शिवलिंग की महिमा
भगवान शिव के पूजन मे शिवलिंग का प्रयोग होता है। शिवलिंग के निर्माण के लिये स्वर्णादि विविध धातुओं, मणियों, रत्नों, तथा पत्थरों से लेकर मिटृी तक का उपयोग होता है।इसके अलावा रस अर्थात पारे को विविध क्रियाओं से ठोस बनाकर भी लिंग निर्माण किया जाता है,
इसके बारे में कहा गया है कि,
मृदः कोटि गुणं स्वर्णम, स्वर्णात्कोटि गुणं मणिः,
मणेः कोटि गुणं बाणो, बाणात्कोटि गुणं रसः
रसात्परतरं लिंगं न भूतो न भविष्यति ॥
अर्थात मिटृी से बने शिवलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल
सोने से बने शिवलिंग के पूजन से,
स्वर्ण से करोड गुणा ज्यादा फल
मणि से बने शिवलिंग के पूजन से,
मणि से करोड गुणा ज्यादा फल
बाणलिंग के पूजन से
तथा
बाणलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल
रस अर्थात पारे से बने शिवलिंग के पूजन से प्राप्त होता है।
आज तक पारे से बने शिवलिंग से श्रेष्ठ शिवलिंग न तो बना है और न ही बन सकता है।
शिवलिंगों में नर्मदा नदी से प्राप्त होने वाले नर्मदेश्वर शिवलिंग भी
अत्यंत लाभप्रद तथा शिवकृपा प्रदान करने वाले माने गये हैं। यदि आपके पास शिवलिंग न हो तो
अपने बांये हाथ के अंगूठे को
शिवलिंग मानकर भी पूजन कर सकते हैं ।
शिवलिंग कोई भी हो जब तक
भक्त की भावना का संयोजन नही होता
तब तक शिवकृपा नही मिल सकती।
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