2 अगस्त 2021

अलबेले : भगवान शिव

 अलबेले : भगवान शिव



भगवान शिव का स्वरुप अन्य देवी देवताओं से बिल्कुल अलग है।

जहां अन्य देवी-देवताओं को वस्त्रालंकारों से सुसज्जित

और सिंहासन पर विराजमान माना जाता है,


वहां ठीक इसके विपरीत शिव पूर्ण दिगंबर हैं,


अलंकारों के रुप में सर्प धारण करते हैं


और श्मशान भूमि पर सहज भाव से अवस्थित हैं।


उनकी मुद्रा में चिंतन है,


तो निर्विकार भाव भी है!


आनंद भी है और लास्य भी।


भगवान शिव को सभी विद्याओं का जनक भी माना जाता है।


वे तंत्र से लेकर मंत्र तक और योग से लेकर समाधि तक प्रत्येक क्षेत्र के आदि हैं और अंत भी।


यही नही वे संगीत के आदिसृजनकर्ता भी हैं, और नटराज के रुप में कलाकारों के आराध्य भी हैं।


वास्तव में भगवान शिव देवताओं में सबसे अद्भुत देवता हैं ।


वे देवों के भी देव होने के कारण ÷महादेव' हैं तो, काल अर्थात समय से परे होने के कारण ÷महाकाल' भी हैं ।


वे देवताओं के गुरू हैं तो, दानवों के भी गुरू हैं ।


देवताओं में प्रथमाराध्य, विघ्नों के कारक व निवारणकर्ता, भगवान गणपति के पिता हैं

तो,जगद्जननी मां जगदम्बा के पति भी हैं ।


वे कामदेव को भस्म करने वाले हैं तो,कामेश्वर' भी हैं ।


तंत्र साधनाओं के जनक हैं तो संगीत के आदिगुरू भी हैं ।


उनका स्वरुप इतना विस्तृत है कि उसके वर्णन का सामर्थ्य शब्दों में भी नही है।सिर्फ इतना कहकर ऋषि भी मौन हो जाते हैं किः-


असित गिरी समम् स्याद कज्जलं सिन्धु पात्रे , सुरतरुवर शाखा लेखनी पत्र मुर्वी

लिखती यदि शारदा सर्वकालं ,तदपि तव गुणानाम ईश पारं न याति


अर्थात यदि समस्त पर्वतों को, समस्त समुद्रों के जल में पीसकर उसकी स्याही बनाइ जाये, और संपूर्ण वनों के वृक्षों को काटकर उसको कलम या पेन बनाया जाये और स्वयं साक्षात, विद्या की अधिष्ठात्री, देवी सरस्वती उनके गुणों को लिखने के लिये अनंतकाल तक बैठी रहें तो भी उनके गुणों का वर्णन कर पाना संभव नही होगा। वह समस्त लेखनी घिस जायेगी! पूरी स्याही सूख जायेगी मगर उनका गुण वर्णन समाप्त नही होगा। ऐसे भगवान शिव का पूजन अर्चन करना मानव जीवन का सौभाग्य है ।


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