1 अक्टूबर 2024

श्री कालिकाष्टकम्

 


विरञ्च्यादिदेवास्त्रयस्ते गुणास्त्रीम ,
समाराध्य कालीम  प्रधाना बभूवुः ।
अनादिम  सुरादिम मखादिम भवादिम,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥ 1 ॥

जगन्मोहनीयम तु वाग्वादिनीयम,
सुह्रित्पोषिणी शत्रुसन्हारिणीयम् ।
वचस्स्तम्भनीयम् किमुच्चाटनीयम्,
स्वरुपम् त्वदीयम् न विन्दति देवाः ॥ 2 ॥

इयम् स्वर्गदात्री पुनः कल्पवल्ली,
मनोजास्तु कामान्यथार्थ प्रकुर्यात् ।
तथा ते कृतार्था  भवंतीति नित्यम्,
स्वरुपम् त्वदीयम् न विन्दन्ति देवाः ॥ 3 ॥

सुरापानमत्ता सुभक्तानुरक्ता,
लसत्पूतचित्ते सदाविर्भवस्ते ।
जपध्यानपूजासुधाधौतपङ्काः,
स्वरुपम् त्वदीयम् न विन्दन्ति देवाः ॥ 4 ॥

चिदानन्दकन्दम  हसन्मन्दमन्दम ,
शरच्चन्द्रकोटिप्रभापुञ्जबिम्बम् ।
मुनीनाम् कवीनाम् ह्रदि द्योतयन्तम्,
स्वरुपम् त्वदीयम् न विन्दन्ति देवाः ॥ 5 ॥

महामेघकाली सुरक्तापि शुभ्रा,
कदाचिद्विचित्राकृतिर्योगमाया ।
न बाला, न वृध्दा, न कामातुरापि,
स्वरुपम् त्वदीयम् न विन्दन्ति देवाः ॥ 6 ॥

क्षमस्वापराधं महागुप्तभावं,
मयि लोकमध्ये प्रकाशीकृतं यत् ।
तव ध्यानपूतेन चापल्यभावात्,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥ 7 ॥

यदि ध्यानयुक्तम पठेद्यो मनुष्य-
स्तदा सर्वलोके विशालो भवेच्च ।
गृहे चाष्टसिध्दिमृते चापि मुक्तिः,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥ 8 ॥



भगवती महाकाली के ध्यान के रूप में आप इसे पढ़ सकते हैं उनकी स्तुति के रूप में इसे पढ़ सकते हैं और उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं ।


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