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26 अगस्त 2010

तारा साधना

तारा महाविद्या की साधना जीवन का सौभाग्य है । यह महाविद्या साधक की उंगली पकडकर उसके लक्ष्य तक पहुन्चा देती है।
गुरु कृपा से यह साधना मिलती है तथा जीवन को निखार देती है ।

॥ ऐं ऊं ह्रीं स्त्रीं हुं फ़ट ॥

24 अगस्त 2010

शाबर रक्षा मन्त्रम:गुरु

॥ ऊं नमो आदेश गुरुन को इश्वर वाचा अजरी बजरी बाडा बज्जरी, मै बज्जरी बान्धा दशौ दुवार छवा और के धालों तो पलट हनुमंत वीर उसी को मारे । पहली चौकी गनपति, दूजी चौकी हनुमन्त, तीजी चौकी भैरों, चौथी चौकी देह रक्षा करन को आवें श्री नरसिंह देव जी । शब्द सांचा पिण्ड कांचा, फ़ुरो मन्त्र ईश्वरी वाचा ॥

इस मन्त्र को अमावस्या या ग्रहण की रात को १००८ बार जाप कर सिध्ध कर लेवें । तदनंतर विविध रक्षा प्रयोगों मे इसका प्रयोग कर सकते हैं ।

12 अगस्त 2010

अघोरेश्वर महादेव मन्त्रम

भगवान शिव के अघोर रूप की साधना :-

अघोरेभ्यो S थोरेभ्यो, घोर घोर तरेभ्यः ।


सर्वेभ्यः सर्व सर्वेभ्यो, नमस्तेस्तु रुद्र रूपेभ्यः ॥

9 अगस्त 2010

शिव गायत्री मन्त्र

वे साधक जो गायत्री साधना नियमित करते हों वे शिव गायत्री मन्त्र का प्रयोग कर सकते हैं :-
॥ऊं महादेवाय विद्महे रुद्र मूर्तये धीमहि तन्नो शिवः प्रचोदयात ॥

8 अगस्त 2010

भगवान शिव को बिल्व पत्र चढाने का मन्त्र

दर्शनम बिल्वपत्रस्य स्पर्शनम पापनाशनम ।
अघोर पाप संहारकम एक बिल्व पत्रम शिवार्पणम ॥

7 अगस्त 2010

दक्षिणामूर्ति शिव

दक्षिणामूर्ति शिव भगवान शिव का सबसे तेजस्वी स्वरूप है । यह उनका आदि गुरु स्वरूप है । इस रूप की साधना सात्विक भाव वाले सात्विक मनोकामना वाले तथा ज्ञानाकांक्षी साधकों को करनी चाहिये ।







॥ऊं ह्रीं दक्षिणामूर्तये नमः ॥


  • ब्रह्मचर्य का पालन करें.
  • ब्रह्ममुहूर्त यानि सुबह ४ से ६ के बीच जाप करें.
  • सफेद वस्त्र , आसन , होगा.
  • दिशा इशान( उत्तर और पूर्व के बीच ) की तरफ देखकर करें.
  • भस्म से त्रिपुंड लगाए . 
  • रुद्राक्ष की माला पहने .
  • रुद्राक्ष की माला से जाप करें.

2 अगस्त 2010

भगवान शिव को बिल्व पत्र चढाने का मन्त्र

भगवान शिव को बिल्व पत्र चढाने का मन्त्र:-

काशीवासनिवासिनम कालभैरवपूजिताम ।

कोटि कन्या महादानम एक बिल्वपत्रम शिवार्पणम ॥

31 जुलाई 2010

दश महाविद्या प्रार्थना

दसों महाविद्याओं की कृपा प्राप्ति करने के लिये निम्नलिखित स्तोत्र का पाठ करें :-


श्यामा वत्सतया करोतु कुशलं तारा तनोतु श्रियम । 
दीर्घायुर्भुवनेश्वरीं वितनुतां विघ्नं हरेत षोडशी ॥
भैरव्यस्तु कुलावहा रिपु कुलं  सा छिन्नमस्ता हरेत । 
मातंगी बगलामुखीं च कमला धूमावती पातु नः ॥