Disclaimer

ब्लॉग पर दिखाये गए विज्ञापन गूगल तथा थर्ड पार्टी द्वारा दिखाये जाते हैं । उनकी प्रमाणकिता, प्रासंगिकता तथा उपयोगिता पर स्वविवेक से निर्णय लें ।

8 फ़रवरी 2014

मेरे आराध्य : जगद्गुरु : महादेव शिव : विवेचन


देवाधिदेव - भगवान शिव


भगवान शिव ने भगवती के आग्रह पर अपने लिए सोने की लंका का निर्माण किया था गृहप्रवेश से पूर्व पूजन के लिए उन्होने अपने असुर शिष्य प्रकाण्ड विद्वान रावण को आमंत्रित किया था दक्षिणा के समय रावण ने वह लंका ही दक्षिणा में मांग ली और भगवान शिव ने सहजता से लंका रावण को दान में दे दी तथा वापस कैलाश लौट आए ऐसी सहजता के कारण ही वे ÷भोलेनाथ' कहलाते हैं ऐसे भोले भंडारी की कृपा प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होने के लिए शिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण पर्व है।



भगवान शिव का स्वरुप अन्य देवी देवताओं से बिल्कुल अलग है।जहां अन्य देवी-देवताओं को वस्त्रालंकारों से सुसज्जित और सिंहासन पर विराजमान माना जाता है,वहां ठीक इसके विपरीत शिव पूर्ण दिगंबर हैं,अलंकारों के रुप में सर्प धारण करते हैं और श्मशान भूमि पर सहज भाव से अवस्थित हैं। उनकी मुद्रा में चिंतन है, तो निर्विकार भाव भी है!आनंद भी है और लास्य भी। भगवान शिव को सभी विद्याओं का जनक भी माना जाता है। वे तंत्र से लेकर मंत्र तक और योग से लेकर समाधि तक प्रत्येक क्षेत्र के आदि हैं और अंत भी। यही नही वे संगीत के आदिसृजनकर्ता भी हैं, और नटराज के रुप में कलाकारों के आराध्य भी हैं। वास्तव में भगवान शिव देवताओं में सबसे अद्भुत देवता हैं वे देवों के भी देव होने के कारण ÷महादेव' हैं तो, काल अर्थात समय से परे होने के कारण ÷महाकाल' भी हैं वे देवताओं के गुरू हैं तो, दानवों के भी गुरू हैं देवताओं में प्रथमाराध्य, विनों के कारक निवारणकर्ता, भगवान गणपति के पिता हैं तो, जगद्जननी मां जगदम्बा के पति भी हैं वे कामदेव को भस्म करने वाले हैं तो, ÷कामेश्वर' भी हैं तंत्र साधनाओं के जनक हैं तो संगीत के आदिगुरू भी हैं उनका स्वरुप इतना विस्तृत है कि उसके वर्णन का सामर्थ्य शब्दों में भी नही है।सिर्फ इतना कहकर ऋषि भी मौन हो जाते हैं किः-
असित गिरिसमम स्याद कज्जलम सिंधु पात्रे, सुरतरुवर शाखा लेखनी पत्रमुर्वी
लिखति यदि गृहीत्वा शारदासर्वकालम, तदपि तव गुणानाम ईश पारम याति॥
अर्थात यदि समस्त पर्वतों को, समस्त समुद्रों के जल में पीसकर उसकी स्याही बनाइ जाये, और संपूर्ण वनों के वृक्षों को काटकर उसको कलम या पेन बनाया जाये और स्वयं साक्षात, विद्या की अधिष्ठात्री, देवी सरस्वती उनके गुणों को लिखने के लिये अनंतकाल तक बैठी रहें तो भी उनके गुणों का वर्णन कर पाना संभव नही होगा। वह समस्त लेखनी घिस जायेगी! पूरी स्याही सूख जायेगी मगर उनका गुण वर्णन समाप्त नही होगा। ऐसे भगवान शिव का पूजन अर्चन करना मानव जीवन का सौभाग्य है
भगवान शिव के पूजन की अनेकानेक विधियां हैं।इनमें से प्रत्येक अपने आप में पूर्ण है और आप अपनी इच्छानुसार किसी भी विधि से पूजन या साधना कर सकते हैं।भगवान शिव क्षिप्रप्रसादी देवता हैं,अर्थात सहजता से वे प्रसन्न हो जाते हैं और अभीप्सित कामना की पूर्ति कर देते हैं। भगवान शिव के पूजन की कुछ सहज विधियां प्रस्तुत कर रहा हूं।इन विधियों से प्रत्येक आयु, लिंग, धर्म या जाति का व्यक्ति पूजन कर सकता है और भगवान शिव की यथा सामर्थ्य कृपा भी प्राप्त कर सकता है।


भगवान शिव पंचाक्षरी मंत्रः-
ऊं नमः शिवाय
यह भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र है। इस मंत्र का जाप आप चलते फिरते भी कर सकते हैं।अनुष्ठान के रूप में इसका जाप ग्यारह लाख मंत्रों का किया जाता है विविध कामनाओं के लिये इस मंत्र का जाप किया जाता है।

बीजमंत्र संपुटित महामृत्युंजय शिव मंत्रः-

ऊं हौं ऊं जूं ऊं सः ऊं भूर्भुवः ऊं स्वः ऊं त्रयंबकं यजामहे सुगंधिम पुष्टि वर्धनम, उर्वारुकमिव बंधनात मृत्युर्मुक्षीय मामृतात ऊं स्वः ऊं भूर्भुवः ऊं सः ऊं जूं ऊं हौं ऊं

भगवान शिव का एक अन्य नाम महामृत्युंजय भी है।जिसका अर्थ है, ऐसा देवता जो मृत्यु पर विजय प्राप्त कर चुका हो। यह मंत्र रोग और अकाल मृत्यु के निवारण के लिये सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसका जाप यदि रोगी स्वयं करे तो सर्वश्रेष्ठ होता है। यदि रोगी जप करने की सामर्थ्य से हीन हो तो,

परिवार का कोई सदस्य या फिर कोई ब्राह्‌मण रोगी के नाम से मंत्र जाप कर सकता है। इसके लिये संकल्प इस प्रकार लें, ÷÷मैं(अपना नाम) महामृत्युंजय मंत्र का जाप, (रोगी का नाम) के रोग निवारण के निमित्त कर रहा हॅू

, भगवान महामृत्युंजय उसे पूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्रदान करें'' इस मंत्र के जाप के लिये सफेद वस्त्र तथा आसन का प्रयोग ज्यादा श्रेष्ठ माना गया है।रुद्राक्ष की माला से मंत्र जाप करें।

4 फ़रवरी 2014

शिव शक्ति मन्त्र





॥ ऊं सांब सदाशिवाय नमः ॥

 लाभ - यह शिव तथा शक्ति की कृपा प्रदायक है.

विधि ---
  1. नवरात्रि में जाप करें.
  2. रात्रि काल में जाप होगा.
  3. रत्रि ९ बजे से सुबह ४ बजे के बीच का समय रात्रि काल है.
  4. सफ़ेद या लाल रंग का आसन तथा वस्त्र होगा.
  5. दिशा पूर्व तथा उत्तर के बीच [ईशान] की तरफ़ मुंह करके बैठना है.
  6. हो सके तो साधना स्थल पर ही रात को सोयें.
  7. सात्विक आहार तथा आचार विचार रखें.
  8. किसी स्त्री का अपमान न करें.
  9. किसी पर साधन काल में क्रोध न करें.
  10. किसी को ना तो कोसें और ना ही व्यर्थ का प्रलाप करें.
  11. यथा संभव मौन रखें.
  12. साधना में बैठने से पहले हल्का भोजन करें अन्यथा नींद आयेगी.

28 जनवरी 2014

निखिल तंत्र विशेषांक

साधना सिद्धि विज्ञान 

निखिल तंत्र विशेषांक 

पीडीऍफ़ फार्मट  में डाऊनलोड करने के लिए क्लिक करें.

http://www.nikhildham.org/ssv/2002/0031_May_2002.PDF



साधना सिद्धि विज्ञान पत्रिका 


यह पत्रिका तंत्र साधनाओं के गूढतम रहस्यों को साधकों के लिये  स्पष्ट कर उनका मार्गदर्शन करने में अग्रणी है. 
साधना सिद्धि विज्ञान पत्रिका में महाविद्या साधना , भैरव साधना, काली साधना, अघोर साधना, अप्सरा साधना इत्यादि के विषय में जानकारी मिलेगी .
इसमें आपको विविध साधनाओं के मंत्र तथा पूजन विधि का प्रमाणिक विवरण मिलेगा .
देश भर में लगने वाले विभिन्न साधना शिविरों के विषय में जानकारी मिलेगी .
------------------------------------------------------------------------------------
वार्षिक सदस्यता शुल्क 250 रुपये मनीआर्डर द्वारा निम्नलिखित पते पर भेजें 
------------------------------------------------------------------------------------
साधना सिद्धि विज्ञान 
शोप न. 5 प्लाट न. 210
एम.पी.नगर
भोपाल [म.प्र.] 462011
------------------------------------------------------------------------------------
साधना सिद्धि विज्ञान एक मासिक पत्रिका है , 250 रुपये  इसका वार्षिक शुल्क है .
यह पत्रिका आपको एक साल तक हर महीने मिलेगी .
------------------------------------------------------------------------------------
पत्रिका सदस्यता, समस्या तथा विभिन्न साधनात्मक जानकारियों तथा निशुल्क दीक्षा के सम्बन्ध में जानकारी के लिए निचे लिखे नंबर पर संपर्क करें 

समय = सुबह दस बजे से शाम सात बजे तक [ रविवार अवकाश ]
साधना सिद्धि विज्ञान 
जैस्मिन - 429
न्यू मिनाल रेजीडेंसी
जे.के.रोड 
भोपाल [म.प्र.] 462011
phone -[0755]-4283681




24 जनवरी 2014

मातंगी साधना






॥ ह्रीं क्लीं हुं मातंग्यै फ़ट स्वाहा ॥



  • मातंगी साधना संपूर्ण गृहस्थ सुख प्रदान करती है.
  • यह साधना जीवन में रस प्रदान करती है.

  • अपनी शक्ति के अनुसार जाप करें.
  • रात्रि 9 से 4 के बिच जाप ज्यादा लाभ देता है.













21 जनवरी 2014

मातंगी साधना



॥ ह्रीं क्लीं हुं मातंग्यै फ़ट स्वाहा ॥


  • मातंगी साधना संपूर्ण गृहस्थ सुख प्रदान करती है.
  • यह साधना जीवन में रस प्रदान करती है.

विस्तृत जानकारी के लिए पढ़ें 

साधना सिद्धि विज्ञान मासिक पत्रिका 

मातंगी विशेषांक 

पत्रिका पर क्लिक करें तथा पीडीऍफ़ फॉर्मेट में पत्रिका पढ़ें.



साधना सिद्धि विज्ञान पत्रिका 
यह पत्रिका तंत्र साधनाओं के गूढतम रहस्यों को साधकों के लिये  स्पष्ट कर उनका मार्गदर्शन करने में अग्रणी है. 
साधना सिद्धि विज्ञान पत्रिका में महाविद्या साधना , भैरव साधना, काली साधना, अघोर साधना, अप्सरा साधना इत्यादि के विषय में जानकारी मिलेगी .
इसमें आपको विविध साधनाओं के मंत्र तथा पूजन विधि का प्रमाणिक विवरण मिलेगा .
देश भर में लगने वाले विभिन्न साधना शिविरों के विषय में जानकारी मिलेगी .
------------------------------------------------------------------------------------
वार्षिक सदस्यता शुल्क 250 रुपये मनीआर्डर द्वारा निम्नलिखित पते पर भेजें 
------------------------------------------------------------------------------------
साधना सिद्धि विज्ञान 
शोप न. 5 प्लाट न. 210
एम.पी.नगर
भोपाल [म.प्र.] 462011
------------------------------------------------------------------------------------
साधना सिद्धि विज्ञान एक मासिक पत्रिका है , 250 रुपये  इसका वार्षिक शुल्क है .
यह पत्रिका आपको एक साल तक हर महीने मिलेगी .
------------------------------------------------------------------------------------
पत्रिका सदस्यता, समस्या तथा विभिन्न साधनात्मक जानकारियों तथा निशुल्क दीक्षा के सम्बन्ध में जानकारी के लिए निचे लिखे नंबर पर संपर्क करें 

समय = सुबह दस बजे से शाम सात बजे तक [ रविवार अवकाश ]

साधना सिद्धि विज्ञान 
जैस्मिन - 429
न्यू मिनाल रेजीडेंसी
जे.के.रोड 
भोपाल [म.प्र.] 462011
phone -[0755]-4283681

भुवनेश्वरी साधना





॥ ह्रीं ॥
  • भुवनेश्वरी महाविद्या समस्त सृष्टि की माता हैं
  • हमारे जीवन के लिये आवश्यक अमृत तत्व वे हैं.
  • इस मन्त्र का नित्य जाप आपको उर्जावान बनायेगा.
  • जिनका पाचन संबंधी शिकायत है उनको लाभ मिलेगा.

19 जनवरी 2014

11 जनवरी 2014

भुवनेश्वरी साधना शिविर : १४ जनवरी : भिलाई

भुवनेश्वरी साधना शिविर 
भिलाई [छत्तीसगढ़]

मकर संक्रांति
१४ जनवरी २०१४ 
मंगलवार 


गुरुदेव स्वामी सुदर्शन नाथ जी 
तथा 
गुरुमाता डॉ साधना सिंह जी के सानिध्य में 



इस साधना शिविर में होंगे 
  • संपूर्ण भुवनेश्वरी पूजन .

  • साधनात्मक मार्गदर्शन.

  • विशिष्ट साधनाओं से सम्बंधित दीक्षाएं. साधनात्मक मन्त्र तथा सम्बंधित विधि विधान की जानकारी.

  • गुरुदेव तथा माताजी से व्यक्तिगत मार्गदर्शन.



विस्तृत विवरण हेतु संपर्क :-

प्रवीन साहू = 07489165108

भुवनेश्वरी महाविद्या





॥ ह्रीं ॥
  • भुवनेश्वरी महाविद्या समस्त सृष्टि की माता हैं
  • हमारे जीवन के लिये आवश्यक अमृत तत्व वे हैं.
  • इस मन्त्र का नित्य जाप आपको उर्जावान बनायेगा.
  • सात्विक साधना है, सकारात्मक ऊर्जा का अकूत भण्डार है .
  • आर्थिक समृद्धि तथा ऐश्वर्य के लिए भी माता भुवनेश्वरी की साधना की जाती है.
  • नवार्ण मंत्र में लगे तीन बीज मन्त्रों में बीच वाला बीज मंत्र महाविद्या भुवनेश्वरी का है.
  • भुवनेश्वरी साधना से अन्नपूर्ण सिद्धि स्वयमेव प्राप्त हो जाती है.
  • सात्विक साधनों में इसे सर्वोच्च साधना माना गया है.
  • माता भुवनेश्वरी की निरंतर साधना से साधक की कुण्डलिनी शक्ति जागृत हो जाती है.
  • महाविद्या भुवनेश्वरी की साधना कर लेने से दश महाविद्याओं की साधना का मार्ग सहज तथा सरल हो जाता है.


4 जनवरी 2014

छिन्नमस्ता साधना मन्त्र




॥ ऊं श्रीं ह्रीं ह्रीं क्लीं ऎं वज्रवैरोचनीयै ह्रीं ह्रीं फ़ट स्वाहा ॥



नोट:- यह साधना गुरुदीक्षा लेकर गुरु अनुमति से ही करें.....







प्रचंड तान्त्रिक प्रयोगों की शान्ति के लिये छिन्नमस्ता साधना की जाती है. यह तन्त्र क्षेत्र की उग्रतम साधनाओं में से एक है.

यह साधना गुरु दीक्षा लेकर गुरु की अनुमति से ही करें. यह रात्रिकालीन साधना है. नवरात्रि में विशेष लाभदायक है. काले या लाल वस्त्र आसन का प्रयोग करें. रुद्राक्ष या काली हकीक की माला का प्रयोग जाप के लिये करें. सुदृढ मानसिक स्थिति वाले साधक ही इस साधना को करें. साधना काल में भय लग सकता है.ऐसे में गुरु ही संबल प्रदान करता है. 

1 जनवरी 2014

नव वर्ष


नववर्ष आपके लिये मंगलमय हो...







गुरुकृपा जीवन का आधार है..........

आपको जीवन मे श्रेष्ठ गुरु का सानिध्य प्राप्त हो ऐसी ही शुभकामना है......



न गुरोरधिकम....

न गुरोरधिकम....

न गुरोरधिकम....

.........शिव शासनतः.........

......................शिव शासनतः......................

....................................शिव शासनतः....................................

॥ ॐ शम ॥

27 दिसंबर 2013

महाकाल रमणी स्तोत्रं


माँ


शवासन संस्थिते महाघोर रुपे ,
महाकाल प्रियायै चतुःषष्टि कला पूरिते |
घोराट्टहास कारिणे प्रचण्ड रूपिणीम,
अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥

मेरी अद्भुत स्वरूपिणी महामाया जो शव के आसन पर भयंकर रूप धारण कर 

विराजमान है, जो काल के अधिपति महाकाल की प्रिया हैं, जो चौंषठ कलाओं से 

युक्त हैं, जो भयंकर अट्टहास से संपूर्ण जगत को कंपायमान करने में समर्थ हैं, 

ऐसी प्रचंड स्वरूपा मातृरूपा महाकाली की मैं सदैव अर्चना करता हूं | 

उन्मुक्त केशी दिगम्बर रूपे,
रक्त प्रियायै श्मशानालय संस्थिते ।
सद्य नर मुंड माला धारिणीम,
अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥

जिनकी केशराशि उन्मुक्त झरने के समान है ,जो पूर्ण दिगम्बरा हैं, अर्थात हर 

नियम, हर अनुशासन,हर विधि विधान से परे हैं , जो श्मशान की अधिष्टात्री 

देवी हैं ,जो रक्तपान प्रिय हैं , जो ताजे कटे नरमुंडों की माला धारण किये हुए है 

ऐसी प्रचंड स्वरूपा महाकाल रमणी महाकाली की मैं सदैव आराधना करता हूं |


क्षीण कटि युक्ते पीनोन्नत स्तने,
केलि प्रियायै हृदयालय संस्थिते।
कटि नर कर मेखला धारिणीम,
अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥

अद्भुत सौन्दर्यशालिनी महामाया जिनकी कटि अत्यंत ही क्षीण है और जो अत्यंत 

उन्नत स्तन मंडलों से सुशोभित हैं, जिनको केलि क्रीडा अत्यंत प्रिय है और वे 

सदैव मेरे ह्रदय रूपी भवन में निवास करती हैं . ऐसी महाकाल प्रिया महाकाली 

जिनके कमर में नर कर से बनी मेखला सुशोभित है उनके श्री चरणों का मै 

सदैव अर्चन करता हूं ||

खङग चालन निपुणे रक्त चंडिके,
युद्ध प्रियायै युद्धुभूमि संस्थिते ।
महोग्र रूपे महा रक्त पिपासिनीम,
अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥ 
देव सेना की महानायिका, जो खड्ग चालन में अति निपुण हैं, युद्ध जिनको 

अत्यंत प्रिय है, असुरों और आसुरी शक्तियों का संहार जिनका प्रिय खेल है,जो 

युद्ध भूमि की अधिष्टात्री हैं , जो अपने महान उग्र रूप को धारण कर शत्रुओं का 

रक्तपान करने को आतुर रहती हैं , ऐसी मेरी मातृस्वरूपा महामाया महाकाल 

रमणी महाकाली को मै सदैव प्रणाम करता हूं |



मातृ रूपिणी स्मित हास्य युक्ते,
प्रेम प्रियायै प्रेमभाव संस्थिते ।
वर वरदे अभय मुद्रा धारिणीम,
अम्बे महाकालीम तमर्चयेत सर्व काले ॥


जो सारे संसार का पालन करने वाली मातृस्वरूपा हैं, जिनके मुख पर सदैव 

अभय भाव युक्त आश्वस्त करने वाली मंद मंद मुस्कुराहट विराजमान रहती है , 

जो प्रेममय हैं जो प्रेमभाव में ही स्थित हैं , हमेशा अपने साधकों को वर प्रदान 

करने को आतुर रहने वाली ,अभय प्रदान करने वाली माँ महाकाली को मै उनके 

सहस्र रूपों में सदैव प्रणाम करता हूं |

|| इति श्री निखिल शिष्य अनिल शेखर कृत महाकाल रमणी स्तोत्रं सम्पूर्णम 

||

25 दिसंबर 2013

काल भैरव मंत्र





काल भैरव साधना निम्नलिखित परिस्थितियों में लाभकारी है :-
  • शत्रु बाधा.
  • तंत्र बाधा.
  • इतर योनी से कष्ट.
  • उग्र साधना में रक्षा हेतु.




काल भैरव मंत्र :-

|| ॐ भ्रं काल भैरवाय फट ||

विधि :-
  1. रात्रि कालीन साधना है.
  2. रात्रि 9 से 4 के बीच करें.
  3. काला आसन और वस्त्र रहेगा.
  4. रुद्राक्ष या काली हकिक माला से जाप करें.
  5. १०००,५०००,११०००,२१००० जितना आप कर सकते हैं उतना जाप करें.
  6. जाप के बाद १० वा हिस्सा यानि ११००० जाप करेंगे तो ११०० बार मंत्र में स्वाहां लगाकर हवं कर लें.
  7. हवन सामान्य हवन सामग्री से भी कर सकते हैं.
  8. कलि मिर्च , तिल का प्रयोग भी कर सकते हैं.
  9. अंत में एक कुत्ते को भोजन करा दें. काला कुत्ता हो तो बेहतर.