श्री गणपति माला मंत्र
श्री गणपति माला मंत्र
ॐ क्लीं ह्रीं श्रीं ऐं ग्लौं ॐ ह्रीं क्रौं गं ॐ
नमो भगवते महागणपतये स्मरणमात्रसंतुष्टाय सर्वविद्याप्रकाशकाय सर्वकामप्रदाय भवबंधविमोचनाय !
ह्रीं सर्वभूतबंधनाय !
क्रों साध्याकर्षणाय !
क्लीं जगतत्रयवशीकरणाय !
सौ: सर्वमनक्षोभणाय !
श्रीं महासंपत्प्रदाय !
ग्लौं भूमंडलाधिपत्यप्रदाय !
महाज्ञानप्रदाय चिदानंदात्मने गौरीनंदनाय महायोगिने शिवप्रियाय सर्वानंदवर्धनाय सर्वविद्याप्रकाशनप्रदाय ।
द्रां चिरंजिविने !
ब्लूं सम्मोहनाय !
ॐ मोक्षप्रदाय !
फट वशी कुरु कुरु!
वौषडाकर्षणाय हुं विद्वेषणाय विद्वेषय विद्वेषय !
फट उच्चाटय उच्चाटय !
ठ: ठ: स्तंभय स्तंभय !
खें खें मारय मारय !
शोषय शोषय !
परमंत्रयंत्रतंत्राणि छेदय छेदय !
दुष्टग्रहान निवारय निवारय !
दु:खं हर हर !
व्याधिं नाशय नाशय !
नम: संपन्नय संपन्नय स्वाहा !
सर्वपल्लवस्वरुपाय महाविद्याय गं गणपतये स्वाहा !
यन्मंत्रे क्षितलांछिताभमनघं मृत्युश्च वज्राशिषो भूतप्रेतपिशाचका: प्रतिहता निर्घातपातादिव !
उत्पन्नं च समस्तदु:खदुरितं उच्चाटनोत्पादकं वंदेsभीष्टगणाधिपं भयहरं विघ्नौघनाशं परम !
ॐ गं गणपतये नम: ।
ॐ नमो महागणपतये , महावीराय , दशभुजाय , मदनकाल विनाशन , मृत्युं हन हन , यम यम , मद मद , कालं संहर संहर , सर्व ग्रहान चूर्णय चूर्णय , नागान मूढय मूढय , रुद्ररूप, त्रिभुवनेश्वर , सर्वतोमुख हुं फट स्वाहा !
ॐ नमो गणपतये , श्वेतार्कगणपतये , श्वेतार्कमूलनिवासाय , वासुदेवप्रियाय , दक्षप्रजापतिरक्षकाय , सूर्यवरदाय , कुमारगुरवे , ब्रह्मादिसुरावंदिताय , सर्पभूषणाय , शशांकशेखराय , सर्पमालालंकृतदेहाय , धर्मध्वजाय , धर्मवाहनाय , त्राहि त्राहि , देहि देहि , अवतर अवतर , गं गणपतये , वक्रतुंडगणपतये , वरवरद , सर्वपुरुषवशंकर , सर्वदुष्टमृगवशंकर , सर्वस्ववशंकर , वशी कुरु वशी कुरु , सर्वदोषान बंधय बंधय , सर्वव्याधीन निकृंतय निकृंतय , सर्वविषाणि संहर संहर , सर्वदारिद्र्यं मोचय मोचय , सर्वविघ्नान छिंदि छिंदि , सर्ववज्राणि स्फोटय स्फोटय , सर्वशत्रून उच्चाटय उच्चाटय , सर्वसिद्धिं कुरु कुरु , सर्वकार्याणि साधय साधय , गां गीं गूं गैं गौं गं गणपतये हुं फट स्वाहा !
ॐ नमो गणपते महावीर दशभुज मदनकालविनाशन !
मृत्युं हन हन !
कालं संहर संहर !
धम धम !
मथ मथ !
त्रैलोक्यं मोहय मोहय !
ब्रह्मविष्णुरुद्रान मोहय मोहय !
अचिंत्य बलपराक्रम , सर्वव्याधीन विनाशाय !
सर्वग्रहान चूर्णय चूर्णय !
नागान मोटय मोटय !
त्रिभुवनेश्वर सर्वतोमुख हुं फट स्वाहा !!
यह भगवान श्री गणेश का अद्भुत माला मंत्र है । अगर आप इसे ध्यान से पढ़ेंगे तो पाएंगे कि इसमें लगभग हर समस्या जो हमारे जीवन में आती है , उसके समाधान के लिए एक साथ प्रभु से प्रार्थना कर ली गई है ।
आप ऐसा भी कह सकते हैं कि यह एक ऑल-इन-वन प्रार्थना है । जिसमें जीवन की हर समस्या के समाधान का सूत्र है ।
अब आते हैं विधि पर :-
गणेश भगवान की साधनाएं बुधवार या चतुर्थी तिथि से आप प्रारंभ कर सकते हैं । गणेश चतुर्थी के विषय में तो आप जानते ही हैं । इसके अलावा हर महीने में शुक्ल पक्ष की चौथी तारीख को गणेश भगवान की तिथि के रूप में स्वीकार किया जाता है । आप उस दिन से भी साधना प्रारंभ कर सकते हैं ।
इस माला मंत्र का जाप आप एक बार या अपनी क्षमता अनुसार जितना कर सकें कर सकते हैं । कोशिश यह कीजिएगा कि रोज एक निश्चित संख्या में ही माला मंत्र का पाठ करें ।
पीले रंग के वस्त्र तथा आसन का प्रयोग अच्छा है । अगर आपके पास उसकी व्यवस्था नहीं है तो आप किसी भी प्रकार के साफ-सुथरे धुले हुए वस्त्र पहनकर इस माला मंत्र का पाठ कर सकते हैं ।
पूजा स्थान में बैठकर इसके पाठ की अनिवार्यता नहीं है लेकिन जहां भी आप बैठे वाह स्थान साफ सुथरा हो तो बेहतर है ।
किसी भी प्रकार के मंत्र जाप या पाठ में साधक या पूजन कर्ता की भावना का महत्व रहता है । बाकी सारी चीजें गौण हैं । इसलिए पूजन सामग्री आप अपनी इच्छा अनुसार रख सकते हैं । दीपक भी अगर आपकी इच्छा हो तो जला सकते हैं । अगरबत्ती जलाना भी आपकी इच्छा के अनुसार है । अगर सामर्थ्य नहीं हुए है तो बेवजह खर्च करने की आवश्यकता नहीं है ।
आप बिना इन सब के भी पाठ करेंगे तो आपको अनुकूलता मिल जाएगी ।
अगर सक्षम है तो किसी भी मीठे तेल का दीपक या घी का दीपक या चमेली के तेल का दीपक अपनी क्षमता अनुसार जला सकते हैं ।
प्रसाद के रूप में श्री महागणपति को अत्यंत प्रिय है । आप उन्हें मोदक या लड्डू चढ़ा सकते हैं । घर में बना कर चढ़ाएं तो सबसे बढ़िया है । अगर नहीं बना सकते हैं तो दुकान में मिलने वाले लड्डू चढ़ाएं । यह ध्यान रखें कि मात्रा भले कम हो लेकिन अच्छी क्वालिटी के लड्डू चढ़ाएं । ऐसा लड्डू चढ़ाएं जिसे खाने में आपको आनंद आता हो । स्वादिष्ट हो ।
हमारे यहां आज यह स्थिति हो गई है कि हवन और पूजन की सामग्री के नाम पर घटिया सामग्रियां बिक रही है । यहां तक कि दुकानदार हवन वाले घी के बारे में यह बोलकर खासतौर से देता है कि इसे खाने के लिए इस्तेमाल नहीं करना है । अब आप खुद सोच सकते हैं कि वह किस प्रकार का घी दे रहा है जिससे आप हवन कर रहे हैं । जब आप अग्नि को देवता मान के हवन कर रहे हैं तो उसे इस प्रकार की डुप्लीकेट सामग्री या घटिया सामग्री ना चढ़ाएं ।
उससे बेहतर है कि आप सामग्री ही ना चढ़ाएं ।
अधिकांश साधनाएं हिमालय जैसे पर्वत स्थलों मे की जाती है । उन स्थानों पर कुमकुम हल्दी प्रसाद चावल या अन्य पूजा सामग्रीया नहीं मिलती है । वहां बैठकर जब अन्य साधक बिना इन सामग्रियों के भी पूजन संपन्न करके सफलता प्राप्त कर सकते हैं तो आप भी सफलता प्राप्त कर सकते हैं ।
शर्त यह है कि आपकी भावना अच्छी हो.....
आपकी श्रद्धा इष्ट के प्रति प्रबल हो .....
बाकी ....
गुरुदेव की इच्छा .....