31 जुलाई 2013

गुरुदेव स्वामी सुदर्शननाथ जी











गुरुदेव स्वामी सुदर्शननाथ जी












अघोर  शक्तियों के स्वामी, साक्षात अघोरेश्वर शिव स्वरूप , सिद्धों के भी सिद्ध  मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जो प्रातः स्मरणीय  परमहंस  स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत, प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै  साष्टांग प्रणाम करता हूं.













प्रचंडता  की साक्षात मूर्ति, शिवत्व के जाज्वल्यमान स्वरूप   मेरे पूज्यपाद गुरुदेव  स्वामी सुदर्शन नाथ जो प्रातः स्मरणीय  परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी  के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता  हूं.






सौन्दर्य  की पूर्णता को साकार करने वाले साक्षात कामेश्वर, पूर्णत्व युक्त, शिव के  प्रतीक, मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जो प्रातः स्मरणीय   परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके  चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.




जो  स्वयं अपने अंदर संपूर्ण ब्रह्मांड को समेटे हुए हैं, जो अहं ब्रह्मास्मि  के नाद से गुन्जरित हैं, जो गूढ से भी गूढ अर्थात गोपनीय से भी गोपनीय  विद्याओं के ज्ञाता हैं ऐसे मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जो  प्रातः स्मरणीय  परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण  स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.


जो  योग के सभी अंगों के सिद्धहस्त आचार्य हैं, जिनका शरीर योग के जटिलतम  आसनों को भी सहजता से करने में सिद्ध है, जो योग मुद्राओं के विद्वान हैं,  जो साक्षात कृष्ण के समान प्रेममय, योगमय, आह्लादमय, सहज व्यक्तित्व के  स्वामी हैं  ऐसे मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जो प्रातः  स्मरणीय  परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं,  उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.


काल  भी जिससे घबराता है, ऐसे महाकाल और महाकाली युगल के उपासक, साक्षात महाकाल  स्वरूप, अघोरत्व के जाज्वल्यमान स्वरूप, महाकाली के महासिद्ध साधक मेरे  पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जो प्रातः स्मरणीय  परमहंस स्वामी  निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै  साष्टांग प्रणाम करता हूं.







गुरुदेव स्वामी सुदर्शननाथ जी


एक  विराट व्यक्तित्व जिसने अपने अंदर स्वामी निखिलेश्वरानंद जी [डा नारायण  दत्त श्रीमाली जी ] के ज्ञान को संपूर्णता के साथ समाहित किया है.






दस  महाविद्याओं पर जितना ज्ञान तथा विवेचन गुरुजी ने किया है वह अपने आप में  एक मिसाल है.शरभ तन्त्र से लेकर महाकाल संहिता और कामकलाकाली तन्त्र से  लेकर गुह्यकाली तक तन्त्र का कोइ क्षेत्र गुरुदेव [ Swami Sudarshan Nath  Ji ] की सीमा से परे नहीं है.






लुप्तप्राय  हो चुके तन्त्र ग्रन्थों से ढूढ कर ज्ञान का अकूत भन्डार अपने शिष्यों के  लिये सहज ही प्रस्तुत करने वाले ऐसे दिव्य साधक के चरणों मे मेरा शत शत नमन  है .




आपका आशीर्वाद और मार्गदर्शन मेरे लिये सर्वसौभाग्य प्रदायक है....


ज्ञान की इतनी ऊंचाई पर बैठ्कर भी साधकों तथा जिज्ञासुओं के लिये वे सहज ही उपलब्ध हैं. आप यदि साधनात्मक मार्गदर्शन चाहते हैं तो आप भी संपर्क कर सकते हैं.
















28 जुलाई 2013

अघोरेश्वर महादेव




॥ ऊं अघोरेश्वराय महाकालाय नमः ॥

  • १,२५,००० मंत्र का जाप .
  • दिगंबर/नग्न  अवस्था में जाप करें
  • अघोरी साधक श्मशान की चिताभस्म का पूरे शारीर पर लेप करके जाप करते हैं. 
  • लेकिन गृहस्थ साधकों के लिए  चिताभस्म निषिद्ध है. वे इसका उपयोग नहीं  करें. यह गम्भीर  नुकसान कर सकता है.
  • गृहस्थ साधक अपने शरीर पर गोबर के कंडे  की राख से त्रिपुंड बनाएं . यदि सम्भव हो तो पूरे शरीर पर लगाएं.
  • जाप के बाद स्नान करने के बाद सामान्य कार्य कर सकते हैं.
  • जाप से प्रबल ऊर्जा उठेगी, किसी पर क्रोधित होकर या स्त्री सम्बन्ध से यह उर्जा विसर्जित हो जायेगी . इसलिए पूरे साधना काल में क्रोध और काम से बचकर रहें.
  • शिव कृपा होगी.
  • रुद्राक्ष पहने तथा रुद्राक्ष की माला से जाप करें.


25 जुलाई 2013

पंचदशाक्षरी महामृत्युन्जय मन्त्रम



पंचदशाक्षरी महामृत्युन्जय मन्त्रम :-

यदि खुद कर रहे हैं तो:-

॥ ॐ जूं सः  मां  पालय पालय सः जूं ॐ॥

यदि किसी और के लिये [उदाहरण : मान लीजिये "अनिल" के लिये ] कर रहे हैं तो :-
॥ ॐ जूं सः ( अनिल) पालय पालय सः जूं ॐ ॥

  • यदि रोगी जाप करे तो पहला मंत्र करे.
  • यदि रोगी के लिये कोइ और करे तो दूसरा मंत्र करे. नाम के जगह पर रोगी का नाम आयेगा.
  • रुद्राक्ष माला धारण करें.
  • रुद्राक्ष माला से जाप करें.
  • बेल पत्र चढायें.
  • भस्म [अगरबत्ती की राख] से तिलक करें.

24 जुलाई 2013

रावण कृत : शिव तांडव स्तोत्र


भगवान शिव के प्रिय शिष्य लंकाधिपति रावण के द्वारा अनेक प्रचंड स्तोत्रों की रचना की गयी है...

उनमे से भगवान शिव का सबसे प्रिय स्तोत्र है शिव तान्डव स्तोत्रम.....

यह गेय स्तोत्र है सुमधुर स्वर में इसका पाठ करने से हृदय अत्यंत आनंदित होता है..






शिव ताण्डव स्तोत्र



जटाटवीगलज्जलप्रवाहपावितस्थलेगलेऽवलम्ब्यलम्बितां भुजङ्गतुङ्गमालिकाम्‌।
डमड्डमड्डमड्डमन्निनादवड्डमर्वयंचकारचण्डताण्डवं तनोतु नः शिवो शिवम्‌ ॥१॥

जटाकटाहसंभ्रमभ्रमन्निलिंपनिर्झरीविलोलवीचिवल्लरी विराजमानमूर्धनि।
धगद्धगद्धगज्ज्वलल्ललाटपट्टपावकेकिशोरचंद्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं ममं ॥२॥

धराधरेंद्रनंदिनी विलासबन्धुबन्धुरस्फुरद्दिगंतसंतति प्रमोद मानमानसे।
कृपाकटाक्षधोरणीनिरुद्धदुर्धरापदि क्वचिद्विगम्बरे मनोविनोदमेतु वस्तुनि ॥३॥

जटाभुजंगपिंगलस्फुरत्फणामणिप्रभा-कदंबकुंकुमद्रवप्रलिप्तदिग्वधूमुखे।
मदांधसिंधुरस्फुरत्वगुत्तरीयमेदुरे मनोविनोदद्भुतं बिंभर्तुभूतभर्तरि ॥४॥

सहस्रलोचनप्रभृत्यशेषलेखशेखर-प्रसूनधूलिधोरणी विधूसरांघ्रिपीठभूः।
भुजंगराजमालयानिबद्धजाटजूटकः श्रियैचिरायजायतां चकोरबंधुशेखरः ॥५॥

ललाटचत्वरज्वलद्धनंजयस्फुलिङ्गभा-निपीतपंचसायकंनमन्निलिंपनायकम्‌।
सुधामयूखलेखया विराजमानशेखरं महाकपालिसंपदे शिरोजटालमस्तुनः ॥६॥

करालभालपट्टिकाधगद्धगद्धगज्ज्वलद्धनंजया धरीकृतप्रचंडपंचसायके।
धराधरेंद्रनंदिनीकुचाग्रचित्रपत्रकप्रकल्पनैकशिल्पिनी त्रिलोचनेरतिर्मम ॥७॥

नवीनमेघमंडलीनिरुद्धदुर्धरस्फुरत्कुहुनिशीथनीतमः प्रबद्धबद्धकन्धरः।
निलिम्पनिर्झरीधरस्तनोतु कृत्तिसिंधुरः कलानिधानबंधुरः श्रियं जगंद्धुरंधरः ॥८॥

प्रफुल्लनीलपंकजप्रपंचकालिमप्रभा-विडंबि कंठकंध रारुचि प्रबंधकंधरम्‌।
स्मरच्छिदं पुरच्छिंद भवच्छिदं मखच्छिदं गजच्छिदांधकच्छिदं तमंतकच्छिदं भजे ॥९॥

अखर्वसर्वमंगला कलाकदम्बमंजरी-रसप्रवाह माधुरी विजृंभणा मधुव्रतम्‌।
स्मरांतकं पुरातकं भावंतकं मखांतकं गजांतकांधकांतकं तमंतकांतकं भजे ॥१०॥

जयत्वदभ्रविभ्रमभ्रमद्भुजंगमस्फुरद्धगद्धगद्विनिर्गमत्कराल भाल हव्यवाट्।
धिमिद्धिमिद्धिमिध्वनन्मृदंगतुंगमंगलध्वनिक्रमप्रवर्तित: प्रचण्ड ताण्डवः शिवः ॥११॥

दृषद्विचित्रतल्पयोर्भुजंगमौक्तिकमस्रजोर्गरिष्ठरत्नलोष्ठयोः सुहृद्विपक्षपक्षयोः।
तृणारविंदचक्षुषोः प्रजामहीमहेन्द्रयोः समं प्रवर्तयन्मनः कदा सदाशिवं भजे ॥१२॥

कदा निलिंपनिर्झरी निकुञ्जकोटरे वसन्‌ विमुक्तदुर्मतिः सदा शिरःस्थमंजलिं वहन्‌।
विमुक्तलोललोचनो ललामभाललग्नकः शिवेति मंत्रमुच्चरन्‌ कदा सुखी भवाम्यहम्‌ ॥१३॥

निलिम्प नाथनागरी कदम्ब मौलमल्लिका-निगुम्फनिर्भक्षरन्म धूष्णिकामनोहरः।
तनोतु नो मनोमुदं विनोदिनींमहनिशं परिश्रय परं पदं तदंगजत्विषां चयः ॥१४॥

प्रचण्ड वाडवानल प्रभाशुभप्रचारणी महाष्टसिद्धिकामिनी जनावहूत जल्पना।
विमुक्त वाम लोचनो विवाहकालिकध्वनिः शिवेति मन्त्रभूषगो जगज्जयाय जायताम्‌ ॥१५॥

इमं हि नित्यमेव मुक्तमुक्तमोत्तम स्तवं पठन्स्मरन्‌ ब्रुवन्नरो विशुद्धमेति संततम्‌।
हरे गुरौ सुभक्तिमाशु याति नान्यथागतिं विमोहनं हि देहनां सुशंकरस्य चिंतनम् ॥१६॥

पूजाऽवसानसमये दशवक्रत्रगीतं यः शम्भूपूजनपरम् पठति प्रदोषे ।
तस्य स्थिरां रथगजेंद्रतुरंगयुक्तां लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥१७॥




॥ इति शिव ताण्डव स्तोत्रं संपूर्णम्‌ ॥


22 जुलाई 2013

तांत्रोक्त गुरु पूजन



गुरु पूर्णिमा के अवसर पर 
तांत्रोक्त गुरु पूजन संपन्न करें आपको गुरु कृपा का प्रत्यक्ष अनुभव होगा.














21 जुलाई 2013

निखिलधाम






परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी [ डा नारायण दत्त श्रीमाली जी ] का यह दिव्य मंदिर है.

इसका निर्माण परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी [Dr. Narayan dutta Shrimali Ji ] के प्रिय शिष्य स्वामी सुदर्शननाथ जी तथा डा साधना सिंह जी ने करवाया है.



यह [ Nikhildham ] भोपाल [ मध्यप्रदेश ] से लगभग २५ किलोमीटर की दूरी पर भोजपुर के पास लगभग ५ एकड के क्षेत्र में बना हुआ है.

यहां पर  महाविद्याओं के अद्भुत तेजस्वितायुक्त विशिष्ठ मन्दिर बनाये गये हैं.













19 जुलाई 2013

गुरु साधना

गुरुर्वै शरण्यं गुरुर्वै शरण्यं...........

एक पत्थर की भी तकदीर बदल सकती है,
शर्त ये है कि सलीके से तराशा जाए....
रास्ते में पडालोगों के पांवों की ठोकरें खाने वाला पत्थरजब योग्य मूर्तिकार के हाथ लग जाता है तो वह उसे तराशकर अपनी सर्जनात्मक क्षमता का उपयोग करते हुयेइस योग्य बना देता हैकि वह मंदिर में प्रतिष्ठित होकर करोडों की श्रद्धा का केद्र बन जाता है। करोडों सिर उसके सामने झुकते हैं। रास्ते के पत्थर को इतना उच्च स्वरुप प्रदान करने वाले मूर्तिकार के समान हीएक गुरु अपने शिष्य को सामान्य मानव से उठाकर महामानव के पद पर बिठा देता है। चाणक्य ने अपने शिष्य चंद्रगुप्त को सडक से उठाकर संपूर्ण भारतवर्ष का चक्रवर्ती सम्राट बना दिया। विश्व मुक्केबाजी का महानतम हैवीवेट चैंपियन माइक टायसन सुधार गृह से निकलकर अपराधी बन जाता अगर उसकी प्रतिभा को उसके गुरू ने ना पहचाना होता। यह एक अकाट्य सत्य है कि चाहे वह कल का विश्वविजेता सिकंदर हो या आज का हमारा महानतम बल्लेबाज सचिन तेंदुलकरवे अपनी क्षमताओं को पूर्णता प्रदान करने में अपने गुरु के मार्गदर्शन व योगदान के अभाव में सफल नही हो सकते थे।  
हमने प्राचीन काल से ही गुरु को सबसे ज्यादा सम्माननीय तथा आवश्यक माना। भारत की गुरुकुल परंपरा में बालकों को योग्य बनने के लिये आश्रम में रहकर विद्याद्ययन करना पडता थाजहां गुरु उनको सभी आवश्यक ग्रंथो का ज्ञान प्रदान करते हुए उन्हे समाज के योग्य बनाते थे। विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों नालंदा तथा तक्षशिला में भी उसी ज्ञानगंगा का प्रवाह हम देखते हैं। संपूर्ण विश्व में शायद ही किसी अन्य देश में गुरु को उतना सम्मान प्राप्त हो जितना हमारे देश में दिया जाता रहा है। यहां तक कहा गया किः-
गुरु गोविंद दोऊ खडे काके लागूं पांय ।
बलिहारी गुरु आपकी गोविंद दियो बताय ॥
अर्थातयदि गुरु के साथ स्वयं गोविंद अर्थात साक्षात भगवान भी सामने खडे होंतो भी गुरु ही प्रथम सम्मान का अधिकारी होता हैक्योंकि उसीने तो यह क्षमता प्रदान की है कि मैं गोविंद को पहचानने के काबिल हो सका। आध्यात्मिक जगत की ओर जाने के इच्छुक प्रत्येक व्यक्ति का मार्ग गुरु और केवल गुरु से ही प्रारंभ होता है। कुछ को गुरु आसानी से मिल जाते हैंकुछ को काफी प्रयास के बाद मिलते हैं,और कुछ को नहीं मिलते हैं।साधनात्मक जगतजिसमें योगतंत्रमंत्र जैसी विद्याओं को रखा जाता हैमें गुरु को अत्यंत ही अनिवार्य माना जाता है।वे लोग जो इन क्षेत्रों में विशेषज्ञता प्राप्त करना चाहते हैंउनको अनिवार्य रुप से योग्य गुरु के सानिध्य के लिये प्रयास करना ही चाहिये। ये क्षेत्र उचित मार्गदर्शन की अपेक्षा रखते हैं।
गुरु का तात्पर्य किसी व्यक्ति के देह या देहगत न्यूनताओं से नही बल्कि उसके अंतर्निहित ज्ञान से होता हैवह ज्ञान जो आपके लिये उपयुक्त हो,लाभप्रद हो। गुरु गीता में कुछ श्लोकों में इसका विवेचन मिलता हैः-
अज्ञान तिमिरांधस्य ज्ञानांजन शलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः ॥
अज्ञान के अंधकार में डूबे हुये व्यक्ति को ज्ञान का प्रकाश देकर उसके नेत्रों को प्रकाश का अनुभव कराने वाले गुरु को नमन। गुरु शब्द के अर्थ को बताया गया है कि :-
गुकारस्त्वंधकारश्च रुकारस्तेज उच्यते।
अज्ञान तारकं ब्रह्‌म गुरुरेव न संशयः॥
गुरु शब्द के पहले अक्षर ÷गुका अर्थ हैअंधकार जिसमें शिष्य डूबा हुआ हैऔर ÷रुका अर्थ हैतेज या प्रकाश जिसे गुरु शिष्य के हृदय में उत्पन्न कर इस अंधकार को हटाने में सहायक होता हैऔर ऐसे ज्ञान को प्रदान करने वाला गुरु साक्षात ब्रह्‌म के तुल्य होता है।
ज्ञान का दान ही गुरु की महत्ता है। ऐसे ही ज्ञान की पूर्णता का प्रतीक हैं भगवान शिव। भगवान शिव को सभी विद्याओं का जनक माना जाता है। वे तंत्र से लेकर मंत्र तक और योग से लेकर समाधि तक प्रत्येक क्षेत्र के आदि हैं और अंत भी। वे संगीत के आदिसृजनकर्ता भी हैंऔर नटराज के रुप में कलाकारों के आराध्य भी हैं। वे प्रत्येक विद्या के ज्ञाता होने के कारण जगद्गुरु भी हैं। गुरु और शिव को आध्यात्मिक जगत में समान माना गया है। कहा गया है कि :-
यः शिवः सः गुरु प्रोक्तः। यः गुरु सः शिव स्मृतः॥
अर्थात गुरु और शिव दोनों ही अभेद हैंऔर एक दूसरे के पर्याय हैं।जब गुरु ज्ञान की पूर्णता को प्राप्त कर लेता है तो वह स्वयं ही शिव तुल्य हो जाता हैतब वह भगवान आदि शंकराचार्य के समान उद्घोष करता है कि ÷शिवोहंशंकरोहं'।ऐसे ही ज्ञान के भंडार माने जाने वाले गुरुओं के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करने का पर्व हैगुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा।यह वो बिंदु हैजिसके वाद से सावन का महीना जो कि शिव का मास माना जाता हैप्रारंभ हो जाता है। इसका प्रतीक रुप में अर्थ लें तोजब गुरु अपने शिष्य को पूर्णता प्रदान कर देता हैतो वह आगे शिवत्व की प्राप्ति की दिशा में अग्रसर होने लगता है,और यह भाव उसमें जाग जाना ही मोक्ष या ब्रह्‌मत्व की स्थिति कही गयी है।
गुरु पूर्णिमा के अवसर पर हर शिष्य की इच्छा होती है कि वह गुरु के सानिध्य में पहुँच सके ताकि वे उसे शिवत्व का मार्ग बता सकें।यदि किसी कारणवश आप गुरु को प्राप्त न कर पाये हों तो आप दो तरीकों से साधना पथ पर आगे की ओर गतिमान हो सकते हैं। पहला यह कि आप अपने आराध्य या इष्टदेवता या देवी को गुरु मानकर आगे बढें और दूसरा आप भगवान शिव को ही गुरु मानते हुये निम्नलिखित मंत्र का अनुष्ठान करें:-
॥ ऊं गुं गुरुभ्यो नमः ॥




  1. इस मंत्र का सवा लाख जाप करें।साधनाकाल में सफेद रंग के वस्त्रों को धारण करें।





  2. अपने सामने अपने गुरु के लिये भी सफेद रंग का एक आसन बिछाकर रखें।





  3. यदि हो सके तो इस मंत्र का जाप प्रातः चार से छह बजे के बीच में करना चाहिये।साधना पूर्ण होने तक आपके भाग्यानुकूल श्रेष्ठ गुरु हैं तो साधनात्मक रुप से आपको संकेत मिल जायेंगे।

गुरु पूर्णिमा के अवसर पर प्रत्येक गृहस्थ को उपरोक्त मंत्र का कुछ समय तक जाप करना ही चाहियेहमारे पूर्वज ऋषियों तथा गुरुओं के प्रति सम्मान प्रकट करने का यह एक श्रेष्ठ तरीका है।



17 जुलाई 2013

नमः शिवाय




॥ ऊं नमः शिवाय ॥


इस मंत्र का जाप आप चलते फ़िरते कर सकते हैं.

यह उन गृहस्थों के लिए श्रेष्ट है जो समयाभाव के कारन आसन में बैठकर पूजन नहीं कर पाते हैं.


तीन लाख जाप से शिव कृपा मिलती है....

16 जुलाई 2013

श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु के लक्षण





श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु के  लक्षण :-

श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को अपने गुरु का एक अच्छा शिष्य होना चाहिये. 

अपने गुरु के प्रति पूर्ण समर्पण होना चाहिये.

श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को साधक होना चाहिये.

 उसे निरंतर साधना करते रहना चाहिये.

श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को कम से कम एक महाविद्या सिद्ध होनी चाहिये.

श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को वाक सिद्धि होनी चाहिये अर्थात उसे आशिर्वाद और श्राप दोनों देने में सक्षम होना चाहिये.

श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को पूजन करना और कराना आना चाहिये.

श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को योग और मुद्राओं का ज्ञान होना चाहिये.

श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को रस सिद्धि होनी चाहिये, अर्थात पारद के संस्कारों का ज्ञान होना चाहिये.

श्रेष्ठ तांत्रिक गुरु को मन्त्र निर्माण की कला आती है. वह आवश्यकतानुसार मंत्रों का निर्माण कर सकता है और पुराने मंत्रों मे आवश्यकतानुसार संशोधन करने में समर्थ होता है.

13 जुलाई 2013

आषाढ़ मॉस [ २४ जून से २२ जुलाई ]


शुक्ल पक्ष :-

१- विष्णु सिद्धि दिवस
९- पार्वती जयंती,  कामाक्षी सिद्धि दिवस 




पूर्णिमा === गुरु पूर्णिमा
कृष्ण  पक्ष  :-


२ - सन्यास सिद्धि दिवस
९ - सिद्धाश्रम सिद्धि दिवस


११ - योगिनी सिद्धि दिवस



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8 जुलाई 2013

गुरु साधना




  • गुरु, साधना जगत का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है.






  • गुरु, जब साधक को दीक्षा देता है तो उसका दूसरा जन्म होता है, तब वह द्विज कहलाता है.






  • जिस रास्ते पर चलकर गुरु ने सफ़लता प्राप्त की उस मार्ग से शिष्य को मातृवत उंगली पकड कर चलना सिखाता है,  तब जाकर साधक दैवीय साक्षात्कार का पात्र बनता है.






  • ना गुरोरधिकम....ना गुरोरधिकम...ना गुरोरधिकम...










  • गुरु मंत्रम:-




    ॥ ॐ गुं गुरुभ्यो नमः ॥











    • सफ़ेद वस्त्र तथा आसन पहनकर जाप करें.







    • रुद्राक्ष या स्फ़टिक की माला श्रेष्ठ है.






    • माला न हो तो ऐसे भी जाप कर सकते हैं.






    • सवा लाख मंत्र जाप करें. आपको गुरु की प्राप्ति होगी.









    • यदि आप इच्छुक हों तो मेरे गुरु स्वामी सुदर्शननाथ जी से भी निःशुल्क दीक्षा प्राप्त कर सकते हैं.


      7 जुलाई 2013

      पूज्यपाद गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद साधना -4

      पूज्यपाद गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद साधना


      तन्त्रोक्त  निखिलेश्वरानंद सिद्धि मन्त्र


      || ॐ निं निखिलेश्वराय सं संमोहनाय निं नमः  ||

      वस्त्र - सफ़ेद वस्त्र धारण करें.
      आसन - सफ़ेद होगा.
      समय - प्रातः ४ से ६ बजे का समय सबसे अच्छा है, न हो पाए

      तो कभी भी कर सकते हैं.
      दिशा - उत्तर या पूर्व की ओर देखते हुए बैठें

      पुरश्चरण - तीन  लाख मंत्र जाप का होगा
      हवन - ३०,००० मंत्रों से
      हवन सामग्री - दशांग या घी


      विधि :-
      सामने गुरु चित्र रखें गुरु यन्त्र या श्री यंत्र हो तो वह भी रखें .

      हाथ में पानी लेकर बोले की " मै [अपना नाम ] गुरुदेव परमहंस

      स्वामी निखिलेश्वरानंदजी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्ति के लिए यह

      साधना  कर रहा हूँ , वे प्रसन्न हों और मुझपर कृपा करें साधना के

      मार्ग पर आगे बढायें ". अब पानी निचे छोड़ दें.

      लाभ :-
      वर्तमान युग के सर्वश्रेष्ट तंत्र मर्मज्ञ , योगिराज प्रातः स्मरणीय

      पूज्यपाद गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंदजी की कृपा प्राप्त

      होगी जो आपको साधना पथ पर तेजी से आगे बढ़ाएगी.

      6 जुलाई 2013

      पूज्यपाद गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद साधना-3

      पूज्यपाद गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद साधना



      पूज्यपाद गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद साधना



      || स ह् फ़्रे ह् स क्ष म ल व र यू म   ||

      वस्त्र - सफ़ेद वस्त्र धारण करें.
      आसन - सफ़ेद होगा.
      समय - प्रातः ४ से ६ बजे का समय सबसे अच्छा है, न हो पाए तो कभी भी कर सकते हैं.
      दिशा - उत्तर या पूर्व की ओर देखते हुए बैठें

      पुरश्चरण - सवा लाख मंत्र जाप का होगा
      हवन - १२,५०० मंत्रों से
      हवन सामग्री - दशांग या घी


      विधि :-
      सामने गुरु चित्र रखें गुरु यन्त्र या श्री यंत्र हो तो वह भी रखें .

      हाथ में पानी लेकर बोले की " मै [अपना नाम ] गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंदजी की कृपा और आशीर्वाद प्राप्ति के लिए यह प्रयोग कर रहा हूँ , वे प्रसन्न हों और मुझपर कृपा करें साधना के मार्ग पर आगे बढायें ". अब पानी निचे छोड़ दें.

      लाभ :-
      पूज्यपाद गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंदजी की कृपा प्राप्त होगी जो आपको साधना पथ पर तेजी से आगे बढ़ाएगी.