महाकाली की साधना जीवन का सौभाग्य है । यह साधना साधक को आध्यात्मिक रुप से परिपूर्णता प्रदान करती है साथ ही साथ उसे जीवन में सभी प्रकार के भौतिक सुखों की उपलब्धता भी कराती है । महाकाली का स्वरूप अत्यंत ही विकराल है ! भयानक है ! उनके गले में मुंडमाला है ! जिह्वा बाहर लपलपा रही है ! नेत्र क्रोध से लाल-लाल होकर भयानकता में वृद्धि कर रहे हैं ! ऐसी विकराल स्वरूपिणी होते हुए भी ! महाकाली के भीतर का मातृत्व , उनकी सहजता , उन की असीम कृपा का अनुभव, जब साधक कर लेता है, तो उसके जीवन में किसी प्रकार की कमी नहीं रह जाती ।
हर क्षण उसे यह एहसास होता है कि कोई उसके साथ है । कोई ऐसा ! जो उसे हर कदम पर मार्गदर्शन भी देगा ! फिसलते हुए कदमों का सहारा भी बनेगा ! और जब किसी गलत दिशा की ओर कदम उठाएंगे तो उन कदमों को रोकने के लिए संकेत भी देगा । ऐसी अद्भुत साधना है महाकाली साधना !! इस साधना को कर लेने के बाद साधक भीड़ से हट कर खड़ा हो जाता है । उसकी एक अलग पहचान बनने लगती है । उसके व्यक्तित्व में कुछ अलग नूर आ जाता है । लोग अपने आप उसकी तरफ आकर्षित होने लगते हैं । उसके पास खड़ा हो जाने पर से एक अजीब सा सुकून, एक अजीब अजीब सी शांति, महसूस होती है जैसे किसी वटवृक्ष की छाया में आकर खड़े हो गए हो ! ऐसे साधक के पास बैठने मात्र से ही समस्याओं को व्यक्ति भूल जाता है ! भगवती महाकाली अपने साधकों इतना कुछ देती है कि वह अपने दोनों हाथों से समेट नहीं सकता । जैसे एक शिशु अपनी मां को पुकारता है ! अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए ! ठीक वैसा ही महाकालि का साधक भगवती महाकाली को पुकारता है ! अपनी जरुरतों को पूरा करने के लिए , और ठीक जैसे एक शिशु की आवाज पर उसकी मां दौड़ी चली आती है, वैसी ही भगवती भी अपने साधकों की पुकार पर तत्क्षण पहुंच जाती है । उसे अपने आंचल में समेट लेती है और उसकी सारी जरूरतों को पूरा कर देती है । ऐसी अदभुत लीला विहारिणी भगवती महाकाली की साधना करना जीवन का सौभाग्य है । जो साधक इस साधना को अपने जीवन में शामिल कर लेते हैं , और इस साधना में निरंतर लीन रहते हैं , वे उनके सानिध्य को उनके स्पर्श को उनकी उपस्थिति को महसूस करने में सक्षम हो जाते हैं और भगवती अपनी कृपा का अनुभव अपने साधकों को अवश्य कराती है ।