30 सितंबर 2010

धूमावती साधना

सभी प्रकार की तन्त्र बाधाओं तथा भूतादि बाधाओं मे लाभकारी साधना है. गुरु आज्ञा से ही इसे संपन्न करना चाहिये.

29 सितंबर 2010

भुवनेश्वरी साधना

सर्व विध ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिये जगतजननी माता भुवनेश्वरी की साधना नवरात्रि में करें ।

मन्त्र:-
॥ ह्रीं ॥

उत्तर दिशा में आपका मुख रहेगा ।
जाप का समय रात्रि ।
सफ़ेद रंग के वस्त्र तथा आसन का उपयोग करें ।

27 सितंबर 2010

बगलामुखी साधना : कब करें


शत्रु बाधा तथा कानूनी विवादों में बुरी तरह फ़स जाने पर जब कोइ मार्ग ना दिखाइ दे तब बगलामुखी साधना करना लाभप्रद माना गया है ।

मन्त्रम:-

॥ऊं ह्लीं बगलामुखी सर्वदुष्टानां वाचं मुखं पदम स्तम्भय जिह्वां कीलय बुद्धिम विनाशय ह्लीं फ़ट स्वाहा ॥

22 सितंबर 2010

पितरॊं की कृपा प्राप्ति के लिये मन्त्र - 2

श्राद्ध पक्ष में यथा सम्भव जाप करें । एक थाली में भोजन सजाकर सामने रखें। तीन बार पानी से उसके चारों ओर गोल घेरा बनायें। अपने पितरॊं को याद करके ईस थाली को गाय कॊ खिला दें।  इससे पितरॊं अर्थात मृत पूर्वजॊं की कृपा आपकॊ प्राप्त होगी ।

॥ ऊं सर्व पितरेभ्यो, मम सर्व शापं प्रशमय प्रशमय, सर्व दोषान निवारय निवारय, पूर्ण शान्तिम कुरु कुरु नमः ॥

17 सितंबर 2010

विश्वकर्मा मन्त्र

भगवान श्री विश्वकर्मा कलपुर्जों तथा मशीनों के अधिपति देवता माने जाते हैं।


॥ऊं श्री विश्वकर्मायै नमः॥

16 सितंबर 2010

तारा गायत्री मन्त्र





तारा  गायत्री मन्त्र :-
॥ ऊं तारायै च विद्महे महोग्रायै च धीमहि तन्नो देवि प्रचोदयात ॥

14 सितंबर 2010

गणपति हवन विधि

एक सरल हवन विधान प्रस्तुत है जो आप आसानी से स्वयम कर सकते हैं ।

ऊं अग्नये नमः .........७ बार इस मन्त्र का जाप करें तथा आग जला लें ।

ऊं गुरुभ्यो नमः ..... २१ बार इस मन्त्र का जाप करें ।

ऊं अग्नये स्वाहा ...... ७ आहुति (अग्नि मे डालें)

ऊं गं  स्वाहा ..... १ बार

ऊं भैरवाय स्वाहा ..... ११ बार

ऊं गुरुभ्यो नमः स्वाहा .....१६ बार


ऊं गं गणपतये स्वाहा ..... १०८ बार

अन्त में कहें कि गणपति भगवान की कृपा मुझे प्राप्त हो....

गलतियों के लिये क्षमा मांगे.....

तीन बार पानी छिडककर शांति शांति शांति ऊं कहें.....


7 सितंबर 2010

उच्छिष्ट गणपति मन्त्रम

उच्छिष्ट गणपति मन्त्रम : अद्भुत फ़लदायक तथा गोपनीय मन्त्र

॥ हस्तिपिशाचिलिखे स्वाहा ॥

2 सितंबर 2010

तारा बीज युक्त गायत्री मन्त्र

तारा बीज युक्त गायत्री मन्त्र :-

॥ह्रीं स्त्रीं हुं फ़ट एकजटे विद्महे ह्रीं स्त्रीं हुं परे नीले विकट दंष्ट्रे ह्रीं धीमहि ऊं ह्रीं स्त्रीं हुं फ़ट ऐं सः स्त्रीं तन्नस्तारे प्रचोदयात ॥