एक प्रयास सनातन धर्म[Sanatan Dharma] के महासमुद्र मे गोता लगाने का.....कुछ रहस्यमयी शक्तियों [shakti] से साक्षात्कार करने का.....गुरुदेव Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji [ Nikhileswaranand Ji] की कृपा से प्राप्त Mantra Tantra Yantra विद्याओं को समझने का...... Kali, Sri Yantra, Laxmi,Shiv,Kundalini, Kamkala Kali, Tripur Sundari, Maha Tara ,Tantra Sar Samuchhay , Mantra Maharnav, Mahakal Samhita, Devi,Devata,Yakshini,Apsara,Tantra, Shabar Mantra, जैसी गूढ़ विद्याओ को सीखने का....
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7 अप्रैल 2012
4 अप्रैल 2012
29 मार्च 2012
महाकाल रमणी स्तुति
शवासन संस्थिते महाघोर रुपे ,
महाकाल प्रियायै चतुःषष्टि कला पूरिते |
घोराट्टहास कारिणे प्रचण्ड रूपिणीम,
अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
मेरी अद्भुत स्वरूपिणी महामाया जो शव के आसन पर भयंकर रूप धारण कर विराजमान है, जो काल के अधिपति महाकाल की प्रिया हैं, जो चौंषठ कलाओं से युक्त हैं, जो भयंकर अट्टहास से संपूर्ण जगत को कंपायमान करने में समर्थ हैं, ऐसी प्रचंड स्वरूपा मातृरूपा महाकाली की मैं सदैव अर्चना करता हूं |
उन्मुक्त केशी दिगम्बर रूपे,
रक्त प्रियायै श्मशानालय संस्थिते ।
सद्य नर मुंड माला धारिणीम,
अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
जिनकी केशराशि उन्मुक्त झरने के समान है ,जो पूर्ण दिगम्बरा हैं, अर्थात हर नियम, हर अनुशासन,हर विधि विधान से परे हैं , जो श्मशान की अधिष्टात्री देवी हैं ,जो रक्तपान प्रिय हैं , जो ताजे कटे नरमुंडों की माला धारण किये हुए है ऐसी प्रचंड स्वरूपा महाकाल रमणी महाकाली की मैं सदैव आराधना करता हूं |
क्षीण कटि युक्ते पीनोन्नत स्तने,
केलि प्रियायै हृदयालय संस्थिते।
कटि नर कर मेखला धारिणीम,
अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
अद्भुत सौन्दर्यशालिनी महामाया जिनकी कटि अत्यंत ही क्षीण है और जो अत्यंत उन्नत स्तन मंडलों से सुशोभित हैं, जिनको केलि क्रीडा अत्यंत प्रिय है और वे सदैव मेरे ह्रदय रूपी भवन में निवास करती हैं . ऐसी महाकाल प्रिया महाकाली जिनके कमर में नर कर से बनी मेखला सुशोभित है उनके श्री चरणों का मै सदैव अर्चन करता हूं ||
खङग चालन निपुणे रक्त चंडिके,
युद्ध प्रियायै युद्धुभूमि संस्थिते ।
महोग्र रूपे महा रक्त पिपासिनीम,
अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
देव सेना की महानायिका, जो खड्ग चालन में अति निपुण हैं, युद्ध जिनको अत्यंत प्रिय है, असुरों और आसुरी शक्तियों का संहार जिनका प्रिय खेल है,जो युद्ध भूमि की अधिष्टात्री हैं , जो अपने महान उग्र रूप को धारण कर शत्रुओं का रक्तपान करने को आतुर रहती हैं , ऐसी मेरी मातृस्वरूपा महामाया महाकाल रमणी महाकाली को मै सदैव प्रणाम करता हूं |
मातृ रूपिणी स्मित हास्य युक्ते,
प्रेम प्रियायै प्रेमभाव संस्थिते ।
वर वरदे अभय मुद्रा धारिणीम,
अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
जो सारे संसार का पालन करने वाली मातृस्वरूपा हैं, जिनके मुख पर सदैव अभय भाव युक्त आश्वस्त करने वाली मंद मंद मुस्कुराहट विराजमान रहती है , जो प्रेममय हैं जो प्रेमभाव में ही स्थित हैं , हमेशा अपने साधकों को वर प्रदान करने को आतुर रहने वाली ,अभय प्रदान करने वाली माँ महाकाली को मै उनके सहस्र रूपों में सदैव प्रणाम करता हूं |
|| इति श्री निखिल शिष्य अनिल कृत महाकाल रमणी स्तोत्रं सम्पूर्णम ||
|| इति श्री निखिल शिष्य अनिल कृत महाकाल रमणी स्तोत्रं सम्पूर्णम ||
21 मार्च 2012
नवरात्रि साधना के सामान्य नियम
- साधना प्रारम्भ करने से पहले हाथ में जल लेकर अपनी मनोकामना बोले.
- महाविद्याओं की साधना दीक्षा लेकर ही करे.
- जाप के पहले तथा बाद मे गुरु मन्त्र की १ माला जाप करें.॥ ऊं परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः ॥
- नवरात्रि में मंत्र का जाप रात्रि काल में ९ से ३ बजे के बीच करना चाहिये.
- जहाँ दिशानिर्देश न हो वहाँ उत्तर या पूर्व की ओर देखते हुए जाप करें.
- यथासंभव एकांत वास करें.
- सात्विक आचार व्यव्हार रखें.
- बहुत आवश्यक हो तो पत्नी से संपर्क रख सकते हैं.
- किसी स्त्री का अपमान ना करें.
- क्रोध न करें .
- किसी को नुक्सान न पहुंचाए.
- साधना को गोपनीय रखें.
- हो सके तो साधना स्थल पर ही रात को सोयें.
- किसी को ना तो कोसें और ना ही व्यर्थ का प्रलाप करें.
- यथा संभव मौन रखें.
- साधना में बैठने से पहले हल्का भोजन करें.
- जप के बाद दोनों कान पकड़कर सभी प्रकार की गलतियों के लिए माफ़ी मांगें.
- अंत में जप गुरु को समर्पित करें .
- उग्र सधानाये बच्चे और महिलाएं न करें.
- गुरु से अनुमति लेकर ही साधना करें .
- सिद्धि का दुरुपयोग न करे वरना परिणाम भयानक तथा विनाशकारी होंगे .
नवरात्रि विशेष : सर्व बाधा निवारण हेतु : धूमावती साधना
नवरात्रि में महाविद्यायें जागृत और चैतन्य हो जाती हैं.
महाविद्याओं में सबसे उग्रतम विद्या है धूमावती...
इनका स्वरूप बहुत ही उग्र तथा सब कुछ भक्षण कर लेने को आतुर है..
ये अपने साधक की सभी प्रकार की बाधायें चाहे वे किसी भी प्रकार की हों भक्षण कर जाती हैं.....
नवरात्रि में जाप करें.
ब्रह्मचर्य का पालन करें.
सात्विक आहार तथा आचार विचार रखें.
यथा संभव मौन रहें.
अनर्गल प्रलाप और बकवास न करें.
किसी स्त्री का भूलकर भी अपमान ना करें.सफ़ेद वस्त्र पहनकर सफ़ेद आसन पर बैठ कर जाप करें.
यथाशक्ति जाप जोर से बोल कर करें.
बेसन के पकौडे का भोग लगायें. भोग पर्याप्त मात्रा में होना चाहिये. कम से कम एक पाव बेसन के पकौडे चढायें.इसमें से आपको नही खाना है.
जाप के बाद भोग को निर्जन स्थान पर छोड कर वापस मुडकर देखे बिना लौट जायें.
११००० जाप करें.
नवमी को मंत्र के आखिर में स्वाहा लगाकर ११०० मंत्रों से हवन करें.
हवन की भस्म को प्रभावित स्थल या घर पर छिडक दें. शेष भस्म को नदी में प्रवाहित करें.
जाप पूरा हो जाने पर किसी गरीब विधवा स्त्री को भोजन तथा सफ़ेद साडी दान में दें.
महाविद्याओं में सबसे उग्रतम विद्या है धूमावती...
इनका स्वरूप बहुत ही उग्र तथा सब कुछ भक्षण कर लेने को आतुर है..
ये अपने साधक की सभी प्रकार की बाधायें चाहे वे किसी भी प्रकार की हों भक्षण कर जाती हैं.....
॥ धूं धूं धूमावती ठः ठः ॥
नवरात्रि में जाप करें.
ब्रह्मचर्य का पालन करें.
सात्विक आहार तथा आचार विचार रखें.
यथा संभव मौन रहें.
अनर्गल प्रलाप और बकवास न करें.
किसी स्त्री का भूलकर भी अपमान ना करें.सफ़ेद वस्त्र पहनकर सफ़ेद आसन पर बैठ कर जाप करें.
यथाशक्ति जाप जोर से बोल कर करें.
बेसन के पकौडे का भोग लगायें. भोग पर्याप्त मात्रा में होना चाहिये. कम से कम एक पाव बेसन के पकौडे चढायें.इसमें से आपको नही खाना है.
जाप के बाद भोग को निर्जन स्थान पर छोड कर वापस मुडकर देखे बिना लौट जायें.
११००० जाप करें.
नवमी को मंत्र के आखिर में स्वाहा लगाकर ११०० मंत्रों से हवन करें.
हवन की भस्म को प्रभावित स्थल या घर पर छिडक दें. शेष भस्म को नदी में प्रवाहित करें.
जाप पूरा हो जाने पर किसी गरीब विधवा स्त्री को भोजन तथा सफ़ेद साडी दान में दें.
लेबल:
धूमावती DHOOMAVATI
गुरु निलयम, MIG-556,पद्मनाभपुर, दुर्ग, छ.ग., भारत
151-F, रिसाली सेक्टर, भिलाई, छत्तीसगढ़, भारत
नवरात्रि विशेष : सर्व तन्त्र बाधा निवारण हेतु : छिन्नमस्तका साधना
नवरात्रि में महाविद्यायें जागृत और चैतन्य हो जाती हैं.
महाविद्याओं में सबसे संहारक महाविद्या है छिन्नमस्तका...
इनका स्वरूप बहुत ही उग्र तथा अद्भुत है...
ये अपने साधक की सभी प्रकार की तांत्रिक/मांत्रिक बाधायें चाहे वे किसी भी प्रकार की हों समूल नष्ट कर जाती हैं.....
नवरात्रि में जाप करें.जाप रात्रि ९ से ३ के बीच करें.
ब्रह्मचर्य का पालन करें.
सात्विक आहार तथा आचार विचार रखें.
यथा संभव मौन रहें.
अनर्गल प्रलाप और बकवास न करें.
किसी स्त्री का भूलकर भी अपमान ना करें.
लाल वस्त्र पहनकर लाल कंबल के आसन पर बैठ कर जाप करें.
यथाशक्ति जाप जोर से बोल कर करें.
२१००० जाप करें.
नवमी को मंत्र के आखिर में स्वाहा लगाकर २१०० मंत्रों से हवन करें.
हवन की भस्म को प्रभावित स्थल या घर पर छिडक दें. शेष भस्म को नदी में प्रवाहित करें.
जाप पूरा हो जाने पर किसी सुहागिन गरीब स्त्री को भोजन तथा लाल साडी दान में दें.
महाविद्याओं में सबसे संहारक महाविद्या है छिन्नमस्तका...
इनका स्वरूप बहुत ही उग्र तथा अद्भुत है...
ये अपने साधक की सभी प्रकार की तांत्रिक/मांत्रिक बाधायें चाहे वे किसी भी प्रकार की हों समूल नष्ट कर जाती हैं.....
॥ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं वज्र वैरोचनीयै फ़ट॥
नवरात्रि में जाप करें.जाप रात्रि ९ से ३ के बीच करें.
ब्रह्मचर्य का पालन करें.
सात्विक आहार तथा आचार विचार रखें.
यथा संभव मौन रहें.
अनर्गल प्रलाप और बकवास न करें.
किसी स्त्री का भूलकर भी अपमान ना करें.
लाल वस्त्र पहनकर लाल कंबल के आसन पर बैठ कर जाप करें.
यथाशक्ति जाप जोर से बोल कर करें.
२१००० जाप करें.
नवमी को मंत्र के आखिर में स्वाहा लगाकर २१०० मंत्रों से हवन करें.
हवन की भस्म को प्रभावित स्थल या घर पर छिडक दें. शेष भस्म को नदी में प्रवाहित करें.
जाप पूरा हो जाने पर किसी सुहागिन गरीब स्त्री को भोजन तथा लाल साडी दान में दें.
नवरात्रि विशेष : तारा तान्त्रोक्त साधना मन्त्रम
- तारा काली कुल की महविद्या है ।
- तारा महाविद्या की साधना जीवन का सौभाग्य है ।
- यह महाविद्या साधक की उंगली पकडकर उसके लक्ष्य तक पहुन्चा देती है।
- गुरु कृपा से यह साधना मिलती है तथा जीवन को निखार देती है ।
- साधना से पहले गुरु से तारा दीक्षा लेना लाभदायक होता है ।
- नवरात्रि तथा ज्येष्ठ मास तारा साधना का सबसे उपयुक्त समय है ।
तारा मंत्रम
॥ ऐं ऊं ह्रीं स्त्रीं हुं फ़ट ॥
- मंत्र का जाप रात्रि काल में ९ से ३ बजे के बीच करना चाहिये.
- यह रात्रिकालीन साधना है.
- गुलाबी वस्त्र/आसन/कमरा रहेगा.
- उत्तर या पूर्व की ओर देखते हुए जाप करें.
- यथासंभव एकांत वास करें.
- सवा लाख जाप का पुरश्चरण है.
- ब्रह्मचर्य/सात्विक आचार व्यव्हार रखें.
- किसी स्त्री का अपमान ना करें.
- क्रोध और बकवास ना करें.
- साधना को गोपनीय रखें.
प्रतिदिन तारा त्रैलोक्य विजय कवच का एक पाठ अवश्य करें. यह आपको निम्नलिखित ग्रंथों से प्राप्त हो जायेगा.
नवरात्रि विशेष : भुवनेश्वरी साधना
॥ ह्रीं ॥
- भुवनेश्वरी महाविद्या समस्त सृष्टि की माता हैं
- हमारे जीवन के लिये आवश्यक अमृत तत्व वे हैं.
- जो निरंतर बीमार रहते हों, उर्जा का अभाव महसूस करते हों वे इस साधना को करें.इस मन्त्र का नित्य जाप आपको उर्जावान बनायेगा.
- नवरात्रि में सफ़ेद वस्त्र/आसन के साथ जाप करें.
- ११००० जाप करें.
- रुद्राक्ष से ११०० हवन करें.
- ब्रहम मुहुर्त यानि सुबह ४ से ६ के बीच करें.
गुरु निलयम, MIG-556,पद्मनाभपुर, दुर्ग, छ.ग., भारत
151-F, Risali Sector, भिलाई, छत्तीसगढ़, भारत
हनुमान मन्त्र
॥ ॐ पंचमुखाय महारौद्राय कपिराजाय नमः ॥
ब्रह्मचर्य का पालन किया जाना चाहिये. साधना का समय रात्रि ९ से सुबह ६ बजे तक. साधना कक्ष में हो सके तो किसी बाहरी व्यक्ति को प्रवेश न दें. जाप संख्या ११,००० होगी. प्रतिदिन चना,गुड,बेसन लड्डू,बूंदी में से किसी एक वस्तु का भोग लगायें. हवन ११०० मन्त्र का होगा, इसमें जाप किये जाने वाले मन्त्र के अन्त में स्वाहा लगाकर सामग्री अग्नि में डालना होता है. हवन सामग्री में गुड का चूरा मिला लें. वस्त्र तथा आसन लाल रंग का होगा. रुद्राक्ष की माला से जाप होगा.
11 मार्च 2012
गुरुदेव स्वामी सुदर्शननाथ जी : जन्म दिवस
११ मार्च
मेरे आदरणीय गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथजी का जन्म दिवस
निखिलकृपा से आप शतायु हों....
आपकी कृपा शिष्यों को इसी प्रकार मिलती रहे...
गुरुदेव स्वामी सुदर्शननाथ जी
एक विराट व्यक्तित्व जिसने अपने अंदर तन्त्र साधनाओं के विश्व्वविख्यात गुरु स्वामी निखिलेश्वरानंद जी [डा नारायण दत्त श्रीमाली जी ] के ज्ञान को संपूर्णता के साथ समाहित किया है.
डॉ . नारायण दत्त श्रीमाली जी के देहत्याग [ ३ जुलाई १९९८ ] के बाद साधनाओं के पुनरुत्थान तथा साधकों के निर्माण में सतत गतिशील गुरुवर स्वामी सुदर्शन नाथजी ने दस महाविद्याओं पर जितना ज्ञान तथा विवेचन किया है वह अपने आप में एक मिसाल है.
परम गोपनीय शरभ तन्त्र से लेकर महाकाल संहिता तक ...... और कामकलाकाली तन्त्र से लेकर गुह्यकाली तक........
तन्त्र का कोइ क्षेत्र गुरुदेव की सीमा से परे नहीं है.
लुप्तप्राय हो चुके तन्त्र ग्रन्थों से ढूढ कर सहस्रनाम स्तोत्रों और दुर्लभ पूजन विधियों का अकूत भन्डार साधना सिद्धि विज्ञान मासिक पत्रिका के माध्यम से अपने शिष्यों के लिये सहज ही प्रस्तुत करने वाले ऐसे दिव्य साधक के चरणों मे मेरा शत शत नमन है .
आपका आशीर्वाद और मार्गदर्शन मेरे लिये सर्वसौभाग्य प्रदायक है....
ज्ञान की इतनी ऊंचाई पर बैठ्कर भी साधकों तथा जिज्ञासुओं के लिये वे सहज ही उपलब्ध हैं. आप यदि साधनात्मक मार्गदर्शन चाहते हैं तो आप भी संपर्क कर सकते हैं.
गुरु देव स्वामी सुदर्शननाथ जी से सीधे सम्पर्क का समय :
सायं ७ से ९ बजे तक (रविवार अवकाश)
दूरभाष : (0755) --- 4269368,4283681
मेरे गुरुदेव : स्वामी सुदर्शननाथ जी
अघोरेश्वरं महा सिद्ध रूपम,
निखिल प्राण रूपं प्रणम्यम सदैव ॥१॥
अघोर शक्तियों के स्वामी,
साक्षात अघोरेश्वर,
शिव स्वरूप ,
सिद्धों के भी सिद्ध,
भैरव से शरभेश्वर तक
और
उच्चिष्ठ चाण्डालिनी से गुह्याकाली तक
हर गुह्यतम साधना के ज्ञाता
मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ
जो प्रातः स्मरणीय परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत, प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.
प्रचण्डातिचण्डम शिवानंद कंदम,
निखिल प्राण रूपं प्रणम्यम सदैव ॥२॥
प्रचंडता की साक्षात मूर्ति,
शिवत्व के जाज्वल्यमान स्वरूप,
जिन्होंने तंत्र ग्रंथों और तांत्रिक अनुष्ठानों की गोपनीय विधियों को साधकों को सहज सुलभ कराया
ऐसे मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ,
जो प्रातः स्मरणीय परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.
सुदर्शनोत्वं परिपूर्ण रूपम,
निखिल प्राण रूपं प्रणम्यम सदैव ॥३॥
सौन्दर्य की पूर्णता को साकार करने वाले,
साक्षात कामेश्वर,
पूर्णत्व युक्त,
शिव के प्रतीक,
मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ
जो प्रातः स्मरणीय परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.
ब्रह्माण्ड रूपम, गूढातिगूढम,
निखिल प्राण रूपं प्रणम्यम सदैव ॥४॥
जो स्वयं अपने अंदर संपूर्ण ब्रह्मांड को समेटे हुए हैं,
जो अहं ब्रह्मास्मि के नाद से गुन्जरित हैं,
जो गूढ से भी गूढ
अर्थात गोपनीय से भी गोपनीय
विद्याओं के ज्ञाता हैं,
महाकाल संहिता और गुह्य काली संहिता जैसे दुर्लभ ग्रंथों का जिन्होंने पुनरुद्धार किया है ,
ऐसे मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ
जो प्रातः स्मरणीय परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.
योगेश्वरोत्वम, कृष्ण स्वरूपम,
निखिल प्राण रूपं प्रणम्यम सदैव ॥५॥
जो योग के सभी अंगों के सिद्धहस्त आचार्य हैं,
जिनका शरीर योग के जटिलतम आसनों को भी
सहजता से करने में सिद्ध है,
जो योग मुद्राओं के प्रतिष्ठित आचार्य हैं,
जो साक्षात कृष्ण के समान,
प्रेममय,
योगमय,
आह्लादमय,
सहज व्यक्तित्व के स्वामी हैं
ऐसे मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ
जो प्रातः स्मरणीय परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.
महाकाल तत्वम घोरातिघोरम,
निखिल प्राण रूपं प्रणम्यम सदैव ॥६॥
काल भी जिससे घबराता है,
ऐसे महाकाल और महाकाली युगल के उपासक,
साक्षात महाकाल स्वरूप,
अघोरत्व के जाज्वल्यमान स्वरूप,
महाकाली के महासिद्ध साधक
मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ
जो प्रातः स्मरणीय परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.
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