24 जुलाई 2024

रुद्राक्ष : एक अद्भुत आध्यात्मिक फल



रुद्राक्ष : एक अद्भुत आध्यात्मिक फल 


रुद्राक्ष दो शब्दों से मिलकर बना है रूद्र और अक्ष । 

रुद्र = शिव, अक्ष = आँख 

ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव के आंखों से गिरे हुए आनंद के आंसुओं से रुद्राक्ष के फल की उत्पत्ति हुई थी । 

रुद्राक्ष एक मुखी से लेकर इक्कीस मुखी तक पाए जाते हैं । 

रुद्राक्ष साधकों के लिए एक महत्वपूर्ण चीज है लगभग सभी साधनाओं में रुद्राक्ष की माला को स्वीकार किया जाता है एक तरह से आप इसे माला के मामले में ऑल इन वन कह सकते हैं 


अगर आप तंत्र साधनाएं करते हैं या किसी की समस्या का समाधान करते हैं तो आपको रुद्राक्ष की माला अवश्य पहननी चाहिए ।


यह एक तरह की आध्यात्मिक बैटरी है जो आपके मंत्र जाप और साधना के द्वारा चार्ज होती रहती है और वह आपके इर्द-गिर्द एक सुरक्षा घेरा बनाकर रखती है जो आपकी रक्षा तब भी करती है जब आप साधना से उठ जाते हैं और यह रक्षा मंडल आपके चारों तरफ दिनभर बना रहता है ।

पंचमुखी रुद्राक्ष सबसे सुलभ और सस्ते होते हैं । जैसे जैसे मुख की संख्या कम होती जाती है उसकी कीमत बढ़ती जाती है । एक मुखी रुद्राक्ष सबसे दुर्लभ और सबसे महंगे रुद्राक्ष है । इसी प्रकार से पांच मुखी रुद्राक्ष के ऊपर मुख वाले रुद्राक्ष की मुख की संख्या के हिसाब से उसकी कीमत बढ़ती जाती है । 21 मुखी रुद्राक्ष भी बेहद दुर्लभ और महंगे होते हैं ।

पांच मुखी रुद्राक्ष सामान्यतः हर जगह उपलब्ध हो जाता है और आम आदमी उसे खरीद भी सकता है पहन भी सकता है । पाँच मुखी रुद्राक्ष के अंदर भी आध्यात्मिक शक्तियों को समाहित करने के गुण होते हैं ।


गृहस्थ व्यक्ति , पुरुष या स्त्री , पांच मुखी रुद्राक्ष की माला धारण कर सकते हैं और अगर एक दाना धारण करना चाहे तो भी धारण कर सकते हैं ।

रुद्राक्ष की माला से बीपी में भी अनुकूलता प्राप्त होती है


रुद्राक्ष पहनने के मामले में सबसे ज्यादा लोग नियमों की चिंता करते हैं ।

मुझे ऐसा लगता है कि जैसे भगवान शिव किसी नियम किसी सीमा के अधीन नहीं है, उसी प्रकार से उनका अंश रुद्राक्ष भी परा स्वतंत्र हैं । उनके लिए किसी प्रकार के नियमों की सीमा का बांधा जाना उचित नहीं है


रुद्राक्ष हर किसी को सूट नहीं करता यह भी एक सच्चाई है और इसका पता आपको रुद्राक्ष की माला पहनने के महीने भर के अंदर चल जाएगा । अगर रुद्राक्ष आपको स्वीकार करता है तो वह आपको अनुकूलता देगा ।

आपको मानसिक शांति का अनुभव होगा आपको अपने शरीर में ज्यादा चेतना में महसूस होगी......

आप जो भी काम करने जाएंगे उसमें आपको अनुकूलता महसूस होगी ....

ऐसी स्थिति में आप रुद्राक्ष को धारण कर सकते हैं वह आपके लिए अनुकूल है !!!


इसके विपरीत स्थितियाँ होने से आप समझ जाइए कि आपको रुद्राक्ष की माला नहीं पहननी है ।


इसके बाद सबसे ज्यादा संशय की बात होती है कि रुद्राक्ष असली है या नहीं है । आज के युग में 100% शुद्धता की बात करना बेमानी है । ऑनलाइन में कई प्रकार के सर्टिफाइड रुद्राक्ष भी उपलब्ध है । उनमें से भी कई नकली हो सकते हैं, ऐसी स्थिति में मेरे विचार से आप किसी प्रामाणिक गुरु से या आध्यात्मिक संस्थान से रुद्राक्ष प्राप्त करें तो ज्यादा बेहतर होगा ।




तमिलनाडु में कोयंबटूर नामक स्थान पर सद्गुरु के नाम से लोकप्रिय आध्यात्मिक संत जग्गी वासुदेव जी के द्वारा ईशा फाउंडेशन नामक एक संस्था की स्थापना की गई है । जो आदियोगी अर्थात भगवान शिव के गूढ़ रहस्यों को जन जन तक पहुंचाने के लिए निरंतर गतिशील है । उनके द्वारा एक अद्भुत और संभवतः विश्व के सबसे बड़े पारद शिवलिंग की स्थापना भी की गई है । यही नहीं एक विशालकाय आदियोगी भगवान शिव की प्रतिमा का भी निर्माण किया गया है , जिसके प्रारंभ के उत्सव में स्वयं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भी उपस्थित थे ।


ईशा फाउंडेशन के द्वारा कुछ विशेष अवसरों पर निशुल्क प्राण प्रतिष्ठित रुद्राक्ष भी उपलब्ध कराए जाते हैं जैसा कि शिवरात्रि के अवसर पर इस वर्ष किया गया था ।


इसके अलावा रुद्राक्ष की छोटे मनको वाली और बड़े मनको वाली माला जोकि सदगुरुदेव द्वारा प्राण प्रतिष्ठित होती है, वह आप ऑनलाइन प्राप्त कर सकते हैं । ज्यादा जानकारी के लिए आप ईशा फाउंडेशन गूगल में सर्च करके देख सकते हैं ।

उनकी वेबसाइट का एड्रेस है . 

https://www.ishalife.com/in/


23 जुलाई 2024

रुद्राक्ष : असली या नकली

  रुद्राक्ष : असली या नकली


रुद्राक्ष लेते समय सबसे ज्यादा संशय की बात होती है कि रुद्राक्ष असली है या नहीं है । हम कितने शुद्ध हैं यह पहले सोचना चाहिए लेकिन वह कोई नहीं सोचता .....
खैर....
रुद्राक्ष की फ़ार्मिंग होनी शुरू हो चुकी है इसलिए अब ये आसानी से उपलब्ध हैं । आज के युग में 100% शुद्धता की बात करना बेमानी है ।
ऑनलाइन में कई प्रकार के सर्टिफाइड रुद्राक्ष भी उपलब्ध है । उनमें से भी कई नकली हो सकते हैं, ऐसी स्थिति में मेरे विचार से आप किसी प्रामाणिक गुरु से या आध्यात्मिक संस्थान से रुद्राक्ष प्राप्त करें तो ज्यादा बेहतर होगा ।
आप चाहें तो सद्गुरु जग्गी वसुदेव की संस्था ईशा फाउंडेशन से ऑनलाइन मंगा सकते हैं ।


website
https://www.ishalife.com/in/rudraksha

उनके पास कई प्रकार के रूद्राक्ष और रुद्राक्ष मालाएँ उपलब्ध है । उनमें से दो मुझे बहुत बढ़िया लगे ।

पहला चौदह साल से छोटे बच्चों के लिए पढ़ाई में सहायक 6 मुखी रुद्राक्ष और दूसरा सुखी विवाहित जीवन के लिए द्विमुखी रुद्राक्ष ....

और भी हैं जिसे आप अपनी इच्छानुसार ले सकते हैं


उसी वेब साइट पर रुद्राक्ष के रखरखाव के विषय मे भी अच्छी जानकारी दी गयी है ।
https://www.ishalife.com/in/hi/the-rudraksha-guide


22 जुलाई 2024

भगवान शिव को बेलपत्र चढ़ाने के 108 मंत्र

 

गुरुदेव नारायण दत्त श्रीमाली जी की आवाज मे अकाल मृत्यु निवारक मंत्र ।

   गुरुदेव नारायण दत्त श्रीमाली जी की आवाज मे अकाल मृत्यु निवारक मंत्र ।

इस मंत्र को निरंतर सुनते रहने से अकाल मृत्यु तथा रोग निवारण मे लाभदायक है ।



कार्य सिद्धि दीक्षा का मंत्र

जिन पठकों ने कार्य सिद्धि दीक्षा प्राप्त की है वे निम्नलिखित मंत्र का कुल 10000 की संख्या में जाप अपने कार्य के निमित्त कर लेंगे तो उनको अनुकूलता दिसंबर तक प्राप्त हो जाएगी। ऐसा गुरुदेव ने निर्देशित किया है ।

21 जुलाई 2024

गुरुपुर्णिमा विशेष ब्रह्मांडीय गुरुमंडल साधना

 







गुरुपुर्णिमा विशेष ब्रह्मांडीय गुरुमंडल साधना
( दुर्लभ गुरु अष्टोत्तर शत नामावली सहित )
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यहां पर गुरुपौर्णिमा के पर्व पर करने के लिये मैं ब्रम्हांड के समस्त गुरुमंडल की एक छोटी साधना प्रस्तुत कर रहा हूँ जो की उन लोगों को ध्यान में रखकर बनायी है जो ज्यादा समय तक साधना नहीं कर सकते या जटिल पूजन विधि नहीं कर सकते। यह पूजन किसी एक गुरु परंपरा का नही वरन समस्त गुरुपरंपरा का है इसलिए इसे कोइ भी कर सकता है .. अगर आपके कोइ गुरु नही है तो भी करे .. आपको समस्त गुरुमंडल की कृपा प्राप्त होगी ..
1.       सब पहले आपके सामने गुरुदेव जी का गुरुमंडल अंतर्गत आनेवाले किसीभी योगी या संत का कोई भी चित्र या यंत्र या मूर्ति हो। इनमेसे कुछ भी नही तो आपके रत्न या रुद्राक्ष पर पूजन करे .
2.       घी का दीपक या तेल का दीपक या दोनों दीपक जलाये। 
3.       धुप अगरबत्ती जलाये।
4.       बैठने के लिए आसन हो। 
5.       जाप के लिए रुद्राक्ष माला या स्फटिक माला ले
6.       एक आचमनी पात्र जल पात्र रखे।
7.       हल्दी,कुंकुम ,चन्दन,अष्टगंध और अक्षत पुष्प ,नैवेद्य के लिए मिठाई या दूध या कोई भी वस्तु ,फल भी एकत्रित करे। 
8.       अगर यह सामग्री नहीं है तो मानसिक पूजन करे

सबसे पहले गुरु ,गणेश इन्हे वंदन करे

ॐ गुं गुरुभ्यो नम: 

ॐ श्री गणेशाय नम: 

ऐं ह्रीं श्रीं श्री ललितायै नम: 

ॐ श्री गुरुमंडलाय नम:

फिर आचमन करे 

ऐं आत्मतत्वाय स्वाहा 

ऐं विद्या तत्वाय स्वाहा 

ऐं शिव तत्वाय स्वाहा 

ऐं सर्व तत्वाय स्वाहा

फिर गुरु स्मरण करे और पुजन के लिये पुष्प अक्षत अर्पण करे

ॐ श्री गुरुभ्यो नम: 


ॐ श्री परम गुरुभ्यो नम: 


ॐ श्री पारमेष्ठी गुरुभ्यो नम:

 

अब आसन पर पुष्प अक्षत अर्पण करे

ॐ पृथ्वी देव्यै नमः


चारो तरफ दिशा बंधन हेतु अक्षत फेके और अपनी शिखा पर दाहिना हाथ रखे
फिर दीपक को प्रणाम करे


दीप देवताभ्यो नमः

कलश में जल डाले और उसमे चन्दन या सुगन्धित द्रव्य डाले

कलश देवताभ्यो नमः


अब अपने आप को तिलक करे
गणेश जी के लिये पुष्प अक्षत अर्पण करे

वक्रतुंड महाकाय सुर्यकोटी समप्रभ 

निर्विघ्नम कुरु मे देव सर्व कार्येषु सर्वदा


अब आप हाथ मे जल ,अक्षत ,पुष्प लेकर तिथी वार नक्षत्र आदि का स्मरण कर संकल्प करे की आप आज गुरुपौर्णिमा के पावन पर्व पर अपने सदगुरुदेव एवं संपूर्ण गुरुमंडल की कृपा प्राप्ति हेतु गुरुपूजन संपन्न कर रहे है और उनकी कृपा प्राप्त हो और आपकी आध्यात्मिक एवं भौतिक उन्नती हो और आपकी जो भी समस्या है उसका निवारण हो ..

गुरुस्मरण कर सर्वप्रथम उनका आवाहन करे

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर: 

गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नम:

ध्यान मूलं गुरु: मूर्ति पूजा मूलं गुरो पदं 

मंत्र मूलं गुरुर्वाक्य मोक्ष मूलं गुरुकृपा

गुरुकृपा हि केवलं

गुरुकृपा हि केवलं 

गुरुकृपा हि केवलं

गुरुकृपा हि केवलं

 

श्री सदगुरु चरण कमलेभो नम: प्रार्थना पुष्पं समर्पयामि


श्री सदगुरु मम ह्रदये आवाहयामि स्थापयामि नम:
सदगुरुदेव का अब पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन करे .. यहाँ पर पंचोपचार पूजन प्रस्तुत किया है ..

ॐ गुं गुरुभ्यो नम: गंधं समर्पयामि


ॐ गुं गुरुभ्यो नम: पुष्पम समर्पयामि


ॐ गुं गुरुभ्यो नम: धूपं समर्पयामि


ॐ गुं गुरुभ्यो नम: दीपं समर्पयामि


ॐ गुं गुरुभ्यो नम: नैवेद्यम समर्पयामि


अब गुरु पंक्ति का पूजन करे

ॐ गुरुभ्यो नम:
ॐ परम गुरुभ्यो नम:
ॐ परात्पर गुरुभ्यो नम:
ॐ पारमेष्ठी गुरुभ्यो नम:
ॐ दिव्यौघ गुरुपंक्तये नम:
ॐ सिद्धौघ गुरुपंक्तये नम:
ॐ मानवौघ गुरुपंक्तये नम:

अब गुरु अष्टोत्तर शत नामावली से एकेक नाम का उच्चारण करते हुये पुष्प अक्षत अर्पण करते जाये ..

श्री सदगुरु अष्टोत्तरशत नामावली
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1) ॐ सदगुरवे नम:
2) ॐ अज्ञान नाशकाय नम:
3) ॐ अदंभिने नम:
4) ॐ अद्वैतप्रकाशकाय नम:
5) ॐ अनपेक्षाय नम:
06) ॐ अनसूयवे नम:
07) ॐ अनुपमाय नम:
08) ॐ अभयप्रदात्रे नम:
09) ॐ अमानिने नम:
10) ॐ अहिंसामूर्तये नम:
11) ॐ अहैतुकस्दयासिंधवे नम:
12) ॐ अहंकारनाशकाय नम:
13) ॐ अहंकारवर्जिताय नम:
14) ॐ आचार्येंद्राय नम:
15) ॐ आत्मसंतुष्टाय नम:
16) ॐ आनंदमूर्तये नम:
17) ॐ आर्जवयुक्ताय नम:
18) ॐ उचितवाचे नम:
19) ॐ उत्साहिने नम:
20) ॐ उदासीनाय नम:
21) ॐ उपरताय नम:
22) ॐ ऐश्वर्ययुक्ताय नम:
23) ॐ कृतकृत्याय नम:
24) ॐ क्षमावते नम:
25) ॐ गुणातीताय नम:
26) ॐ चारुवाग्विलासाय नम:
27) ॐ चारुहासाय नम:
28) ॐ छिन्नसंशयाय नम:
29) ॐ ज्ञानदात्रे नम:
30) ॐ ज्ञानयज्ञतत्पराय नम:
31) ॐ तत्त्वदर्शिने नम:
32) ॐ तपस्विने नम:
33) ॐ तापहराय नम:
34) ॐ तुल्यनिंदास्तुतये नम:
35) ॐ तुल्यप्रियाप्रियाय नम:
36) ॐ तुल्यमानापमानाय नम:
37) ॐ तेजस्विने नम:
38) ॐ त्यक्तसर्वपरिग्रहाय नम:
39) ॐ त्यागिने नम:
40) ॐ दक्षाय नम:
41) ॐ दांताय नम:
42) ॐ दृढव्रताय नम:
43) ॐ दोषवर्जिताय नम:
44) ॐ द्वंद्वातीताय नम:
45) ॐ धीमते नम:
46) ॐ धीराय नम:
47) ॐ नित्यसंतुष्टाय नम:
48) ॐ निरहंकाराय नम:
49) ॐ निराश्रयाय नम:
50) ॐ निर्भयाय नम:
51) ॐ निर्मदाय नम:
52) ॐ निर्ममाय नम:
53) ॐ निर्मलाय नम:
54) ॐ निर्मोहाय नम:
55) ॐ निर्योगक्षेमाय नम:
56) ॐ निर्लोभाय नम:
57) ॐ निष्कामाय नम:
58) ॐ निष्क्रोधाय नम:
59) ॐ नि:संगाय नम:
60) ॐ परमसुखदाय नम:
61) ॐ पंडिताय नम:
62) ॐ पूर्णाय नम:
63) ॐ प्रमाण प्रवर्तकाय नम:
64) ॐ प्रियभाषिणे नम:
65) ॐ ब्रह्मकर्मसमाधये नम:
66) ॐ ब्रह्मात्मनिष्ठाय नम:
67) ॐ ब्रह्मात्मविदे नम:
68) ॐ भक्ताय नम:
69) ॐ भवरोगहराय नम:
70) ॐ भुक्तिमुक्तिप्रदात्रे नम:
71) ॐ मंगलकर्त्रे नम:
72) ॐ मधुरभाषिणे नम:
73) ॐ महात्मने नम:
74) ॐ महावाक्योपदेशकर्त्रे नम:
75) ॐ मितभाषिणे नम:
76) ॐ मुक्ताय नम:
77) ॐ मौनिने नम:
78) ॐ यतचित्ताय नम:
79) ॐ यतये नम:
80) ॐ यद इच्छा लाभ संतुष्टाय नम:
81) ॐ युक्ताय नम:
82) ॐ रागद्वेषवर्जिताय नम:
83) ॐ विदिताखिलशास्त्राय नम:
84) ॐ विद्याविनयसंपन्नाय नम:
85) ॐ विमत्सराय नम:
86) ॐ विवेकिने नम:
87) ॐ विशालहृदयाय नम:
88) ॐ व्यवसायिने नम:
89) ॐ शरणागतवत्सलाय नम:
90) ॐ शांताय नम:
91) ॐ शुद्धमानसाय नम:
92) ॐ शिष्यप्रियाय नम:
93) ॐ श्रद्धावते नम:
94) ॐ श्रोत्रियाय नम:
95) ॐ सत्यवाचे नम:
96) ॐ सदामुदितवदनाय नम:
97) ॐ समचित्ताय नम:
98) ॐ समाधिकस्वर्जिताय नम:
99) ॐ समाहितचित्ताय नम:
100) ॐ सर्वभूतहिताय नम:
101) ॐ सिद्धाय नम:
102) ॐ सुलभाय नम:
103) ॐ सुशीलाय नम:
104) ॐ सुह्रदये नम:
105) ॐ सूक्ष्मबुद्धये नम:
106) ॐ संकल्पवर्जिताय नम:
107) ॐ संप्रदायविदे नम:
108) ॐ स्वतंत्राय नम:

!! इति श्री सदगुरु अष्टोत्तरशत नामावली !!

अब एक आचमनी जल लेकर निम्न मंत्र पढकर अर्पण करे

अनेन श्री गुरु अष्टोत्तर शत नामावली द्वारा पूजनेन श्री गुरुदेव सहित समस्त गुरुमंडल देवता प्रीयतां न मम ..

जिन्हे गुरुमंडल का पूजन न करना हो वे सिधे पूजन के अंत मे जाकर अर्घ्य प्रदान करे और मंत्र जाप करे ..
जिंन्हे गुरुमंडल का पूजन करना हो वे आगे का पूजन continue रखे ..
वैसे सभी साधकों से निवेदन है वे यह पूजन अवश्य करे इस पूजन से समस्त गुरुओं का पूजन हो जाता है और गुरुपुर्णिमा के अवसर पर इस पूजन को करने से सभी गुरुओं की कृपा प्राप्त होती है ..

अब पहले हाथ मे पुष्प लेकर समस्त गुरुमंडल का ध्यान करे

नारायण समारंभा शंकराचार्य मध्यमाम
अस्मदाचार्य पर्यंतां वंदे गुरुपरंपराम !!
श्रीनाथादि गुरुत्रयं गणपतिं पीठत्रयं भैरवं
सिद्धौघ बटुकत्रयं पदयुगं दूतीक्रमं मंडलं !!
वीरांद्वष्ट चतुष्कषष्ठीनवकं वीरावलीपंचकं
श्रीमन्मालिनी मंत्रराजसहितं वंदे गुरोर्मंडलं !!

गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:
गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम: !!

अखंडमंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरं
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नम: !!

अज्ञानतिमिरांधस्य ज्ञानांजनशलाकया
चक्षुरुन्मिलितं येन तस्मै श्रीगुरवे नम: !!

वंदे गुरुपदद्वंदवांग्मनस गोचरं
रक्त शुक्ल प्रभामिश्रमतर्क्यं मह : !!

नमोस्तु गुरवे तस्मै स्वेष्ट देविस्वरुपिणे
यस्य वाकममृतं हंति विषं संसारसंज्ञकम !!

समस्त गुरुमंडल आवाहयामि मम पूजा स्थाने स्थापयामि नम:

समस्त गुरुमंडल गुरुभ्यो नम: पंचोपचार पूजनं समर्पयामि

श्री गुरुमंडल गुरुभ्यो नम: गंध समर्पयामि
श्री गुरुमंडल गुरुभ्यो नम: पुष्प समर्पयामि
श्री गुरुमंडल गुरुभ्यो नम: धूपं समर्पयामि
श्री गुरुमंडल गुरुभ्यो नम: दीपं समर्पयामि
श्री गुरुमंडल गुरुभ्यो नम: नैवेद्यं समर्पयामि

अब गुरुमंडल का पूजन शुरु करे ..
गुरुमंडल अंतर्गत एकेक गुरु का नाम लेकर पूजयामि कहकर पुष्पअक्षत अर्पण करे और तर्पयामि कहकर एक आचमनी जल अर्पण करे ..

सबसे पहले श्री व्यास जी स्मरण करे

वेदव्यासं श्यामरुपं सत्यसंघं परायणम
शांतेंद्रियं जित्क्रोधं सशिष्यं प्रणमाम्यहम् !!

व्यास पंचकं

ॐ श्री व्यासाय नम: ! वेदव्यासं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम: !!
ॐ वैशंपायनाय नम: ! वैशंपायनं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम: !!

ॐ सुमंताय नम: ! सुमंतं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम: !!

ॐ जैमिनये नम: ! जैमिनिं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम: !!

ॐ पैलाय नम: ! पैलं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

!! इति व्यासपंचकं पूजनम !!

अब श्री शंकराचार्य जी का स्मरण करे

सर्वशास्त्रार्थतत्वज्ञम परमानंदविग्रहं
ब्रम्हण्यं शंकराचार्यं प्रणमामि विवेकिनम
परात्परतरं शांतं योगींद्रं योगसेविनं
शांतेंद्रियं जितक्रोधं सशिष्यं प्रणमाम्यहम् !!

शंकराचार्य पंचकं

ॐ शंकराचार्याय नम: ! शंकराचार्यं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ विश्वरुपाचार्याय नम:! विश्वरुपाचार्यं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ पद्मपादाचार्याय नम:! पद्मपादाचार्यं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ गौडपादाचार्याय नम: ! गौडपादाचार्यं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ हस्तामलकाचार्याय नम: ! हस्तमलकाचार्यं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ त्रोटकाचार्याय नम: ! त्रोटकाचार्यं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

!! इति शंकराचार्यं पूजनं !!

दिगंबरं कुमारं च विधिमानससनंदनं !
सनकं परंवैराग्यं मुनिमावाहयाम्यहम !!

ॐ सनकाय नम: सनकं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ सनंदनाय नम: सनंदनं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ सनतनाय नम: सनंदनं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ सनत्कुमाराय नम: सनत्कुमारम आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ सनत्सुजाताय नम: सनत्सुजातं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

!! इति सनकादि पूजनं !!

ॐ दत्तात्रेयाय नम: दत्तात्रेयं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ जीवन्मुक्ताय नम: जीवन्मुक्तं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ विधातृतनयाय नम: विधातृतनयं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ नारदाय नम: नारदं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ वामदेवाय नम: वामदेवं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ कपिलाय नम: कपिलं आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ब्रम्हानंद परम सुखदं केवलं ज्ञानमूर्तिं
द्वंदातितं गगनसदृश्यम एकमस्यादि लक्ष्यं
एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधिसाक्षिभूतं
भावातीतं त्रिगुणरहितं सदगुरुं तं नमामि

ॐ स्वगुरवे नम :
स्वगुरु ( अपने गुरु का नाम यहां पर ले )
स्वगुरु आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पुजयामि तर्पयामि नम:

ॐ परम गुरवे नम:
परमगुरु आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ परात्पर गुरवे नम:
परात्पर गुरु आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ परमेष्ठी गुरवे नम:
परमेष्ठी गुरु आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ पर गुरवे नम:
पर गुरु आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ सदाशिवाय नम:
सदाशिव आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ ईश्वराय नम:
ईश्वर आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ विष्णवे नम:
विष्णु आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ ब्रम्हाचार्याय नम:
ब्रम्हाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ नकुलाचार्याय नम:
नकुलाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ गौरिशाचार्याय नम:
गौरीशाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ अर्चिषाचार्याय नम:
अर्चिषाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ मैत्रेयाचार्याय नम:
मैत्रेयाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ कपिलाचार्याय नम:
कपिलाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ सिद्धशांतनाचार्याय नम:
सिद्धशांतनाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ अगस्ताचार्याय नम:
अगस्ताचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ पिंगाक्षाचार्याय नम:
पिंगाक्षाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ मनुगणाचार्याय नम:
मनुगणाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ पुष्पदंताचार्याय नम:
पुष्पदंताचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ शांतनाचार्याय नम:
शांतनाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ विद्याचार्याय नम:
विद्याचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ पंचधाचार्याय नम:
पंचधाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ व्रताचार्याय नम:
व्रताचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ दुर्वासाचार्याय नम:
दुर्वासाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ कौंडिन्याचार्याय नम:
कौंडिन्याचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ कौशिकाचार्याय नम:
कौशिकाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ भैरवाष्टकाचार्याय नम:
भैरवाष्टकाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ एकाक्षराचार्याय नम:
एकाक्षराचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ विश्वनाथाचार्याय नम:
विश्वनाथाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ सोमेश्वराचार्याय नम:
सोमेश्वराचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ वसिष्ठाचार्याय नम:
वसिष्ठाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ वाल्मिक्याचार्याय नम:
वाल्मिक्याचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ अत्र्याचार्याय नम:
अत्र्याचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ गर्गाचार्याय नम:
गर्गाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ पराशराचार्याय नम:
पराशराचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ वेदव्यासाचार्याय नम:
वेदव्यासाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ शुक्राचार्याय नम:
शुक्राचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ गौडपादाचार्याय नम:
गौडपादाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ गोविंदपादाचार्याय नम:
गोविंदपादाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ शंकराचार्याय नम:
शंकराचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ ऱामानंदाचार्याय नम:
रामानंदाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ रामानुजाचार्याय नम:
रामानुजाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ हयग्रीवाचार्याय नम:
हयग्रीवाचार्याय आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ सच्चिदानंदाचार्याय नम:
सच्चिदानंदाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ दामोदराचार्याय नम:
दामोदराचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ वैष्णवाचार्याय नम:
वैष्णवाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ सुश्रुताचार्याय नम:
सुश्रुताचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ चरकाचार्याय नम:
चरकाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ वाग्भटाचार्याय नम:
वाग्भटाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ नागार्जुनाचार्याय नम:
नागार्जुनाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ नित्यनाथाचार्याय नम:
नित्यनाथाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ धंन्वंतराचार्याय नम:
धंन्वंतराचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ द्राविणाचार्याय नम:
द्राविणाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

ॐ विवर्णाचार्याय नम:
विवर्णाचार्य आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम:

तद्वामत: समस्तविद्यासंप्रदायप्रवर्तकाचार्येभ्यो नम:
समस्तविद्यासंप्रदायप्रवर्तकाचार्यान आवाहयामि स्थापयामि श्री पादुकां पूजयामि तर्पयामि नम':

अब एक आचमनी जल अर्पण करे
अनेन पूजनेन स्वगुरु सहित समस्त गुरुमंडल देवता प्रीयतां मम !!

अब एक आचमनी जल मे चंदन मिलाकर अर्घ्य दे ..

ॐ गुरुदेवाय विद्महे परम गुरवे धीमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात्

ॐ परमहंसाय विद्महे महातत्त्वाय धीमहि तन्नो हंस: प्रचोदयात्

ॐ गुरुदेवाय विद्महे परमब्रम्हाय धीमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात्

अब गुरुमंत्र का यथाशक्ती जाप करे

जिन्होने किसी गुरु से गुरु दिक्षा ना ली हो वे " ऐं " इस एकाक्षर गुरु मंत्र बीज मंत्र का जाप करे ..

" ऐं " यह बीज ब्रह्माण्ड के सभी गुरुमंडल का बीज मंत्र है .. इस एकाक्षर मंत्र का यथाशक्ती स्फटिक माला या रुद्राक्ष माला से जाप करे ..

और निम्न गुरु मंत्र का भी यथाशक्ती जाप करे .. यह ब्रम्हाण्ड के शक्तिशाली गुरुपरंपरा का गुरुमंत्र है .. इसका नित्य जाप करने से सभी गुरुमंडल के गुरुओं की कृपा प्राप्त होती है ..

ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नम:

अब जप गुरुदेव को अर्पण करे

ॐ गुह्याति गुह्यगोप्ता त्वं गृहाणास्मत कृतं जपं
सिद्धिर्भवतु मे गुरुदेव त्वतप्रसादान्महेश्वर !!

अब एक आचमनी जल अर्पण करे

अनेन पूजनेन श्री गुरुदेव सहित समस्त गुरुमंडल देवता प्रीयंताम !!

 

संक्षिप्त गुरुपूजन

   






संक्षिप्त गुरुपूजन
----------------------
यहाँ पर संक्षिप्त गुरुपूजन विधि प्रस्तुत कर रहा हूं .. इसे आप अपने नित्य दैनंदिन साधना मे कर सकते है ..
हाथ जोडकर प्रणाम करे
ॐ गुं गुरुभ्यो नम:
ॐ श्री गणेशाय नम:
ॐ ह्रीम दशमहाविद्याभ्यो नम:
फिर गुरुदेव का ध्यान करे
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वर:
गुरु: साक्षात परब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नम:
ध्यानमूलं गुरो मूर्ति : पूजामूलं गुरो: पदं
मंत्रमूलं गुरुर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरो: कृपा
गुरुकृपाहि केवल गुरुकृपाहि केवलं
गुरुकृपाहि केवलं गुरुकृपाहि केवलं
श्री सदगुरु चरण कमलेभ्यो नम: ध्यानं समर्पयामि
श्री सदगुरु स्वामी निखिलेश्वरानंद महाराज मम ह्रदय कमल मध्ये आवाहयामि स्थापयामि नम:
अगर आपके पास समय कम है तो आप सीधे गुरुमंत्र का जाप शुरु करे .. नही तो सदगुरुदेव का मानसिक पंचोपचार पूजन करे और पूजन के बाद गुरुपादुका पंचक स्तोत्र का भी पाठ अवश्य करे ..
अब सदगुरुदेव का मानसिक पूजन या उपलब्ध सामुग्री से पंचोपचार पूजन करे .. मानसिक पूजन करते समय पंचतत्वो की मुद्राये प्रदर्शित करे और सामुग्री से पूजन करते समय उचित सामुग्री का उपयोग करे
ॐ " लं " पृथ्वी तत्वात्मकं गंधं समर्पयामि श्री गुरवे नम:
ॐ " हं " आकाश तत्वात्मकं पुष्पम समर्पयामि श्री गुरवे नम:
ॐ " यं " वायु तत्वात्मकं धूपं समर्पयामि श्रीगुरवे नम:
ॐ " रं " अग्नी तत्वात्मकं दीपं समर्पयामि श्रीगुरवे नम:
ॐ " वं " जल तत्वात्मकं नैवेद्यं समर्पयामि श्रीगुरवे नम:
ॐ " सं " सर्व तत्वात्मकं तांबूलं समर्पयामि श्री गुरवे नम:
अब हाथ जोडकर गुरु पंक्ति का पूजन करे
ॐ गुरुभ्यो नम:
ॐ परम गुरुभ्यो नम:
ॐ परात्पर गुरुभ्यो नम:
ॐ पारमेष्ठी गुरुभ्यो नम:
ॐ दिव्यौघ गुरुपंक्तये नम:
ॐ सिद्धौघ गुरुपंक्तये नम:
ॐ मानवौघ गुरुपंक्तये नम:
आप चाहे तो निम्न गुरुपादुका पंचक स्तोत्र का पाठ करे .. अगर स्तोत्र पाठ नही करना है तो सीधे आगे का पूजन करे
गुरुपादुका पंचक स्तोत्र
ॐ नमो गुरुभ्यो गुरुपादुकाभ्यां
नम: परेभ्य: परपादुकाभ्यां
आचार्य सिद्धेश्वर पादुकाभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! १ !!
ऐंकार ह्रींकार रहस्ययुक्त
श्रीं कार गूढार्थ महाविभूत्या
ॐकार मर्म प्रतिपादिनीभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! २ !!
होमाग्नि होत्राग्नि हविष्यहोतृ
होमादि सर्वाकृति भासमानं
यद ब्रह्म तद बोध वितारिणाभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! ३ !!
अनंत संसार समुद्रतार
नौकायिताभ्यां स्थिर भक्तिदाभ्यां
जाड्याब्धि संशोषण बाडवाभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! ४ !!
कामादिसर्प व्रजगारुडाभ्यां
विवेक वैराग्य निधिप्रदाभ्यां
बोधप्रदाभ्यां द्रुत मोक्षदाभ्यां
नमो नम: श्री गुरुपादुकाभ्यां !! ५ !!
अब एक आचमनी जल मे चंदन मिलाकर अर्घ्य दे या मानसिक स्तर पर अर्घ्य दे ..
ॐ गुरुदेवाय विद्महे परम गुरवे धीमहि तन्नो गुरु: प्रचोदयात्
अब गुरुमंत्र का यथाशक्ती जाप करे
ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नम:
अंत मे जप गुरुदेव को अर्पण करे
ॐ गुह्याति गुह्यगोप्ता
त्वं गृहाणास्मत कृतं जपं
सिद्धिर्भवतु मे गुरुदेव त्वतप्रसादान्महेश्वर !!
अब एक आचमनी जल अर्पण करे
अनेन पूजनेन श्री गुरुदेव प्रीयंता मम !!

20 जुलाई 2024

गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा

  एक पत्थर की भी तकदीर बदल सकती है,


शर्त ये है कि सलीके से तराशा जाए....



रास्ते में पडा ! लोगों के पांवों की ठोकरें खाने वाला पत्थर ! जब योग्य मूर्तिकार के हाथ लग जाता है, तो वह उसे तराशकर ,अपनी सर्जनात्मक क्षमता का उपयोग करते हुये, इस योग्य बना देता है, कि वह मंदिर में प्रतिष्ठित होकर करोडों की श्रद्धा का केद्र बन जाता है। करोडों सिर उसके सामने झुकते हैं।


रास्ते के पत्थर को इतना उच्च स्वरुप प्रदान करने वाले मूर्तिकार के समान ही, एक गुरु अपने शिष्य को सामान्य मानव से उठाकर महामानव के पद पर बिठा देता है।


चाणक्य ने अपने शिष्य चंद्रगुप्त को सडक से उठाकर संपूर्ण भारतवर्ष का चक्रवर्ती सम्राट बना दिया।


विश्व मुक्केबाजी का महानतम हैवीवेट चैंपियन माइक टायसन सुधार गृह से निकलकर अपराधी बन जाता अगर उसकी प्रतिभा को उसके गुरू ने ना पहचाना होता।


यह एक अकाट्य सत्य है कि चाहे वह कल का विश्वविजेता सिकंदर हो या आज का हमारा महानतम बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर, वे अपनी क्षमताओं को पूर्णता प्रदान करने में अपने गुरु के मार्गदर्शन व योगदान के अभाव में सफल नही हो सकते थे।


हमने प्राचीन काल से ही गुरु को सबसे ज्यादा सम्माननीय तथा आवश्यक माना। भारत की गुरुकुल परंपरा में बालकों को योग्य बनने के लिये आश्रम में रहकर विद्याद्ययन करना पडता था, जहां गुरु उनको सभी आवश्यक ग्रंथो का ज्ञान प्रदान करते हुए उन्हे समाज के योग्य बनाते थे।


विश्व के प्राचीनतम विश्वविद्यालयों नालंदा तथा तक्षशिला में भी उसी ज्ञानगंगा का प्रवाह हम देखते हैं। संपूर्ण विश्व में शायद ही किसी अन्य देश में गुरु को उतना सम्मान प्राप्त हो जितना हमारे देश में दिया जाता रहा है। यहां तक कहा गया किः-

गुरु गोविंद दोऊ खडे काके लागूं पांय ।

बलिहारी गुरु आपकी गोविंद दियो बताय ॥


अर्थात, यदि गुरु के साथ स्वयं गोविंद अर्थात साक्षात भगवान भी सामने खडे हों, तो भी गुरु ही प्रथम सम्मान का अधिकारी होता है, क्योंकि उसीने तो यह क्षमता प्रदान की है कि मैं गोविंद को पहचानने के काबिल हो सका।
आध्यात्मिक जगत की ओर जाने के इच्छुक प्रत्येक व्यक्ति का मार्ग गुरु और केवल गुरु से ही प्रारंभ होता है।

कुछ को गुरु आसानी से मिल जाते हैं, कुछ को काफी प्रयास के बाद मिलते हैं,और कुछ को नहीं मिलते हैं।

साधनात्मक जगत, जिसमें योग, तंत्र, मंत्र जैसी विद्याओं को रखा जाता है, में गुरु को अत्यंत ही अनिवार्य माना जाता है।

वे लोग जो इन क्षेत्रों में विशेषज्ञता प्राप्त करना चाहते हैं, उनको अनिवार्य रुप से योग्य गुरु के सानिध्य के लिये प्रयास करना ही चाहिये।

ये क्षेत्र उचित मार्गदर्शन की अपेक्षा रखते हैं।





गुरु का तात्पर्य किसी व्यक्ति के देह या देहगत न्यूनताओं से नही बल्कि उसके अंतर्निहित ज्ञान से होता है, वह ज्ञान जो आपके लिये उपयुक्त हो,लाभप्रद हो। गुरु गीता में कुछ श्लोकों में इसका विवेचन मिलता हैः-


अज्ञान तिमिरांधस्य ज्ञानांजन शलाकया ।

चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः ॥


अज्ञान के अंधकार में डूबे हुये व्यक्ति को ज्ञान का प्रकाश देकर उसके नेत्रों को प्रकाश का अनुभव कराने वाले गुरु को नमन ।

गुरु शब्द के अर्थ को बताया गया है कि :-


गुकारस्त्वंधकारश्च रुकारस्तेज उच्यते।

अज्ञान तारकं ब्रह्‌म गुरुरेव न संशयः॥


गुरु शब्द के पहले अक्षर 'गु' का अर्थ है, अंधकार जिसमें शिष्य डूबा हुआ है, और 'रु' का अर्थ है, तेज या प्रकाश जिसे गुरु शिष्य के हृदय में उत्पन्न कर इस अंधकार को हटाने में सहायक होता है, और ऐसे ज्ञान को प्रदान करने वाला गुरु साक्षात ब्रह्‌म के तुल्य होता है।


ज्ञान का दान ही गुरु की महत्ता है। ऐसे ही ज्ञान की पूर्णता का प्रतीक हैं भगवान शिव। भगवान शिव को सभी विद्याओं का जनक माना जाता है। वे तंत्र से लेकर मंत्र तक और योग से लेकर समाधि तक प्रत्येक क्षेत्र के आदि हैं और अंत भी। वे संगीत के आदिसृजनकर्ता भी हैं, और नटराज के रुप में कलाकारों के आराध्य भी हैं। वे प्रत्येक विद्या के ज्ञाता होने के कारण जगद्गुरु भी हैं। गुरु और शिव को आध्यात्मिक जगत में समान माना गया है।


कहा गया है कि :-


यः शिवः सः गुरु प्रोक्तः। यः गुरु सः शिव स्मृतः॥


अर्थात गुरु और शिव दोनों ही अभेद हैं, और एक दूसरे के पर्याय हैं।जब गुरु ज्ञान की पूर्णता को प्राप्त कर लेता है तो वह स्वयं ही शिव तुल्य हो जाता है, तब वह भगवान आदि शंकराचार्य के समान उद्घोष करता है कि ÷


शिवो s हं, शंकरो s हं'।


ऐसे ही ज्ञान के भंडार माने जाने वाले गुरुओं के प्रति अपना सम्मान व्यक्त करने का पर्व है,

गुरु पूर्णिमा या व्यास पूर्णिमा

यह वो बिंदु है, जिसके वाद से सावन का महीना जो कि शिव का मास माना जाता है, प्रारंभ हो जाता है।

इसका प्रतीक रुप में अर्थ लें तो, जब गुरु अपने शिष्य को पूर्णता प्रदान कर देता है, तो वह आगे शिवत्व की प्राप्ति की दिशा में अग्रसर होने लगता है,और यह भाव उसमें जाग जाना ही मोक्ष या ब्रह्‌मत्व की स्थिति कही गयी है।

गुरुपूर्णिमा विशेष : अटके हुये कार्य पूर्ण करने वाली : कार्य सिद्धि दीक्षा

 गुरुपूर्णिमा विशेष 

अटके हुये कार्य पूर्ण करने वाली : कार्य सिद्धि दीक्षा

तंत्र साधनाओं में कई प्रयोग ऐसे होते हैं जो की काम्य प्रयोग कहलाते हैं ।

काम्य प्रयोग का मतलब होता है ऐसे तंत्र प्रयोग या अनुष्ठान जो किसी विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिएसंपन्न किए जाते हैं ।

यह मनोकामनाएं कई प्रकार की हो सकती है उदाहरण के लिए;-
व्यापार में वृद्धि !
बेहतर नौकरी !
विवाह !
विदेश यात्रा !
मुकदमे मे सफलता !
इत्यादि......
ऐसे कार्य जो आपके लिए संभव हैं लेकिन किसी न किसी वजह से अटक जा रहे हैं या बार बार असफल हो रहे हैं .....
ऐसी स्थिति मे एक सही पुश आपकी मनोकामना पूरी कर सकता है ।
मैंने यह अनुभव किया है कि जब गुरु मूड में रहते हैं तो अपने शिष्यों के लिए वे इस प्रकार की क्रिया संपन्न करते ही हैं, जिससे उनके अटके हुए या मनवांछित काम संपन्न हो जाए ।
ऐसी ही एक दीक्षा है कार्य सिद्धि दीक्षा जो कि किसी विशेष कार्य या मनोकामना की पूर्ति के लिए तांत्रिक गुरुओं द्वारा दी जाती है ।


इस गुरु पूर्णिमा के अवसर पर मेरे गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी और गुरु माता डॉ. साधना सिंह जी फ़ोटो के माध्यम से ऑनलाइन ऐसी ही “कार्य सिद्धि दीक्षा” प्रदान कर रहे हैं । जो आपकी मनोकामना की पूर्ति में सहायक हो सकती है, अगर आप चाहे तो इसके लिए निम्नलिखित शिष्यों से संपर्क करके इस बारे में विस्तृत जानकारी ले सकते हैं ।
यह दीक्षा गुरुपूर्णिमा अर्थात कल 21 जुलाई 2024 को सम्पन्न होगी ।


🟡रजनीश आचार्य (छिंदवाड़ा):9425146518, 8770365137
🔴 प्रशांत पांड़े (दिल्ली) 8800458271
🟠 देवेन्द्र उइके (नागपुर): 9096078410 
🟡मनोहर सरजाल (छत्तीसगढ़)+91 90091 60861
🟡सचिन किसवे (लातूर)+91 93257 77190
🟠 सुभाष शर्मा (उदयपुर) 9929140845
🟡प्रेमजीत सिंह (पटना)+91 87574 02620
🟡विनयशर्मा(गुना)9685224686
🔴कपिल वास्पत (इंदौर) 9179050735
🔵रणजीत अन्कुलगे (उदगीर) 9923440540
🟡विनय शर्मा ( अयोध्या)09235712271
🟢करुणेश कर्ण (पटना)+91 98522 84595
🟣विजय गंगवार (गोंदिया) 8007682508, 9404592022
🟠 कार्यालय भोपाल +917554269368


क्या आप साधनात्मक जीवन में प्रवेश करना चाहते हैं

 


क्या आप :-

साधनात्मक जीवन में प्रवेश करना चाहते हैं ?
देवी देवताओं की कृपा प्राप्त करना चाहते हैं ?
विविध बाधाओं का समाधान चाहते हैं ?
देवी देवताओं के प्रामाणिक पूजन पद्धति का ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं ? 
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तो आप 
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न्यू मिनाल रेजीडेंसी 
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१० बजे से  बजे तक (रविवार अवकाश)
दूरभाष : (0755) --- 4269368,4283681

गुरु मंत्र के जाप से लाभ स्वयं अनुभव करें

 गुरु मंत्र के जाप से लाभ स्वयं अनुभव करें 



19 जुलाई 2024

भगवान् पशुपतिनाथ की साधना

  


पशुओं के अधिपति - पशुपति 

पाशों के अधिपति - पशुपति 

संसार रुपी वन के सर्वविध पशुओं के एकमात्र अधिपति - पशुपति

भगवान् पशुपतिनाथ की साधना एक रहस्यमय साधना है यह साधना साधक को शिवमय बना देती है 


॥ ऊं पशुपतिनाथाय नमः ॥
  1. स्वयं को पशुवत मानकर भगवान् शिव को अपना अधिपति मानते हुए यह साधना की जाती है |
  2. इसके रहस्य इस मन्त्र को जपते जपते अपने आप मिलेंगे या फिर कोई सक्षम गुरु आपको प्रदान करेगा |
  3. कोई समय/दिशा/संख्या/आहार/विहार/विचार का बंधन नहीं है |