26 अगस्त 2024

श्री कालिकाष्टकम्


विरञ्च्यादिदेवास्त्रयस्ते गुणास्त्रीम ,
समाराध्य कालीम  प्रधाना बभूवुः ।
अनादिम  सुरादिम मखादिम भवादिम,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥ 1 ॥

जगन्मोहनीयम तु वाग्वादिनीयम,
सुह्रित्पोषिणी शत्रुसन्हारिणीयम् ।
वचस्स्तम्भनीयम् किमुच्चाटनीयम्,
स्वरुपम् त्वदीयम् न विन्दति देवाः ॥ 2 ॥

इयम् स्वर्गदात्री पुनः कल्पवल्ली,
मनोजास्तु कामान्यथार्थ प्रकुर्यात् ।
तथा ते कृतार्था  भवंतीति नित्यम्,
स्वरुपम् त्वदीयम् न विन्दन्ति देवाः ॥ 3 ॥

सुरापानमत्ता सुभक्तानुरक्ता,
लसत्पूतचित्ते सदाविर्भवस्ते ।
जपध्यानपूजासुधाधौतपङ्काः,
स्वरुपम् त्वदीयम् न विन्दन्ति देवाः ॥ 4 ॥

चिदानन्दकन्दम  हसन्मन्दमन्दम ,
शरच्चन्द्रकोटिप्रभापुञ्जबिम्बम् ।
मुनीनाम् कवीनाम् ह्रदि द्योतयन्तम्,
स्वरुपम् त्वदीयम् न विन्दन्ति देवाः ॥ 5 ॥

महामेघकाली सुरक्तापि शुभ्रा,
कदाचिद्विचित्राकृतिर्योगमाया ।
न बाला, न वृध्दा, न कामातुरापि,
स्वरुपम् त्वदीयम् न विन्दन्ति देवाः ॥ 6 ॥

क्षमस्वापराधं महागुप्तभावं,
मयि लोकमध्ये प्रकाशीकृतं यत् ।
तव ध्यानपूतेन चापल्यभावात्,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥ 7 ॥

यदि ध्यानयुक्तम पठेद्यो मनुष्य-
स्तदा सर्वलोके विशालो भवेच्च ।
गृहे चाष्टसिध्दिमृते चापि मुक्तिः,
स्वरूपं त्वदीयं न विन्दन्ति देवाः ॥ 8 ॥



भगवती महाकाली के ध्यान के रूप में आप इसे पढ़ सकते हैं उनकी स्तुति के रूप में इसे पढ़ सकते हैं और उनकी कृपा प्राप्त कर सकते हैं ।


आप इसका उच्चारण आडिओ मे यहाँ सुन सकते हैं

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भगवान श्री कृष्ण जन्माष्टमी की आप सभी को हृदय से शुभकामनाएं ।

 भगवान श्री कृष्ण जन्माष्टमी की आप सभी को हृदय से शुभकामनाएं ।


भगवान श्री कृष्ण अपने आप में एक अद्भुत और आश्चर्यजनक व्यक्तित्व हैं ।

वे शायद इस पृथ्वी पर इकलौते अवतारी पुरुष है जो जन्म के साथ ही देवत्व से परिपूर्ण है जन्म के साथ ही उनकी लीलाएं प्रारंभ हो जाती हैं । बाकी सभी अवतार कुछ आयु प्राप्त करने के बाद चमत्कारों का प्रदर्शन करते हैं लेकिन भगवान श्री कृष्ण के चमत्कार उनके जन्म के साथ ही प्रारंभ हो गए थे । जन्म लेते ही उन्होंने अपने पिता वासुदेव को बंधनों से मुक्त कर दिया कारागार को खोल दिया ताकि वे उन्हें लेकर नंद बाबा के पास पहुंच सके । यहां से उनके चमत्कारों की यात्रा प्रारंभ होती है और पूरे जीवन भर वह चित्र विचित्र चमत्कार करते रहते हैं ।
पांवों के स्पर्श के साथ यमुना नदी के जल का दो भागों में फट जाना हो !
पूतना जैसी राक्षसी का शिशु अवस्था में वध हो !
या फिर भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य जैसे अजेय योद्धाओं से भरी हुई कौरव सेना को पराजित कर देने का चमत्कार हो वह हर दृष्टि से चमत्कारी है ।

हां एक बात और............ 

वे धर्म की स्थापना के लिए सिद्धांतों का त्याग करने से भी नहीं हिचकते जहां जैसा उचित होता है वैसा कदम उठा लेते हैं ।

यही उनकी विशेषता है ।
ऐसे जगतगुरु योगीराज भगवान कृष्ण को सादर वंदन ।

जन्माष्टमी के दिन ही महाकाली की जयंती की होती है जिस दिन आप इन दोनों अद्भुत शक्तियों का पूजन करके अनुकूलता प्राप्त कर सकते हैं ।

24 अगस्त 2024

रक्षा के लिए महाकाली स्वयंसिद्ध मंत्र

।। हुं हुं ह्रीं ह्रीं कालिके घोर दन्ष्ट्रे प्रचन्ड चन्ड नायिके दानवान दारय हन हन शरीरे महाविघ्न छेदय छेदय स्वाहा हुं फट ।।


यह महाकाली का स्वयंसिद्ध मन्त्र है.
तंत्र बाधा की काट , भूत बाधा आदि में लाभ प्रद है .
जन्माष्टमी की रात्रि मे इसका जाप करना ज्यादा लाभदायक है .
निशा काल अर्थात रात्रि 9 से 3 बजे के बीच १०८ बार जाप करें । क्षमता हो तो ज्यादा जाप भी कर सकते हैं . 

इस दौरान आप अपने सामने रुद्राक्ष , अंगूठी , माला आदि को सामने रखकर उसे मंत्र सिद्ध करके रक्षा के लिए बच्चों को भी पहना सकते हैं । 
इस मन्त्र का जाप करके रक्षा सूत्र बान्ध सकते हैं।

महाकाली सिद्धि दिवस : जन्माष्टमी विशेष : महाकाली बीज मंत्र : मास्टर की


जन्माष्टमी को महाकाली सिद्धि दिवस भी कहा जाता है .

इस दिन महाकाली से सम्बंधित विशेष मंत्र साधनायें की जा सकती हैं . 

किसी भी होटल मे कई कमरे होते हैं । जिनकी अलग अलग चाबियाँ होती हैं । किसी भी कमरे की चाबी से सिर्फ वही कमरा खुलता है । होटल के मेनेजर के पास "मास्टर की" नामक एक ऐसी चाबी होती है जो हर कमरे का दरवाजा खोल सकती है । साधना के क्षेत्र मे महामाया महाकाली भी वैसी ही "मास्टर की" हैं जो हर समस्या को सुलझा सकती हैं । सब कुछ दे सकती हैं ......... 


जीवन में नकारात्मक शक्तियां जब ज्यादा हो जाती है, तो कई बार बनते हुए काम बिगड़ने लगते हैं !
घर में धन की कमी हो जाती है !
कई बार ऐसा होता है कि आय के साधन होने के बावजूद अनावश्यक खर्चे हो जाते हैं जिससे घर में पैसा बचता नहीं है ।
इन सब के पीछे आपके आसपास बनी हुई नकारात्मक ऊर्जा का भी हाथ रहता है । आप चाहे तो इसके समाधान के लिए मां काली के बीज मंत्र की साधना कर सकते हैं ।
यह छोटा है !
सरल है !!
और इसके जाप के लिए बहुत ज्यादा विधि विधान की आवश्यकता नहीं है ।
सिर्फ आपके मन में महाकाली माता के प्रति श्रद्धा और विश्वास का भाव होना चाहिए । वह मूल शक्ति हैं, वे आपके आसपास मौजूद नकारात्मक शक्तियों को और आपके जीवन की जटिलताओं को समाप्त करने में सक्षम है ।
उनका स्वरूप अति भयंकर है लेकिन वे पूर्ण मातृत्व से युक्त मूल शक्ति हैं । जैसे एक शिशु अपनी मां से उसकी इच्छित वस्तु, चाहे वह दूध हो या भोजन हो, उसकी प्राप्ति के लिए याचना करता है वैसे ही याचना के भाव के साथ आप प्रतिदिन इस मंत्र का कम से कम एक घंटे जाप करें ।
इसमें यह भी जरूरी नहीं है कि आप साधना कक्ष में या किसी निश्चित स्थान पर बैठकर जाप करें, आप इसका जाप चलते-फिरते भी कर सकते हैं । हाँ ! यदि एक स्थान पर बैठकर जाप करेंगे तो आपको बेहतर परिणाम मिलेंगे.....
यदि किसी कारण से आप वैसा नहीं कर पाए, तो कम से कम दो-तीन घंटा चलते-फिरते आप इसका जाप करें ।
तीन से छह महीने के अंदर आपको अपने जीवन में सकारात्मक शक्तियों का अनुभव होगा.......
बहुत सारी ऐसी अनुकूलता भी प्राप्त होगी जो आपने सोची भी नहीं होंगी....
महाकाली का बीज मंत्र :-

॥ क्रीं ॥
उच्चारण होगा - क्रीम {kreem}

11 अगस्त 2024

अघोरमंत्र

      




अघोरमंत्र
ॐ नमः शिवाय महादेवाय नीलकंठाय आदि रुद्राय अघोरमंत्राय अघोर रुद्राय अघोर भद्राय सर्वभयहराय मम सर्वकार्यफल प्रदाय हन हनाय ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ टं टं टं टं टं घ्रीं घ्रीं घ्रीं घ्रीं घ्रीं हर हराय सर्व अघोररुपाय त्र्यम्बकाय विरुपाक्षाय ॐ हौं हः हीं हः ग्रं ग्रं ग्रं हां हीं हूं हैं हौं हः क्षां क्षीं क्षूं क्षैं क्षौं क्षः ॐ नमः शिवाय अघोरप्रलयप्रचंड रुद्राय अपरिमितवीरविक्रमाय अघोररुद्रमंत्राय सर्वग्रह उचचाटनाय सर्वजनवशीकरणाय सर्वतोमुख मां रक्ष रक्ष शीघ्रं हूं फट् स्वाहा ।
ॐ क्षां क्षीं क्षूं क्षैं क्षौं क्षः ॐ हां हीं हूं हैं हौं हः स्वर्गमृत्यु पाताल त्रिभुवन संच्चरित देव ग्रहाणां दानव ग्रहाणां ब्रह्मराक्षस ग्रहाणां सर्ववातग्रहाणां सर्व वेताल ग्रहाणां शाकिनी ग्रहाणां डाकिनी ग्रहाणां सर्व भूत ग्रहाणां कमिनी ग्रहाणां सर्व पिंड ग्रहाणां सर्व दोष ग्रहाणां सर्वपस्मारग्रहाणां हन हन हन भक्षय भक्षय भक्षय विरूपाक्षाय दह दह दह हूं फट् स्वाहा ॥




  • अघोरेश्वर महादेव की साधना है | कोई नियम विधि बंधन नहीं | उन्मुक्त होने का प्रारंभ .....
  • क्रोध और काम दोनों से बचें .
  • यदि शरीर में ज्यादा गर्मी का आभास हो तो रात्रिकाल में एक कप दूध में आधा चम्मच घी डालकर पियें .

10 अगस्त 2024

तीन मुखी रुद्राक्ष

  



  1. तीन मुखी रुद्राक्ष  त्रिदेव का प्रतीक है.
  2. यह त्रिगुणात्मक है |
  3. उच्च शिक्षा , मस्तिष्क विकास |
  4. बेरोजगारी हटाता है |


. . .

9 अगस्त 2024

छह मुखी रुद्राक्ष : कार्तिकेय भगवान् का प्रतीक

  

  1. छह मुखी रुद्राक्ष साक्षात् कार्तिकेय भगवान् का प्रतीक है.
  2. यह प्रशासनिक कौशल्य देता है .
  3. यह शत्रुओं के निवारण के लिए अति लाभ दायक होने के कारण शत्रुंजय रुद्राक्ष भी कहलाता है .

नाग पंचमी विशेष : सर्प सूक्त

 नाग पंचमी विशेष :  सर्प सूक्त



यदि आपको अपने घर में बार बार सांप दिखाई देते हो .....

आपकी कुंडली में कालसर्प दोष हो.........

या आप भगवान शिव के गण के रूप में नाग देवता की पूजा करना चाहते हो तो आप श्रावण मास में इस सर्प सूक्त का नित्य प्रयोग कर सकते हैं ।

सर्प सूक्त

ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा: शेषनागपुरोगमा: ।।
नमोSस्तु तेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।। 1।।

इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासु‍कि प्रमुखास्तथा।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।2।।

कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा:।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।3।।

इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखास्तथा।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।4।।

सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।5।।

मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखास्तथा।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।6।।

पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये च साकेत वासिन:।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।7।।

सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।8।।

ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पा: प्रचरन्ति च।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।9।।

समुद्रतीरे च ये सर्पा: ये सर्पा जलवासिन:।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।10।।

रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोSस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।11।।

जिनको काल सर्प दोष है वे इसका १०८ बार पाठ नाग पंचमी से प्रारम्भ करके पूर्णिमा तक कर सकते हैं . 

इसके अलावा आप अपने आसपास अगर कोई शिव मंदिर हो तो उसकी साफ़ सफाई या पोताई जैसी व्यवस्था करें तो भी लाभदायक है . 

8 अगस्त 2024

चमत्कारी फल दायक : गौरी शंकर रुद्राक्ष

   चमत्कारी फल दायक : गौरी शंकर रुद्राक्ष



गौरीशंकर रुद्राक्ष मे रुद्राक्ष के दो दाने प्रकृतिक रूप से जुड़े हुये होते हैं । यह सामान्य रुद्राक्ष से महंगा होता है और आंवले के बराबर के दाने लगभग ग्यारह बारह हजार रुपए के आसपास मिलते हैं । इसके छोटे दाने कम कीमत मे भी उपलब्ध होते हैं । आप अपनी आर्थिक क्षमता के अनुसार इसे पहन सकते हैं । 

  


गौरी शंकर रुद्राक्ष पहनने के लाभ :-

अकाल मृत्यु नहीं होती है । 

आरोग्य प्रदान करता है । 

उच्च श्रेणी की परीक्षा के स्टूडेंट के लिए बहुत कारगर होता है । जो नौकरी के लिए विशेष एग्जाम मे बैठते हैं उनके लिए भी गौरीशंकर रुद्राक्ष बहुत अच्छा काम करता है । 

वैवाहिक जीवन मे जो पति-पत्नी के बीच की प्रॉब्लम होती है या पुरुषों में जो कमजोरी आती है उसके लिए भी सिद्ध गौरी शंकर रुद्राक्ष काम करता है ।  अगर पति पत्नी दोनों गौरीशंकर रुद्राक्ष धारण करते हैं तो पति पत्नी के संबंध बहुत मधुर रहते है । 

गौरी शंकर रुद्राक्ष, पहने वाले व्यक्ति को सदा मुकदमों,कोर्ट कचहरी से, विवादों से बचा लेता है । 


मानसिक रोग, मिर्गी के दौरे पड़ना, बुरे स्वप्न देखना, बेवजह गुस्सा आना, स्त्रियों में अजीब सा व्यवहार, हर वक्त एक अंजाना डर बैठा रहना, बहुत ज्यादा सोचते रहना आदि समस्याओं मे गौरी शंकर रुद्राक्ष जबर्दस्त अनुकूलता प्रदान करता है । 


आध्यात्मिक साधकों के लिए यह साधना की सफलता मे सहायक होता है । साधना और साधक के बीच में सेतु के रूप मे गौरी शंकर रुद्राक्ष बहुत काम आता है । गौरीशंकर रुद्राक्ष पहनकर मंत्र जाप करने से जल्दी अनुभव और अनुकूलता मिलती है । 





यदि आप मेरे गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी द्वारा विशेष रूप से अभिमंत्रित किए गए गौरीशंकर रुद्राक्ष प्राप्त करना चाहते हों तो आप नीचे लिखे नंबर पर उनके प्रिय शिष्य मुकेश जी से संपर्क कर सकते हैं :-




श्री मुकेश, 

निखिलधाम,भोपाल 

99266-70726


7 अगस्त 2024

नौ मुखी रुद्राक्ष

 


  • नवनिधि प्रदान करता है .
  • जगदम्बा का प्रतिक है .
  • काल भैरव की कृपा देता है 



  1. भक्ति और इच्छा शक्ति बढाता है.
  2. एकाग्रता अध्यात्मिक बल.
  3. मानसिक शांति 

. . .
सभी साधनाओं के लिए सामान्य साधनात्मक दिशा निर्देश 
=
साधना में गुरु की आवश्यकता
Y      मंत्र साधना के लिए गुरु धारण करना श्रेष्ट होता है.
Y      साधना से उठने वाली उर्जा को गुरु नियंत्रित और संतुलित करता है, जिससे साधना में जल्दी सफलता मिल जाती है.
Y      गुरु मंत्र का नित्य जाप करते रहना चाहिए. अगर बैठकर ना कर पायें तो चलते फिरते भी आप मन्त्र जाप कर सकते हैं.
Y      रुद्राक्ष या रुद्राक्ष माला धारण करने से आध्यात्मिक अनुकूलता मिलती है .
Y      रुद्राक्ष की माला आसानी से मिल जाती है आप उसी से जाप कर सकते हैं.
Y      गुरु मन्त्र का जाप करने के बाद उस माला को सदैव धारण कर सकते हैं. इस प्रकार आप मंत्र जाप की उर्जा से जुड़े रहेंगे और यह रुद्राक्ष माला एक रक्षा कवच की तरह काम करेगा.
गुरु के बिना साधना
Y         स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
Y         जिन मन्त्रों में 108 से ज्यादा अक्षर हों उनकी साधना बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
Y         शाबर मन्त्र तथा स्वप्न में मिले मन्त्र बिना गुरु के जाप कर सकते हैं .
Y         गुरु के आभाव में स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ करने से पहले अपने इष्ट या भगवान शिव के मंत्र का एक पुरश्चरण यानि १,२५,००० जाप कर लेना चाहिए.इसके अलावा हनुमान चालीसा का नित्य पाठ भी लाभदायक होता है.
    
मंत्र साधना करते समय सावधानियां
Y      मन्त्र तथा साधना को गुप्त रखेंढिंढोरा ना पीटेंबेवजह अपनी साधना की चर्चा करते ना फिरें .
Y      गुरु तथा इष्ट के प्रति अगाध श्रद्धा रखें .
Y      आचार विचार व्यवहार शुद्ध रखें.
Y      बकवास और प्रलाप न करें.
Y      किसी पर गुस्सा न करें.
Y      यथासंभव मौन रहें.अगर सम्भव न हो तो जितना जरुरी हो केवल उतनी बात करें.
Y      ब्रह्मचर्य का पालन करें.विवाहित हों तो साधना काल में बहुत जरुरी होने पर अपनी पत्नी से सम्बन्ध रख सकते हैं.
Y      किसी स्त्री का चाहे वह नौकरानी क्यों न हो, अपमान न करें.
Y      जप और साधना का ढोल पीटते न रहें, इसे यथा संभव गोपनीय रखें.
Y      बेवजह किसी को तकलीफ पहुँचाने के लिए और अनैतिक कार्यों के लिए मन्त्रों का प्रयोग न करें.
Y      ऐसा करने पर परदैविक प्रकोप होता है जो सात पीढ़ियों तक अपना गलत प्रभाव दिखाता है.
Y      इसमें मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों का जन्म लगातार गर्भपातसन्तान ना होना अल्पायु में मृत्यु या घोर दरिद्रता जैसी जटिलताएं भावी पीढ़ियों को झेलनी पड सकती है |
Y      भूतप्रेतजिन्न,पिशाच जैसी साधनाए भूलकर भी ना करें इन साधनाओं से तात्कालिक आर्थिक लाभ जैसी प्राप्तियां तो हो सकती हैं लेकिन साधक की साधनाएं या शरीर कमजोर होते ही उसे असीमित शारीरिक मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है ऐसी साधनाएं करने वाला साधक अंततः उसी योनी में चला जाता है |
Y      गुरु और देवता का कभी अपमान न करें.
मंत्र जाप में दिशाआसनवस्त्र का महत्व
ü  साधना के लिए नदी तटशिवमंदिरदेविमंदिरएकांत कक्ष श्रेष्ट माना गया है .
ü  आसन में काले/लाल कम्बल का आसन सभी साधनाओं के लिए श्रेष्ट माना गया है .
ü  अलग अलग मन्त्र जाप करते समय दिशाआसन और वस्त्र अलग अलग होते हैं .
ü  इनका अनुपालन करना लाभप्रद होता है .
ü  जाप के दौरान भाव सबसे प्रमुख होता है जितनी भावना के साथ जाप करेंगे उतना लाभ ज्यादा होगा.
ü  यदि वस्त्र आसन दिशा नियमानुसार ना हो तो भी केवल भावना सही होने पर साधनाएं फल प्रदान करती ही हैं .
ü  नियमानुसार साधना न कर पायें तो जैसा आप कर सकते हैं वैसे ही मंत्र जाप करें लेकिन साधनाएं करते रहें जो आपको साधनात्मक अनुकूलता के साथ साथ दैवीय कृपा प्रदान करेगा |

गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी तथा गुरुमाता डॉ. साधना सिंह जी से
दीक्षा प्राप्त करने के सम्बन्ध में जानकारी के लिए निचे लिखे नंबर पर संपर्क करें 
समय = सुबह दस बजे से शाम सात बजे तक [ रविवार अवकाश ] साधना सिद्धि विज्ञान  जैस्मिन - 429 न्यू मिनाल रेजीडेंसी  जे.के.रोड भोपाल [म.प्र.] 462011 phone -[0755]-4269368  ===============================
साधना सिद्धि विज्ञान पत्रिका 
यह पत्रिका तंत्र साधनाओं के गूढतम रहस्यों को साधकों के लिये स्पष्ट कर उनका मार्गदर्शन करने में अग्रणी है. साधना सिद्धि विज्ञान पत्रिका में महाविद्या साधना भैरव साधनाकाली साधनाअघोर साधनाअप्सरा साधना इत्यादि के विषय में जानकारी मिलेगी . इसमें आपको विविध साधनाओं के मंत्र तथा पूजन विधि का प्रमाणिक विवरण मिलेगा . देश भर में लगने वाले विभिन्न साधना शिविरों के विषय में जानकारी मिलेगी . 
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वार्षिक सदस्यता शुल्क 250 रुपये मनीआर्डर द्वारा निम्नलिखित पते पर भेजें
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साधना सिद्धि विज्ञान शोप न. प्लाट न. 210 एम.पी.नगर भोपाल [म.प्र.] 462011 
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साधना सिद्धि विज्ञान एक मासिक पत्रिका है , 250 रुपये इसका वार्षिक शुल्क है . यह पत्रिका आपको एक साल तक हर महीने मिलेगी .
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पत्रिका सदस्यतासमस्या तथा विभिन्न साधनात्मक जानकारियों तथा निशुल्क दीक्षा के सम्बन्ध में जानकारी के लिए निचे लिखे नंबर पर संपर्क करें समय = सुबह दस बजे से शाम सात बजे तक [ रविवार अवकाश ] phone -[0755]-4283681

6 अगस्त 2024

सप्तमुखी रुद्राक्ष : सप्त मातृकाओं का प्रतीक

 





  1. इस रुद्राक्ष को सप्त मातृकाओं का प्रतीक मानते हैं.
  2. इसके सप्त्मुखों में सप्त सर्पों का वास माना जाता है इसलिए इसका धारक विषबाधा से प्रभावित नहीं होता .
  3. व्यापार वृद्ध्दी.
  4. ब्रोंकाइटिस , गठिया, टी.बी. , संधिवात, ह्रदय रोग, लैंगिक रोग, ल्यूकीमिया में लाभदायक .

5 अगस्त 2024

अष्टमुखी रुद्राक्ष : अष्टभैरव तथा अष्ट गणपति का प्रतीक

 

  1. अष्टमुखी रुद्राक्ष को अष्टभैरव तथा अष्ट गणपति का प्रतीक मानते हैं .
  2. लेखन कौशल देता  है .
  3. राहु शांति में .





  • बाधा अपयश आदि का निवारण.

. . .

4 अगस्त 2024

गुरुमाता डॉ. साधना सिंह : एक सिद्ध तंत्र गुरु

  गुरुमाता डॉ. साधना सिंह : एक सिद्ध तंत्र गुरु




वात्सल्यमयी गुरुमाता डॉ. साधना सिंह जी महाविद्या बगलामुखी की प्रचंड , सिद्धहस्त साधिका हैं.
स्त्री कथावाचक और उपदेशक तो बहुत हैं पर तंत्र के क्षेत्र में स्त्री गुरु अत्यंत दुर्लभ हैं.

तंत्र के क्षेत्र में स्त्री गुरु का बहुत महत्व होता है.
माँ अपने शिशु को स्नेह और वात्सल्य के साथ जो कुछ भी देती है वह उसके लिए अनुकूल हो जाता है . 

स्त्री गुरु मातृ स्वरूपा होने के कारण उनके द्वारा प्रदत्त मंत्र साधकों को सहज सफ़लता प्रदायक होते हैं. स्त्री गुरु द्वारा प्रदत्त मंत्र स्वयं में सिद्ध माने गये हैं.

वे एक  योगाचार्य और विश्वविख्यात होम्यो पैथ भी हैं । उनके लेख वर्षों तक प्रतिष्ठित पत्रिका निरोगधाम में प्रकाशित होते रहे हैं । आप उनसे अपनी असाध्य बीमारियों पर भी सलाह एप्वाइंटमेंट लेकर ले सकते हैं।

मैने तंत्र साधनाओं की वास्तविकता और उनकी शक्तियों का अनुभव पूज्यपाद सदगुरुदेव स्वामी निखिलेश्वरानंद जी [डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली जी ] तथा उनके बाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शननाथ जी और गुरुमाता डॉ. साधना सिंह जी के सानिध्य में किया है ।

आप भी उनसे मिलकर प्रत्यक्ष मार्गदर्शन ले सकते हैं :-


जास्मीन - 429
न्यू मिनाल रेजीडेंसी
जे. के. रोड , भोपाल [म.प्र.]
दूरभाष : (0755)
4269368,4283681,4221116

वेबसाइट:-

www.namobaglamaa.org


यूट्यूब चेनल :-

https://www.youtube.com/@MahavidhyaSadhakPariwar

3 अगस्त 2024

शिवलिंग महिमा

  शिवलिंग महिमा


भगवान शिव के पूजन मे शिवलिंग का प्रयोग होता है। शिवलिंग के निर्माण के लिये स्वर्णादि विविध धातुओं, मणियों, रत्नों, तथा पत्थरों से लेकर मिटृी तक का उपयोग होता है।


मिट्टी से बनाए जाने वाले शिवलिंग को पार्थिव शिवलिंग कहा जाता है और सामान्यतः इसका निर्माण करने के कुछ समय के बाद इसे विसर्जित कर दिया जाता है क्योंकि मिट्टी से बना होने के कारण यह जल्दी टूट जाता है । सामान्यतः श्रावण मास में या शिवरात्रि के अवसर पर पार्थिव शिवलिंग के पूजन का विधान रखा जाता है । इसके दौरान भक्त अपनी क्षमता के अनुसार एक सौ आठ, एक हजार आठ जैसी संख्या में शिवलिंग का निर्माण करते हैं । कई बार सामूहिक रूप से भी ऐसे आयोजन किए जाते हैं । पार्थिव शिवलिंग को बनाकर उसका पूजन करने और जल में विसर्जित कर देने से मनोकामना की पूर्ति होती है ऐसा माना जाता है ।


इसके अलावा रस अर्थात पारे को विविध क्रियाओं से ठोस बनाकर भी लिंग निर्माण किया जाता है,


इसके बारे में कहा गया है कि,


मृदः कोटि गुणं स्वर्णम, स्वर्णात्कोटि गुणं मणिः,

मणेः कोटि गुणं बाणो, बाणात्कोटि गुणं रसः

रसात्परतरं लिंगं न भूतो न भविष्यति ॥


अर्थात मिटृी से बने शिवलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल सोने से बने शिवलिंग के पूजन से,

स्वर्ण से करोड गुणा ज्यादा फल मणि से बने शिवलिंग के पूजन से,

मणि से करोड गुणा ज्यादा फल बाणलिंग के पूजन से

तथा

बाणलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल

रस अर्थात पारे से बने शिवलिंग के पूजन से प्राप्त होता है।

आज तक पारे से बने शिवलिंग से श्रेष्ठ शिवलिंग न तो बना है और न ही बन सकता है।



शिवलिंगों में नर्मदा नदी से प्राप्त होने वाले नर्मदेश्वर शिवलिंग जिन्हें बाणलिंग भी कहते हैं । अत्यंत लाभप्रद तथा शिवकृपा प्रदान करने वाले माने गये हैं।


यदि आपके पास शिवलिंग न हो तो अपने बांये हाथ के अंगूठे को शिवलिंग मानकर भी पूजन कर सकते हैं ।


शिवलिंग कोई भी हो जब तक भक्त की भावना का संयोजन नही होता तब तक शिवकृपा नही मिल सकती।

1 अगस्त 2024

भगवान सदाशिव तथा जगदम्बा की कृपा प्राप्ति के लिये मन्त्र

     


भगवान सदाशिव तथा जगदम्बा की कृपा प्राप्ति के लिये मन्त्र :-  

॥ ओम साम्ब सदाशिवाय नम: ॥ 

  1. सवा लाख मन्त्र का एक पुरस्चरण होगा.
  2. शिवलिंग सामने रखकर साधना करें.
  3. समस्त प्रकार की मनोकामना पूर्ती के लिए प्रयोग किया जा सकता है.
  4. किसी अनुचित अनैतिक इच्छा से न करें गंभीर  नुक्सान हो सकता है. 
  5.  

31 जुलाई 2024

महामृत्युंजय स्तोत्र

 



महामृत्युंजय स्तोत्र

मार्कण्डेय मुनि द्वारा वर्णित “महामृत्युंजय स्तोत्र” मृत्यु के भय को मिटाने वाला स्तोत्र है । 

इसका आप नित्य पाठ कर सकते हैं । 


ॐ रुद्रं पशुपतिं स्थाणुं नीलकंठमुमापतिम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १ ॥


नीलकंठं कालमूर्तिं कालज्ञं कालनाशनम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ २ ॥


नीलकंठं विरूपाक्षं निर्मलं निलयप्रदम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ३ ॥


वामदॆवं महादॆवं लॊकनाथं जगद्गुरुम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ४ ॥


दॆवदॆवं जगन्नाथं दॆवॆशं वृषभध्वजम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ५ ॥

गंगाधरं महादॆवं सर्पाभरणभूषितम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ६ ॥


त्र्यक्षं चतुर्भुजं शांतं जटामुकुटधारणम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ७ ॥


भस्मॊद्धूलितसर्वांगं नागाभरणभूषितम्‌ ।

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ८ ॥


अनंतमव्ययं शांतं अक्षमालाधरं हरम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ९ ॥


आनंदं परमं नित्यं कैवल्यपददायिनम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १० ॥


अर्धनारीश्वरं दॆवं पार्वतीप्राणनायकम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ ११ ॥


प्रलयस्थितिकर्तारं आदिकर्तारमीश्वरम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १२ ॥


व्यॊमकॆशं विरूपाक्षं चंद्रार्द्ध कृतशॆखरम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १३ ॥


गंगाधरं शशिधरं शंकरं शूलपाणिनम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १४ ॥


अनाथं परमानंदं कैवल्यपददायिनम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १५ ॥


स्वर्गापवर्ग दातारं सृष्टिस्थित्यांतकारिणम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १६ ॥


कल्पायुर्द्दॆहि मॆ पुण्यं यावदायुररॊगताम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १७ ॥


शिवॆशानां महादॆवं वामदॆवं सदाशिवम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १८ ॥


उत्पत्ति स्थितिसंहार कर्तारमीश्वरं गुरुम्‌ । 

नमामि शिरसा दॆवं किं नॊ मृत्यु: करिष्यति ॥ १९ ॥


फलश्रुति

मार्कंडॆय कृतं स्तॊत्रं य: पठॆत्‌ शिवसन्निधौ । 

तस्य मृत्युभयं नास्ति न अग्निचॊरभयं क्वचित्‌ ॥ २० ॥


शतावृतं प्रकर्तव्यं संकटॆ कष्टनाशनम्‌ । 

शुचिर्भूत्वा पठॆत्‌ स्तॊत्रं सर्वसिद्धिप्रदायकम्‌ ॥ २१ ॥


मृत्युंजय महादॆव त्राहि मां शरणागतम्‌ । 

जन्ममृत्यु जरारॊगै: पीडितं कर्मबंधनै: ॥ २२ ॥


तावकस्त्वद्गतप्राणस्त्व च्चित्तॊऽहं सदा मृड । 

इति विज्ञाप्य दॆवॆशं त्र्यंबकाख्यममं जपॆत्‌ ॥ २३ ॥


नम: शिवाय सांबाय हरयॆ परमात्मनॆ । 

प्रणतक्लॆशनाशाय यॊगिनां पतयॆ नम: ॥ २४ ॥



॥ इति श्री मार्कंडॆयपुराणॆ महा मृत्युंजय स्तॊत्रं संपूर्णम्‌ ॥