- गुरु अपने आप में महामाया की सर्वश्रेष्ठ कृति है.
- गुरुत्व साधनाओं से, पराविद्याओं की कृपा और सानिध्य से आता है.
- वह एक विशेष उद्देश्य के साथ धरा पर आता है और अपना कार्य करके वापस महामाया के पास लौट जाता है.
- बिना योग्यता के शिष्य को कभी गुरु बनने की कोशिश नही करनी चाहिये.
- गुरु का अनुकरण यानी गुरु के पहनावे की नकल करने से या उनके अंदाज से बात कर लेने से कोई गुरु के समान नही बन सकता.
- गुरु का अनुसरण करना चाहिये उनके बताये हुए मार्ग पर चलना चाहिये, इसीसे साधनाओं में सफ़लता मिलती है.
- शिष्य बने रहने में लाभ ही लाभ हैं जबकि गुरु के मार्ग में परेशानियां ही परेशानियां हैं, जिन्हे संभालने के लिये प्रचंड साधक होना जरूरी होता है, अखंड गुरु कृपा होनी जरूरी होती है.
- बेवजह गुरु बनने का ढोंग करने से साधक साधनात्मक रूप से नीचे गिरता जाता है और एक दिन अभिशप्त जीवन जीने को विवश हो जाता है .
- गुरु भी सदैव अपने गुरु के प्रति नतमस्तक ही रहता है इसलिए साधकों को अपने गुरुत्व के प्रदर्शन में अपने गुरु के सम्मान को ध्यान रखना चाहिए .
एक प्रयास सनातन धर्म[Sanatan Dharma] के महासमुद्र मे गोता लगाने का.....कुछ रहस्यमयी शक्तियों [shakti] से साक्षात्कार करने का.....गुरुदेव Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji [ Nikhileswaranand Ji] की कृपा से प्राप्त Mantra Tantra Yantra विद्याओं को समझने का...... Kali, Sri Yantra, Laxmi,Shiv,Kundalini, Kamkala Kali, Tripur Sundari, Maha Tara ,Tantra Sar Samuchhay , Mantra Maharnav, Mahakal Samhita, Devi,Devata,Yakshini,Apsara,Tantra, Shabar Mantra, जैसी गूढ़ विद्याओ को सीखने का....
Disclaimer
ब्लॉग पर दिखाये गए विज्ञापन गूगल तथा थर्ड पार्टी द्वारा दिखाये जाते हैं । उनकी प्रमाणकिता, प्रासंगिकता तथा उपयोगिता पर स्वविवेक से निर्णय लें ।
24 दिसंबर 2015
गुरुदेव : स्वामी सुदर्शन नाथ जी
गुरु के अभाव में : साधना
कई बार ऐसा होता है कि हम किसी
कारण वश गुरु बना नही पाते या गुरु प्राप्त नही हो पाते । कई बार हम
गुरुघंटालों से भरे इस युग मे वास्तविक गुरु को पहचानने मे असमर्थ हो जाते
हैं ।
ऐसे मे हमें क्या
करना चाहिये ?
बिना गुरु के तो साधनायें नही करनी चाहिये ?
ऐसे हज़ारों
प्रश्न हमारे सामने नाचने लगते हैं........
इसके लिये एक सहज उपाय है कि :-
आप
अपने जिस देवि या देवता को इष्ट मानते हैं उसे ही गुरु मानकर उसका मन्त्र
जाप प्रारंभ कर दें । उदाहरण के लिये यदि गणपति आपके ईष्ट हैं तो आप उन्हे
गुरु मानकर " ऊं गं गणपतये नमः " मन्त्र का जाप करना प्रारम्भ कर लें ।
लेकिन निम्नलिखित साधनायें अपवाद हैं जिनको साक्षात गुरु की अनुमति तथा निर्देशानुसार ही करना चाहिये:-
- छिन्नमस्ता साधना ।
- शरभेश्वर साधना ।
- अघोर साधनाएं ।
- श्मशान साधना ।
- वाममार्गी साधनाएँ.
- भूत/प्रेत/वेताल/जिन्न/अप्सरा/यक्षिणी/पिशाचिनी साधनाएँ.
ये
साधनायें उग्र होती हैं और साधक को कई बार परेशानियों का सामना करना पड्ता
है । इन साधनाओं को किया हुआ गुरु इन परिस्थितियों में उस शक्ति को
संतुलित कर लेता है अन्यथा कई बार साधक को पागलपन या मानसिक विचलन हो जाता
है. और इस प्रकार का विचलन ठीक नहीं हो पाता. इसलिए बिना गुरु के ये
साधनाएँ नहीं की जातीं .
इसी प्रकार मानसिक रूप से कमजोर पुरुषों /स्त्रियों/बच्चों को भी उग्र साधनाएँ गुरु के पास रहकर ही करनी चाहिए.
23 दिसंबर 2015
उच्छिष्ट गणपति
उच्छिष्ट गणपति मन्त्रम : अद्भुत फ़लदायक तथा गोपनीय मन्त्र
॥ हस्तिपिशाचिलिखे स्वाहा ॥
सामान्य निर्देश :-
विधि :-
॥ हस्तिपिशाचिलिखे स्वाहा ॥
सामान्य निर्देश :-
- साधनाएँ इष्ट तथा गुरु की कृपा से प्राप्त और सिद्ध होती हैं |
- इसके लिए कई वर्षों तक एक ही साधना को करते रहना होता है |
- साधना की सफलता साधक की एकाग्रता और उसके श्रद्धा और विश्वास पर निर्भर करता है |
विधि :-
- जाप ..माला से किया जाये तो श्रेष्ट है ना हो तो रुद्राक्ष की माला सभी कार्यों के लिए स्वीकार्य है |
- जाप के पहले दिन हाथ में पानी लेकर संकल्प करें " मै (अपना नाम बोले), आज अपनी (मनोकामना बोले) की पूर्ती के लिए यह मन्त्र जाप कर रहा/ रही हूँ | मेरी त्रुटियों को क्षमा करके मेरी मनोकामना पूर्ण करें " | इतना बोलकर पानी जमीन पर छोड़ दें |
- पान का बीड़ा चबाएं फिर मंत्र जाप करें |
- गुरु से अनुमति ले लें|
- दिशा दक्षिण की और देखते हुए बैठें |
- आसन लाल/पीले रंग का रखें|
- जाप रात्रि 9 से सुबह 4 के बीच करें|
- यदि अर्धरात्रि जाप करते हुए निकले तो श्रेष्ट है |
- जाप के दौरान किसी को गाली गलौच / गुस्सा/ अपमानित ना करें|
- किसी महिला ( चाहे वह नौकरानी ही क्यों न हो ) का अपमान ना करें |
- सात्विक आहार/ आचार/ विचार रखें |
- ब्रह्मचर्य का पालन करें |
22 दिसंबर 2015
त्रिपुर भैरवी : तंत्र बाधा निवारण
॥ हसै हसकरी हसै ॥
लाभ - शत्रुबाधा, तन्त्रबाधा निवारण.
विधि ---
- दिये हुए चित्र को फ़्रम करवा लें.
- यन्त्र के बीच में देखते हुए जाप करें.
- रात्रि काल में जाप होगा.
- रत्रि ९ बजे से सुबह ४ बजे के बीच का समय रात्रि काल है.
- काला रंग का आसन तथा वस्त्र होगा.
- दिशा दक्षिण की तरफ़ मुंह करके बैठना है.
- हो सके तो साधना स्थल पर ही रात को सोयें.
- किसी स्त्री का अपमान न करें.
- किसी पर साधना काल में क्रोध न करें.
- किसी को ना तो कोसें और ना ही व्यर्थ का प्रलाप करें.
- यथा संभव मौन रखें.
- उपवास न कर सकें तो साधना में बैठने से पहले हल्का भोजन करें.
21 दिसंबर 2015
वेद रुद्राक्ष माला उपहार
३०० रुपये मनीआर्डर द्वारा निम्नलिखित पते पर भेजें.
पत्रिका कार्यालय का पता:-
साधना सिद्धि विग्यान
शोप न. ५ प्लाट न. २१०
एम.पी.नगर
भोपाल [म.प्र.] ४६२०११
फोन - ०७५५ - ४२८३६८१,४२६९३६८,४२२१११६.
फोन - ०७५५ - ४२८३६८१,४२६९३६८,४२२१११६.
आपको पत्रिका के
साधनात्मक जानकारियों से भरपूर
शुद्द पूजन तथा प्रयोगों से संगुफ़ित
१५ अंकों का सेट
उपहार के साथ भेज दिया जायेगा
शिशुओं के लिए : नजर रक्षा प्रयोग
नन्हे शिशुओं को कई बार नजर लग जाती है
इससे
रक्षा क लिए मेरे गुरूदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी ने एक अचूक और सरल उपाय
बताया था , यह उपाय जब भी मैंने आजमाया है यह १०० प्रतिशत सफल रहा है.
माता शिशु की सबसे बड़ी हितचिन्तक और रक्षक होती है.
यदि माँ अपने सर के १-३ बाल को अपने शिशु की बांई कलाई पर बाँध दे तो उसपर किसी प्रकार की नजर नहीं लगती.
यह उपाय बहुत आसान है सरल है निशुल्क है और सौ प्रतिशत प्रभावी है . अजमा कर देखें .....
18 दिसंबर 2015
कलिकाये नमः
शवासन संस्थिते महाघोर रुपे ,
महाकाल प्रियायै चतुःषष्टि कला पूरिते |
घोराट्टहास कारिणे प्रचण्ड रूपिणीम,
अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
मेरी
अद्भुत स्वरूपिणी महामाया जो शव के आसन पर भयंकर रूप धारण कर विराजमान है,
जो काल के अधिपति महाकाल की प्रिया हैं, जो चौंषठ कलाओं से युक्त हैं, जो
भयंकर अट्टहास से संपूर्ण जगत को कंपायमान करने में समर्थ हैं, ऐसी प्रचंड
स्वरूपा मातृरूपा महाकाली की मैं सदैव अर्चना करता हूं |
उन्मुक्त केशी दिगम्बर रूपे,
रक्त प्रियायै श्मशानालय संस्थिते ।
सद्य नर मुंड माला धारिणीम,
अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
जिनकी केशराशि उन्मुक्त झरने के समान है ,जो पूर्ण दिगम्बरा हैं, अर्थात हर नियम, हर अनुशासन,हर विधि विधान से परे हैं , जो श्मशान की अधिष्टात्री देवी हैं ,जो रक्तपान प्रिय हैं , जो ताजे कटे नरमुंडों की माला धारण किये हुए है ऐसी प्रचंड स्वरूपा महाकाल रमणी महाकाली की मैं सदैव आराधना करता हूं |
क्षीण कटि युक्ते पीनोन्नत स्तने,
केलि प्रियायै हृदयालय संस्थिते।
कटि नर कर मेखला धारिणीम,
अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
अद्भुत
सौन्दर्यशालिनी महामाया जिनकी कटि अत्यंत ही क्षीण है और जो अत्यंत उन्नत
स्तन मंडलों से सुशोभित हैं, जिनको केलि क्रीडा अत्यंत प्रिय है और वे
सदैव मेरे ह्रदय रूपी भवन में निवास करती हैं . ऐसी महाकाल प्रिया महाकाली
जिनके कमर में नर कर से बनी मेखला सुशोभित है उनके श्री चरणों का मै सदैव
अर्चन करता हूं ||
खङग चालन निपुणे रण चंडिके,
युद्ध प्रियायै युद्धुभूमि संस्थिते ।
महोग्र रूपे महा रक्त पिपासिनीम,
अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
देव
सेना की महानायिका, जो खड्ग चालन में अति निपुण हैं, युद्ध जिनको अत्यंत
प्रिय है, असुरों और आसुरी शक्तियों का संहार जिनका प्रिय खेल है,जो युद्ध
भूमि की अधिष्टात्री हैं , जो अपने महान उग्र रूप को धारण कर शत्रुओं का
रक्तपान करने को आतुर रहती हैं , ऐसी मेरी मातृस्वरूपा महामाया महाकाल रमणी
महाकाली को मै सदैव प्रणाम करता हूं |
मातृ रूपिणी स्मित हास्य युक्ते,
प्रेम प्रियायै प्रेमभाव संस्थिते ।
वर वरदे अभय मुद्रा धारिणीम,
अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
जो
सारे संसार का पालन करने वाली मातृस्वरूपा हैं, जिनके मुख पर सदैव अभय भाव
युक्त आश्वस्त करने वाली मंद मंद मुस्कुराहट विराजमान रहती है , जो
प्रेममय हैं जो प्रेमभाव में ही स्थित हैं , हमेशा अपने साधकों को वर
प्रदान करने को आतुर रहने वाली ,अभय प्रदान करने वाली माँ महाकाली को मै
उनके सहस्र रूपों में सदैव प्रणाम करता हूं |
शीघ्र विवाह मन्त्र
मंत्र :-
|| ॐ अ-प्र-ति चक्रे फट विचक्राय स्वाहा ||
जिस लड़की का विवाह नहीं हो रहा हो वह काला धागा लेकर उसपर हाथ फेरते हुए २१ माला मंत्र जप कर उसके हाथ में बांध दे या गले में पहना दे तो शीघ्र विवाह की संभावना बनती है |
|| ॐ अ-प्र-ति चक्रे फट विचक्राय स्वाहा ||
जिस लड़की का विवाह नहीं हो रहा हो वह काला धागा लेकर उसपर हाथ फेरते हुए २१ माला मंत्र जप कर उसके हाथ में बांध दे या गले में पहना दे तो शीघ्र विवाह की संभावना बनती है |
14 दिसंबर 2015
पद्मावती स्तोत्रं
पूरे भारत में सबसे समृद्ध संप्रदाय है
जैन संप्रदाय
और उनकी अधिष्टात्री देवी है
पद्मावती
दिव्योवताम वे पद्मावती त्वं, लक्ष्मी त्वमेव धन धन्य सुतान्वदै च |
पूर्णत्व देह परिपूर्ण मदैव तुल्यं, पद्मावती त्वं प्रणमं नमामि ||
ज्ञानेव सिन्धुं ब्रह्मत्व नेत्रं , चैतन्य देवीं भगवान भवत्यम |
देव्यं प्रपन्नाति हरे प्रसीद, प्रसीद,प्रसीद, प्रसीद,प्रसीद ||
धनं धान्य रूपं, साम्राज्य रूपं,ज्ञान स्वरुपम् ब्रह्म स्वरुपम् |
चैतन्य रूपं परिपूर्ण रूपं , पद्मावती त्वं प्रणमं नमामि ||
न मोहं न क्रोधं न ज्ञानं न चिन्त्यं परिपुर्ण रूपं भवताम वदैव |
दिव्योवताम सूर्य तेजस्वी रूपं , पद्मावती त्वं प्रणमं नमामि ||
सन्यस्त रूप मपरम पूर्ण गृहस्थं, देव्यो सदाहि भवताम श्रियेयम |
पद्मावती त्वं, हृदये पद्माम, कमालत्व रूपं पद्मम प्रियेताम ||
|| इति परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद कृत पद्मावती स्तोत्रं सम्पूर्णं ||
विधि :-
- सबसे पहले तीन बार " ॐ निखिलेश्वराय नमः " मन्त्र का जोर से बोलकर उच्चारण करें |
- इस स्तोत्र को अमावस्या से प्रारंभ करके अगले मॉस की पूर्णिमा पर समाप्त करें |
- नित्य 1,3,5,11 जैसे आपकी क्षमता हो वैसा पाठ करें |
- सात्विक आहार /विचार /व्यवहार रखें |
- क्रोध ना करें |
- किसी स्त्री का अपमान ना करें |
- जिस दिनपाठ पूर्ण हो जाए उस दिन किसी गरीब विवाहित महिला को लाल साड़ी दान करें|
- लक्ष्मी मंदिर या दुर्गा मंदिर में अपनी क्षमतानुसार गुलाब या कमल के फूल चढ़ाएं और देवी पद्मावती से कृपा करने की प्रार्थना करके सीधे वापस घर आ जाएँ |
- घर आने के बाद एक बार और पाठ करें |
- फिर से 3 बार " ॐ निखिलेश्वराय नमः " मन्त्र का जोर से बोलकर उच्चारण करें |
- घर में या परिचय में कोई वृद्ध महिला हो तो उसके चरण स्पर्श करें और कुछ भेंट दें , भेंट आप अपनी क्षमतानुसार कुछ भी दे सकते हैं |
- इस प्रकार पूजन संपन्न हुआ | आगे आप चाहें तो नित्य एक बार पाठ करते रहें |
11 दिसंबर 2015
मेरे गुरुदेव : स्वामी सुदर्शन नाथ जी
अघोरेश्वरं महा सिद्ध रूपम,
निखिल प्राण रूपं प्रणम्यम सदैव ॥१॥
अघोर शक्तियों के स्वामी,
साक्षात अघोरेश्वर,
शिव स्वरूप ,
सिद्धों के भी सिद्ध,
भैरव से शरभेश्वर तक
और
उच्चिष्ठ चाण्डालिनी से गुह्याकाली तक
हर गुह्यतम साधना के ज्ञाता
मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ
जो प्रातः स्मरणीय परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत, प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.
प्रचण्डातिचण्डम शिवानंद कंदम,
निखिल प्राण रूपं प्रणम्यम सदैव ॥२॥
प्रचंडता की साक्षात मूर्ति,
शिवत्व के जाज्वल्यमान स्वरूप,
जिन्होंने तंत्र ग्रंथों और तांत्रिक अनुष्ठानों की गोपनीय विधियों को साधकों को सहज सुलभ कराया
ऐसे मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ,
जो प्रातः स्मरणीय परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.
सुदर्शनोत्वं परिपूर्ण रूपम,
निखिल प्राण रूपं प्रणम्यम सदैव ॥३॥
सौन्दर्य की पूर्णता को साकार करने वाले,
साक्षात कामेश्वर,
पूर्णत्व युक्त,
शिव के प्रतीक,
मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ
जो प्रातः स्मरणीय परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.
ब्रह्माण्ड रूपम, गूढातिगूढम,
निखिल प्राण रूपं प्रणम्यम सदैव ॥४॥
जो स्वयं अपने अंदर संपूर्ण ब्रह्मांड को समेटे हुए हैं,
जो अहं ब्रह्मास्मि के नाद से गुन्जरित हैं,
जो गूढ से भी गूढ
अर्थात गोपनीय से भी गोपनीय
विद्याओं के ज्ञाता हैं,
महाकाल संहिता और गुह्य काली संहिता जैसे दुर्लभ ग्रंथों का जिन्होंने पुनरुद्धार किया है ,
ऐसे मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ
जो प्रातः स्मरणीय परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.
योगेश्वरोत्वम, कृष्ण स्वरूपम,
निखिल प्राण रूपं प्रणम्यम सदैव ॥५॥
जो योग के सभी अंगों के सिद्धहस्त आचार्य हैं,
जिनका शरीर योग के जटिलतम आसनों को भी
सहजता से करने में सिद्ध है,
जो योग मुद्राओं के प्रतिष्ठित आचार्य हैं,
जो साक्षात कृष्ण के समान,
प्रेममय,
योगमय,
आह्लादमय,
सहज व्यक्तित्व के स्वामी हैं
ऐसे मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ
जो प्रातः स्मरणीय परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.
महाकाल तत्वम घोरातिघोरम,
निखिल प्राण रूपं प्रणम्यम सदैव ॥६॥
काल भी जिससे घबराता है,
ऐसे महाकाल और महाकाली युगल के उपासक,
साक्षात महाकाल स्वरूप,
अघोरत्व के जाज्वल्यमान स्वरूप,
महाकाली के महासिद्ध साधक
मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ
जो प्रातः स्मरणीय परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.
10 दिसंबर 2015
देवाधिदेव महादेव : पारद शिवलिंग रोगमुक्ति साधना
पारद शिवलिंग रोगमुक्ति साधना
|| ॐ ह्रीं तेजसे श्रीं कामसे क्रीं पूर्णत्व सिद्धिं पारदाय क्रीं श्रीं ह्रीं ॐ ||
- कम से कम १०८ बार पारद शिवलिंग पर आचमनी से जल चढ़ाएं.
- हर बार चढाते समय मंत्र का उच्चारण करें .
- पूरा होने पर उस जल को अपने मुह आँख तथा शरीर पर छिडकें.
- शेष जल को पी जाएँ.
- ऐसा कम से कम १२० दिन तक करें.
- जटिलतम रोगों में भी लाभप्रद है.
- पारद शिवलिंग यदि श्रेष्ट तांत्रिक गुरु द्वारा निर्मित हो तो अत्यंत श्रेष्ट होता है. उसमे भी यदि स्त्री गुरु द्वारा प्रदत्त हो तो सर्वश्रेष्ट होता है.
- जो गुरु युगल रूप में अपनी शक्ति के साथ युक्त होते हैं उनके द्वारा प्रदत्त पारद शिवलिंग ज्यादा प्रभावशाली होता है.
- मेरे गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी तथा गुरुमाता डॉ. साधना सिंह जी से दीक्षा प्राप्त करने के सम्बन्ध में जानकारी के लिए निचे लिखे नंबर पर संपर्क करें
समय = सुबह दस बजे से शाम सात बजे तक [ रविवार अवकाश ]
साधना सिद्धि विज्ञान
जैस्मिन - 429
न्यू मिनाल रेजीडेंसी
जे.के.रोड
भोपाल [म.प्र.] 462011
phone -[0755]-4269368
===============================
साधनात्मक जानकारियों के लिए साधना सिद्धि विज्ञान पत्रिका
यह पत्रिका तंत्र साधनाओं के गूढतम रहस्यों को साधकों के लिये स्पष्ट कर उनका मार्गदर्शन करने में अग्रणी है.
साधना सिद्धि विज्ञान पत्रिका में महाविद्या साधना , भैरव साधना, काली साधना, अघोर साधना, अप्सरा साधना इत्यादि के विषय में जानकारी मिलेगी .
इसमें आपको विविध साधनाओं के मंत्र तथा पूजन विधि का प्रमाणिक विवरण मिलेगा .
देश भर में लगने वाले विभिन्न साधना शिविरों के विषय में जानकारी मिलेगी .
------------------------------------------------------------------------------------
वार्षिक सदस्यता शुल्क 250 रुपये मनीआर्डर द्वारा निम्नलिखित पते पर भेजें
------------------------------------------------------------------------------------
साधना सिद्धि विज्ञान
शोप न. 5 प्लाट न. 210
एम.पी.नगर
भोपाल [म.प्र.] 462011
phone -[0755]-4269368
अघोर महालक्ष्मी ताबीज
- भोजपत्र
- अष्टगंध
- कुमकुम.
- चांदी की लेखनी , चांदी के छोटे से तार से भी लिख सकते हैं.
- उचित आकार का एक ताबीज जिसमे यह यंत्र रख कर आप पहन सकें.
- दीपावली की रात या किसी भी अमावस्या की रात को कर सकते हैं.
विधि विधान :-
- धुप अगर बत्ती जला दें.
- संभव हो तो घी का दीपक जलाएं.
- स्नान कर के बिना किसी वस्त्र का स्पर्श किये पूजा स्थल पर बिना किसी आसन के जमीन पर बैठें.
- अघोर अवस्था में इस यन्त्र का निर्माण अष्टगंध से भोजपत्र पर करें.
- इस प्रकार 108 बार श्रीं [लक्ष्मी बीज मंत्र] लिखें.
- हर मन्त्र लेखन के साथ मन्त्र का जाप भी मन में करतेरहें.
- यंत्र लिख लेने के बाद 108 माला " ॐ श्रीं ॐ " मंत्र का जाप यंत्र के सामने करें.
- एक माला पूर्ण हो जाने पर एक श्रीं के ऊपर कुमकुम की एक बिंदी लगा दें.
- इस प्रकार १०८ माला जाप जाप पूरा होते तक हर "श्रीं" पर बिंदी लग जाएगी.
- जाप पूरा हो जाने के बाद इस यंत्र को ताबीज में डाल कर गले में धारण कर लें.
- कोशिश यह करें की इसे न उतारें. उतारते ही इसका प्रभाव ख़तम हो जायेगा.
- आर्थिक अनुकूलता प्रदान करता है.
विवाह अनुकूलता मन्त्र
मंत्र :-
|| ॐ अ-प्र-ति चक्रे फट विचक्राय स्वाहा ||
जिस लड़की का विवाह नहीं हो रहा हो वह काला धागा लेकर उसपर हाथ फेरते हुए २१ माला मंत्र जप कर
उसके हाथ में बांध दे या गले में पहना दे तो शीघ्र विवाह की संभावना बनती है |
|| ॐ अ-प्र-ति चक्रे फट विचक्राय स्वाहा ||
जिस लड़की का विवाह नहीं हो रहा हो वह काला धागा लेकर उसपर हाथ फेरते हुए २१ माला मंत्र जप कर
उसके हाथ में बांध दे या गले में पहना दे तो शीघ्र विवाह की संभावना बनती है |
सदस्यता लें
संदेश (Atom)