13 नवंबर 2013

पूज्यपाद गुरुदेव डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी द्वारा रचित : पद्मावती स्तोत्रम

पूज्यपाद गुरुदेव डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी 

द्वारा रचित



पद्मावती स्तोत्रम 


दिव्योवताम वै पद्मावती त्वं, लक्ष्मी त्वमेव धन धान्य सुतान्वदै  च |
पूर्णत्व देह परिपूर्ण मदैव तुल्यं, पद्मावती त्वं प्रणमं नमामि ||

ज्ञानेव सिन्धुं ब्रह्मत्व नेत्रं , चैतन्य देवीं भगवान भवत्यम |
देव्यं प्रपन्नाति हरे प्रसीद, प्रसीद,प्रसीद, प्रसीद,प्रसीद ||

धनं धान्य रूपं, साम्राज्य रूपं,ज्ञान स्वरुपम् ब्रह्म स्वरुपम् |
चैतन्य रूपं परिपूर्ण रूपं , पद्मावती त्वं  प्रणमं नमामि ||

न मोहं न क्रोधं न ज्ञानं न चिन्त्यं परिपुर्ण रूपं भवताम वदैव |
दिव्योवताम सूर्य तेजस्वी रूपं  , पद्मावती त्वं  प्रणमं नमामि ||

सन्यस्त रूपमपरम पूर्ण गृहस्थं, देव्यो सदाहि भवताम श्रियेयम |
पद्मावती त्वं, हृदये पद्माम, कमलत्व रूपं पद्मम प्रियेताम ||

|| इति परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद विरचित पद्मावती स्तोत्रं सम्पूर्णं ||

व्यवसाय की सफलता और जैन धर्मावलम्बी आज एक दुसरे के पर्याय माने जाते हैं. जैन मार्गी लक्ष्मी के पद्मावती स्वरुप की पूजा करते हैं. देवी का यह स्वरुप अतुलनीय ऐश्वर्य प्रदान करता है.पूज्यपाद गुरुदेव ने इस स्तोत्र  को अत्यंत प्रभावशाली बताया था.




विधि:-

  • दक्षिणावर्ती शंख या पारद श्रीयंत्र या किसी भी प्रकार के श्रीयंत्र को सामने रखें.
  • प्रतिदिन एक पाठ करें.
  • १०८ दिन तक करें.
  • यदि व्यवसाय करते हों तो दूकान पर पाठ करें.
  • लाभ होगा .

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