गर्भस्थ शिशु को चेतना देकर उसे विशेष बनाएं
गर्भस्थ शिशु के ऊपर मां के द्वारा किए जा रहे क्रियाकलापों का काफी प्रभाव पड़ता है । ऐसा माना जाता है कि अगर गर्भावस्था में मां पढ़ने लिखने पर ध्यान देती है तो होने वाला शिशु भी बुद्धिमान पैदा होता है । इसी प्रकार अगर माँअपने स्वास्थ्य पर ध्यान दें और पौष्टिक पदार्थों का सेवन करें तो शिशु के स्वस्थ होने की संभावना बढ़ जाती है ।
आध्यात्मिक रूप से यह कहा जाता है कि अगर मां गर्भावस्था में गीता जैसे धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन करें तो शिशु के अंदर धर्म के प्रति श्रद्धा जन्म से ही मौजूद रहती है । यदि मां पढ़ने में अक्षम हो तो पिता उसे पढ़कर सुना सकता है । इसका एक उदाहरण हम महाभारत में देखते हैं जहां अर्जुन ने सुभद्रा को चक्रव्यूह के विषय में बताया था और गर्भ में स्थित उसके बालक अभिमन्यु को उसकी जानकारी हो गई थी ।
यदि आप गर्भवती हैं और अपने शिशु के अंदर आध्यात्मिक चेतना विकसित करना चाहते हैं तो आप गुरुदेव डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी द्वारा प्रदत्त निम्नलिखित चेतना मंत्र का रोज यथाशक्ति जाप कर सकते हैं :-
॥ ॐ ह्रीम मम प्राण देह रोम प्रतिरोम चैतन्य जाग्रय ह्रीम ॐ नमः ॥
इस मंत्र का तात्पर्य है कि हे जगत जननी माता भुवनेश्वरी ! मेरे प्राण ! मेरी देह ! मेरे रोम ! मेरे प्रति रोम अर्थात मेरे सारे अंग प्रत्यंग को चैतन्य करें ! उनमें चेतना प्रदान करें ! उनको जागृति अर्थात ऊर्जा प्रदान करें !! ऐसी भावना करते हुए मैं माता भुनेश्वरी के चरणों में प्रणाम करता हूं ।
अगर आप गर्भवती हैं तो आप अपने साथ-साथ अपने गर्भ में स्थित शिशु के लिए भी ऐसी ही प्रार्थना करते हुए यह मंत्र जाप कर सकते हैं ।
यदि रोज ना कर पाएं तो नवरात्रि के अवसर पर आप उसका यथाशक्ति जप कर सकती हैं ।
यदि यह मंत्र ज्यादा बड़ा लगे तो आप माता भुनेश्वरी के बीज मंत्र
॥ ह्रीम ॥
का जाप भी कर सकते हैं ।
इसे आप चलते फिरते भी जाप कर सकते हैं ।
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