शवासन संस्थिते महाघोर रुपे ,
महाकाल प्रियायै चतुःषष्टि कला पूरिते |
घोराट्टहास कारिणे प्रचण्ड रूपिणीम,
अम्बे महाकालीम
तमर्चयेत सर्व काले ॥
मेरी अद्भुत स्वरूपिणी महामाया जो शव के आसन पर भयंकर रूप
धारण कर विराजमान है,
जो काल के अधिपति महाकाल की प्रिया हैं, जो
चौंषठ कलाओं से युक्त हैं, जो भयंकर अट्टहास से संपूर्ण जगत
को कंपायमान करने में समर्थ हैं, ऐसी प्रचंड स्वरूपा
मातृरूपा महाकाली की मैं सदैव अर्चना करता हूं |
उन्मुक्त केशी दिगम्बर रूपे,
रक्त प्रियायै
श्मशानालय संस्थिते ।
सद्य नर मुंड माला धारिणीम,
अम्बे महाकालीम
तमर्चयेत सर्व काले ॥
जिनकी केशराशि उन्मुक्त झरने के समान है ,जो
पूर्ण दिगम्बरा हैं, अर्थात हर नियम, हर
अनुशासन,हर विधि विधान से परे हैं , जो
श्मशान की अधिष्टात्री देवी हैं ,जो रक्तपान प्रिय हैं ,
जो ताजे कटे नरमुंडों की माला धारण किये हुए है ऐसी प्रचंड स्वरूपा
महाकाल रमणी महाकाली की मैं सदैव आराधना करता हूं |
क्षीण कटि युक्ते पीनोन्नत स्तने,
केलि प्रियायै
हृदयालय संस्थिते।
कटि नर कर मेखला धारिणीम,
अम्बे महाकालीम
तमर्चयेत सर्व काले ॥
अद्भुत सौन्दर्यशालिनी महामाया जिनकी कटि अत्यंत ही क्षीण है
और जो अत्यंत उन्नत स्तन मंडलों से सुशोभित हैं, जिनको केलि क्रीडा
अत्यंत प्रिय है और वे सदैव मेरे ह्रदय
रूपी भवन में निवास करती हैं . ऐसी महाकाल प्रिया महाकाली जिनके कमर में नर कर से
बनी मेखला सुशोभित है उनके श्री चरणों का मै सदैव अर्चन करता हूं ||
खङग चालन निपुणे रक्त चंडिके,
युद्ध प्रियायै
युद्धुभूमि संस्थिते ।
महोग्र रूपे महा रक्त पिपासिनीम,
अम्बे महाकालीम
तमर्चयेत सर्व काले ॥
देव सेना की महानायिका, जो खड्ग चालन में अति निपुण हैं,
युद्ध जिनको अत्यंत प्रिय है, असुरों और आसुरी
शक्तियों का संहार जिनका प्रिय खेल है,जो युद्ध भूमि की
अधिष्टात्री हैं , जो अपने महान उग्र रूप को धारण कर शत्रुओं
का रक्तपान करने को आतुर रहती हैं , ऐसी मेरी मातृस्वरूपा
महामाया महाकाल रमणी महाकाली को मै सदैव प्रणाम करता हूं |
मातृ रूपिणी स्मित हास्य युक्ते,
प्रेम प्रियायै
प्रेमभाव संस्थिते ।
वर वरदे अभय मुद्रा धारिणीम,
अम्बे महाकालीम
तमर्चयेत सर्व काले ॥
जो सारे संसार का पालन करने वाली मातृस्वरूपा हैं, जिनके
मुख पर सदैव अभय भाव युक्त आश्वस्त करने वाली मंद मंद मुस्कुराहट विराजमान रहती है
, जो प्रेममय हैं जो प्रेमभाव में ही स्थित हैं , हमेशा अपने साधकों को वर प्रदान करने को आतुर रहने वाली ,अभय प्रदान करने वाली माँ महाकाली को मै उनके सहस्र रूपों में सदैव प्रणाम
करता हूं |
|| इति श्री निखिल शिष्य अनिल कृत
महाकाल रमणी स्तोत्रं सम्पूर्णम ||
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
आपके सुझावों के लिये धन्यवाद..
आपके द्वारा दी गई टिप्पणियों से मुझे इसे और बेहतर बनाने मे सहायता मिलेगी....
यदि आप जवाब चाहते हैं तो कृपया मेल कर दें . अपने अल्पज्ञान से संभव जवाब देने का प्रयास करूँगा.मेरा मेल है :-
dr.anilshekhar@gmail.com