दशाक्षरी काली मंत्र विद्या
|| ह्रीं श्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहा ||
विधि:-
- साधना मन्त्र अपने गुरु से प्राप्त कर उनकी अनुमति से मन्त्र जाप करें.
- रात्रिकालीन साधना है।
- रात 9 से 4 के बीच जाप करें।
- काले या लाल वस्त्र आसन का प्रयोग होगा।
- जप माला रुद्राक्ष या काली हकीक की होगी।
- जाप से पहले एक माला गुरु मन्त्र जाप अनिवार्य है।
ह्रीं श्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहा मे पातु मस्तकम्।
क्लीं कपालं सदा पातु ह्रीं ह्रीं ह्रीमिति लोचने॥
ह्रीं त्रिलोचने स्वाहा नासिकां मे सदावतु।
क्लीं कालिके रक्ष रक्ष स्वाहा दन्तं सदावतु॥
ह्रीं भद्रकालिके स्वाहा पातु मेऽधरयुग्मकम्।
ह्रीं ह्रीं क्लीं कालिकायै स्वाहा कण्ठं सदावतु॥
ह्रीं कालिकायै स्वाहा कर्णयुग्मं सदावतु।
क्रीं क्रीं क्लीं काल्यै स्वाहा स्कन्धं पातु सदा मम॥
क्रीं भद्रकाल्यै स्वाहा मम वक्ष: सदावतु।
क्रीं कालिकायै स्वाहा मम नाभिं सदावतु॥
ह्रीं कालिकायै स्वाहा मम पष्ठं सदावतु।
रक्त बीजविनाशिन्यै स्वाहा हस्तौ सदावतु॥
ह्रीं क्लीं मुण्डमालिन्यै स्वाहा पादौ सदावतु।
ह्रीं चामुण्डायै स्वाहा सर्वाङ्गं मे सदावतु॥
प्राच्यां पातु महाकाली आगन्ेय्यां रक्त दन्तिका। दक्षिणे पातु चामुण्डा नैर्ऋत्यां पातु कालिका॥
श्यामा च वारुणे पातु वायव्यां पातु चण्डिका।
उत्तरे विकटास्या च ऐशान्यां साट्टहासिनी॥
ऊर्ध्वं पातु लोलजिह्वा मायाद्या पात्वध: सदा।
जले स्थले चान्तरिक्षे पातु विश्वप्रसू: सदा॥
फलश्रुति :-
वत्स! यह कवच समस्त मन्त्रसमूह का मूर्तरूप, सम्पूर्ण कवचों का सारभूत और उत्कृष्ट से भी उत्कृष्टतर है; इसे मैंने तुम्हें बतला दिया। इसी कवच की कृपा से राजा सुचन्द्र सातों द्वीपों के अधिपति हो गये थे। इसी कवच के प्रभाव से पृथ्वीपति मान्धाता सप्तद्वीपवती पृथ्वी के अधिपति हुए थे। इसी के बल से प्रचेता और लोमश सिद्ध हुए थे तथा इसी के बल से सौभरि और पिप्पलायन योगियों में श्रेष्ठ कहलाये। जिसे यह कवच सिद्ध हो जाता है, वह समस्त सिद्धियों का स्वामी बन जाता है। सभी महादान, तपस्या और व्रत इस कवच की सोलहवीं कला की भी बराबरी नहीं कर सकते, यह निश्चित है। जो इस कवच को जाने बिना जगज्जननी काली का भजन करता है, उसके लिये एक करोड जप करने पर भी यह मन्त्र सिद्धिदायक नहीं होता।
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