लक्ष्मी प्राप्ति हेतु गणपति साधना
गजाननं भूतगणादि सेवितं कपीत्थ जम्बू फल चारू भक्षितम ।
उमासुतम शोक विनाशकारणम नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम ।
गज के समान मुख वाले, भूतादि गण जिनकी सेवा करते हैं ऐसे विविध भोज्य पदार्थों के प्रेमी तथा बाधओं को दूर करने वाले देवी जगदम्बा के प्रियपुत्र भगवान गणेश के चरण कमलों को मैं सादर प्रणाम करता हूं ।
कलियुग में फलदायक साधनाओं के विषय में कहा गया है कि:-
‘कलौ चण्डी विनायकौ’
अर्थात कलियुग में चण्डी तथा गणपति साधनायें ज्यादा फलप्रद होंगी।
गणपति साधना को प्रारंभिक तथा अत्यंत लाभप्रद साधनाओं में गिना जाता है। योगिक विचार में मूलाधार चक्र को कुण्डली का प्रारंभ माना जाता है तथा गणपति उसके स्वामी माने जाते हैं। साथ ही शिव शक्ति के पुत्र होने के कारण दोनों की संयुक्त कृपा प्रदान करते हैं।
भगवती लक्ष्मी को चंचला कहा गया है । चंचला अर्थात जो एक स्थान पर ज्यादा देर तक न रह सकती हो । केवल लक्ष्मी का पूजन तथा साधना यद्यपि फलदायक होती है मगर अल्पकालिक होती है । लक्ष्मी के साथ गणपति का पूजन लक्ष्मी को स्थायित्व प्रदान करता है।
आगे की पंक्तियों में भगवान गणपति का एक स्तोत्र प्रस्तुत है। इस स्तोत्र का नित्य पाठ करना लाभप्रद होता है। यद्यपि यह कहना उचित नही होगा कि इस स्तोत्र के पाठ से आप धनवान बन जायेंगें, परंतु धनागमन के नए मार्गों के संबंध में नए विचार उपाय आदि आपके मस्तिष्क में उत्पन्न होंगें, जिनका सही प्रयोग कर आप धन प्राप्ति कर सकेंगें।
गणपति स्तोत्र
ऊं नमो विघ्नराजाय सर्वसौख्य प्रदायिने ।
दुष्टारिष्ट विनाशाय पराय परात्मने ।
लम्बोदरं महावीर्यं नागयज्ञोपशोभितं ।
अर्धचंद्रधरं देवं विघ्न व्यूह विनाशनम ।
ॐ हृॉं हृीं ह्रूँ हृैं हृौं हृः हेरम्बाय नमः ।
सर्व सिद्धिप्रदो सि त्वं सिद्धिबुद्धिप्रदो भवतः ।
चिंतितार्थ प्रदस्त्वं हि सततं मोदकप्रियः ।
सिंदूरारूण वस्त्रेश्च पूजितो वरदायकः ।
फलश्रुति:-
इदं गणपति स्तोत्रं यः पठेद भक्तिमान नरः ।
तस्य देहं च गेहं च लक्ष्मीर्न मुश्चति ।
इस स्तोत्र का 108 पाठ करें। इससे पहले भगवान गणपति के सामने अपनी इच्ठा या मनोकामना रखें तथा इसका पाठ प्रारंभ करें । भगवान गणपति की कृपा से आपको अपनी इच्ठा की पूर्ति में अवश्य सहायता मिलेगी।
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