12 अक्तूबर 2015

मंत्र साधना : कुछ जरुरी जानकारियाँ


 
  • साधना करने के लिए सबसे जरुरी हे संयम ओर लगन |
  • जितना ज्यादा संयम ओर भावना के साथ आप मंत्र जाप करेंगे उतना ही ज्यादा आपको लाभ मिलेगा |
  • अपने इष्ट  के साथ जितने आत्मीयता आप स्थापित करेंगे ; जितना स्वयम को उनकी कृपा का आकांक्षी दिखाएंगे  ; जितनी जितनी ज्यादा हारमनी या तारतम्य उनके साथ बनाएंगे ;  आपको साधनात्मक रुप से उतनी ही ज्यादा प्रबल अनुभव होने लगेंगे | 
  • साधना के क्षेत्र मेँ किसी व्यक्ति विशेष की कृपा से साधनाएँ सिद्ध नहीँ हो सकती हे|
  •  साधनाओं को सिद्ध करने का मार्ग अवश्य ही गुरु पता सकता हे |
  •  मगर साधनाओं मेँ सिद्धियाँ प्राप्त करने के लिए 
    1. साधक की व्यक्तिगत चेष्ठा ;  
    2. उसका अपना संयम ;
    3. उसका पुरुषार्थ;
    4. उसकी उसकी स्वयम की साधना और मंत्र जाप ही महत्वपूर्ण होता हे |
  • जब तक आप का इष्ट स्वयम आपके ऊपर प्रसन्न नहीँ हो जाता ओर आपकी साधनात्मक ओर भावनात्मक एकात्मकता उनके साथ नहीँ होती तब तक आप को साधना मेँ किसी प्रकार का अनुभव होना असंभव हे |
  • साधनात्मक जीवन मेँ यह अत्यंत जरुरी होता हे की आप सतत निरंतर लगातार अपने इष्ट के ध्यान मेँ लीन रहे |
  • उनके साथ अपने अंतरातमा से जुड़े संबंधोँ को उनके साथ अपने मानसिक जुड़ाव को बिल्कुल भी अलग  ना होने दे |
  • जब यह स्थिति धीरे धीरे आगे बढ़ेगी तब आपको उनका अनुभव होने लगेगा |
  •  ये अनुभव किसी व्यक्ति के सामने उपस्थित हो जाने के साथ चालू नहीँ होते |
  • कोई भी देवता इतनी सहजता से प्रत्यक्ष नहीँ होता |
  • इसके लिए काफी समय उनके तारतम्य मेँ ; उनके साथ मे ; उनके साहचर्य मेँ ;  उनके ध्यान मेँ बिताना होता हे  |
  • ओर जब एक आत्मीयता की स्थिति साधक ओर इष्ट देवी/देवता के बीच मेँ पैदा हो जाती हे तब अनुभव का क्रम चालू होता हे |
    • ये अनुभव प्रारंभिक अवस्था मेँ किसी विशेष प्रकार की सुगंध के आने के साथ चालू होते हैं |
    • जो आगे बढ़ने पर किसी विशेष प्रकार की आवाज जेसे घुंघरू की खनक ; हसी की आवाज ; फुसफुसाहट या किसी भी अन्य प्रकार की विशेष आवाज से अपनी उपस्थिति को दर्ज कराते हे |
    • इसका तात्पर्य यह हे कि स्वयम इष्ट आपके सामने अपनी उपस्थिति को दिखाने के लिए सन्नद्ध हे |
    • उनकी कृपा आप के ऊपर धीरे धीरे हो रही हे |
    • इसका घमंड ना करें और किसी को इसके बारे में ना बताएं वरना अनुभव तुरंत बंद हो जायेंगे |
    • ऐसा होने का तात्पर्य सिध्ही मिल जाना नहीं है , केवल प्रमाण है कि आप सही साधना कर रहे हैं और इष्ट आपके अनुकूल है | 
    • अगर इतने में ही अपने आप को सिद्ध समझने की भूल कर बैठेंगे तो ढोंगी बाबा बनकर रह जायेंगे |
  • ऐसा होने पर अपने द्वारा किए जा रहे मंत्र जाप को ओर इष्ट  के साथ हो रहे भावनात्मक जुड़ाव को आप धीरे धीरे बढ़ाएं |
  • कोई भी मन्त्र या साधना कम से कम एक साल तक नियमित करें तभी अनुभव और अनुकूलता मिलेगी |
  • हर हफ्ते एक नया मन्त्र जपने लगेंगे तो कोई फायदा नहीं मिलेगा | 
  • हर देवता इतना सक्षम है की आपको दुसरे के पास जाने की जरुरत नहीं पड़ेगी |
सबसे महत्वपूर्ण  :-
  • साल में कम से कम दो बार अपने गुरु से अवश्य मिलें |
  • उनका मार्गदर्शन लेते रहें |
  • इष्ट पर विशवास रखें | खुद पर भी विश्वास रखें | 
  • स्त्री को शक्ति स्वरूपा माना जाता है इसलिए किसी स्त्री का अपमान ना करें | उन्हें सम्मान की दृष्टी से देखें |
  • यदि उग्र शक्ति साधना कर रहे हों तो क्रोध से बचें | गुरु सानिध्य में साधना कर सकें तो बेहतर है |
  • भविष्यवाणी/आशीर्वाद /श्राप  किसी को न दें , यह आपकी साधनात्मक उर्जा को ख़तम करता है |

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