पूजन किया जाए । नीचे की पंक्तियों में एक सरल पूजन विधि प्रस्तुत है ।


इसमें मेरी आराध्य महामाया देवी महाकाली का पूजन किया गया है उनके पूजन में सभी देवियों का पूजन संपन्न हो जाता है .  लेकिन अगर आप देवी के किसी और स्वरूप का पूजन करना चाहते हैं तो भी आप इसी विधि से पूजन संपन्न कर सकते हैं । फर्क सिर्फ इतना होगा कि जहां पर (क्रीं महाकाल्यै नमः) लिखा है उस स्थान पर देवी के दूसरे स्वरूप का मंत्र आ जाएगा ।

उदाहरण के लिए अगर आप दुर्गा देवी की साधना कर रहे हैं तो वहां पर आप (दुँ दुर्गायै नमः ) बोलकर पूरा पूजन सम्पन्न कर सकते हैं ।
काली :-
ध्यान
देवी काली का ध्यान करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः ध्यानम समर्पयामि )

दुर्गा :-
ध्यान
देवी दुर्गा का ध्यान करें
( दुँ दुर्गायै नमः ध्यानम समर्पयामि )

इस तरह से आप किसी भी देवी का पूजन कर सकते हैं ....

इसके अलावा आप यदि किसी मंत्र का जाप कर रहे हो उस मंत्र को बोलकर भी पूरा पूजन संपन्न कर सकते हैं ।
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माता महाकाली का पूजन


महाकाली का पूजन प्रस्तुत है जो कि बेहद सरल है ।


ध्यान
देवी काली का ध्यान करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः ध्यानम समर्पयामि )

यदि पढ़ सकते हो तो नीचे लिखा हुआ ध्यान भी पढ़ सकते हैं ।

करालवदनां घोरां मुक्तकेशीं चतुर्भुजाम् ।
कालिकां दक्षिणां दिव्यां मुण्डमाला विभूषिताम् ॥
सद्यः छिन्नशिरः खड्गवामाधोर्ध्व कराम्बुजाम् ।
अभयं वरदञ्चैव दक्षिणोर्ध्वाध: पाणिकाम् ॥
महामेघ प्रभां श्यामां तथा चैव दिगम्बरीम् ।
कण्ठावसक्तमुण्डाली गलद्‌रुधिर चर्चिताम् ॥
कर्णावतंसतानीत शवयुग्म भयानकां ।
घोरदंष्ट्रां करालास्यां पीनोन्नत पयोधराम् ॥
शवानां कर संघातैः कृतकाञ्ची हसन्मुखीम् ।
सृक्कद्वयगलद् रक्तधारां विस्फुरिताननाम् ॥
घोररावां महारौद्रीं श्मशानालय वासिनीम् ।
बालर्क मण्डलाकार लोचन त्रितयान्विताम् ॥
दन्तुरां दक्षिण व्यापि मुक्तालम्बिकचोच्चयाम् ।
शवरूप महादेव ह्रदयोपरि संस्थिताम् ॥
शिवाभिर्घोर रावाभिश्चतुर्दिक्षु समन्विताम् ।
महाकालेन च समं विपरीत रतातुराम् ॥
सुक प्रसन्नावदनां स्मेरानन सरोरुहाम् ।
एवं सञ्चियन्तयेत् काली सर्वकाम समृद्धिदां ॥

पुष्प समर्पण :-
अब फूल चढ़ाएं
( क्रीं महाकाल्यै नमः पुष्पम समर्पयामि )

आसन :-
आसन के लिए महाकाली के चरणों में निम्न मंत्र को बोलते हुए पुष्प / अक्षत समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः आसनं समर्पयामि )

पाद्य :-
जल से चरण धोएं
( क्रीं महाकाल्यै नमः पाद्यं समर्पयामि )

उद्वर्तन :-
चरणों में सुगन्धित तेल समर्पित करे ।
( क्रीं महाकाल्यै नमः उद्वर्तन तैलं समर्पयामि )

आचमन :-
पीने के लिए जल प्रदान करें ।
( क्रीं महाकाल्यै नमः आचमनीयम् समर्पयामि )

स्नान :-
सामान्य जल या सुगन्धित पदार्थों से युक्त जल से स्नान करवाएं (जल में इत्र , कर्पूर , तिल , कुश एवं अन्य वस्तुएं अपनी सामर्थ्य या सुविधानुसार मिश्रित कर लें )
( क्रीं महाकाल्यै नमः स्नानं निवेदयामि )

मधुपर्क :-
गाय का शुद्ध, दूध , दही , घी , चीनी , शहद मिलाकर चढ़ाएं या शहद चढ़ाएं
( क्रीं महाकाल्यै नमः मधुपर्कं समर्पयामि )

चन्दन :-
सफ़ेद चन्दन समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः चन्दनं समर्पयामि )

रक्त चन्दन :-
लाल चन्दन समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः रक्त चन्दनं समर्पयामि )

सिन्दूर :-
सिन्दूर समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः सिन्दूरं समर्पयामि )

कुंकुम :-
कुंकुम समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः कुंकुमं समर्पयामि )

अक्षत :-
चावल समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः अक्षतं समर्पयामि )

पुष्प :-
पुष्प समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः पुष्पं समर्पयामि )

विल्वपत्र :-
बिल्वपत्र समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः बिल्वपत्रं समर्पयामि )

पुष्प माला :-
फूलों की माला समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः पुष्पमालां समर्पयामि )

वस्त्र :-
वस्त्र समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः वस्त्रं समर्पयामि )

धूप :-
सुगन्धित धुप समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः धूपं समर्पयामि )

दीप :-
दीपक समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः दीपं दर्शयामि )

सुगंधि द्रव्य :-
इत्र समर्पित करे
( क्रीं महाकाल्यै नमः सुगन्धित द्रव्यं समर्पयामि )

कर्पूर दीप :-
कर्पूर का दीपक जलाकर समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः कर्पूर दीपम दर्शयामि )

नैवेद्य :-
प्रसाद समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः नैवेद्यं समर्पयामि )

ऋतु फल :-
फल समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः ऋतुफलं समर्पयामि )

जल :-
जल समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः जलम समर्पयामि )

करोद्वर्तन जल :-
हाथ धोने के लिए जल प्रदान करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः करोद्वर्तन जलम समर्पयामि )

आचमन :-
जल समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः पुनराचमनीयम् समर्पयामि )

ताम्बूल :-
पान समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः ताम्बूलं समर्पयामि )

काजल :-
काजल समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः कज्जलं समर्पयामि )

महावर :-
महावर समर्पित करे
( क्रीं महाकाल्यै नमः महावरम समर्पयामि )

चामर :-
चामर / पंखा झलना होता है
( क्रीं महाकाल्यै नमः चामरं समर्पयामि )

घंटा वादनम :-
घंटी बजाएं
( क्रीं महाकाल्यै नमः घंटा वाद्यं समर्पयामि )

दक्षिणा :-
दक्षिणा/ धन समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः दक्षिणाम समर्पयामि )

पुष्पांजलि :-
दोनों हाथों मे फूल या फूल की पंखुड़ियाँ भरकर समर्पित करें
( क्रीं महाकाल्यै नमः पुष्पांजलिं समर्पयामि )

नीराजन :-
कपूर से आरती
( क्रीं महाकाल्यै नमः नीराजनं समर्पयामि )

क्षमा प्रार्थना :-
( क्रीं महाकाल्यै नमः क्षमा प्रार्थनाम समर्पयामि )


दोनों हाथों से कानों को पकड़कर पूजन मे हुईं किसी भी प्रकार की गलती के लिए क्षमा प्रार्थना करते हुए कृपा की याचना करें ।

अगर पढ़ सकते हैं तो इसे भी पढ़ सकते हैं

ॐ प्रार्थयामि महामाये यत्किञ्चित स्खलितम् मम
क्षम्यतां तज्जगन्मातः कालिके देवी नमोस्तुते

ॐ विधिहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं यदरचितम्
पुर्णम्भवतु तत्सर्वं त्वप्रसादान्महेश्वरी
शक्नुवन्ति न ते पूजां कर्तुं ब्रह्मदयः सुराः
अहं किं वा करिष्यामि मृत्युर्धर्मा नरोअल्पधिः
न जाने अहं स्वरुप ते न शरीरं न वा गुणान्
एकामेव ही जानामि भक्तिं त्वचर्णाबजयोः ।।

आरती :-
अंत मे आरती करें

15 सितंबर 2025

नवार्ण मंत्र एक स्वयं सिद्ध मंत्र

 नवार्ण मंत्र एक स्वयं सिद्ध मंत्र है ।.

कलयुग में देवी चंडिका और भगवान गणेश को सहज ही प्रसन्न होने वाला माना गया है इसलिए नवार्ण मंत्र का जाप करके आप साधना के क्षेत्र में धीरे-धीरे आगे बढ़ सकते हैं।

नवार्ण मंत्र



।। ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ।।

इसमे तीन बीज मंत्र हैं जो क्रमशः महासरस्वती महालक्ष्मी और महाकाली के बीजमन्त्र हैं । इसलिए सभी मनोकामनाओं के लिए इसे जप सकते हैं ।

बहुत ज्यादा विधि विधान नहीं जानते हो तो आप केवल अपने सामने दीपक जलाकर मंत्र जाप कर सकते हैं ।

मंत्र जाप की संख्या अपनी क्षमता के अनुसार निर्धारित कर लें कम से कम 108 बार मंत्र जाप करना चाहिए ।

14 सितंबर 2025

भुवनेश्वरी महाविद्या

 

 
॥ ह्रीं ॥





  • भुवनेश्वरी महाविद्या समस्त सृष्टि की माता हैं

  • हमारे जीवन के लिये आवश्यक अमृत तत्व वे हैं.
  • इस मन्त्र का नित्य जाप आपको उर्जावान बनायेगा.
  • जिनका पाचन संबंधी शिकायत है उनको लाभ मिलेगा.
  • प्रातः काल ४ से ६ बजे तक जाप करें.
  • सफ़ेद वस्त्र और आसन होगा.
  • दिशा उत्तर या पूर्व .
  • ब्रह्मचर्य का पालन करें.
  • आचार विचार व्यवहार सात्विक रखें.

  • 13 सितंबर 2025

    सिद्धकुंजिका स्तोत्रम : भावार्थ सहित

     सिद्धकुंजिका स्तोत्रम : भावार्थ सहित 


    शिव उवाच -----
    श्रूणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिका स्तोत्रमुत्तमम ।
    येन मंत्रप्रभावेण चण्डीजाप: शुभो भवेत ॥ १॥

    अर्थ - शिव जी बोले-देवी! सुनो। मैं उत्तम कुंजिका स्तोत्र बताता हूँ, जिस मन्त्र(स्तोत्र) के प्रभाव से देवी का जप (पाठ) शुभ (सफल) होता है । 

    न कवचं न अर्गला स्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम ।
    न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वा अर्चनं ॥ २॥

    अर्थ - (इसका पाठ करने से)कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास यहाँ तक कि अर्चन भी आवश्यक नहीं है । 

    कुंजिका पाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत ।
    अति गुह्यतरं देवी देवानामपि दुर्लभं ॥ ३॥

    अर्थ - केवल कुंजिका स्तोत्र के पाठ कर लेने से दुर्गापाठ का फल प्राप्त हो जाता है। (यह कुंजिका) अत्यंत गोपनीय और देवताओं के लिए भी दुर्लभ है अर्थात इतना महत्वपूर्ण है । 

    गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति ।
    मारणं मोहनं वश्यं स्तंभनं उच्चाटनादिकम ।
    पाठ मात्रेण संसिद्धयेत कुंजिकास्तोत्रं उत्तमम ॥ ४ ॥
    अर्थ - हे पार्वती! जिस प्रकार स्त्री अपने गुप्त भाग (स्वयोनि) को सबसे गुप्त रखती है अर्थात छुपाकर या ढँककर रखती है उसी भांति इस कुंजिका स्तोत्र को भी प्रयत्नपूर्वक गुप्त रखना चाहिए। यह कुंजिकास्तोत्र इतना उत्तम (प्रभावशाली ) है कि केवल इसके पाठ के द्वारा मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन और उच्चाटन आदि (अभिचारिक षट कर्मों ) को सिद्ध करता है ( अभीष्ट फल प्रदान करता है ) । 

    अथ मंत्र : ।
    ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ॥
    ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं स: ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट स्वाहा ॥ इति मंत्र: ॥


    नमस्ते रुद्ररुपिण्ये नमस्ते मधुमर्दिनि ।
    नम: कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥1॥

    अर्थ - हे रुद्ररूपिणी! तुम्हे नमन है । हे मधु नामक दैत्य का मर्दन करने (मारने) वाली! तुम्हे नमस्कार है। कैटभ और महिषासुर नामक दैत्यों को मारने वाली माई ! मैं आपके श्री चरणों मे प्रणाम करता हूँ ।. 


    नमस्ते शूम्भहंत्र्यै च निशुंभासुरघातिनि ॥
    जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे ॥2॥

    अर्थ - दैत्य शुम्भ का हनन करने (मारने) वाली और दैत्य निशुम्भ का घात करने (मारने) वाली! माता मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ आप मेरे जप (पाठ द्वारा इस कुंजिका स्तोत्र)को जाग्रत और (मेरे लिए)सिद्ध करो। 

    ऐंकारी सृष्टिरुपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ।
    क्लींकारी कामरुपिण्यै बीजरुपे नमोस्तुते ॥3॥

    अर्थ - ऐंकार ( ऐं बीज मंत्र जो कि सृष्टि कर्ता ब्रह्मा की शक्ति सरस्वती का बीज मंत्र है ) के रूप में सृष्टिरूपिणी( उत्पत्ति करने वाली ), ‘ह्रीं’ ( भुवनेश्वरी महालक्ष्मी बीज जो कि पालन कर्ता  श्री हरि विष्णु की शक्ति है )के रूप में सृष्टि का पालन करने वाली क्लीं (काम / काली बीज )के रूप में  क्रियाशील होने वाली बीजरूपिणी (सबका मूल  या बीज  स्वरूप वाली ) हे देवी! मैं तुम्हे बारम्बार  नमस्कार करता हूँ । 


    चामुंडा चण्डघाती च यैकारी वरदायिनि ।
    विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररुपिणि ॥4॥

    अर्थ - (नवार्ण मंत्र मे प्रयुक्त "चामुंडायै" शब्द मे )"चामुंडा" के रूप में तुम मुण्ड(अहंकार और दुष्टता का) विनाश करने वाली हो, और ‘यैकार’ के रूप में वर देने वाली (भक्त की रक्षा और उसकी मनोकामना की पूर्ति प्रदान करने वाली )हो । ’विच्चे’ रूप में तुम नित्य ही अभय देती हो।(इस प्रकार आप स्वयं नवार्ण मंत्र "ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे ") मन्त्र का स्वरुप हो । 

    धां धीं धूं धूर्जटे: पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी ।
    क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥5॥

    धां धीं धूं’ के रूप में धूर्जटी (शिव) की तुम पत्नी हो। ‘वां वीं वूं’ के रूप में तुम वाणी की अधीश्वरी हो। ‘क्रां क्रीं क्रूं’ के रूप में कालिकादेवी, ‘शां शीं शूं’ के रूप में मेरा शुभ अर्थात कल्याण करो, मेरा अभीष्ट सिद्ध करो ।.

    हुं हुं हुंकाररुपिण्यै जं जं जं जंभनादिनी ।
    भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नम: ॥6॥

    बीजमंत्रों मे (वायु बीज)'हुं हुं हुंकार’ के स्वरूप वाली , ‘जं जं जं’ (जं बीज का नाद करने वाली)जम्भनादिनी, ‘भ्रां भ्रीं भ्रूं’ के रूप में (भैरव बीज स्वरूपा भैरवी शक्ति ), संसार मे भद्रता(सज्जनता) की स्थापना करने वाली हे भवानी! मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ ।. 

    अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं
    धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥7॥

    ।।7।।’अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षं ’ इन सब बीज मंत्रों को जागृत करो, मेरे सभी पाशों को तोड़ो और मेरी चेतना को दीप्त ( प्रकाशित या उज्ज्वल प्रकाशमान ) करो, और (न्युनताओं को भस्मीभूत ) स्वाहा करो । 

    पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ॥
    सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धीं कुरुष्व मे ॥8॥

    ’पां पीं पूं’ के रूप में तुम पार्वती अर्थात भगवान शिव की पूर्णा शक्ति हो। ‘खां खीं खूं’ के रूप में तुम खेचरी (आकाशचारिणी) या परा शक्ति हो।।8।।’सां सीं सूं’ स्वरूपिणी सप्तशती देवी के इस विशिष्ट मन्त्र की मुझे सिद्धि प्रदान करो। 

    फलश्रुति:-

    इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे ॥ अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ॥
    यह सिद्धकुंजिका स्तोत्र (नवार्ण) मन्त्र को जगाने(चैतन्य करने /सिद्धि प्रदायक बनाने)  के लिए है। इसे भक्तिहीन पुरुष को नहीं देना चाहिए। हे पार्वती ! इस मन्त्र को गुप्त रखकर इसकी रक्षा करनी चाहिए  ।.

    यस्तु कुंजिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत ॥ न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥

    हे देवी ! जो बिना कुंजिका के सप्तशती का पाठ करता है उसे उसी प्रकार सिद्धि नहीं मिलती जिस प्रकार वन में (निर्जन स्थान पर जहां कोई देखने सुनने वाला न हो ) रोना निरर्थक होता है।


    इति श्री रुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वतीसंवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम ॥


    वर्तमान समय मे मेरे गुरुदेव डा नारायण दत्त श्रीमाली जी को सर्वश्रेष्ठ तंत्र मंत्र मर्मज्ञ के रूप मे निर्विवाद रूप से स्वीकार किया जाता है । आप उनके द्वारा सम्पन्न कराये गए विभिन्न मंत्र प्रयोगों को यूट्यूब पर सर्च करके देख और सुन सकते हैं । उनके प्रत्येक प्रयोग मे आप देख सकते हैं कि वे रक्षा के लिए कुंजिका स्तोत्र का ही पाठ प्रारम्भ मे करवाते थे । इसी से आप इसका महत्व और शक्ति को समझ सकते हैं ।.

    नवरात्रि मे इसका 108 पाठ या जितना आप कर सकें दीपक जलाकर सम्पन्न करें और उसके बाद नित्य एक बार इसका पाठ करें तो आपके ऊपर छोटे मोटे तंत्र प्रयोग, टोने टोटके का असर ही नहीं होगा और बड़े तंत्र प्रयोग जैसे मारण अगर किए गए तो भी वे घातक नहीं हो पाएंगे । भगवती का यह सिद्ध स्तोत्र आपकी रक्षा कर लेगा ।  



    9 सितंबर 2025

    श्री बगलामुखी अष्टोत्तर शतनाम

      श्री बगलामुखी अष्टोत्तर शतनाम

     


    बगलामुखी बीज मंत्र है [ह्लीं ] उच्चारण होगा [hleem]

     

    देवी के सामने पीले पुष्प, पीले चावल, हल्दी नमः के उच्चारण के साथ समर्पित कर सकते हैं ।

     

    1.   ह्लीं कठिनायै नमः ।

    2.   ह्लीं कपर्दिन्यै नमः ।

    3.   ह्लीं कलकारिण्यै नमः ।

    4.   ह्लीं कलहायै नमः ।

    5.   ह्लीं कलायै नमः ।

    6.   ह्लीं कलिदुर्गतिनाशिन्यै नमः ।

    7.   ह्लीं कलिहरायै नमः ।

    8.   ह्लीं कल्किरूपायै नमः ।

    9.   ह्लीं काल्यै नमः ।

    10.                    ह्लीं किशोर्यै नमः ।

    11.                    ह्लीं कृत्यायै नमः ।

    12.                    ह्लीं कृष्णायै नमः ।

    13.                    ह्लीं केवलायै नमः ।

    14.                    ह्लीं केशवस्तुतायै नमः ।

    15.                    ह्लीं केशवाराध्यायै नमः ।

    16.                    ह्लीं केशव्यै नमः ।

    17.                    ह्लीं कैवल्यदायिन्यै नमः ।

    18.                    ह्लीं कोटिकन्दर्पमोहिन्यै नमः ।

    19.                    ह्लीं कोटिसूर्यप्रतीकाशायै नमः ।

    20.                    ह्लीं घनायै नमः ।

    21.                    ह्लीं जामदग्न्यस्वरूपायै नमः ।

    22.                    ह्लीं देवदानवसिद्धौघपूजितापरमेश्वर्यै नमः ।

    23.                    ह्लीं नक्षत्रपतिवन्दितायै नमः ।

    24.                    ह्लीं नक्षत्ररूपायै नमः ।

    25.                    ह्लीं नक्षत्रायै नमः ।

    26.                    ह्लीं नक्षत्रेशप्रपूजितायै नमः ।

    27.                    ह्लीं नक्षत्रेशप्रियायै नमः ।

    28.                    ह्लीं नगराजप्रपूजितायै नमः ।

    29.                    ह्लीं नगात्मजायै नमः ।

    30.                    ह्लीं नगाधिराजतनयायै नमः ।

    31.                    ह्लीं नरसिंहप्रियायै नमः । 

    32.                    ह्लीं नवीनायै नमः ।

    33.                    ह्लीं नागकन्यायै नमः ।

    34.                    ह्लीं नागजनन्यै नमः । 

    35.                    ह्लीं नागराजप्रवन्दितायै नमः ।

    36.                    ह्लीं नागर्यै नमः ।

    37.                    ह्लीं नागिन्यै नमः ।

    38.                    ह्लीं नागेश्वर्यै नमः ।

    39.                    ह्लीं नित्यायै नमः ।

    40.                    ह्लीं नीरदायै नमः ।

    41.                    ह्लीं नीलायै नमः ।

    42.                    ह्लीं परतन्त्रविनाशिन्यै नमः ।

    43.                    ह्लीं पराणुरूपापरमायै नमः ।

    44.                    ह्लीं पीतपुष्पप्रियायै नमः ।

    45.                    ह्लीं पीतवसनापीतभूषणभूषितायै नमः ।

    46.                    ह्लीं पीतस्वरूपिण्यै नमः ।

    47.                    ह्लीं पीतहारायै नमः ।

    48.                    ह्लीं पीतायै नमः ।

    49.                    ह्लीं बगलायै नमः ।

    50.                    ह्लीं बलदायै नमः ।

    51.                    ह्लीं बहुदावाण्यै नमः ।

    52.                    ह्लीं बहुलायै नमः ।

    53.                    ह्लीं बुद्धभार्यायै नमः ।

    54.                    ह्लीं बुद्धिरूपायै नमः ।

    55.                    ह्लीं बौद्धपाखण्डखण्डिन्यै नमः ।

    56.                    ह्लीं ब्रह्मरूपावराननायै नमः ।

    57.                    ह्लीं भामिन्यै नमः ।

    58.                    ह्लीं महाकूर्मायै नमः ।

    59.                    ह्लीं महामत्स्यायै नमः ।

    60.                    ह्लीं महारावणहारिण्यै नमः ।

    61.                    ह्लीं महावाराहरूपिण्यै नमः ।

    62.                    ह्लीं महाविष्णुप्रस्वै नमः ।

    63.                    ह्लीं मायायै नमः ।

    64.                    ह्लीं मोहिन्यै नमः ।

    65.                    ह्लीं यक्षिण्यै नमः ।

    66.                    ह्लीं रक्तायै नमः ।

    67.                    ह्लीं रम्यायै नमः ।

    68.                    ह्लीं रागद्वेषकर्यै नमः ।

    69.                    ह्लीं रात्र्यै नमः ।

    70.                    ह्लीं रामप्रपूजितायै नमः ।

    71.                    ह्लीं रामायै नमः ।

    72.                    ह्लीं रिपुत्रासकर्यै नमः ।

    73.                    ह्लीं रुद्रदेवतायै नमः ।

    74.                    ह्लीं रुद्रमूर्त्यै नमः ।

    75.                    ह्लीं रुद्ररूपायै नमः ।

    76.                    ह्लीं रुद्राण्यै नमः ।

    77.                    ह्लीं रेखायै नमः ।

    78.                    ह्लीं रौरवध्वंसकारिण्यै नमः ।

    79.                    ह्लीं लङ्कानाथकुलहरायै नमः ।

    80.                    ह्लीं लङ्कापतिध्वंसकर्यै नमः ।

    81.                    ह्लीं लङ्केशरिपुवन्दितायै नमः ।

    82.                    ह्लीं वटुरूपिण्यै नमः ।

    83.                    ह्लीं वरदाऽऽराध्यायै नमः ।

    84.                    ह्लीं वरदानपरायणायै नमः ।

    85.                    ह्लीं वरदायै नमः ।

    86.                    ह्लीं वरदेशप्रियावीरायै नमः ।

    87.                    ह्लीं वसुदायै नमः ।

    88.                    ह्लीं वामनायै नमः ।

    89.                    ह्लीं विष्णुवनितायै नमः ।

    90.                    ह्लीं विष्णुशङ्करभामिन्यै नमः ।

    91.                    ह्लीं वीरभूषणभूषितायै नमः ।

    92.                    ह्लीं वेदमात्रे नमः ।

    93.                    ह्लीं शत्रुसंहारकारिण्यै नमः ।

    94.                    ह्लीं शुभायै नमः ।

    95.                    ह्लीं शुभ्रायै नमः ।

    96.                    ह्लीं श्यामायै नमः ।

    97.                    ह्लीं श्वेतायै नमः ।

    98.                    ह्लीं सिद्धनिवहायै नमः ।

    99.                    ह्लीं सिद्धिरूपिण्यै नमः ।

    100.              ह्लीं सिद्धेशायै नमः ।

    101.              ह्लीं सुन्दर्यै नमः ।

    102.              ह्लीं सौन्दर्यकारिण्यै नमः ।

    103.              ह्लीं सौभगायै नमः ।

    104.              ह्लीं सौभाग्यदायिन्यै नमः ।

    105.              ह्लीं सौम्यायै नमः ।

    106.              ह्लीं स्तम्भिन्यै नमः ।

    107.              ह्लीं स्वर्गगतिप्रदायै नमः ।

    108.              ह्लीं स्वर्णाभायै नमः ।