कलि काल में साधनाओं के विषय में कहा गया है कि :-
कलौ चण्डी विनायकौ
अर्थात कलियुग में चण्डी तथा गणपति साधनायें ज्यादा फलप्रद होंगी।
गणपति साधना को प्रारंभिक तथा अत्यंत लाभप्रद साधनाओं में गिना जाता है। योगिक
विचार में मूलाधार चक्र को कुण्डली का प्रारंभ माना जाता है तथा गणपति उसके स्वामी
माने जाते हैं। साथ ही शिव शक्ति के पुत्र होने के कारण दोनों की संयुक्त कृपा
प्रदान करते हैं।
यदि गणपति साधना करना चाहें तो आप आगे लिखी विधि के अनुसार करें।
गणपति साधना
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गणपति साधना का यह विवरण सामान्य गृहस्थों के लिए
है। इसे किसी भी जाति, लिंग,आयु का व्यक्ति कर
सकता है।
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मंत्र का जाप प्रतिदिन निश्चित संख्या या समय तक
करना चाहिये ।
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माला की व्यवस्था हो सके तो माला से तथा अभाव में
किसी भी गणनायोग्य वस्तु से गणना कर सकते हैं ।
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ऐसा न कर सकें तो एक समयावधि निश्चित समयावधि जैसे
पांच, दस, पंद्रह मिनट, आधा
या एक घंटा अपनी क्षमता के अनुसार निश्चित कर लें ।
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इस प्रकार १, ३, ७, ९, ११, १६, २१, ३३, या ५१ दिनों तक करें। यदि किसी दिन जाप न कर पायें तो साधना खण्डित मानी
जायेगी । अगले दिन से पुनः प्रारंभ करना पडेगा। इसलिये दिनों की संख्या का चुनाव
अपनी क्षमता के अनुसार ही करें। महिलायें रजस्वला होने पर जाप छोडकर उस अवधि के
बाद पुनः जाप कर सकती हैं। इस अवस्था में साधना खण्डित नही मानी जायेगी।
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यदि संभव हो तो प्रतिदिन निश्चित समय पर ही बैठने
का प्रयास करें ।
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जप करते समय दीपक जलता रहना चाहिये ।
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साफ वस्त्र पहनकर स्नानादि करके जाप करें । पूर्व
की ओर देखते हुए बैठें। सामने गणपति का चित्र, मूर्ति या यंत्र रखें।
गणपति मंत्र
॥ ऊं गं गणेश्वराय गं नमः ॥
वे साधक जो माता गायत्री के भक्त हैं वे गणेश गायत्री मंत्र का जाप
उपरोक्त मंत्र के स्थान पर कर सकते हैं जो उनके लिए ज्यादा लाभप्रद होगा।
गणपति गायत्री
मंत्र
॥ ऊं तत्पुरूषाय विद्यहे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ति प्रचोदयात ॥
साधना लक्ष्य प्राप्ति की सहायक क्रिया है। पुरूषार्थ के साथ-साथ साधना
भी हो तो इष्ट देवता की शक्तियां मार्ग की बाधाओं को दूर करने में सहायक होती हैं।
जिससे सफलता की संभावनायें बढ जाती हैं।