एक प्रयास सनातन धर्म[Sanatan Dharma] के महासमुद्र मे गोता लगाने का.....कुछ रहस्यमयी शक्तियों [shakti] से साक्षात्कार करने का.....गुरुदेव Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji [ Nikhileswaranand Ji] की कृपा से प्राप्त Mantra Tantra Yantra विद्याओं को समझने का...... Kali, Sri Yantra, Laxmi,Shiv,Kundalini, Kamkala Kali, Tripur Sundari, Maha Tara ,Tantra Sar Samuchhay , Mantra Maharnav, Mahakal Samhita, Devi,Devata,Yakshini,Apsara,Tantra, Shabar Mantra, जैसी गूढ़ विद्याओ को सीखने का....
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30 जून 2018
29 जून 2018
गुरु का महत्व
एक पत्थर की भी तकदीर बदल सकती है,
शर्त ये है कि सलीके से तराशा जाए....
रास्ते में पडा! लोगों के पांवों की ठोकरें खाने वाला पत्थर! जब योग्य मूर्तिकार के हाथ लग जाता है तो वह उसे तराशकर अपनी सर्जनात्मक क्षमता का उपयोग करते हुये, इस योग्य बना देता है, कि वह मंदिर में प्रतिष्ठित होकर करोडों की श्रद्धा का केद्र बन जाता है। करोडों सिर उसके सामने झुकते हैं। रास्ते के पत्थर को इतना उच्च स्वरुप प्रदान करने वाले मूर्तिकार के समान ही, एक गुरु अपने शिष्य को सामान्य मानव से उठाकर महामानव के पद पर बिठा देता है। चाणक्य ने अपने शिष्य चंद्रगुप्त को सडक से उठाकर संपूर्ण भारतवर्ष का चक्रवर्ती सम्राट बना दिया। विश्व मुक्केबाजी का महानतम हैवीवेट चैंपियन माइक टायसन सुधार गृह से निकलकर अपराधी बन जाता अगर उसकी प्रतिभा को उसके गुरू ने ना पहचाना होता। यह एक अकाट्य सत्य है कि चाहे वह कल का विश्वविजेता सिकंदर हो या आज का हमारा महानतम बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर, वे अपनी क्षमताओं को पूर्णता प्रदान करने में अपने गुरु के मार्गदर्शन व योगदान के अभाव में सफल नही हो सकते थे।
हमने प्राचीन काल से ही गुरु को सबसे ज्यादा सम्माननीय तथा आवश्यक माना। भारत की गुरुकुल परंपरा में बालकों को योग्य बनने के लिये आश्रम में रहकर विद्याद्ययन करना पडता था, जहां गुरु उनको सभी आवश्यक ग्रंथो का ज्ञान प्रदान करते हुए उन्हे समाज के योग्य बनाते थे। विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों नालंदा तथा तक्षशिला में भी उसी ज्ञानगंगा का प्रवाह हम देखते हैं। संपूर्ण विश्व में शायद ही किसी अन्य देश में गुरु को उतना सम्मान प्राप्त हो जितना हमारे देश में दिया जाता रहा है। यहां तक कहा गया किः-
गुरु गोविंद दोऊ खडे काके लागूं पांय ।
बलिहारी गुरु आपकी गोविंद दियो बताय ॥
अर्थात, यदि गुरु के साथ स्वयं गोविंद अर्थात साक्षात भगवान भी सामने खडे हों, तो भी गुरु ही प्रथम सम्मान का अधिकारी होता है, क्योंकि उसीने तो यह क्षमता प्रदान की है कि मैं गोविंद को पहचानने के काबिल हो सका। आध्यात्मिक जगत की ओर जाने के इच्छुक प्रत्येक व्यक्ति का मार्ग गुरु और केवल गुरु से ही प्रारंभ होता है। कुछ को गुरु आसानी से मिल जाते हैं, कुछ को काफी प्रयास के बाद मिलते हैं,और कुछ को नहीं मिलते हैं।साधनात्मक जगत, जिसमें योग, तंत्र, मंत्र जैसी विद्याओं को रखा जाता है, में गुरु को अत्यंत ही अनिवार्य माना जाता है।वे लोग जो इन क्षेत्रों में विशेषज्ञता प्राप्त करना चाहते हैं, उनको अनिवार्य रुप से योग्य गुरु के सानिध्य के लिये प्रयास करना ही चाहिये। ये क्षेत्र उचित मार्गदर्शन की अपेक्षा रखते हैं।
गुरु का तात्पर्य किसी व्यक्ति के देह या देहगत न्यूनताओं से नही बल्कि उसके अंतर्निहित ज्ञान से होता है, वह ज्ञान जो आपके लिये उपयुक्त हो,लाभप्रद हो। गुरु गीता में कुछ श्लोकों में इसका विवेचन मिलता हैः-
अज्ञान तिमिरांधस्य ज्ञानांजन शलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः ॥
अज्ञान के अंधकार में डूबे हुये व्यक्ति को ज्ञान का प्रकाश देकर उसके नेत्रों को प्रकाश का अनुभव कराने वाले गुरु को नमन । गुरु शब्द के अर्थ को बताया गया है कि :-
गुकारस्त्वंधकारश्च रुकारस्तेज उच्यते।
अज्ञान तारकं ब्रह्म गुरुरेव न संशयः॥
गुरु शब्द के पहले अक्षर ÷गु' का अर्थ है, अंधकार जिसमें शिष्य डूबा हुआ है, और ÷रु' का अर्थ है, तेज या प्रकाश जिसे गुरु शिष्य के हृदय में उत्पन्न कर इस अंधकार को हटाने में सहायक होता है, और ऐसे ज्ञान को प्रदान करने वाला गुरु साक्षात ब्रह्म के तुल्य होता है।
ज्ञान का दान ही गुरु की महत्ता है। ऐसे ही ज्ञान की पूर्णता का प्रतीक हैं भगवान शिव। भगवान शिव को सभी विद्याओं का जनक माना जाता है। वे तंत्र से लेकर मंत्र तक और योग से लेकर समाधि तक प्रत्येक क्षेत्र के आदि हैं और अंत भी। वे संगीत के आदिसृजनकर्ता भी हैं, और नटराज के रुप में कलाकारों के आराध्य भी हैं। वे प्रत्येक विद्या के ज्ञाता होने के कारण जगद्गुरु भी हैं। गुरु और शिव को आध्यात्मिक जगत में समान माना गया है। कहा गया है कि :-
यः शिवः सः गुरु प्रोक्तः। यः गुरु सः शिव स्मृतः॥
अर्थात गुरु और शिव दोनों ही अभेद हैं, और एक दूसरे के पर्याय हैं।जब गुरु ज्ञान की पूर्णता को प्राप्त कर लेता है तो वह स्वयं ही शिव तुल्य हो जाता है, तब वह भगवान आदि शंकराचार्य के समान उद्घोष करता है कि ÷शिवोहं, शंकरोहं'।ऐसे ही ज्ञान के भंडार माने जाने वाले गुरुओं के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करने का पर्व है, गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा।यह वो बिंदु है, जिसके वाद से सावन का महीना जो कि शिव का मास माना जाता है, प्रारंभ हो जाता है। इसका प्रतीक रुप में अर्थ लें तो, जब गुरु अपने शिष्य को पूर्णता प्रदान कर देता है, तो वह आगे शिवत्व की प्राप्ति की दिशा में अग्रसर होने लगता है,और यह भाव उसमें जाग जाना ही मोक्ष या ब्रह्मत्व की स्थिति कही गयी है।
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर हर शिष्य की इच्छा होती है कि वह गुरु के सानिध्य में पहुँच सके ताकि वे उसे शिवत्व का मार्ग बता सकें।यदि किसी कारणवश आप गुरु को प्राप्त न कर पाये हों तो आप दो तरीकों से साधना पथ पर आगे की ओर गतिमान हो सकते हैं। पहला यह कि आप अपने आराध्य या इष्ट, देवता या देवी को गुरु मानकर आगे बढें और दूसरा आप भगवान शिव को ही गुरु मानते हुये निम्नलिखित मंत्र का अनुष्ठान करें:-
॥ ॐ गुं गुरुभ्यो नमः ॥
1.
इस मंत्र का सवा लाख जाप करें।साधनाकाल में सफेद रंग के वस्त्रों को धारण करें।
2.
अपने सामने अपने गुरु के लिये भी सफेद रंग का एक आसन बिछाकररखें।
3. यदि हो सके तो इस मंत्र का जाप प्रातः चार से छह बजे के बीच में करनाचाहिये।साधना पूर्ण होने तक आपके भाग्यानुकूल श्रेष्ठ गुरु हैं तो साधनात्मक रुप से आपको संकेत मिल जायेंगे।
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर प्रत्येक गृहस्थ को उपरोक्त मंत्र का कुछ समय तक जाप करना ही चाहिये, हमारे पूर्वज ऋषियों तथा गुरुओं के प्रति सम्मान प्रकट करने का यह एक श्रेष्ठ तरीका है।
साधना में गुरु की आवश्यकता
Y मंत्र साधना के लिए गुरु धारण करना श्रेष्ट होता है.
Y साधना से उठने वाली उर्जा को गुरु नियंत्रित और संतुलित करता है, जिससे साधना में जल्दी सफलता मिल जाती है.
Y गुरु मंत्र का नित्य जाप करते रहना चाहिए. अगर बैठकर ना कर पायें तो चलते फिरते भी आप मन्त्र जाप कर सकते हैं.
Y रुद्राक्ष या रुद्राक्ष माला धारण करने से आध्यात्मिक अनुकूलता मिलती है .
Y रुद्राक्ष की माला आसानी से मिल जाती है आप उसी से जाप कर सकते हैं.
Y गुरु मन्त्र का जाप करने के बाद उस माला को सदैव धारण कर सकते हैं. इस प्रकार आप मंत्र जाप की उर्जा से जुड़े रहेंगे और यह रुद्राक्ष माला एक रक्षा कवच की तरह काम करेगा.
गुरु के बिना साधना
Y स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
Y जिन मन्त्रों में 108 से ज्यादा अक्षर हों उनकी साधना बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
Y शाबर मन्त्र तथा स्वप्न में मिले मन्त्र बिना गुरु के जाप कर सकते हैं .
Y गुरु के आभाव में स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ करने से पहले अपने इष्ट या भगवान शिव के मंत्र का एक पुरश्चरण यानि १,२५,००० जाप कर लेना चाहिए.इसके अलावा हनुमान चालीसा का नित्य पाठ भी लाभदायक होता है.
Y
मंत्र साधना करते समय सावधानियां
Y मन्त्र तथा साधना को गुप्त रखें, ढिंढोरा ना पीटें, बेवजह अपनी साधना की चर्चा करते ना फिरें .
Y गुरु तथा इष्ट के प्रति अगाध श्रद्धा रखें .
Y आचार विचार व्यवहार शुद्ध रखें.
Y बकवास और प्रलाप न करें.
Y किसी पर गुस्सा न करें.
Y यथासंभव मौन रहें.अगर सम्भव न हो तो जितना जरुरी हो केवल उतनी बात करें.
Y ब्रह्मचर्य का पालन करें.विवाहित हों तो साधना काल में बहुत जरुरी होने पर अपनी पत्नी से सम्बन्ध रख सकते हैं.
Y किसी स्त्री का चाहे वह नौकरानी क्यों न हो, अपमान न करें.
Y जप और साधना का ढोल पीटते न रहें, इसे यथा संभव गोपनीय रखें.
Y बेवजह किसी को तकलीफ पहुँचाने के लिए और अनैतिक कार्यों के लिए मन्त्रों का प्रयोग न करें.
Y ऐसा करने पर परदैविक प्रकोप होता है जो सात पीढ़ियों तक अपना गलत प्रभाव दिखाता है.
Y इसमें मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों का जन्म , लगातार गर्भपात, सन्तान ना होना , अल्पायु में मृत्यु या घोर दरिद्रता जैसी जटिलताएं भावी पीढ़ियों को झेलनी पड सकती है |
Y भूत, प्रेत, जिन्न,पिशाच जैसी साधनाए भूलकर भी ना करें , इन साधनाओं से तात्कालिक आर्थिक लाभ जैसी प्राप्तियां तो हो सकती हैं लेकिन साधक की साधनाएं या शरीर कमजोर होते ही उसे असीमित शारीरिक मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है | ऐसी साधनाएं करने वाला साधक अंततः उसी योनी में चला जाता है |
गुरु और देवता का कभी अपमान न करें.
मंत्र जाप में दिशा, आसन, वस्त्र का महत्व
Y साधना के लिए नदी तट, शिवमंदिर, देविमंदिर, एकांत कक्ष श्रेष्ट माना गया है .
Y आसन में काले/लाल कम्बल का आसन सभी साधनाओं के लिए श्रेष्ट माना गया है .
Y अलग अलग मन्त्र जाप करते समय दिशा, आसन और वस्त्र अलग अलग होते हैं .
Y इनका अनुपालन करना लाभप्रद होता है .
Y जाप के दौरान भाव सबसे प्रमुख होता है , जितनी भावना के साथ जाप करेंगे उतना लाभ ज्यादा होगा.
Y यदि वस्त्र आसन दिशा नियमानुसार ना हो तो भी केवल भावना सही होने पर साधनाएं फल प्रदान करती ही हैं .
Y नियमानुसार साधना न कर पायें तो जैसा आप कर सकते हैं वैसे ही मंत्र जाप करें , लेकिन साधनाएं करते रहें जो आपको साधनात्मक अनुकूलता के साथ साथ दैवीय कृपा प्रदान करेगा |
28 जून 2018
पूज्यपाद गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंदजी
पूज्यपाद गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद साधना
|| ॐ ऐ श्रीं क्लीं प्राणात्मन निं सर्व सिद्धि प्रदाय निखिलेश्वरानन्दाय नमः ||
- वस्त्र - सफ़ेद वस्त्र धारण करें.
- आसन - सफ़ेद होगा.
- समय - प्रातः ४ से ६ बजे का समय सबसे अच्छा है, न हो पाए तो कभी भी कर सकते हैं.
- दिशा - उत्तर या पूर्व की ओर देखते हुए बैठें
- साधनाकाल में ब्रह्मचारी रहें .
- किसी से विवाद, क्रोध, बकवास ना करें .
- यथासंभव मौन धारण करें
- अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनने का प्रयास करें .
- पुरश्चरण - सवा लाख मंत्र जाप का होगा
- नवरात्री में नित्य रात्रि 10 बजे से 1 बजे तक बिना संख्या के जाप करने से भी अनुकूलता मिलेगी .हवन विजयादशमी को करना श्रेष्ट होगा |
- हवन - १२,५०० मंत्रों से
- हवन सामग्री - दशांग या घी
विधि :-
सामने गुरु चित्र रखें गुरु यन्त्र या श्री यंत्र हो तो वह भी रखें .
हाथ में पानी लेकर बोले की " मै [अपना नाम ] गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंदजी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्ति के लिए यह प्रयोग कर रहा हूँ , वे प्रसन्न हों और मुझपर कृपा करें साधना के मार्ग पर आगे बढायें ". अब पानी नीचे छोड़ दें.
लाभ :-
- पूज्यपाद गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंदजी की कृपा प्राप्त होगी .
- जो आपको साधना पथ पर तेजी से आगे बढ़ाएगी.
- यदि गुरु की प्राप्ति नहीं हुई है तो इस सम्बन्ध में कोई राह निकलेगी
- साधनात्मक बल बढेगा .
- उग्र साधनों में रक्षा कवच की तरह कार्य करेगा .
27 जून 2018
दक्षिणामूर्ति शिव
दक्षिणामूर्ति शिव भगवान शिव का सबसे तेजस्वी स्वरूप है । यह उनका आदि गुरु स्वरूप है । इस रूप की साधना सात्विक भाव वाले सात्विक मनोकामना वाले तथा ज्ञानाकांक्षी साधकों को करनी चाहिये ।
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1 जून 2018
तारा बीजयुक्त गायत्री मंत्रम
- तारा साधना नवरात्री तथा ज्येष्ठ मास में की जानी चाहिए
- तारा काली कुल की महविद्या है ।
- तारा महाविद्या की साधना जीवन का सौभाग्य है ।
- यह महाविद्या साधक की उंगली पकडकर उसके लक्ष्य तक पहुन्चा देती है।
- गुरु कृपा से यह साधना मिलती है तथा जीवन को निखार देती है ।
- साधना से पहले गुरु से तारा दीक्षा लेना लाभदायक होता है ।
तारा बीजयुक्त गायत्री मंत्रम
॥ ह्रीं स्त्रीं हूँ फट एकजटे विद्महे ह्रीं स्त्रीं हूँ परे नीले विकट दंष्ट्रे ह्रीं धीमहि ॐ ह्रीं स्त्रीं हूँ फट एं सः स्त्रीं तन्नस्तारे प्रचोदयात ॥
- मंत्र का जाप रात्रि काल में ९ से ३ बजे के बीच करना चाहिये.
- यह रात्रिकालीन साधना है.
- गुरुवार से प्रारंभ करें.
- गुलाबी वस्त्र/आसन/कमरा रहेगा.
- उत्तर या पूर्व की ओर देखते हुए जाप करें.
- यथासंभव एकांत वास करें.
- सवा लाख जाप का पुरश्चरण है.
- ब्रह्मचर्य/सात्विक आचार व्यव्हार रखें.
- किसी स्त्री का अपमान ना करें.
- क्रोध और बकवास ना करें.
- साधना को गोपनीय रखें.
प्रतिदिन तारा त्रैलोक्य विजय कवच का एक पाठ अवश्य करें. यह आपको निम्नलिखित ग्रंथों से प्राप्त हो जायेगा.
- तारा स्तव मंजरी - चंडी प्रकाशन
- साधना सिद्धि विज्ञान मासिक पत्रिका - भोपाल
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