॥ ऐं ह्रीं क्लीं चामुन्डायै विच्चै ॥
यह नवार्ण मन्त्र है.
इसमे
ऐं = भगवती महासरस्वती का बीज मन्त्र है.
ह्रीं = भगवती महालक्ष्मी का बीज मन्त्र है.
क्लीं = भगवती महाकाली का बीज मन्त्र है.
क्लीं = भगवती महाकाली का बीज मन्त्र है.
इससे तीनों देवियों की कृपा मिलती है.
इस मन्त्र का यथा शक्ति जप करने से महामाया की कॄपा प्राप्त होती है .
विधि ---
- रात्रि काल में जाप होगा.
- रात्रि ९ बजे से सुबह ४ बजे के बीच का समय रात्रि काल है.
- लाल रंग का आसन तथा वस्त्र होगा.
- दिशा पूर्व या उत्तर की तरफ़ मुंह करके बैठना है.
- हो सके तो साधना स्थल पर ही रात को सोयें.
- सात्विक आहार तथा आचार विचार रखें.
- किसी स्त्री का अपमान न करें.
- किसी पर साधन काल में क्रोध न करें.
- किसी को ना तो कोसें और ना ही व्यर्थ का प्रलाप करें.
- यथा संभव मौन रखें.
- साधना में बैठने से पहले हल्का भोजन करें.
- बहुत आवश्यक हो तो पत्नी से संपर्क रख सकते हैं.
- जितनी शक्ति हो उतना जाप करें |
- कुल जाप का दसवां हिस्सा हवन करें , इसके लिए मन्त्र के अंत में स्वाहा लगाकर हवन सामग्री डालें .
- हवन आप स्वयं कर सकते हैं किसी बर्तन या कुंड में लकड़ी डालकर जला लें फिर घी तथा हवन सामग्री से हवन करें .
- बर्तन गरम हो जाता है इसलिए फर्श में पहले रेती या ईंट अवश्य रख लें . उसके ऊपर पात्र रखें.पात्र में भी नीचे रेत डाल लेंगे तो ज्यादा गरम नहीं होगा
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