एक प्रयास सनातन धर्म[Sanatan Dharma] के महासमुद्र मे गोता लगाने का.....कुछ रहस्यमयी शक्तियों [shakti] से साक्षात्कार करने का.....गुरुदेव Dr. Narayan Dutt Shrimali Ji [ Nikhileswaranand Ji] की कृपा से प्राप्त Mantra Tantra Yantra विद्याओं को समझने का...... Kali, Sri Yantra, Laxmi,Shiv,Kundalini, Kamkala Kali, Tripur Sundari, Maha Tara ,Tantra Sar Samuchhay , Mantra Maharnav, Mahakal Samhita, Devi,Devata,Yakshini,Apsara,Tantra, Shabar Mantra, जैसी गूढ़ विद्याओ को सीखने का....
Disclaimer
29 जुलाई 2025
नाग पंचमी विशेष : सर्प सूक्त
नाग पंचमी विशेष : सर्प सूक्त
यदि आपको अपने घर में बार बार सांप दिखाई देते हो .....
आपकी कुंडली में कालसर्प दोष हो.........
या आप भगवान शिव के गण के रूप में नाग देवता की पूजा करना चाहते हो तो आप श्रावण मास में इस सर्प सूक्त का नित्य प्रयोग कर सकते हैं ।
सर्प सूक्त
ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा: शेषनागपुरोगमा: ।।
नमोSस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।। 1।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखास्तथा।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।2।।
कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा:।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।3।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखास्तथा।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।4।।
सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।5।।
मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखास्तथा।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।6।।
पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये च साकेत वासिन:।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।7।।
सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।8।।
ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पा: प्रचरन्ति च।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।9।।
समुद्रतीरे च ये सर्पा: ये सर्पा जलवासिन:।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।10।।
रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।11।।
जिनको काल सर्प दोष है वे इसका १०८ बार पाठ नाग पंचमी से प्रारम्भ करके पूर्णिमा तक कर सकते हैं .
इसके अलावा आप अपने आसपास अगर कोई शिव मंदिर हो तो उसकी साफ़ सफाई या पोताई जैसी व्यवस्था करें तो भी लाभदायक है .
नाग पंचमी : सर्प दोष निवारण का मुहूर्त
नाग पंचमी : सर्प दोष निवारण का मुहूर्त
अधिकांश जातक अपनी कुंडली में कालसर्प दोष को लेकर चिंतित रहते हैं और उसके निवारण का उपाय खोजते रहते हैं ।
कालसर्प दोष पिछले कुछ समय से बहुत ज्यादा प्रचार में आया है और इसके नाम पर कई प्रकार के पूजन अनुष्ठान भी प्रचलित है ।
बैंगलोर के प्रख्यात ज्योतिषी वेंकट रमन ने ज्योतिषीय योगों पर किए अपने अध्ययन में पाया, कि प्राचीन भारतीय ज्योतिष में कहीं भी कालसर्प योग का उल्लेख नहीं है। केवल एक जगह एक सामान्य सर्प योग के बारे में जानकारी है ।
प्राचीन ग्रंथों में इतना ही बताया गया है कि राहू और केतु के मध्य सभी ग्रह होने पर सर्प योग बनता है। मेष में राहू है और तुला में केतु इसके साथ सारे ग्रह मेष से तुला या तुला से मेष के बीच हों तो इसे सर्प योग कहा जाएगा।
कालसर्प योग के विषय में यह कहा जाता है कि राहु और केतु के मध्य सभी 7 ग्रहों के आने से कालसर्प योग बनता है। जब राहु से केतु के मध्य अन्य ग्रह होते हैं तो उदित और जब केतु से राहु के मध्य ग्रह होते हैं तो अनुदित काल सर्प योग की रचना होती है।
कुछ ज्योतिषियों के अनुसार यह भी एक ध्यान रखने योग्य तथ्य है कि सूर्य की गति के कारण कालसर्प योग कभी भी 6 माह से अधिक अवधि के लिए नहीं आता है। इस 6 माह में भी चंद्रमा की गति के कारण 2 सप्ताह यह योग रहता है और 2 सप्ताह नहीं रहता है, जबकि कभी चंद्रमा धुरी से बाहर हो जाता है तो आंशिक कालसर्प योग होता है।
इस विषय पर ज्योतिषियों के बीच में मत भिन्नता रही है । पिछली सदी के प्रसिद्ध ज्योतिषी स्वर्गीय डॉक्टर बीवी रमन, ने कालसर्प योग को सिरे से नकार दिया था। वह 60 वर्ष तक एस्ट्रोलॉजिकल-मैगजीन के संपादक रहे थे।
खैर.......
जब कालसर्प योग को ज्योतिषियों ने मानना शुरु कर दिया तो इस कालसर्प योग पर आधारित कई ज्योतिषीय किताबें भी प्रकाशित हुईं । इनमें कालसर्प दोष की व्याख्या करते हुए इसे 12 तरह का बताया गया।
जो कि क्रमशः अनन्त, कुलिक, वासुकी, शंखपाल, पद्म, महापद्म, तक्षक, कर्कोटक, शंखचूड़, घातक, विषधर और शेषनाग नाम के कालसर्प योग हैं।
कालसर्प योग जिस व्यक्ति की कुंडली में रहता है वह अपने भविष्य को लेकर इस प्रकार से चिंतित रहता है जैसे उसे किसी सांप ने डस लिया हो या किसी अजगर ने उसे चारों तरफ से घेर लिया ।
कई बार उनके इस डर का श्रेय उन ज्योतिषियों को भी जाता है जो कालसर्प दोष के नाम पर जातक को डराने में किसी प्रकार की कमी नहीं रखते । जो व्यक्ति किसी समस्या से पीड़ित रहता है वह यह सारी बातें सुनकर बुरी तरह प्रभावित और भयभीत हो जाता है । उसे लगता है कि यह कालसर्प दोष ही सारी समस्या की जड़ में है ......
वास्तव में कालसर्प योग कई प्रकार की सफलताओं को भी प्रदान करने वाला भी माना गया है । अनेक विश्व विख्यात और सफल व्यक्तियों के जीवन में कालसर्प योग मौजूद रहा है ।
विख्यात ज्योतिषी के एन राव के अनुसार मुगल सम्राट अकबर, भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू, इंग्लैंड की प्रधानमंत्री मार्गरेट थेचर, अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश को काल सर्प दोष था, लेकिन इन्होंने सफलता के नए सोपान अर्जित किए।
ग्वालियर के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य सीताराम सिंह ने स्व. विजयाराजे सिंधिया की जन्मकुंडली का विश्लेषण करते हुए एक लेख में लिखा है कि उनकी कुंडली में महापदम नामक कालसर्प योग था । जिसके कारण वह जनता की परमप्रिय नेता बनीं । स्व. धीरूभाई अंबानी की कुंडली में वासुकी नामक कालसर्प योग था । इसमें ग्रहों की दशा के कारण गजकेसरी योग बना । फिल्म अभिनेता रजनीकांत की कुंडली में भी कर्कोटक नामक कालसर्प दोष है । वह आज दक्षिणी फिल्म जगत में सुप्रसिद्व सुपरस्टार हैं।
आचार्य किशोर यश शर्मा ने अपने एक लेख में उत्तरप्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की कुंडली का विशलेषण करते हुए लिखा है कि उनकी कुंडली में कालसर्प दोष था, जिसमें उनके ग्रहों की दशा के कारण राजयोग बना और वह उत्तरप्रदेश की कई बार मुख्यमंत्री बन गईं ।
अब आप अपने विवेक से कालसर्प दोष के अच्छा या बुरा होने या ना होने पर निर्णय ले सकते हैं ।
सर्प दोष के निवारण के लिए नागपंचमी को एक श्रेष्ठ मुहूर्त माना जाता है । यदि आपको स्वप्न में बार-बार सर्प दिखाई देते हो और आपको इससे डर लगता हो तो इस अवसर पर निम्नलिखित पूजन संपन्न कर सकते हैं । पूजन आपको सर्प की प्रसन्नता प्रदान करने वाले हैं ।
सर्प सूक्त के विषय में मैंने पहले लिखा है आप उसका पाठ नागपंचमी के दिन कर सकते हैं । यह पाठ आप एक बार या एक से अधिक बार अपनी सुविधा और क्षमता के अनुसार कर सकते हैं ।
नाग पंचमी के दिन आप किसी ऐसे शिव मंदिर में जहां पर शिवलिंग के ऊपर नाग ना बना हो वहां पर नाग का दान कर सकते हैं यह भगवान शिव और सर्प दोनों की कृपा प्रदायक है ।
यदि आप दान आदि में विश्वास रखते हैं तो किसी गरीब ब्राह्मण को चांदी का बना हुआ सांप का जोड़ा भी दान कर सकते हैं ।
यदि दान पर आपका विश्वास नहीं है तो तांबे या चांदी से बना हुआ सर्प का जोड़ा आप किसी शिव मंदिर में या नाग देवता के मंदिर में अर्पित कर सकते हैं , यदि यह दोनों उपलब्ध नहीं हो तो आप किसी नदी या तालाब में भी इसे प्रवाह दे सकते हैं इससे भी आपको अनुकूलता प्राप्त होगी ।
28 जुलाई 2025
अघोरेश्वर महादेव की साधना
- यह साधना अमावस्या से प्रारंभ होकर अगली अमावस्या तक की जाती है.
- यह दिगंबर साधना है.
- एकांत कमरे में साधना होगी.
- स्त्री से संपर्क तो दूर की बात है बात भी नहीं करनी है.
- भोजन कम से कम और खुद पकाकर खाना है.
- यथा संभव मौन रहना है.
- क्रोध,विवाद,प्रलाप, न करे.
- गोबर के कंडे जलाकर उसकी राख बना लें.
- स्नान करने के बाद बिना शरीर पोछे साधना कक्ष में प्रवेश करें.
- अब राख को अपने पूरे शरीर में मल लें.
- जमीन पर बैठकर मंत्र जाप करें.
- माला या यन्त्र की आवश्यकता नहीं है.
- जप की संख्या अपने क्षमता के अनुसार तय करें.
- आँख बंद करके दोनों नेत्रों के बीच वाले स्थान पर ध्यान लगाने का प्रयास करते हुए जाप करें.बहुत जोर नहीं लगाना है आराम से सहज ध्यान लगाना है । ज्यादा जोर लगाएंगे तो सिर और आँखों मे दर्द हो सकता है ।
- जाप के बाद भूमि पर सोयें.
- उठने के बाद स्नान कर सकते हैं.
- यदि एकांत उपलब्ध हो तो पूरे साधना काल में दिगंबर रहें. यदि यह संभव न हो तो काले रंग का वस्त्र पहनें.
- साधना के दौरान तेज बुखार, भयानक दृश्य और आवाजें आ सकती हैं. इसलिए कमजोर मन वाले साधक और बच्चे इस साधना को किसी हालत में न करें.
- गुरु दीक्षा ले चुके साधक ही अपने गुरु से अनुमति लेकर इस साधन को करें.
- जाप से पहले कम से कम १ माला गुरु मन्त्र का जाप अनिवार्य है.
27 जुलाई 2025
शिव पंचाक्षरी मन्त्र साधना : सरल साधकों के लिए सरल विधि
शिव पंचाक्षरी मन्त्र साधना : सरल साधकों के लिए सरल विधि
यह साधना भोले बाबा के उन भोले भक्तों के लिए है जो कुछ जानते नहीं और जानना भी नहीं चाहते |
शिव पंचाक्षरी मन्त्र है |
॥ ऊं नमः शिवाय ॥
जाप से पहले अपनी मनोकामना बाबा से कह दें..
नित्य जितनी आप की क्षमता हो उतना जाप करें..
चलते फिरते चौबीसों घंटे आप कर सकते हैं ।
कर सकें तो कम से कम 1 बेलपत्र और जल बाबा के ऊपर चढ़ा दें
बाकी बाबा देख लेंगे......
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जो नियमानुसार विधि विधान से करने के इच्छुक हैं उनके लिए विधि :-
भगवान शिव का पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन सम्पन्न करें .
माथे , दोनों गाल, गला, हृदय, दोनों बांह , दोनों जांघ , दोनों तरफ कमर इस प्रकार 11 स्थान पर भस्म का तिलक/त्रिपुन्ड लगाएँ ।.
रुद्राक्ष की 108 दानों की माला धारण करें और रुद्राक्ष की माला से जाप करें ।.
नित्य 11, 21, 33, 51 , 108 माला जाप कर सकते हैं। सवा लाख मंत्र जाप का पुरास्चरण माना जाता है ।
माला में 108 दाने होते हैं जिसमे जाप किया जाता है । लेकिन एक माला जाप को 100 मंत्र जाप मान लें । बाकी 8 मंत्र को वचन त्रुटि या किसी अन्य गलती के लिए छोड़ देते हैं । एक पुरस्चरण सवा लाख मंत्र जाप का होगा यानी कुल 1250 मालाएं करनी हैं ।
ईशान यानि उत्तर और पूर्व के बीच की ओर देखते हुए मंत्र जाप करें ।.
नीचे कंबल का या मोटे कपड़े का आसन लगाकर बैठे ।
संभव हो तो रोज शिवलिंग पर 11 बेलपत्र चढ़ाएँ और/ या जल से अभिषेक करें ।
साधना काल में संभव हो तो ब्रह्मचर्य रख सकते हैं । विवाहित हैं तो पत्नी से संबंध रख सकते हैं ।
किसी स्त्री पर क्रोध न करें ।
यथा संभव मौन रहें । बेवजह की बकवास, प्रलाप, चुगली, बुराई आदि से बचें ।
किसी पर क्रोध न करें और न ही अपशब्द, श्राप, आदि दें।
काल भैरव अष्टकम अर्थ सहित
काल
भैरव अष्टकम
देवराज
सेव्यमान पावनांघ्रि पङ्कजं व्याल यज्ञ सूत्रमिन्दु शेखरं कृपाकरम् ।
नारदादि
योगिवृन्द वन्दितं दिगंबरं काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ १॥
जिनके चरण
कमलों की पूजा देवराज इन्द्र द्वारा की जाती है; जिन्होंने
सर्प को एक यज्ञोपवीत के रूप में धारण किया है, जिनके ललाट
पर चन्द्रमा शोभायमान है और जो अति करुणामयी हैं; जिनकी
स्तुति देवों के मुनि नारद और सभी योगियों द्वारा की जाती है; जो दिगंबर रूप में रहते हैं, ऐसे काशी नगरी के
अधिपति, भगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।
भानुकोटि
भास्वरं भवाब्धि तारकं परं नीलकण्ठमीप्सितार्थ दायकं त्रिलोचनम् ।
काल
कालमंबुजाक्षमक्षशूलमक्षरं काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ २॥
जिनकी आभा कोटि
सूर्यों के प्रकाश के समान है, जो अपने भक्तों को जन्म मृत्यु
के चक्र से रक्षा करते हैं, और जो सबसे महान हैं ; जिनका कंठ नीला है, जो हमारी इच्छाओं और आशाओं को
पूरा करते हैं और जिनके तीन नेत्र हैं; जो स्वयं काल के लिए
भी काल हैं और जिनके नयन पंकज के पुष्प जैसे हैं; जिनके हाथ
में त्रिशूल है; ऐसे काशी नगरी के अधिपति, भगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।
शूलटंक
पाशदण्ड पाणिमादिकारणं श्यामकायमादिदेवमक्षरं निरामयम् ।
भीमविक्रमं
प्रभुं विचित्र ताण्डवप्रियं काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ३॥
जिनके
हाथों में त्रिशूल, कुल्हाड़ी, पाश और दंड धारण
किए हैं; जिनका शरीर श्याम है, जो
स्वयं आदिदेव हैं और अविनाशी हैं और सांसारिक दुःखों से परे हैं; जो सर्वशक्तिमान हैं, और विचित्र तांडव उनका प्रिय
नृत्य है; ऐसे काशी नगरी के अधिपति, भगवान
कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।
भुक्ति
मुक्तिदायकं प्रशस्त चारुविग्रहं भक्तवत्सलं स्थितं समस्त लोकविग्रहम् ।
विनिक्वणन्मनोज्ञ
हेमकिङ्किणीलसत्कटिं काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे॥ ४॥
जो अपने
भक्तों की सभी इच्छाओं की पूर्ति और मुक्ति, दोनों प्रदान करते
हैं और जिनका रूप मनमोहक है; जो अपने भक्तों से सदा प्रेम
करते हैं और समूचे ब्रह्मांड में, तीनों लोकों में में स्थित
हैं; जिनकी कमर पर सोने की घंटियाँ बंधी हुई है और जब भगवान
चलते हैं तो उनमें से सुरीले सुर निकलते हैं, ऐसे काशी नगरी
के अधिपति, भगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।
धर्मसेतु
पालकं त्वधर्म मार्गनाशनं कर्मपाश मोचकं सुशर्म धायकं विभुम् ।
स्वर्णवर्ण
शेषपाश शोभितांग मण्डलं काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ५॥
काशी नगर
के स्वामी, भगवान कालभैरव, जो सदैव धर्म
की रक्षा और अधर्म का नाश करते हैं, जो हमें कर्मों के बंधन
से मुक्त करके हमारी आत्माओं को मुक्त करते हैं; और जो अपने
तन पर सुनहरे रंग के सर्प लपेटे हुए हैं; ऐसे काशी नगरी के
अधिपति, भगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।
रत्नपादुका
प्रभाभिरामपाद युग्मकं नित्यमद्वितीयमिष्ट दैवतं निरंजनम् ।
मृत्युदर्प
नाशनं कराल दंष्ट्रमोक्षणं काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ६॥
जिनके
दोनों पैरों में रत्नजड़ित पादुकायें हैं; जो शाश्वत्,
अद्वैत इष्ट देव हैं और हमारी कामनाओं को पूरा करते हैं; जो मृत्यु के देवता, यम का दर्प नष्ट करने मे सक्षम हैं,
जिनके भयानक दाँत हमारे लिए मुक्तिदाता हैं; ऐसे
काशी नगरी के अधिपति, भगवान कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।
अट्टहासभिन्नपद्मजाण्डकोशसंततिं
दृष्टिपात्तनष्टपापजालमुग्रशासनम् ।
अष्टसिद्धि
दायकं कपालमालिका धरं काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ७॥
जिनके
हास्य की प्रचंड ध्वनि कमल जनित ब्रह्मा जी द्वारा रचित सृष्टियों को नष्ट कर देती
हैं, अर्थात् हमारे मन की भ्रांतियों को दूर करती है;
जिनके एक दृष्टिपात मात्र से हमारे सभी पाप नष्ट हो जाते हैं;
जो अष्टसिद्धि के दाता हैं और जो खोपड़ियों से बनी माला धारण किए
हुए हैं, काशी नगरी के अधिपति, भगवान
कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।
भूतसंघ
नायकं विशाल कीर्तिदायकं काशिवास लोकपुण्यपापशोधकं विभुम् ।
नीतिमार्ग
कोविदं पुरातनं जगत्पतिं काशिका पुराधिनाथ कालभैरवं भजे ॥ ८॥
जो भूतों के
संघ के नायक हैं, जो अद्भुत कीर्ति प्रदान करते हैं; जो काशी की प्रजा को उनके पापों और पुण्य दोनों से मुक्त करते हैं;
जो हमें नीति और सत्य का मार्ग दिखाते हैं और जो ब्रह्मांड के
आदिदेव हैं, ऐसे काशी नगरी के अधिपति, भगवान
कालभैरव को मैं नमन करता हूँ।
कालभैरवाष्टकं
पठंति ये मनोहरं ज्ञान मुक्तिसाधनं विचित्र पुण्य वर्धनम्।
शोक
मोह दैन्य लोभ कोप तापनाशनं ते प्रयान्ति कालभैरवांघ्रिसन्निधिं नरा ध्रुवम्॥९॥
यह अतिसुंदर
काल भैरव अष्टक, जो ज्ञान तथा मुक्ति का स्रोत है, जो व्यक्ति में सत्य और नीति के आदर्शों को स्थापित करने वाला है, जो दुःख, राग, निर्धनता,
लोभ, क्रोध, और ताप को
नाश करने वाला है । इस स्तोत्र का जो पाठ करता है वह भगवान कालभैरव अर्थात् शिव
चरणों को प्राप्त करता है ।
26 जुलाई 2025
पंचमुखी रुद्राक्ष से बनाएँ रक्षा कवच
- भस्म से माथे पर तीन लाइन वाला तिलक त्रिपुंड बनायें.
- हाथ में पानी लेकर भगवान शिव से रक्षा की प्रार्थना करें , जल छोड़ दें.
- एक माला गुरुमंत्र की करें . अगर गुरु न बनाया हो तो भगवान् शिव को गुरु मानकर "ॐ नमः शिवाय" मन्त्र का जाप कर लें.
- यदि अपने लिए पाठ नहीं कर रहे हैं तो # वाले जगह पर उसका नाम लें जिसके लिए पाठ कर रहे हैं |
- रोगमुक्ति, बधामुक्ति, मनोकामना के लिए ११ पाठ ११ दिनों तक करें . अनुकूलता प्राप्त होगी.
- रक्षा कवच बनाने के लिए एक पंचमुखी रुद्राक्ष ले लें. उसको दूध,दही,घी,शक्कर,शहद,से स्नान करा लें |अब इसे गंगाजल से स्नान कराकर बेलपत्र चढ़ाएं | ५१ पाठ शिवरात्रि/होली/अष्टमी/अमावस्या/नवरात्री/दीपावली/दशहरा/ग्रहण कि रात्रि करें पाठ के बाद इसे धारण कर लें |
25 जुलाई 2025
वैवाहिक सम्बन्धों मे मधुरता के लिए : दो मुखी रुद्राक्ष
वैवाहिक सम्बन्धों मे मधुरता के लिए : दो मुखी रुद्राक्ष
विवाहित जीवन मे अगर पति पत्नी मे सामंजस्य का अभाव हो तो वैवाहिक जीवन नरक बन जाता है और फिर तलाक से लेकर अत्महत्या तक एक से बढ़कर एक कांड होते हैं ।
मूल रूप से विवाह का आधार सुखद आपसी संबंध होते हैं जिनके अभाव मे धीरे धीरे वैवाहिक जीवन मे दिक्कत आती है । ऐसे मे दो मुखी रुद्राक्ष धारण करने से अनुकूलता मिल सकती है ।
दो मुखी रुद्राक्ष को भगवान शिव और माता पार्वती के एकीकृत स्वरूप "अर्धनारीश्वर" का प्रतीक माना जाता है। द्विमुखी रुद्राक्ष शिव और शक्ति की सम्मिलित ऊर्जा को दर्शाता है और इसे एकता, सद्भाव और संबंधों में मधुरता का कारक माना गया है।
दो मुखी रुद्राक्ष का शासक ग्रह चंद्रमा को माना जाता है जो मन का नियंत्रक होता है । सम्बन्धों मे मधुरता मन के मिलने से ही आती है ।
दो मुखी रुद्राक्ष धारण करने के कई लाभ हैं ।
वैवाहिक संबंध मे लाभ :-
द्विमुखी रुद्राक्ष पति-पत्नी के संबंधों में प्रेम, विश्वास और सामंजस्य को बढ़ावा देता है।
जिन लोगों के विवाह में बाधा आ रही हो या जो एक उत्तम जीवनसाथी की तलाश में हैं, उनके लिए द्विमुखी रुद्राक्ष बहुत लाभकारी माना जाता है।
द्विमुखी रुद्राक्ष परिवार में, पार्टनरशिप मे व्यापार करने वाले साझेदारों के बीच और अन्य सामाजिक संबंधों में अनुकूलता स्थापित करने में मदद करता है।
मानसिक और भावनात्मक लाभ :-
द्विमुखी रुद्राक्ष का संबंध चंद्रमा से होने के कारण यह मन को स्थिरता प्रदान करता है। यह चिंता, तनाव और डिप्रेशन जैसी समस्याओं को दूर करने में सहायक है।
द्विमुखी रुद्राक्ष भावनात्मक संतुलन बनाए रखने और निर्णय लेने की क्षमता को सुधारता है।
द्विमुखी रुद्राक्ष पहनने वाले के मन से नकारात्मक विचारों को दूर कर शांति प्रदान करता है।
आध्यात्मिक लाभ :-
द्विमुखी रुद्राक्ष गुरु-शिष्य के संबंध को भी मजबूत करता है। जिससे शिष्य को गुरुकृपा मिलती है ।
द्विमुखी रुद्राक्ष शिव और शक्ति दोनों की कृपा प्रदान करता है, जिससे आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है।
स्वास्थ्य संबंधी मान्यताएं:-
ज्योतिषीय मान्यताओं के अनुसार, द्विमुखी रुद्राक्ष मोटापा, हृदय रोग, और फेफड़ों से संबंधित बीमारियों में राहत दिलाने में सहायक हो सकता है।
किनके लिए दो मुखी रुद्राक्ष विशेष रूप से लाभकारी होगा :-
ऐसे दम्पति जो अपने वैवाहिक जीवन में सामंजस्य चाहते हैं।
वे लोग जिन्हें अपने लिए योग्य जीवनसाथी की तलाश है।
जो व्यक्ति अत्यधिक मानसिक तनाव, चिंता या अस्थिरता से गुजर रहे हैं।
व्यापारी और ऐसे लोग जो पार्टनरशिप में काम करते हैं।
ऐसे व्यक्ति जिनकी कुंडली में चंद्रमा कमजोर या पीड़ित हो, उनके लिए यह विशेष रूप से फायदेमंद है।
धारण करने की सरल विधि :-
पहले रुद्राक्ष को सोमवार के दिन सुबह गंगाजल या कच्चे दूध मे डूबाकर छोड़ देंगे ।
इसके बाद पूजा स्थान पर रखकर महादेव शिव और जगदंबा पार्वती का सुंदर मुसकुराते हुये स्वरूप मे ध्यान करें।
"ॐ सांब सदाशिवाय नमः"
इस मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें। ज्यादा कर सकते हैं तो ज्यादा भी कर सकते हैं ।
मंत्र जाप के बाद रुद्राक्ष को उसी बर्तन मे 24 मिनट तक डूबा रहने दें । फिर उसे साफ जल से धोकर साफ कपड़े से पोछ लें ।
उसके बाद धागे में या चेन में अपने गले में धारण करें।
सोमवार का दिन द्विमुखी रुद्राक्ष को धारण करने के लिए सर्वोत्तम माना जाता है।
इसके बाद नित्य इस रुद्राक्ष को बाएँ हाथ मे पकड़ कर,पति या पत्नी के प्रसन्न अवस्था मे होने जैसा मन मे ध्यान करके, नित्य 11,21,51,108 बार "ॐ सांब सदाशिवाय नमः" मंत्र का जाप करते रहेंगे तो ज्यादा अनुकूलता मिलेगी ।
धारण करने के नियम :-
मेरी बुद्धि के अनुसार भगवान शिव किसी बंधन मे नहीं हैं तो उनका अंश रुद्राक्ष धारण करने के लिए भी किसी नियम की आवश्यकता नहीं है ।
इसे कोई भी पहन सकता है, जिसे भगवान शिव और जगदंबा पर पूर्ण विश्वास हो ।
शुद्धि अशुद्धि के विषय मे बेवजह चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है ।
शुद्धि अशुद्धि के विषय मे अगर आपको बहुत चिंता हो तो गंगा जल या शुद्ध जल से भरी कटोरी मे रुद्राक्ष रखकर 108 बार उपरोक्त मंत्र पढ़ लेंगे तो शुद्ध हो जाएगा फिर उसे पहन सकते हैं ।
विशेष :-
किसी प्रकार का संकट आने या कोई तंत्र प्रयोग या नकारात्मक शक्ति के आपसे टकराने की स्थिति मे रुद्राक्ष फट जाता है और आपकी रक्षा करता है । ऐसी स्थिति मे रुद्राक्ष को जल मे विसर्जित कर देंगे और यथाशीघ्र नया रुद्राक्ष धारण कर लेंगे ।
यदि आप चाहें तो आपको द्विमुखी रुद्राक्ष अभिमंत्रित करके हमारे संस्थान "अष्टलक्ष्मी पूजा सामग्री" द्वारा भेजा जा सकता है ।
इसका शुल्क मात्र 551=00 (रूपए पाँच सौ इंक्यावन मात्र ) होगा । इसमे पूजा,पेकेजिंग और पोस्टेज का खर्च शामिल है । जिसका भुगतान आप नीचे दिये QR कोड़ के माध्यम से कर सकते हैं ।
रुद्राक्ष को अभिमंत्रित करने के लिए आपको निम्नलिखित जानकारी
मोबाइल नंबर 7000630499
पर व्हात्सप्प से भेजनी होगी :-
आपका नाम
आपकी जन्मतिथि,स्थान,समय,गोत्र । [जो भी मालूम हो ] - इसके आधार पर रुद्राक्ष आपके नाम से अभिमंत्रित किया जाएगा ।
उपरोक्त जानकारी न हो तो एक लेटेस्ट फोटो, बिना चश्मे के ।
अपना पूरा डाक का पता, पिन कोड सहित ।
मोबाइल नंबर जिसपर आवश्यकता पड़ने पर पोस्टमेन आपसे संपर्क कर सके ।
पार्सल इंडिया पोस्ट के द्वारा स्पीड पोस्ट से भेजा जाएगा ।
यदि आप अन्य कूरियर सर्विस से प्राप्त करना चाहते हैं तो डिलिवरी कौरियर सर्विस से भेजा जा सकता है । उसके लिए अतिरिक्त शुल्क 100 रुपए आपको भेजना पड़ेगा । यानि कुल 651 रुपए भेजना पड़ेगा ।
24 जुलाई 2025
अभिमंत्रित पारद शिवलिंग
पारद शिवलिंग के विषय मे कहा गया है कि,
23 जुलाई 2025
भगवान सदाशिव तथा जगदम्बा की कृपा प्राप्ति के लिये मन्त्र
भगवान सदाशिव तथा जगदम्बा की कृपा प्राप्ति के लिये मन्त्र :-
- सवा लाख मन्त्र का एक पुरस्चरण होगा.
- शिवलिंग सामने रखकर साधना करें.
- समस्त प्रकार की मनोकामना पूर्ती के लिए प्रयोग किया जा सकता है.
- किसी अनुचित अनैतिक इच्छा से न करें गंभीर नुक्सान हो सकता है.
22 जुलाई 2025
पाशुपतास्त्र स्तोत्र
पाशुपतास्त्र स्तोत्र
श्रावण मास मे इस स्तोत्र का नियमित पाठ कर सकते है ..
इसका पाठ एक बार से ज्यादा न करें क्योंकि यह अत्यंत शक्तिशाली और ऊर्जा उत्पन्न करने वाला स्तोत्र है ।
विनियोग :-
हाथ मे पानी लेकर विनियोग पढे और जल जमीन पर छोड़ें ....
ॐ अस्य श्री पाशुपतास्त्र मंत्रस्य ब्रह्मा ऋषि: गायत्री छन्द: श्रीं बीजं हुं शक्ति: श्री पशुपतीनाथ देवता मम सकुटुंबस्य सपरिवारस्य सर्वग्रह बाधा शत्रू बाधा रोग बाधा अनिष्ट बाधा निवारणार्थं मम सर्व कार्य सिद्धर्थे [यहाँ अपनी इच्छा बोलें ] जपे विनियोग: ॥
कर न्यास :-
ॐ अंगुष्ठाभ्यां नम: (अंगूठा और तर्जनी यानि पहली उंगली को आपस मे मिलाएं )
श्ल तर्जनीभ्यां नम: (अंगूठा और तर्जनी यानि पहली उंगली को आपस मे मिलाएं )
ईं मध्यमाभ्यां नम: (अंगूठा और मध्यमा यानि बीच वाली उंगली को आपस मे मिलाएं )
प अनामिकाभ्यां नम: (अंगूठा और अनामिका यानि तीसरी उंगली को आपस मे मिलाएं )
शु: कनिष्ठिकाभ्यां नम: (अंगूठा और कनिष्ठिका यानि छोटी उंगली को आपस मे मिलाएं )
हुं फट करतल करपृष्ठाभ्यां नम: (दोनों हाथों को आपस मे रगड़ दें )
हृदयादि न्यास :-
अपने हाथ से संबंधित अंगों को स्पर्श कर लें ।
ॐ हृदयाय नम:
श्ल शिरसे स्वाहा
ईं शिखायै वषट
प कवचाय हुं
शु: नेत्रत्रयाय वौषट
हुं फट अस्त्राय फट
ध्यान
मध्यान्ह अर्कसमप्रभं शशिधरं भीम अट्टहासोज्वलं
त्र्यक्षं पन्नगभूषणं शिखिशिखाश्मश्रू स्फुरन्मूर्धजम
हस्ताब्जैस्त्रिशिखं समुदगरमसिं शक्तिं दधानं विभुं
दंष्ट्राभीमचतुर्मुखं पशुपतिं दिव्यास्त्ररुपं स्मरेत !!
अर्थ :- जो मध्यान्ह कालीन अर्थात दोपहर के सूर्य के समान कांति से युक्त है , चंद्रमा को धारण किये हुये हैं । जिनका भयंकर अट्टहास अत्यंत प्रचंड है । उनके तीन नेत्र है तथा शरीर मे सर्पों का आभूषण सुशोभित हो रहा है ।
उनके ललाट मे स्थित तीसरे नेत्र से निकलती अग्नि की शिखा से श्मश्रू तथा केश दैदिप्यमान हो रहे है ।
जो अपने कर कमलो मे त्रिशूल , मुदगर , तलवार , तथा शक्ति धारण किये हुये है ऐसे दंष्ट्रा से भयानक चार मुख वाले दिव्य स्वरुपधारी सर्वव्यापक महादेव का मैं दिव्यास्त्र के रूप मे स्मरण करता हूँ ।
अब नीचे दिये हुये स्तोत्र का पाठ करे ..
हर बार फट की आवाज के साथ आप शिवलिंग पर बेलपत्र पुष्प या चावल समर्पित कर सकते हैं ।
यदि किसी सामग्री की व्यवस्था ना हो पाए तो हर बार फट की आवाज के साथ एक ताली बजाएं ।
पाशुपतास्त्र
ॐ नमो भगवते महापाशुपताय अतुलबलवीर्य पराक्रमाय त्रिपंचनयनाय नानारुपाय नाना प्रहरणोद्यताय सर्वांगरक्ताय भिन्नांजनचयप्रख्याय श्मशानवेतालप्रियाय सर्वविघ्न निकृंतनरताय सर्वसिद्धिप्रदाय भक्तानुकंपिने असंख्यवक्त्र-भुजपादाय तस्मिन सिद्धाय वेतालवित्रासने शाकिनीक्षोभजनकाय व्याधिनिग्रहकारिणे पापभंजनाय सूर्यसोमाग्निनेत्राय विष्णुकवचाय खडगवज्रहस्ताय यमदंडवरुणपाशाय रूद्रशूलाय ज्वलजिव्हाय सर्वरोगविद्रावणाय ग्रहनिग्रहकारिणे दुष्टनागक्षयकारिणे !
ॐ कृष्णपिंगलाय फट !
ॐ हूंकारास्त्राय फट !
ॐ वज्रहस्ताय फट !
ॐ शक्तये फट !
ॐ दंडाय फट !
ॐ यमाय फट !
ॐ खडगाय फट !
ॐ निऋताय फट !
ॐ वरुणाय फट !
ॐ वज्राय फट !
ॐ पाशाय फट !
ॐ ध्वजाय फट !
ॐ अंकुशाय फट !
ॐ गदायै फट !
ॐ कुबेराय फट !
ॐ त्रिशूलाय फट !
ॐ मुदगराय फट !
ॐ चक्राय फट !
ॐ पद्माय फट !
ॐ नागास्त्राय फट !
ॐ ईशानाय फट !
ॐ खेटकास्त्राय फट !
ॐ मुंडाय फट !
ॐ मुंडास्त्राय फट !
ॐ कंकालास्त्राय फट !
ॐ पिच्छिकास्त्राय फट !
ॐ क्षुरिकास्त्राय फट !
ॐ ब्रह्मास्त्राय फट !
ॐ शक्त्यास्त्राय फट !
ॐ गणास्त्राय फट !
ॐ सिद्धास्त्राय फट !
ॐ पिलिपिच्छास्त्राय फट !
ॐ गंधर्वास्त्राय फट !
ॐ पूर्वास्त्राय फट !
ॐ दक्षिणास्त्राय फट !
ॐ वामास्त्राय फट !
ॐ पश्चिमास्त्राय फट !
ॐ मंत्रास्त्राय फट !
ॐ शाकिनि अस्त्राय फट !
ॐ योगिनी अस्त्राय फट !
ॐ दंडास्त्राय फट !
ॐ महादंडास्त्राय फट !
ॐ नमो अस्त्राय फट !
ॐ शिवास्त्राय फट !
ॐ ईशानास्त्राय फट !
ॐ पुरुषास्त्राय फट !
ॐ अघोरास्त्राय फट !
ॐ सद्योजातास्त्राय फट !
ॐ हृदयास्त्राय फट !
ॐ महास्त्राय फट !
ॐ गरुडास्त्राय फट !
ॐ राक्षसास्त्राय फट !
ॐ दानवास्त्राय फट !
ॐ क्षौं नरसिंहास्त्राय फट !
ॐ त्वष्ट्र अस्त्राय फट !
ॐ सर्वास्त्राय फट !
ॐ न: फट !
ॐ व: फट !
ॐ प: फट !
ॐ फ: फट !
ॐ म: फट !
ॐ श्री: फट !
ॐ पें फट !
ॐ भू: फट !
ॐ भुव: फट !
ॐ स्व: फट !
ॐ मह: फट !
ॐ जन: फट !
ॐ तप: फट !
ॐ सत्यं फट !
ॐ सर्व लोक फट !
ॐ सर्व पाताल फट !
ॐ सर्व तत्त्व फट !
ॐ सर्व प्राण फट !
ॐ सर्व नाडी फट !
ॐ सर्व कारण फट !
ॐ सर्व देव फट !
ॐ ह्रीम फट !
ॐ श्रीं फट !
ॐ ह्रूं फट !
ॐ स्त्रूं फट !
ॐ स्वां फट !
ॐ लां फट !
ॐ वैराग्यस्त्राय फट !
ॐ मायास्त्राय फट !
ॐ कामास्त्राय फट !
ॐ क्षेत्रपालास्त्राय फट !
ॐ हुंकारास्त्राय फट !
ॐ भास्करास्त्राय फट !
ॐ चंद्रास्त्राय फट !
ॐ विघ्नेश्वरास्त्राय फट !
ॐ गौ: गां फट !
ॐ ख्रों ख्रौं फट !
ॐ हौं हों फट !
ॐ भ्रामय भ्रामय फट !
ॐ संतापय संतापय फट !
ॐ छादय छादय फट !
ॐ उन्मूलय उन्मूलय फट !
ॐ त्रासय त्रासय फट !
ॐ संजीवय संजीवय फट !
ॐ विद्रावय विद्रावय फट !
ॐ सर्वदुरितं नाशय नाशय फट !
ॐ श्लीं पशुं हुं फट स्वाहा !
अंत मे एक नींबू काटकर शिवलिंग पर निचोड़ कर अर्पित कर दें ।
दोनों कान पकड़कर किसी भी प्रकार की त्रुटि के लिए क्षमा प्रार्थना करें ।