19 दिसंबर 2016

साधना सिद्धि विज्ञानं मासिक पत्रिका

साधना सिद्धि विज्ञान  मासिक पत्रिका का प्रकाशन वर्ष 1999 से भोपाल से हो रहा है. 
यह पत्रिका साधनाओं के गूढतम रहस्यों को साधकों के लिये  स्पष्ट कर उनका मार्गदर्शन करने में अग्रणी है. 
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गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी तथा गुरुमाता साधनाजी के साधनात्मक अनुभव के प्रकाश मे प्रकाशित साधनात्मक ज्ञान आप को स्वयम अभिभूत कर देगा 

[ Sadhana Siddhi Vigayan monthly magazine,a knowledge bank of Tantra, Mantra, Yantra Sadhana

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साधना सिद्धि विज्ञान 
अब तक प्रकाशित साधनात्मक जानकारी से परिपूर्ण अंक :-




महाविद्या गुह्यकाली विशेषांक








महाविद्या तारा विशेषांक










महाविद्या छिन्नमस्ता विशेषांक
महाविद्या बगलामुखी विशेषांक




निखिल तंत्रम


निखिल तंत्रम


निखिल तंत्रम


निखिल  महामृत्युंजय तंत्रम






महाविद्या भुवनेश्वरी विशेषांक







महाविद्या महाकाली विशेषांक





महाविद्या तारा विशेषांक

















  • गुरु तन्त्रम.
  • शरभ तन्त्रम.
  • बगलामुखी तन्त्रम.
  • श्री विद्या रहस्यम.
  • तारा तन्त्रम.
  • महाकाल तन्त्रम.
  • मातंगी तन्त्रम.
  • अप्सरा तन्त्रम.
  • नाग तन्त्रम.
  • योगिनी तन्त्रम.
  • लक्ष्मी तन्त्रम.
  • कामकलाकाली तन्त्रम.
  • गुह्यकाली तन्त्रम.
  • भुवनेश्वरि तन्त्रम.
  • धूमावती तन्त्रम.
  • कमला तन्त्रम.
  • रुद्र तन्त्रम.
  • शिव रहस्यम.
  • छिन्नमस्ता तन्त्रम.
  • नाथ तन्त्रम.
  • विष्णु तन्त्रम.
  • काली तन्त्रम.
  • दक्षिण काली तन्त्रम.
  • भैरव तन्त्रम.
  • त्रिपुर सुन्दरी तन्त्रम.
  • भैरवी तन्त्रम.
  • कामाख्या तन्त्रम.
  • रस तन्त्रम
  • निखिल तन्त्रम.
  • चामुन्डा तन्त्रम.
  • अघोर तन्त्रम.
  • रुद्राक्ष रहस्यम.
  • रत्न रहस्यम.
  • तान्त्रिक सामग्री रहस्यम.
  • मुद्रा विवेचन.

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18 दिसंबर 2016

काली साधना मन्त्र



॥  ऊं अष्टकाल्यै क्रीं श्रीं ह्रीं क्रीं सिद्धिं मे देहि दापय नमः ॥


  1.  
कमजोर मनस्थिति वाले पुरुष/महिलाएं/बच्चे इस साधना को ना करें |
  1. दक्षिण दिशा की ओर मुख करके जाप करें.
  2. दिगम्बर अवस्था में जाप करें या काले रंग का आसन वस्त्र रखें.
  3. रुद्राक्ष या काली हकीक माला से जाप करें.
  4. पुरश्चरण १,२५,००० मन्त्रों का होगा.
  5. रात्रिकाल में जाप करें.
  6. दशमी के दिन काली मिर्च/ तिल/दशांग/घी/ चमेली के तेल  से दशांश  हवन  करें |
हवन होने के बाद किसी बालिका को यथाशक्ति दान दें |

17 दिसंबर 2016

सुरक्षा के लिए नारियल

आपने देखा होगा की लगभग सभी दुकानों में लाल कपडे में नारियल बांधकर लटकाया जाता है, कई घरों में भी ऐसा किया जाता है. यह स्थान देवता की पूजा और गृह रक्षा के लिए किया जाता है.
नवरात्रि पर अपने घर मे गृह शांति और रक्षा के लिए एक विधि प्रस्तुत है जिसके द्वारा आप अपने घर पर पूजन करके नारियल बाँध सकते हैं.

आवश्यक सामग्री :-

लाल कपडा सवा मीटर
नारियल
सामान्य पूजन सामग्री
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यदि आर्थिक रूप से सक्षम हों तो इसके साथ रुद्राक्ष/ गोरोचन/केसर भी डाल सकते हैं.
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  1. वस्त्र/आसन लाल रंग का हो तो पहन लें यदि न हो तो जो हो उसे पहन लें.
  2. सबसे पहले शुद्ध होकर आसन पर बैठ जाएँ. हाथ में जल लेकर कहें " मै [अपना नाम ] अपने घर की रक्षा और शांति के लिए यह पूजन कर रहा हूँ मुझपर कृपा करें और मेरा मनोरथ सिद्ध करें."
  3. इतना बोलकर हाथ में रखा जल जमीन पर छोड़ दें. इसे संकल्प कहते हैं.
  4. नारियल पर मौली धागा [अपने हाथ से नापकर तीन हाथ लम्बा तोड़ लें.] लपेट लें.
  5. लपेटते समय निम्नलिखित मंत्र का जाप करें." ॐ श्री विष्णवे नमः"
  6. अब अपने सामने लाल कपडे पर नारियल रख दें. पूजन करें.
  7. लोबान का धुप या अगरबत्ती जलाएं .
  8. नारियल के सामने निम्नलिखित मंत्र का 108 बार जाप करें ऐसा 11 दिन तक करें. 
"ॐ नमो आदेश गुरून को इश्वर वाचा अजरी बजरी बाडा बज्जरी मैं बज्जरी को बाँधा, दशो दुवार छवा और के ढालों तो पलट हनुमंत वीर उसी को मारे, पहली चौकी गणपति दूजी चौकी में भैरों, तीजी चौकी में हनुमंत,चौथी चौकी देत रक्षा करन को आवे श्री नरसिंह देव जी शब्द सांचा पिंड कांचा फुरो मंत्र इश्वरी वाचा"

अब इस नारियल को अन्य पूजन सामग्री के साथ लाल कपडे में लपेट ले. आपका रक्षा नारियल तय्यार है. इसे आप दशहरा, दीपावली, पूर्णिमा, अमावस्या या अपनी सुविधानुसार किसी भी दिन घर की छत में हुक हो तो उसपर बांधकर लटका दें. यदि न हो तो पूजा स्थान में रख लें. नित्य पूजन के समय इसे भी अगरबत्ती दिखाएँ.

16 दिसंबर 2016

कामकाली भुजंगप्रयात स्तोत्रम

महाभगवती कामकलाकाली स्तोत्र साधना
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श्री गणेशाय नमः ।
ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः |
ॐ महाकाल भैरवाय नमः |
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महाकाल उवाच ।
अथ वक्ष्ये महेशानि देव्याः स्तोत्रमनुत्तमम् ।
यस्य स्मरणमात्रेण विघ्ना यान्ति पराङ्मुखाः ॥ १॥
विजेतुं प्रतस्थे यदा कालकस्या- सुरान् रावणो मुञ्जमालिप्रवर्हान् ।
तदा कामकालीं स तुष्टाव वाग्भिर्जिगीषुर्मृधे बाहुवीर्य्येण सर्वान् ॥ २॥
महावर्त्तभीमासृगब्ध्युत्थवीची- परिक्षालिता श्रान्तकन्थश्मशाने ।
चितिप्रज्वलद्वह्निकीलाजटाले शिवाकारशावासने सन्निषण्णाम् ॥ ३॥
महाभैरवीयोगिनीडाकिनीभिः करालाभिरापादलम्बत्कचाभिः ।
भ्रमन्तीभिरापीय मद्यामिषास्रान्यजस्रं समं सञ्चरन्तीं हसन्तीम् ॥ ४॥
महाकल्पकालान्तकादम्बिनी- त्विट्परिस्पर्द्धिदेहद्युतिं घोरनादाम् ।
स्फुरद्द्वादशादित्यकालाग्निरुद्र- ज्वलद्विद्युदोघप्रभादुर्निरीक्ष्याम् ॥ ५॥
लसन्नीलपाषाणनिर्माणवेदि- प्रभश्रोणिबिम्बां चलत्पीवरोरुम् ।
समुत्तुङ्गपीनायतोरोजकुम्भां कटिग्रन्थितद्वीपिकृत्त्युत्तरीयाम् ॥ ६॥
स्रवद्रक्तवल्गन्नृमुण्डावनद्धा- सृगाबद्धनक्षत्रमालैकहाराम् ।
मृतब्रह्मकुल्योपक्लृप्ताङ्गभूषां महाट्टाट्टहासैर्जगत् त्रासयन्तीम् ॥ ७॥
निपीताननान्तामितोद्धृत्तरक्तो- च्छलद्धारया स्नापितोरोजयुग्माम् ।
महादीर्घदंष्ट्रायुगन्यञ्चदञ्च- ल्ललल्लेलिहानोग्रजिह्वाग्रभागाम् ॥ ८॥
चलत्पादपद्मद्वयालम्बिमुक्त- प्रकम्पालिसुस्निग्धसम्भुग्नकेशाम् ।
पदन्याससम्भारभीताहिराजा- ननोद्गच्छदात्मस्तुतिव्यस्तकर्णाम् ॥ ९॥
महाभीषणां घोरविंशार्द्धवक्त्रै- स्तथासप्तविंशान्वितैर्लोचनैश्च ।
पुरोदक्षवामे द्विनेत्रोज्ज्वलाभ्यां तथान्यानने त्रित्रिनेत्राभिरामाम् ॥ १०॥
लसद्वीपिहर्य्यक्षफेरुप्लवङ्ग- क्रमेलर्क्षतार्क्षद्विपग्राहवाहैः ।
मुखैरीदृशाकारितैर्भ्राजमानां महापिङ्गलोद्यज्जटाजूटभाराम् ॥ ११॥
भुजैः सप्तविंशाङ्कितैर्वामभागे युतां दक्षिणे चापि तावद्भिरेव ।
क्रमाद्रत्नमालां कपालं च शुष्कं ततश्चर्मपाशं सुदीर्घं दधानाम् ॥ १२॥
ततः शक्तिखट्वाङ्गमुण्डं भुशुण्डीं धनुश्चक्रघण्टाशिशुप्रेतशैलान् ।
ततो नारकङ्कालबभ्रूरगोन्माद- वंशीं तथा मुद्गरं वह्निकुण्डम् ॥ १३॥
अधो डम्मरुं पारिघं भिन्दिपालं तथा मौशलं पट्टिशं प्राशमेवम् ।
शतघ्नीं शिवापोतकं चाथ दक्षे महारत्नमालां तथा कर्त्तुखड्गौ ॥ १४॥
चलत्तर्ज्जनीमङ्कुशं दण्डमुग्रं लसद्रत्नकुम्भं त्रिशूलं तथैव ।
शरान् पाशुपत्यांस्तथा पञ्च कुन्तं पुनः पारिजातं छुरीं तोमरं च ॥ १५॥
प्रसूनस्रजं डिण्डिमं गृध्रराजं ततः कोरकं मांसखण्डं श्रुवं च ।
फलं बीजपूराह्वयं चैव सूचीं तथा पर्शुमेवं गदां यष्टिमुग्राम् ॥ १६॥
ततो वज्रमुष्टिं कुणप्पं सुघोरं तथा लालनं धारयन्तीं भुजैस्तैः ।
जवापुष्परोचिष्फणीन्द्रोपक्लृप्त- क्वणन्नूपुरद्वन्द्वसक्ताङ्घ्रिपद्माम् ॥ १७॥
महापीतकुम्भीनसावद्धनद्ध स्फुरत्सर्वहस्तोज्ज्वलत्कङ्कणां च ।
महापाटलद्योतिदर्वीकरेन्द्रा- वसक्ताङ्गदव्यूहसंशोभमानाम् ॥ १८॥
महाधूसरत्त्विड्भुजङ्गेन्द्रक्लृप्त- स्फुरच्चारुकाटेयसूत्राभिरामाम् ।
चलत्पाण्डुराहीन्द्रयज्ञोपवीत- त्विडुद्भासिवक्षःस्थलोद्यत्कपाटाम् ॥ १९॥
पिषङ्गोरगेन्द्रावनद्धावशोभा- महामोहबीजाङ्गसंशोभिदेहाम् ।
महाचित्रिताशीविषेन्द्रोपक्लृप्त- स्फुरच्चारुताटङ्कविद्योतिकर्णाम् ॥ २०॥
वलक्षाहिराजावनद्धोर्ध्वभासि- स्फुरत्पिङ्गलोद्यज्जटाजूटभाराम् ।
महाशोणभोगीन्द्रनिस्यूतमूण्डो- ल्लसत्किङ्कणीजालसंशोभिमध्याम् ॥ २१॥
सदा संस्मरामीदृशों कामकालीं जयेयं सुराणां हिरण्योद्भवानाम् ।
स्मरेयुर्हि येऽन्येऽपि ते वै जयेयु- र्विपक्षान्मृधे नात्र सन्देहलेशः ॥ २२॥
पठिष्यन्ति ये मत्कृतं स्तोत्रराजं मुदा पूजयित्वा सदा कामकालीम् ।
न शोको न पापं न वा दुःखदैन्यं न मृत्युर्न रोगो न भीतिर्न चापत् ॥ २३॥
धनं दीर्घमायुः सुखं बुद्धिरोजो यशः शर्मभोगाः स्त्रियः सूनवश्च ।
श्रियो मङ्गलं बुद्धिरुत्साह आज्ञा लयः शर्म सर्व विद्या भवेन्मुक्तिरन्ते ॥ २४॥ ॥
|| इति श्री महावामकेश्वरतन्त्रे कालकेयहिरण्यपुरविजये
रावणकृतं कामकलाकाली भुजङ्गप्रयात स्तोत्रराजं सम्पूर्णम् ॥
 
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सामान्य निर्देश :-
·    स्तोत्रसाधना के मार्ग में प्रवेश करने का सबसे उत्तम मार्ग है |
·    स्तोत्र साधना के लिए गुरु अनिवार्य नहीं है |
·    आप अपनी क्षमतानुसार नित्य पाठ करें |
·    पाठ संख्या 21,51,108 तक हो सकती हैं | गिनती के लिए आप अपनी सुविधानुसार कापी पेन या किसी अन्य वस्तु का प्रयोग कर सकते हैं |
·    जैसे जैसे पाठ की संख्या बढती जायेगी स्तोत्र उतना बलवान होगा और आपको कार्य में अनुकूलता प्रदान करेगा |
·    साधनाएँ इष्ट तथा गुरु की कृपा से प्राप्त और सिद्ध होती हैं |
·    इसके लिए कई वर्षों तक एक ही साधना को करते रहना होता है |
·    साधना की सफलता साधक की एकाग्रता और उसके श्रद्धा और विश्वास पर निर्भर करता है |
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विधि :-

पाठ प्रारम्भ के पहले दिन हाथ में पानी लेकर संकल्प करें " मै (अपना नाम बोले)आज अपनी (मनोकामना बोले) की पूर्ती के लिए यह स्तोत्र पाठ  कर रहा/ रही हूँ मेरी त्रुटियों को क्षमा करके मेरी मनोकामना पूर्ण करें " इतना बोलकर पानी जमीन पर छोड़ दें |
1. उत्तर या पूर्व दिशा की और देखते हुए बैठें |
2. आसन लाल/पीले रंग का रखें|
3. शक्ति स्त्रोत का पाठ रात्रि 9 से सुबह 4 के बीच करें | संभव ना हो तो दिन में भी कर सकते हैं |
4. यदि अर्धरात्रि पाठ करते हुए निकले तो श्रेष्ट है |
5. पाठ के दौरान किसी को गाली गलौच / गुस्सा/ अपमानित ना करें |
6. साधना काल में किसी को आशीर्वाद या श्राप ना दें | इससे आपकी साधनात्मक शक्ति का ह्रास होगा |
7. किसी महिला ( चाहे वह नौकरानी ही क्यों न हो ) का अपमान ना करें यथा संभव हर स्त्री को देवी के रूप में देखें |
8. सात्विक आहार/ आचार/ विचार/व्यवहार रखें |
9. ब्रह्मचर्य का पालन करें | विवाहित पुरुष अपनी विवाहिता स्त्री के साथ सम्बन्ध रख सकते हैं |
10.   व्यर्थ के प्रलाप और अपनी साधना का ढिंढोरा पीटने से बचें | इससे आपकी शक्ति कम होती जाती है | साधना को यथा संभव गोपनीय रखें |
11.   साधना का प्रयोग यदि लोगों की समस्या के समाधान के लिए कर रहे हों तो नित्य साधना अवश्य करें |


12.   यदि नित्य साधना नहीं करेंगे और समस्या समाधान करेंगे तो धीरे धीरे आपकी शक्ति क्षीण होती जायेगी और काम होने बंद हो जायेंगे |

15 दिसंबर 2016

साधक जिज्ञासा


FAQ : साधनात्मक जानकारियां

1.साधना कौन कर सकता है ?



सनातन धर्म में जाति या धर्म का कोई बंधन नही माना जाता है. किसी भी जाति या धर्म का व्यक्ति जो सनातन धर्म पर निष्ठा रखता है, देवी देवताओं पर विश्वास रखता है वह साधनायें कर सकता है. 

२.क्या गुरु के बिना भी साधनायें की जा सकती हैं ?





गुरु के बिना साधनायें स्तोत्र तथा सहस्रनाम पाठ के रूप में की जा सकती हैं. मंत्र की सिद्धि के लिये गुरु का होना जरूरी माना गया है.




३. गुरु का साधनाओं में क्या महत्व है ? 




गुरु का तात्पर्य एक ऐसे व्यक्ति से है जो आपको भी जानता है और देवताओं को भी जानता है. वह साधना के मार्ग पर चला है इसलिये आपको वह मार्ग बता सकता है. मंत्र साधनाओं से शरीर में उर्जा का संचार होने लगता है, इस उर्जा को सही दिशा में ले जाना जरूरी होता है जो केवल और केवल गुरु ही कर सकता है. गुरु भी पहले शिष्य होता है, वह अपने गुरु के सानिध्य में साधना कर गुरुत्व को प्राप्त होता है.



४. क्या साधनाओं से जीवन की समस्याओं का समाधान हो सकता है ?




.साधनाओं से जीवन की विविध समस्याओं का समाधान का मार्ग मिलता है.

५. क्या आज भी देवी देवताओं का प्रत्यक्ष दर्शन हो सकता है ?



. हाँ आज भी देवी देवताओं का प्रत्यक्ष दर्शन संभव है. इसके लिए तीन बातें अनिवार्य हैं :-

  1. एक सक्षम गुरु का शिष्यत्व.
  2. इष्ट और मंत्र में पूर्ण विश्वास.
  3. शुद्ध ह्रदय से लगन और समर्पण के साथ साधना.  

६. कुछ साधनाओं में ब्रह्मचर्य को अनिवार्य क्यों माना जाता है ?

.ब्रह्मचर्य से शरीर का आतंरिक बल बढ़ता है, उग्र साधनाएँ जैसे बजरंग बली या भैरव साधना में यह आतंरिक बल साधक को जल्द सफलता दिलाता है.
७. क्या साधनाओं के द्वारा विवाह बाधा का निवारण संभव है ?

.मातंगी , हरगौरी, तथा शिव साधनाओं के द्वारा विवाह बाधा दूर हो सकती है. इनका फल तब ज्यादा होता है जब वही व्यक्ति साधना करे जिसके विवाह में बाधा आ रही है.



८. क्या साधनाओं से धन की प्राप्ति संभव है ?

.साधना के द्वारा आसमान से धन गिरने जैसा चमत्कार नहीं होता है . लक्ष्मी, कुबेर जैसी साधनाएँ करने से धनागमन के मार्ग अवश्य खुलने लगते हैं. इसमें साधक को प्रयत्न तो स्वयं करना होता है , लेकिन सफलता दैवीय कृपा से जल्द मिलने लगती है. 


.९. क्या यन्त्र चमत्कारी होते हैं ?

.यन्त्र मात्र एक धातु का टुकड़ा होता है जिसपर सम्बंधित देवी या देवता का यन्त्र अंकित होता है. यह चमत्कारी नहीं होता यदि ऐसा होता तो श्री यंत्र रखने वाला हर व्यक्ति धनवान होना चाहिये. लेकिन ऐसा नही होता.यंत्र की भी प्राण प्रतिष्ठा करनी पडती है.जब एक उच्च कोटि का गुरु या साधक उसका पूजन करके उस देवी या देवता की प्राण प्रतिष्टा यन्त्र में करता है तब वह चमत्कारी बन जाता है.



.तांत्रिक विग्रह क्या है ? उसके क्या लाभ हैं ?

.तांत्रिक विग्रह देवी या देवता के तांत्रोक्त स्वरूप होते है. इनका निर्माण जिस पदार्थ /धातु/रत्न से किया जाता है वह उस देवी या देवता की कृपा प्राप्ति को और सहज बना देता है. यूं समझ लें कि ८० प्रतिशत काम ऐसे विग्रह की स्थापना से ही हो जाता है. बाकी २० प्रतिशत काम उसके पूजन द्वारा हो जाता है.

ऐसे विग्रह दुर्लभ हैं . मगर इनकी स्थापना और पूजन से कार्य सिद्धि निश्चित रूप से होती है. कुछ तांत्रिक विग्रह हैं:-



  • पारद शिवलिंग.
  • पारद काली.
  • पारद लक्ष्मी.
  • पारद श्री यंत्र.
  • पारद कवच.
  • रत्न निर्मित गणपति/काली/लक्ष्मी/शिवलिंग.
  • श्वेतार्क गणपति.
  • तांत्रोक्त काली/भैरवि/योगिनी विग्रह. इत्यादि 
ये विग्रह गुरुदेव के निर्देशानुसार ही प्राप्त /स्थापित और पूजित करें.

14 दिसंबर 2016

कुन्डलिनी जागरण साधना

विशेष तथ्य :-

  1. कुन्डलिनी जागरण साधनात्मक जीवन का सौभाग्य है.
  2. कुन्डलिनी जागरण  साधना गुरु के सानिध्य मे करनी चाहिये.
  3. यह शक्ति अत्यन्त प्रचन्ड होती है.
  4. इसका नियन्त्रण केवल गुरु ही कर सकते हैं.
  5. यदि आप गुरु दीक्षा ले चुके हैं तो अपने गुरु की अनुमति से ही यह साधना करें.
  6. यदि आपने गुरु दीक्षा नही ली है तो किसी योग्य गुरु से दीक्षा लेकर ही इस साधना में प्रवृत्त हों.
  7. यदि गुरु प्राप्त ना हो पाये तो आप मेरे गुरु स्वामी सुदर्शननाथ जी  को गुरु मानकर उनसे मानसिक अनुमति लेकर जाप कर सकते हैं .
स्वामी सुदर्शननाथ जी

|| ॐ ह्रीं मम प्राण देह रोम प्रतिरोम चैतन्य जाग्रय ह्रीं ॐ नम: ||  

  • यह एक अद्भुत मंत्र है. 
  • इससे धीरे धीरे शरीर की आतंरिक शक्तियों का जागरण होता है और कालांतर में कुण्डलिनी शक्ति जाग्रत होने लगती है. 
  • प्रतिदिन इसका १०८, १००८ की संख्या में जाप करें.
  • जाप करते समय महसूस करें कि मंत्र आपके अन्दर गूंज रहा है.
  • मन्त्र जाप के अन्त में कहें :-
ना गुरोरधिकम,ना गुरोरधिकम,ना गुरोरधिकम


शिव शासनतः,शिव शासनतः,शिव शासनतः

13 दिसंबर 2016

गुरु मार्ग में कैसे चलें




  • गुरु स्वयं एक शिष्य और साधक होता है . 
  • वह स्वयं साधना के पथ पर चलता रहता है, क्योंकि गुरुत्व शिवत्व अर्थात निरंतर ध्यानस्थ और साधनारत होने का नाम है . 
  • गुरु अपने आप में महामाया की सर्वश्रेष्ठ कृति है.
  • गुरु स्वयं शिव है शिव स्वयं गुरु हैं .

  • गुरुत्व वंश से या जाती से नहीं आता , और न ही यह पिता से पुत्र के पास अपने आप जाता है .
  • गुरुत्व साधनाओं से, पराविद्याओं की कृपा और सानिध्य से आता है.
  • वह एक विशेष उद्देश्य के साथ धरा पर आता है और अपना कार्य करके वापस महामाया के पास लौट जाता है.
  • बिना योग्यता के शिष्य को कभी गुरु बनने की कोशिश नही करनी चाहिये.
  • गुरु का अनुकरण यानी गुरु के पहनावे की नकल करने से या उनके अंदाज से बात कर लेने से कोई गुरु के समान नही बन सकता.
  • गुरु का अनुसरण करना चाहिये उनके बताये हुए मार्ग पर चलना चाहिये, इसीसे साधनाओं में सफ़लता मिलती है.
  • शिष्य बने रहने में लाभ ही लाभ हैं जबकि गुरु के मार्ग में परेशानियां ही परेशानियां हैं, जिन्हे संभालने के लिये प्रचंड साधक होना जरूरी होता है, अखंड गुरु कृपा होनी जरूरी होती है.
  • बेवजह गुरु बनने का ढोंग करने से साधक साधनात्मक रूप से नीचे गिरता जाता है और एक दिन अभिशप्त जीवन जीने को विवश हो जाता है .
  • गुरु भी सदैव अपने गुरु के प्रति नतमस्तक ही रहता है इसलिए साधकों को अपने गुरुत्व के प्रदर्शन में अपने गुरु के सम्मान को ध्यान रखना चाहिए .