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24 मार्च 2014

मंत्र दीक्षा : एक सामान्य विवेचन


किसी भी साधना को करने से पहले दीक्षा ले लेना चाहिए ऐसा क्यों कहा जाता है ? यह एक सामान्य प्रश्न है जो हर किसी के दिल में उठता है .गुरुदेव डॉ नारायण दत्ता श्रीमाली जी के सानिध्य में मिले अपने अल्प ज्ञान के द्वारा थोडा सा प्रकाश डालने का प्रयास कर रहा हूँ :-

  • साधना से शारीर में उर्जा [एनर्जी फील्ड ] उठती है इसको नियंत्रित रखना जरुरी होता है.
  • जब साधनात्मक उर्जा अनियंत्रित होती है तो वह अनियंत्रित उर्जा दो तरह से बह सकती है प्रथम तो वासना के रूप में दूसरी क्रोध के रूप में, ये दोनों ही प्रवाह साधक को दुष्कर्म के लिए प्रेरित करते हैं.इसे नियंत्रित करने का काम गुरु करता है.
  • गुरु दीक्षा के द्वारा गुरु अपने शिष्य के साथ एक लिंक जोड़ देता है . जब भी साधनात्मक उर्जा बढ़ कर साधक के लिए परेशानी का कारन बन्ने की संभावना होती है तब गुरु उस उर्जा को नियंत्रित करने का काम करता है और शिष्य सुरक्षित रहता है.

  • हर मंत्र अपने आप में एक विशेष प्रकार का एनर्जी फील्ड पैदा करता है. यह फील्ड साधक के शारीर के इर्दगिर्द घूमता है.
  • हर मंत्र हर साधक के लिए अनुकूल नहीं होता , यदि वह अनुकूल मंत्र का जाप करता है तो उसे लाभ मिलता है अन्यथा हानि भी हो सकती है.
  • गुरु एक ऐसा व्यक्ति होता है जो विभिन्न साधनों में सिद्धहस्त होता है, उसे यह पता होता है की किस साधना का एनर्जी फील्ड किस साधक के अनुकूल होगा . इस बात को ध्यान में रखकर गुरु मंत्र अपने शिष्य को प्रदान करता है.
वर्त्तमान में डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी के शिष्य गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी तथा गुरुमाता डॉ. साधना सिंह जी विभिन्न साधनों से सम्बंधित दीक्षाएं नी:शुल्क प्रदान कर साधकों का साधनात्मक मार्ग दर्शन कर रहे हैं.

यदि आप भी किसी प्रकार की साधना के बारे में मार्गदर्शन या दीक्षा प्राप्त करने के इच्छुक हैं तो संपर्क करें:-

समय = सुबह दस बजे से शाम सात बजे तक [ रविवार अवकाश ]



गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी तथा गुरुमाता डॉ. साधना सिंह
साधना सिद्धि विज्ञान
जैस्मिन - 429
न्यू मिनाल रेजीडेंसी
जे.के.रोड
भोपाल [म.प्र.] 462011
phone -[0755]-4283681, [0755]-4269368,[0755]-4221116

23 मार्च 2014

नवार्ण मन्त्र





॥ ऐं ह्रीं क्लीं चामुन्डायै विच्चै ॥


ऐं = सरस्वती का बीज मन्त्र है ।

ह्रीं = महालक्ष्मी का बीज मन्त्र है ।

क्लीं = महाकाली का बीज मन्त्र है ।
नवार्ण मन्त्र का जाप इन तीनों देवियों की कृपा प्रदान करता है ।




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साधना सिद्धि विज्ञान पत्रिका 
यह पत्रिका तंत्र साधनाओं के गूढतम रहस्यों को साधकों के लिये  स्पष्ट कर उनका मार्गदर्शन करने में अग्रणी है. 
साधना सिद्धि विज्ञान पत्रिका में महाविद्या साधना , भैरव साधना, काली साधना, अघोर साधना, अप्सरा साधना इत्यादि के विषय में जानकारी मिलेगी .
इसमें आपको विविध साधनाओं के मंत्र तथा पूजन विधि का प्रमाणिक विवरण मिलेगा .
देश भर में लगने वाले विभिन्न साधना शिविरों के विषय में जानकारी मिलेगी .
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महाविद्या मातंगी साधना



॥ ह्रीं क्लीं हुं मातंग्यै फ़ट स्वाहा ॥


  • मातंगी साधना संपूर्ण गृहस्थ सुख प्रदान करती है.
  • यह साधना जीवन में रस प्रदान करती है.

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21 मार्च 2014

हनुमान मन्त्र





॥ ॐ पंचमुखाय महारौद्राय कपिराजाय नमः ॥ 




ब्रह्मचर्य का पालन किया जाना चाहिये. साधना का समय रात्रि ९ से सुबह ६ बजे तक. साधना कक्ष में हो सके तो किसी बाहरी व्यक्ति को प्रवेश न दें. जाप संख्या ११,००० होगी. प्रतिदिन चना,गुड,बेसन लड्डू,बूंदी में से किसी एक वस्तु का भोग लगायें. हवन ११०० मन्त्र का होगा, इसमें जाप किये जाने वाले मन्त्र के अन्त में स्वाहा लगाकर सामग्री अग्नि में डालना होता है. हवन सामग्री में गुड का चूरा मिला लें. वस्त्र तथा आसन लाल रंग का होगा. रुद्राक्ष की माला से जाप होगा.

16 मार्च 2014

होली पर दोष निवारण का सरल उपाय

होलिका दहन की रात्रि विभिन्न साधनाओं के लिए एक अत्यंत ही विशिष्ट रात्रि है. इस रात्रि षटकर्म से सम्बंधित उग्र प्रयोग सबसे ज्यादा किये जाते हैं. समस्त प्रकार की बाधाओं की शांति के लिए एक आसान सा प्रयोग प्रस्तुत है :-

सामग्री :-
  1. एक पानी वाला नारियल.
  2. सवा मीटर काला/लाल कपडा .
  3. सिन्दूर.
  4. काले रंग का धागा ,लगभग 10 मीटर .
  5. एक कैंची .
विधि :-
होलिका दहन की शाम 6 से रात्रि 3 के बिच किसी भी समय इस प्रयोग को कर सकते हैं.

  • सबसे पहले गुरु मंत्र का २१ बार जाप करें. [यदि आपके कोई गुरु न हो तो " ॐ परम तत्वाय नारायणाय गुरुभ्यो नमः " इस मंत्र का जप करें गुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी को प्रणाम करें ] गुरुदेव से प्रार्थना करें की मेरी समस्त बाधाओं की शांति करें.
  • मंत्र जाप के बीच में उठना नहीं है , इसलिए पानी पेशाब पहले करके बैठें.
  • स्नान करना जरुरी नहीं है हाथ पैर धोकर बैठ सकते हैं.

  • अब सामने कपडे को बिछा लें.
  • नारियल को सामने रख लें .
  • अपनी बाधा का स्मरण कर अपने ऊपर इस काले धागे को लपेट दें.
  • अब ["ॐ भ्रम भैरवाय फट "] मंत्र का आधे घंटे तक जाप करें.
  • अब धागे को कैंची से काट दें काटते समय मन में भावना रखें की काल भैरव आपकी समस्त बाधाओं को काट रहे हैं.
  • अब नारियल लेकर 7 बार सर से पैर तक यानि ऊपर से निचे फेर दें [इसे उतारा कहते हैं ]. 
  • गर्भवती स्त्री हो तो केवल सर पर सात बार घुमा दें ऊपर से निचे तक न लायें.
  • इस नारियल को कपडे के बीच रख दें. सिन्दूर से उसपर 9 बिंदियाँ लगायें.
  • अब काले धागे के कटे टुकड़ों को भी उसी कपडे में रख दें .
  • बचा हुआ सिन्दूर भी उसी में दाल दें  और कपडे की पोटली बना लें,
  • इस पोटली को रात्री में ही या फिर सुबह किसी निर्जन स्थान पर छोड़ दें और पीछे मुड़कर देखे बिना लौट आयें.
  • घर के बाहर हाथ पैर धो लें अपने ऊपर थोडा पानी छिड़क लें तब अन्दर घुसें.
  • पुनः पूजा स्थान में बैठकर १०८ बार भैरव मंत्र का जाप करें.
  • २१ बार गुरु मंत्र करें.
  • क्षमा प्रार्थना करें .
  • इस प्रकार आपका बाधा निवारण प्रयोग संपन्न होगा .
  • होली की रात्रि न कर पायें तो किसी भी अमावस्या को कर सकते हैं.
  •  

11 मार्च 2014

गुरुदेव स्वामी सुदर्शननाथ जी : जन्म दिवस




११ मार्च

 मेरे आदरणीय गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथजी का जन्म दिवस

निखिलकृपा से आप शतायु हों....

आपकी कृपा शिष्यों को इसी प्रकार मिलती रहे...







गुरुदेव स्वामी सुदर्शननाथ जी


एक विराट व्यक्तित्व जिसने अपने अंदर तन्त्र साधनाओं के विश्व्वविख्यात गुरु स्वामी निखिलेश्वरानंद जी [डा नारायण दत्त श्रीमाली जी ] के ज्ञान को संपूर्णता के साथ समाहित किया है.






डॉ . नारायण दत्त श्रीमाली जी के देहत्याग [ ३ जुलाई १९९८ ] के बाद साधनाओं के पुनरुत्थान तथा साधकों के निर्माण में सतत गतिशील गुरुवर स्वामी सुदर्शन नाथजी ने दस महाविद्याओं पर जितना ज्ञान तथा विवेचन किया है वह अपने आप में एक मिसाल है.

परम गोपनीय शरभ तन्त्र से लेकर महाकाल संहिता तक ...... और कामकलाकाली तन्त्र से लेकर गुह्यकाली तक........

तन्त्र का कोइ क्षेत्र गुरुदेव की सीमा से परे नहीं है.



लुप्तप्राय हो चुके तन्त्र ग्रन्थों से ढूढ कर सहस्रनाम स्तोत्रों और दुर्लभ पूजन विधियों का अकूत भन्डार साधना सिद्धि विज्ञान मासिक पत्रिका के माध्यम से अपने शिष्यों के लिये सहज ही प्रस्तुत करने वाले ऐसे दिव्य साधक के चरणों मे मेरा शत शत नमन है .

आपका आशीर्वाद और मार्गदर्शन मेरे लिये सर्वसौभाग्य प्रदायक है....

ज्ञान की इतनी ऊंचाई पर बैठ्कर भी साधकों तथा जिज्ञासुओं के लिये वे सहज ही उपलब्ध हैं. आप यदि साधनात्मक मार्गदर्शन चाहते हैं तो आप भी संपर्क कर सकते हैं.


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10 मार्च 2014

मेरे गुरुदेव : स्वामी सुदर्शननाथ जी









अघोर शक्तियों के स्वामी, साक्षात अघोरेश्वर शिव स्वरूप , सिद्धों के भी सिद्ध मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जो प्रातः स्मरणीय  परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत, प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.

प्रचंडता की साक्षात मूर्ति, शिवत्व के जाज्वल्यमान स्वरूप   मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जो प्रातः स्मरणीय  परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.


सौन्दर्य की पूर्णता को साकार करने वाले साक्षात कामेश्वर, पूर्णत्व युक्त, शिव के प्रतीक, मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जो प्रातः स्मरणीय  परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.

जो स्वयं अपने अंदर संपूर्ण ब्रह्मांड को समेटे हुए हैं, जो अहं ब्रह्मास्मि के नाद से गुन्जरित हैं, जो गूढ से भी गूढ अर्थात गोपनीय से भी गोपनीय विद्याओं के ज्ञाता हैं ऐसे मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जो प्रातः स्मरणीय  परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.

जो योग के सभी अंगों के सिद्धहस्त आचार्य हैं, जिनका शरीर योग के जटिलतम आसनों को भी सहजता से करने में सिद्ध है, जो योग मुद्राओं के विद्वान हैं, जो साक्षात कृष्ण के समान प्रेममय, योगमय, आह्लादमय, सहज व्यक्तित्व के स्वामी हैं  ऐसे मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जो प्रातः स्मरणीय  परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.

काल भी जिससे घबराता है, ऐसे महाकाल और महाकाली युगल के उपासक, साक्षात महाकाल स्वरूप, अघोरत्व के जाज्वल्यमान स्वरूप, महाकाली के महासिद्ध साधक मेरे पूज्यपाद गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जो प्रातः स्मरणीय  परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के अंशीभूत और प्राण स्वरूप हैं, उनके चरणों में मै साष्टांग प्रणाम करता हूं.


आपका आशीर्वाद और मार्गदर्शन मेरे लिये सर्वसौभाग्य प्रदायक है....

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