14 अगस्त 2019

शिवषडक्षरस्तोत्र साधना





शिवषडक्षरस्तोत्र साधना
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ऊँकारं बिंदुसंयुक्तं नित्यं ध्यायंति योगिन:।
कामदं मोक्षदं चैव ओंकाराय नमो नम:।।
नमंति ऋषयो देवा नमंत्यप्सरसां गणा:।
नरा नमंति देवेशं नकाराय नमो नम:।।
महादेवं महात्मानं महाध्यानं परायणम्।
महापापहरं देवं मकाराय नमो नम:।।
शिवं शान्तं जगन्नाथं लोकनुग्रहकारकम्।
शिवमेकपदं नित्यं शिकाराय नमो नम:।।
वाहनं वृषभो यस्य वासुकि: कंठभूषणम्।
वामे शक्तिधरं देवं वकाराय नमो नम:।।
यत्र यत्र स्थितो देव: सर्वव्यापी महेश्वर:।
यो गुरु: सर्वदेवानां यकाराय नमो नम:।।

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सामान्य निर्देश :-
·    स्तोत्रसाधना के मार्ग में प्रवेश करने का सबसे उत्तम मार्ग है |
·    स्तोत्र साधना के लिए गुरु अनिवार्य नहीं है |
·    आप अपनी क्षमतानुसार नित्य पाठ करें |
·    पाठ संख्या 21,51,108 तक हो सकती हैं | गिनती के लिए आप अपनी सुविधानुसार कापी पेन या किसी अन्य वस्तु का प्रयोग कर सकते हैं |
·    जैसे जैसे पाठ की संख्या बढती जायेगी स्तोत्र उतना बलवान होगा और आपको कार्य में अनुकूलता प्रदान करेगा |
·    साधनाएँ इष्ट तथा गुरु की कृपा से प्राप्त और सिद्ध होती हैं |
·    इसके लिए कई वर्षों तक एक ही साधना को करते रहना होता है |
·    साधना की सफलता साधक की एकाग्रता और उसके श्रद्धा और विश्वास पर निर्भर करता है |
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विधि :-

पाठ प्रारम्भ के पहले दिन हाथ में पानी लेकर संकल्प करें " मै (अपना नाम बोले)आज अपनी (मनोकामना बोले) की पूर्ती के लिए यह स्तोत्र पाठ  कर रहा/ रही हूँ मेरी त्रुटियों को क्षमा करके मेरी मनोकामना पूर्ण करें " इतना बोलकर पानी जमीन पर छोड़ दें |
1. इशान (उत्तर पूर्व के बीच ) दिशा की और देखते हुए बैठें |
2. आसन सफ़ेद /पीले रंग का रखें|
3. स्त्रोत का पाठ ब्रह्ममुहूर्त सुबह 4 से सुबह 6 के बीच करें | संभव ना हो तो दिन में भी कर सकते हैं |
4. पाठ के दौरान किसी को गाली गलौच / गुस्सा/ अपमानित ना करें |
5. साधना काल में किसी को आशीर्वाद या श्राप ना दें | इससे आपकी साधनात्मक शक्ति का ह्रास होगा |
6. किसी महिला ( चाहे वह नौकरानी ही क्यों न हो ) का अपमान ना करें यथा संभव हर स्त्री को देवी के रूप में देखें |
7. सात्विक आहार/ आचार/ विचार/व्यवहार रखें |
8. ब्रह्मचर्य का पालन करें | विवाहित पुरुष अपनी विवाहिता स्त्री के साथ सम्बन्ध रख सकते हैं |
9. व्यर्थ के प्रलाप और अपनी साधना का ढिंढोरा पीटने से बचें | इससे आपकी शक्ति कम होती जाती है | साधना को यथा संभव गोपनीय रखें |
10.   साधना का प्रयोग यदि लोगों की समस्या के समाधान के लिए कर रहे हों तो नित्य साधना अवश्य करें |


11.   यदि नित्य साधना नहीं करेंगे और समस्या समाधान करेंगे तो धीरे धीरे आपकी शक्ति क्षीण होती जायेगी और काम होने बंद हो जायेंगे |

13 अगस्त 2019

शिवलिंग की महिमा

शिवलिंग की महिमा
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भगवान शिव के पूजन मे शिवलिंग का प्रयोग होता है। शिवलिंग के निर्माण के लिये स्वर्णादि विविध धातुओंमणियोंरत्नोंतथा पत्थरों से लेकर मिटृी तक का उपयोग होता है।इसके अलावा रस अर्थात पारे को विविध क्रियाओं से ठोस बनाकर भी लिंग निर्माण किया जाता है
इसके बारे में कहा गया है कि,
मृदः कोटि गुणं स्वर्णमस्वर्णात्कोटि गुणं मणिः
 मणेः कोटि गुणं बाणोबाणात्कोटि गुणं रसः
रसात्परतरं लिंगं   भूतो  भविष्यति 
अर्थात मिटृी से बने शिवलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल 
सोने से बने शिवलिंग के पूजन से
स्वर्ण से करोड गुणा ज्यादा फल 
मणि से बने शिवलिंग के पूजन से, 
मणि से करोड गुणा ज्यादा फल 
बाणलिंग के पूजन से 
तथा 
बाणलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल 
रस अर्थात पारे से बने शिवलिंग के पूजन से प्राप्त होता है।
 आज तक पारे से बने शिवलिंग से श्रेष्ठ शिवलिंग  तो बना है और  ही बन सकता है।



शिवलिंगों में नर्मदा नदी से प्राप्त होने वाले नर्मदेश्वर शिवलिंग भी 
अत्यंत  लाभप्रद तथा शिवकृपा प्रदान करने वाले माने गये हैं। यदि आपके पास शिवलिंग  हो तो 
अपने बांये हाथ के अंगूठे को 
शिवलिंग मानकर भी पूजन कर सकते हैं  

शिवलिंग कोई भी हो जब तक 
भक्त की भावना का संयोजन नही होता 
तब तक शिवकृपा नही मिल सकती।



10 अगस्त 2019

ऊं नमः शिवाय



॥ ऊं नमः शिवाय ॥


इस मंत्र का जाप आप चलते फ़िरते कर सकते हैं.तीन लाख जाप से शिव कृपा मिलती है....
----------------------शिव शासनतः--------------------
--------------------------शिव शासनतः------------------------
------------------------------शिव शासनतः----------------------------

---------------------- न गुरोरधिकम --------------------
-------------------------- न गुरोरधिकम ------------------------
------------------------------ न गुरोरधिकम ----------------------------

9 अगस्त 2019

अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले




शवासन संस्थिते महाघोर रुपे ,
                                महाकाल  प्रियायै चतुःषष्टि कला पूरिते |
घोराट्टहास कारिणे प्रचण्ड रूपिणीम,
                                अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥

मेरी अद्भुत स्वरूपिणी महामाया जो शव के आसन पर भयंकर रूप धारण कर विराजमान हैजो काल के अधिपति महाकाल की प्रिया हैंजो चौंषठ कलाओं से युक्त हैंजो भयंकर अट्टहास से संपूर्ण जगत को कंपायमान करने में समर्थ हैंऐसी प्रचंड स्वरूपा मातृरूपा महाकाली की मैं सदैव अर्चना करता हूं |


उन्मुक्त केशी दिगम्बर रूपे,
                                 रक्त प्रियायै श्मशानालय संस्थिते ।
सद्य नर मुंड माला धारिणीम,
                               अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
जिनकी केशराशि उन्मुक्त झरने के समान है ,जो पूर्ण दिगम्बरा हैंअर्थात हर नियमहर अनुशासन,हर विधि विधान से परे हैं जो श्मशान की अधिष्टात्री देवी हैं ,जो रक्तपान प्रिय हैं जो ताजे कटे नरमुंडों की माला धारण किये हुए है ऐसी प्रचंड स्वरूपा महाकाल रमणी महाकाली की मैं सदैव आराधना करता हूं |



क्षीण कटि युक्ते पीनोन्नत स्तने,
                               केलि प्रियायै हृदयालय संस्थिते।
कटि नर कर मेखला धारिणीम,
                               अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥

अद्भुत सौन्दर्यशालिनी महामाया जिनकी कटि अत्यंत ही क्षीण है और जो अत्यंत उन्नत स्तन मंडलों से सुशोभित हैंजिनको केलि क्रीडा अत्यंत प्रिय है और वे  सदैव मेरे ह्रदय रूपी भवन में निवास करती हैं . ऐसी महाकाल प्रिया महाकाली जिनके कमर में नर कर से बनी मेखला सुशोभित है उनके श्री चरणों का मै सदैव अर्चन करता हूं  ||


खङग चालन निपुणे रक्त चंडिके,
                               युद्ध प्रियायै युद्धुभूमि संस्थिते ।
महोग्र रूपे महा रक्त पिपासिनीम,
                               अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥
देव सेना की महानायिकाजो खड्ग चालन में अति निपुण हैंयुद्ध जिनको अत्यंत प्रिय हैअसुरों और आसुरी शक्तियों का संहार जिनका प्रिय खेल है,जो युद्ध भूमि की अधिष्टात्री हैं जो अपने महान उग्र रूप को धारण कर शत्रुओं का रक्तपान करने को आतुर रहती हैं ऐसी मेरी मातृस्वरूपा महामाया महाकाल रमणी महाकाली को मै सदैव प्रणाम करता हूं |

मातृ रूपिणी स्मित हास्य युक्ते,
                                प्रेम प्रियायै प्रेमभाव संस्थिते ।
वर वरदे अभय मुद्रा धारिणीम,
                                अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥


जो सारे संसार का पालन करने वाली मातृस्वरूपा हैंजिनके मुख पर सदैव अभय भाव युक्त आश्वस्त करने वाली मंद मंद मुस्कुराहट विराजमान रहती है जो प्रेममय हैं जो प्रेमभाव में ही स्थित हैं हमेशा अपने साधकों को वर प्रदान करने को आतुर रहने वाली ,अभय प्रदान करने वाली माँ महाकाली को मै उनके सहस्र रूपों में सदैव प्रणाम करता हूं |

|| इति श्री निखिल शिष्य अनिल कृत महाकाल रमणी स्तोत्रं सम्पूर्णम ||

7 अगस्त 2019

महाकालिका रक्षा मन्त्र



:: हुं हुं ह्रीं ह्रीं कालिके घोर दन्ष्ट्रे प्रचन्ड चन्ड नायिके दानवान दारय हन हन शरीरे महाविघ्न छेदय छेदय स्वाहा हुं फट ::

स्वयंसिद्ध मन्त्र है.
१०८ या १००८ की संख्या में जाप करके इसका प्रयोग करें .
इस मन्त्र का जाप करके रक्षा सूत्र बान्ध सकते हैं. 
विभिन्न प्रकार के रक्षा घेरे के निर्माण मे भी सहायक सिद्ध मन्त्र है

6 अगस्त 2019

भैरव अष्टोत्तर शत नाम


भैरव अष्टोत्तर शत नाम


01) ॐ भैरवाय नम:
02) ॐ भूतनाथाय नम: 
03) ॐ भूतात्मने नम: 
04) ॐ भूतभावनाय नम: 
05) ॐ क्षेत्रदाय नम: 
06) ॐ क्षेत्रपालाय नम: 
07) ॐ क्षेत्रज्ञाय नम: 
08) ॐ क्षत्रियाय नम: 
09) ॐ विराजे नम: 
10) ॐ श्मशानवासिने नम: 
11) ॐ मांसाशिने नम: 
12) ॐ खर्पराशिने नम: 
13) ॐ स्मरांतकाय नम: 
14) ॐ रक्तपाय नम: 
15) ॐ पानपाय नम: 
16) ॐ सिद्धाय नम: 
17) ॐ सिद्धिदाय नम: 
18) ॐ सिद्धसेविताय नम: 
19) ॐ कंकालाय नम:
20) ॐ कालशमनाय नम: 
21) ॐ कलाकाष्ठाय नम: 
22) ॐ तनये नम: 
23) ॐ कवये नम:
24) ॐ त्रिनेत्राय नम: 
25) ॐ बहुनेत्राय नम: 
26) ॐ पिंगललोचनाय नम: 
27) ॐ शूलपाणये नम: 
28) ॐ खडगपाणये नम: 
29) ॐ कंकालिने नम: 
30) ॐ धूम्रलोचनाय नम: 
31) ॐ अभीरवे नम: 
32) ॐ भैरवीनाथाय नम: 
33) ॐ भूतपाय नम: 
34) ॐ योगिनीपतये नम: 
35) ॐ धनदाय नम: 
36) ॐ अधनहारिणे नम: 
37) ॐ धनवते नम: 
38) ॐ प्रीतिवर्धनाय नम: 
39) ॐ नागहाराय नम: 
40) ॐ नागपाशाय नम: 
41) ॐ व्योमकेशाय नम: 
42) ॐ कपालभृते नम: 
43) ॐ कालाय नम: 
44) ॐ कपालमालिने नम: 
45) ॐ कमनीयाय नम: 
46) ॐ कलानिधये नम: 
47) ॐ त्रिनेत्राय नम: 
48) ॐ ज्वलन्नेत्राय नम: 
49) ॐ त्रिशिखिने नम: 
50) ॐ त्रिलोकपालाय नम: 
51) ॐ त्रिवृत्ततनयाय नम: 
52) ॐ डिंभाय नम: 
53) ॐ शांताय नम: 
54) ॐ शांतजनप्रियाय नम: 
55) ॐ बटुकाय नम: 
56) ॐ बटुवेशाय नम: 
57) ॐ खट्वांगधराय नम: 
58) ॐ भूताध्यक्षाय नम: 
59) ॐ पशुपतये नम: 
60) ॐ भिक्षकाय नम: 
61) ॐ परिचारकाय नम: 
62) ॐ धूर्ताय नम: 
63) ॐ दिगंबराय नम: 
64) ॐ शूराय नम: 
65) ॐ हरिणे नम: 
66) ॐ पांडुलोचनाय नम: 
67) ॐ प्रशांताय नम: 
68) ॐ शांतिदाय नम: 
69) ॐ शुद्धाय नम: 
70) ॐ शंकरप्रियबांधवाय नम: 
71) ॐ अष्टमूर्तये नम: 
72) ॐ निधीशाय नम: 
73) ॐ ज्ञानचक्षुषे नम: 
74) ॐ तपोमयाय नम: 
75) ॐ अष्टाधाराय नम: 
76) ॐ षडाधाराय नम: 
77) ॐ सर्पयुक्ताय नम: 
78) ॐ शिखिसखाय नम: 
79) ॐ भूधराय नम: 
80) ॐ भूधराधीशाय नम: 
81) ॐ भूपतये नम: 
82) ॐ भूधरात्मजाय नम: 
83) ॐ कपालधारिणे नम: 
84) ॐ मुंडिने नम: 
85) ॐ नागयज्ञोपवीतवते नम: 
86) ॐ जृंभणाय नम: 
87) ॐ मोहनाय नम: 
88) ॐ स्तंभिने नम: 
89) ॐ मारणाय नम: 
90) ॐ क्षोभणाय नम: 
91) ॐ शुद्धनीलांजनप्रख्याय नम: 
92) ॐ दैत्यघ्ने नम: 
93) ॐ मुंडभूषिताय नम: 
94) ॐ बलिभुजे नम: 
95) ॐ बलिभुंगनाथाय नम: 
96) ॐ बालाय नम: 
97) ॐ बालपराक्रमाय नम: 
98) ॐ सर्वापत्तारणाय नम: 
99) ॐ दुर्गाय नम: 
100) ॐ दुष्टभूतनिषेविताय नम: 
101) ॐ कामिने नम: 
102) ॐ कलानिधये नम: 
103) ॐ कांताय नम: 
104) ॐ कामिनीवशकृद्वशिने नम: 
105) ॐ सर्वसिद्धिप्रदाय नम: 
106) ॐ वैद्याय नम: 
107) ॐ प्रभवे नम: 
108) ॐ विष्णवे नम:

विधि:-
  • काला/लाल वस्त्र पहनें.
  • दक्षिण दिशा की और मुख रखें .
  • भैरव यंत्र या चित्र या पंचमुखी रुद्राक्ष रखकर कर सकते हैं .
  • सरसों के तेल का दीपक जला सकते हैं .
  • हर मन्त्र के साथ सिंदूर या लाल पुष्प चढ़ाएं .

5 अगस्त 2019

नागपंचमी साधना







नागपंचमी के दिन किये जाने वाले आध्यात्मिक साधना को प्रस्तुत कर रहा हूँ। इसे आप उस दिन संपन्न करे।
अगर आप उस दिन राहु काल में इसे कर सकते है तो और
भी अच्छा। इस बार नाग पंचमी सोमवार को है
उस दिन सुबह 07.45 से 9.15 बजे तक राहु काल है .. आपको यह समय सुविधाजनक नहीं है तो
आप कभी भी सुबह या रात में करे।
सामान्य पूजन सामग्री जमाकर रखे। यह पूजन आप किसी भी शिवलिंग पर या रुद्राक्ष पर कर सकते है।
यहां पर बहुत ही संक्षिप्त पूजन दे रहा हूँ ताकि नए साधक
भी इसे आसानी से कर सके।
सबसे पहले आचमन करे (बाए हाथ से आचमनी से जल दाए हाथ में लेकर पिए )
,
ॐ आत्मतत्वाय स्वाहा
ॐ विद्यातत्वाय स्वाहा
ॐ शिवतत्वाय स्वाहा
फिर आसन पूजन और दिशा बंधन करकै संकल्प करे।
आसन पूजा के लिए निम्न मन्त्र पढ़कर आसन पर
पुष्प अर्पण करे।
" ॐ पृथ्वी त्वया धृता लोका देवी ,त्वं विष्णूनां धृता
त्वां च धारय मां देवी पवित्रं कुरु चासनम् "
दिशाबन्धन के लिए अपने चारो दिशाओं में थोड़े अक्षत फेके।
फिर गुरु और गणेश जी का स्मरण करे
और उनसे प्रार्थना करे की आपकी साधना सफल बना दे।
गुरु मन्त्र की एक माला जाप करे।
"गुरु ब्रम्हा … " श्लोक से ध्यान कर
ॐ गुं गुरुभ्यो नमः इस मन्त्र से सदगुरु
का पंचोपचार पूजन करे।
"वक्रतुंड महाकाय … " या और किसी
श्लोक से ध्यान कर गणेशजी का स्मरण करे।
ॐ श्री गणेशाय नमः इस मन्त्र का 11 या 21 बार जाप करे
फिर सबसे पहले
मृत्युंजय शिव का ध्यान कर उनका आवाहन करे।
यह आप महामृत्युंजय मन्त्र से कर सकते है।
" ओम त्र्यम्बकं यजामहे .... " इस मन्त्र से
या तंत्रोक्त मन्त्र " ॐ ह्रौं जूं सः " इस मन्त्र से करे।
श्री महामृत्युंजय शिव इह आगच्छ इह तिष्ठ।
त्वाम चरणे पंचोपचार पूजनम समर्पयामि।
और गंध ,अक्षत,पुष्प अर्पण करे।
फिर मनसा देवी का ध्यान करे और मन्त्र से
गंध अक्षत पुष्प अर्पण करे
ॐ मनसादेव्यै नमः
मनसा देवी आवाहयामि मम पूजा स्थान
स्थापयामि पूजयामि नमः
फिर राहु केतु का पूजन करे
राहु का ध्यान मन्त्र
अर्धकायम महावीर्यं चन्द्रादित्य विमर्दनम्
सिंहिकागर्भ सम्भूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम्
ॐ रां राहवे नमः
राहु आवाहयामि मम पूजा स्थान स्थापयामि
पूजयामि नमः
केतु का ध्यान मन्त्र
पलाशपुष्प संकाशं तारकाग्रह मस्तकम्
रौद्रं रौद्रात्मकं घोरं तं केतुं प्रणमाम्यहम्
ॐ कें केतवे नमः
केतु आवाहयामि मम पूजा स्थान स्थापयामि
पूजयामि नमः
सर्प का पूजन करे
एह्येहि नागेन्द्र धराधेश सर्वामरैवदन्ति पादपद्म
नानाफणा मंडल राजमान गृहाण पूजां भगवान नमस्ते
अब मुख्य नौ नागों का आवाहन कर गंध अक्षत पुष्प से
पूजन करे
१. अनंत :-
अनन्तं विप्रवर्गं च तथा कुंकुमवर्णकम्
सहस्रफण सयुंक्तम् तं देवं प्रणमाम्यहम्
अगर आप इनके ध्यान मन्त्र नहीं पढ़ सकते
तो निचे के मन्त्र सिर्फ पढ़ सकते है।
ॐ अनन्ताय नमः अनंत आवाहयामि पूजयामि नमः
२. शेष :-
विप्रवर्गं श्वेतवर्ण सहस्त्रफण संयुक्तम्
आवाहयाम्यहं देवं शेष वै विश्वरूपिणम्
ॐ शेषाय नमः शेष आवाहयामि पूजयामि नमः
३. वासुकि :-
क्षत्रियवर्गं पीतवर्णं फनैसप्तशतैर्युतम्
युक्तमुत्तुगकायं च वासुकिं प्रणमाम्यहम्
ॐ वासुक्यै नमः वासुकि आवाहयामि पूजयामि नमः
४. तक्षक :-
वैश्यवर्गं नीलवर्णं फनै पञ्चशतैर्युतम्
युक्तमुत्तुगकायं च तक्षकं प्रणमाम्यहम्
ॐ तक्षकाय नमः तक्षक आवाहयामि पूजयामि नमः
५. कर्कोटक :-
शूद्रवर्ण श्वेतवर्णं शतत्रयफनैयुतम्
युक्तमुत्तुगकायं च कर्कोटकं प्रणमाम्यहम्
ॐ कर्कोटकाय नमः कर्कोटक आवाहयामि पूजयामि नमः
६. शंखपाल :-
शंखपालं क्षत्रियं च पीतं सप्तशतै:फनै :
युक्तमुत्तुगकायं च शिरसा प्रणमाम्यहम्
ॐ शंखपालाय नमः शंखपाल आवाहयामि पूजयामि नमः
७.नील :-
वैश्यवर्गं नीलवर्णं फनै: पञ्चशतैर्युतम्
युक्तमुत्तुगकायं च तं नीलं प्रणमाम्यहम्
ॐ नीलाय नमः नील आवाहयामि पूजयामि नमः
८.कम्बलक :-
कम्बलं शूद्रवर्गं च शतत्रयफनैर्युतम्
आवाहयामि नागेशं प्रणमामि पुनः पुनः
ॐ कम्बलाय नमः कंबलक आवाहयामि पूजयामि नमः
९. महापद्म :-
वैश्यवर्गं नीलवर्णं पञ्चशतैर्युतम्
युक्तमुत्तुगकायं च तं महापद्मं नमाम्यहम
ॐ महापद्माय नमः महापदम आवाहयामि पूजयामि नमः
नवनाग देवता आवाहयामि पूजयामि नमः
अब 12 नागिनी देवता का आवाहन कर गंध अक्षत पुष्प से पूजन करे
१. ॐ जरत्कार्यै नमः
२. ॐ जगदगौर्यै नमः
३. ॐ मनसादेव्यै नमः
४. ॐ सिद्धयोगिन्यै नमः
५. ॐ वैष्णव्यै नमः
६. ॐ नागभागिन्यै नमः
७. ॐ शैव्यै नमः
८. ॐ नागेश्वर्यै नमः
९. ॐ जरत्कारुप्रियायै नमः
१०. ॐ आस्तिकमातायै नमः
११. ॐ विषहरायै नमः
१२. ॐ महाज्ञानयुतायै नमः
अब कालिया नाग का पूजन गंध अक्षत पुष्प से करे
कालियो नाम नागसौ विषरूपों भयंकर:
नारायणेन संपृष्टौ दोषो क्षेमकरो भव्
ॐ कालिया सर्पाय नमः कालिया सर्प आवाहयामि पूजयामि नमः
अब जल में कुंकुम अष्टगंध ,इत्र पुष्प मिलाकर
नाग गायत्री मन्त्र से अर्घ्य दे
ॐ नवकुल नागाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो:सर्प प्रचोदयात
अब हाथ जोड़कर प्रार्थना करे और निम्न मन्त्र पढ़े
अनंतपद्म पत्राद्यं फणाननेकतोज्वलं
दिव्याम्बरंधरं देवं रत्नकुण्डल मंडितं !!1 !!
नानारत्नपरिक्षिप्तं मुकुटं द्युतिरंजितं
फणमणि सहस्त्रोदये रसंख्यै पन्नगोत्तमे !!2 !!
नानाकन्या सहस्रेण समन्तात्परिवारितम्
दिव्याभरणम् दिप्तांगं दिव्यचन्दन चर्चितम् !!3 !!
कालाग्निमिव दुर्धर्षतेजसादित्य सन्निभम्
ब्रम्हांडाधार भूतं त्वां यमुनातीर वासीनम !!4 !!
भजेहं शान्त्यैत्र पूजये कार्यसाधकम्
आगच्छ कालसर्पाख्य दोषं मम निवारय: !!5 !!
इसके बाद पुष्प अर्पण कर क्षमाप्रार्थना करे।
और ॐ नम: शिवाय मन्त्र को ११ बार जाप करे
हाथ जोडकर नीचे दिये हुये स्तोत्र का पाठ करे
श्री मनसा देवी नाम स्तोत्रम
जरत्कारु जगदगौरी मनसा सिद्धयोगिनी
वैष्णवी नागभगिनी शैवी नागेश्वरी तथा !!
जरत्कारुप्रिया आस्तिकमाता विषहरीति च
महाग्यानयुता चैव सा देवी विश्वपुजिता !!
द्वादशैतानि नामानि पूजाकाले च य: पठेत !
तस्य नागभयं नास्ति तस्य वंशोदभवस्य च !!
नागभीते च शयने नागग्रस्ते च मंदिरे
नागक्षते महादुर्गे नागवेष्टित विग्रहे !!
इदं स्तोत्रं पठित्वा तु मुच्यते नात्रसंशय:
नित्यं पठेद य: तं दृष्ट्वा नागवर्ग: पलायते !!
नागौधं भूषणं कृत्वा स भवेत नागवाहना :
नागासनो नागतल्पो महासिद्धो भवेन्नर: !!
फिर हाथ जोडकर नीचे दिये हुये सर्प स्तोत्र का पाठ करे
ब्रम्हलोके च ये सर्पा: शेषनागपुरोगमा: !
नमोस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा !!१!!
विष्णुलोके च ये सर्पा: वासुकि: प्रमुखादय: !
नमोस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा !!2!!
काद्रवेयाश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा: !
नमोस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा !!3!!
इंद्रलोके च ये सर्पा: तक्षको प्रमुखादय: !
नमोस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा !!4!!
सत्यलोके च ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता: !
नमोस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा !!5!!
मलये चैव ये सर्पा: कर्कोट: प्रमुखादय: !
नमोस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा !!6!!
समुद्रतीरे च ये सर्पा: ये सर्पा: जलवासिन : !
नमोस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा !!7!!
रसातले च ये सर्पा: अनंतादि महाबला : !
नमोस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा !!8!!
सर्पसत्रे तु ये सर्पा: आस्तिकेन च रक्षिता : !
नमोस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा !!9!!
धर्मलोके च ये सर्पा: वैतरण्यां समाश्रिता : !
नमोस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा !!10!!
पर्वताणां च ये सर्पा: दरिसंधिषु संस्थिता: !
नमोस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा !!11!!
खांडवस्य तथा दाहे स्वर्ग ये च समाश्रिता: !
नमोस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा !!12!!
पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये च साकेत वासिन: !
नमोस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा !!13!!
सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंति सर्वे स्वछंदा: !
नमोस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा !!१४!!
ग्रामे वा यदिवारण्ये ये सर्पा: प्रचरंति च !
नमोस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा !!१५ !!
एक आचमनी जल ले और छोडे
मंत्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वर
यत्पुजितं मया देवी परिपूर्णम तदस्तु मे !!
अनेन ध्यानावाहनादि उपचारै: पूजनेन अमृतरक्षिणि च मनसादेवी सहिता: अनंतादि नवनागा: प्रीयंताम !
एक आचमनी जल पात्र मे अर्पण करे
ॐ गच्छ गच्छ नागदेवता गच्छ गच्छ सर्पदेवता
नागलोकादि पीठं गच्छन्तु मनसादेवी सह !!
पुष्पअक्षत अर्पण करे और एक आचमनी जल अर्पण करे
शिवकंठभूषणाय नागदेवता शिवशोभिताय मम समस्त सर्पदोष , समस्त पाप दोष , ग्रहबाधा दोष शांताय श्री सदाशिवार्पणमस्तु !!
अनेन नागपंचमी पर्व अवसरे श्री अनंतादि नवकुल नागदेवता प्रीत्यर्थे समस्त सर्प दोष परिहारार्थे नागमंडल पूजनम पुर्णतरां कुरु .. ॐ तत सत ब्रम्हार्पण अस्तु ..
इस साधना का एक भाग आवरण पूजन का भी है
और उसके बाद नाग की अष्ट्टोत्तर शतनामावली और सहस्त्र नामावली से
पूजन कर सकते है लेकिन संक्षिप्त पूजन देने के कारण यहां पर
उसे प्रस्तुत नहीं किया है साधक उसे
करना चाहते वे संपर्क करे।अष्टोत्तर शतनामावली को अलग पोस्ट मे प्रस्तुत करेंगे जिसे आप कर सकते है ..
नाग का बीज मन्त्र है " ब्रीं "
और एक मन्त्र है
ब्रीं नागेन्द्राय सर्वविषहराय स्वाहा
वैसे कई सारे मन्त्र है लेकिन गुरु से
प्राप्त मन्त्र का जाप करना चाहिए
इसके साथ मनसादेवी स्तोत्र , नीलकंठ स्तोत्र का पाठ भी इस साधना का अंग है। लेकिन इन सब चीजों से साधना संक्षिप्त नहीं रहेगी और इतना सारा
पूजन टाइप करना भी मुश्किल है। फिर कभी इसे विस्तृत रूपसे प्रस्तुत करेंगे।
नाग पंचमी की नाग मंडल साधना को आप अगर चिकित्सक बुद्धी पक्ष से देखे या श्रद्धा पक्ष से देखे यह आपके उपर निर्भर है ..
अगर आपकी बुद्धि नहीं मानती है तो इसे कल्पना मानकर छोड़ दे.
जय श्री गुरुदेव । ॐ माँ