पितृ स्तोत्र (गरुड पुराण)
अमूर्त्तानां च मूर्त्तानां पितृणां दीप्ततेजसाम
नमस्यामि सदा तेषां ध्यानिनां दिव्यचक्षुषाम !
इंद्रादीनां च नेतारो दक्षमारी चयोस्तथा !!
सप्तर्षीणां तथान्येषां तान नमस्यामि कामदान !
मन्वादीनां मुनींद्राणां सूर्य्यांचंद्रमसो तथा !!
तान नमस्यामि अहं सर्व्वान पितरश्च अर्णवेषु ये !
नक्षत्राणां ग्रहाणां च वायु अग्नि नभ तथा !!
द्यावा पृथ्वीव्योश्च तथा नमस्यामि कृतांजलि: !
देवर्षिणां ग्रहाणां च सर्वलोकनमस्कृतान !!
अभयस्य सदा दातृन नमस्येहं कृतांजलि:
नमो गणेभ्य: सप्तभ्यस्तथा लोकेषु सप्तसु ! !
स्वयंभुवे नमस्यामि ब्रम्हणे योग चक्षुषे !
सोमाधारान पितृगणान योगमूर्तिधरांस्तथा !!
नमस्यामि तथा सोमं पितरं जगतामहम !
अग्निरुपां तथैव अन्यान नमस्यामि पितृं अहं !!
अग्निसोममयं विश्वं यत एदतशेषत:
ये तु तेजसि ये चैते सोमसूर्य्याग्निमूर्तय:!!
जगत्स्वरुपिणश्चैव तथा ब्रह्मस्वरुपिण:
तेभ्यो अखिलेभ्यो योगिभ्य: पितृभ्यो यतमानसा: !
नमो नमो नमस्ते मे प्रसीदंतु स्वधाभुज: !!
आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं ।
इसे सुनकर उच्चारण करने से धीरे धीरे धीरे गुरुकृपा से आपका उच्चारण स्पष्ट होता जाएगा :-
मंत्र उच्चारण spotify link
मंत्र उच्चारण anchor link
मंत्र उच्चारण radiopublic link
मंत्र उच्चारण google podcast link
मंत्र उच्चारण breaker link
अगर आपको संस्कृत में उच्चारण करने में दिक्कत हो तो आप इसका भावार्थ हिंदी में भी उच्चरित कर सकते हैं जो कि निम्नानुसार है
जो अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्यदृष्टि सम्पन्न हैं, उन पितरों को मैं सदा नमस्कार करता हूँ।
इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीच, सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नायक हैं, सभी कामना की पूर्ति करने वाले उन पितरो को मैं प्रणाम करता हूँ।
मनु आदि राजर्षियों, मुनिश्वरों तथा सूर्य और चन्द्रमा के भी नायक समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी प्रणाम करता हूँ।
नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और द्युलोक तथा पृथ्वी के भी जो प्रमुख हैं, उन पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ।
देवर्षियों के जन्मदाता, समस्त लोकों द्वारा वन्दित तथा सदा अक्षय फल के दाता, पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ।
प्रजापति, कश्यप, सोम, वरूण तथा योगेश्वरों के रूप में स्थित पितरों को सदा प्रणाम करता हूँ।
सातों लोकों में स्थित सात पितृगणों को नमस्कार है। मैं योगदृष्टिसम्पन्न स्वयम्भू ब्रह्माजी को प्रणाम करता हूँ।
चन्द्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृगणों को मैं प्रणाम करता हूँ।
सम्पूर्ण जगत् के पिता सोम को नमस्कार करता हूँ।
अग्निस्वरूप अन्य पितरों को मैं प्रणाम करता हूँ, क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत् अग्नि और सोममय है।
जो पितर तेज में स्थित हैं, जो ये चन्द्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं तथा जो जगत्स्वरूप एवं ब्रह्मस्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरो को मैं एकाग्रचित्त होकर प्रणाम करता हूँ।
समस्त पितरो को मैं बारम्बार नमस्कार करता हुआ उनकी कृपा का आकांक्षी हूं ।
वे स्वधाभोजी पितर मुझपर प्रसन्न हों। वह मुझ पर कृपालु हो और मेरे समस्त दोषों का प्रशमन करते हुए मुझे सर्व विध अनुकूलता प्रदान करें ....
विधि :-
एक थाली में भोजन तैयार करके रख ले तथा स्तोत्र का यथाशक्ति (1,3,7,9,11) पाठ करके किसी गाय को या किसी गरीब व्यक्ति को खिला दे ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपके सुझावों के लिये धन्यवाद..
आपके द्वारा दी गई टिप्पणियों से मुझे इसे और बेहतर बनाने मे सहायता मिलेगी....
यदि आप जवाब चाहते हैं तो कृपया मेल कर दें . अपने अल्पज्ञान से संभव जवाब देने का प्रयास करूँगा.मेरा मेल है :-
dr.anilshekhar@gmail.com