12 फ़रवरी 2018

महामृत्युंजय शिव


देवाधिदेव - भगवान शिव

भगवान शिव ने भगवती के आग्रह पर अपने लिए सोने की लंका का निर्माण किया था  गृहप्रवेश से पूर्व पूजन के लिए उन्होने अपने असुर शिष्य  प्रकाण्ड विद्वान रावण को आमंत्रित किया था ।दक्षिणा के समय रावण ने वह लंका ही दक्षिणा में मांग ली और भगवान शिव ने सहजता से लंका रावण को दान में दे दी तथा वापस कैलाश लौट आए  ऐसी सहजता के कारण ही वे ÷भोलेनाथकहलाते हैं  ऐसे भोले भंडारी की कृपा प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील होने के लिए शिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण पर्व है।


भगवान शिव का स्वरुप अन्य देवी देवताओं से बिल्कुल अलग है। जहां अन्य देवी-देवताओं को वस्त्रालंकारों से सुसज्जित और सिंहासन पर विराजमान माना जाता है,वहां ठीक इसके विपरीत 
शिव पूर्ण दिगंबर हैं,
अलंकारों के रुप में सर्प धारण करते हैं
श्मशान भूमि पर सहज भाव से अवस्थित हैं। 
उनकी मुद्रा में चिंतन हैतो निर्विकार भाव भी है!
आनंद भी है और लास्य भी। 

भगवान शिव को सभी विद्याओं का जनक भी माना जाता है। वे तंत्र से लेकर मंत्र तक और योग से लेकर समाधि तक प्रत्येक क्षेत्र के आदि हैं और अंत भी।  

यही नही वे संगीत के आदिसृजनकर्ता भी हैंऔर नटराज के रुप में कलाकारों के आराध्य भी हैं। 

वास्तव में भगवान शिव देवताओं में सबसे अद्भुत देवता हैं  वे देवों के भी देव होने के कारण महादेव' हैं तोकाल अर्थात समय से परे होने के कारण महाकाल भी हैं  

वे देवताओं के गुरू हैं तोदानवों के भी गुरू हैं  
देवताओं में प्रथमाराध्यविनों के कारक  निवारणकर्ताभगवान गणपति के पिता हैं तो,जगद्जननी मां जगदम्बा के पति भी हैं 
वे कामदेव को भस्म करने वाले हैं तो कामेश्वर भी हैं  
तंत्र साधनाओं के जनक हैं तो संगीत के आदिगुरू भी हैं   


उनका स्वरुप इतना विस्तृत है कि उसके वर्णन का सामर्थ्य शब्दों में भी नही है।सिर्फ इतना कहकर ऋषि भी मौन हो जाते हैं किः-
असित गिरिसमम स्याद कज्जलम सिंधु पात्रेसुरतरुवर शाखा लेखनी पत्रमुर्वी 
लिखति यदि गृहीत्वा शारदासर्वकालमतदपि तव गुणानाम ईश पारम  याति॥
अर्थात यदि समस्त पर्वतों कोसमस्त समुद्रों के जल में पीसकर उसकी स्याही बनाइ जायेऔर संपूर्ण वनों के वृक्षों को काटकर उसको कलम या पेन बनाया जाये और स्वयं साक्षातविद्या की अधिष्ठात्रीदेवी सरस्वती उनके गुणों को लिखने के लिये अनंतकाल तक बैठी रहें तो भी उनके गुणों का वर्णन कर पाना संभव नही होगा। वह समस्त लेखनी घिस जायेगीपूरी स्याही सूख जायेगी मगर उनका गुण वर्णन समाप्त नही होगा। ऐसे भगवान शिव का पूजन अर्चन करना मानव जीवन का सौभाग्य है 
भगवान शिव के पूजन की अनेकानेक विधियां हैं।इनमें से प्रत्येक अपने आप में पूर्ण है और आप अपनी इच्छानुसार किसी भी विधि से पूजन या साधना कर सकते हैं।भगवान शिव क्षिप्रप्रसादी देवता हैं,अर्थात सहजता से वे प्रसन्न हो जाते हैं और अभीप्सित कामना की पूर्ति कर देते हैं। भगवान शिव के पूजन की कुछ सहज विधियां प्रस्तुत कर रहा हूं।इन विधियों से प्रत्येक आयुलिंगधर्म या जाति का व्यक्ति पूजन कर सकता है और भगवान शिव की यथा सामर्थ्य कृपा भी प्राप्त कर सकता है।

भगवान शिव पंचाक्षरी मंत्रः-
 ऊं नमः शिवाय 
यह भगवान शिव का पंचाक्षरी मंत्र है। इस मंत्र का जाप आप चलते फिरते भी कर सकते हैं।अनुष्ठान के रूप में इसका जाप ग्यारह लाख मंत्रों का किया जाता है  विविध कामनाओं के लिये इस मंत्र का जाप किया जाता है।

बीजमंत्र संपुटित महामृत्युंजय शिव मंत्रः-
 ऊं हौं ऊं जूं ऊं सः ऊं भूर्भुवः ऊं स्वः ऊं त्रयंबकं यजामहे सुगंधिम पुष्टि वर्धनमउर्वारुकमिव बंधनात मृत्युर्मुक्षीय मामृतात ऊं स्वः ऊं भूर्भुवः ऊं सः ऊं जूं ऊं हौं ऊं  
भगवान शिव का एक अन्य नाम महामृत्युंजय भी है।जिसका अर्थ हैऐसा देवता जो मृत्यु पर विजय प्राप्त कर चुका हो। यह मंत्र रोग और अकाल मृत्यु के निवारण के लिये सर्वश्रेष्ठ माना गया है। इसका जाप यदि रोगी स्वयं करे तो सर्वश्रेष्ठ होता है। यदि रोगी जप करने की सामर्थ्य से हीन हो तो,

परिवार का कोई सदस्य या फिर कोई ब्राह्‌मण रोगी के नाम से मंत्र जाप कर सकता है। इसके लिये संकल्प इस प्रकार लें
मैं(अपना नाममहामृत्युंजय मंत्र का जाप, (रोगी का नामके रोग निवारण के निमित्त कर रहा हॅू भगवान महामृत्युंजय उसे पूर्ण स्वास्थ्य लाभ प्रदान करें''
इस मंत्र के जाप के लिये सफेद वस्त्र तथा आसन का प्रयोग ज्यादा श्रेष्ठ माना गया है।रुद्राक्ष की माला से मंत्र जाप करें।

शिवलिंग की महिमा





भगवान शिव के पूजन मे शिवलिंग का प्रयोग होता है। शिवलिंग के निर्माण के लिये स्वर्णादि विविध धातुओंमणियोंरत्नोंतथा पत्थरों से लेकर मिटृी तक का उपयोग होता है।इसके अलावा रस अर्थात पारे को विविध क्रियाओं से ठोस बनाकर भी लिंग निर्माण किया जाता है,

इसके बारे में कहा गया है कि,
मृदः कोटि गुणं स्वर्णमस्वर्णात्कोटि गुणं मणिः
 मणेः कोटि गुणं बाणोबाणात्कोटि गुणं रसः
रसात्परतरं लिंगं   भूतो  भविष्यति 
अर्थात मिटृी से बने शिवलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल सोने से बने शिवलिंग के पूजन सेस्वर्ण से करोड गुणा ज्यादा फल मणि से बने शिवलिंग के पूजन सेमणि से करोड गुणा ज्यादा फल बाणलिंग से तथा बाणलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल रस अर्थात पारे से बने शिवलिंग के पूजन से प्राप्त होता है। आज तक पारे से बने शिवलिंग से श्रेष्ठ शिवलिंग  तो बना है और  ही बन सकता है।





शिवलिंगों में नर्मदा नदी से प्राप्त होने वाले नर्मदेश्वर शिवलिंग भी अत्यंत लाभप्रद तथा शिवकृपा प्रदान करने वाले माने गये हैं। यदि आपके पास शिवलिंग  हो तो अपने बांये हाथ के अंगूठे को शिवलिंग मानकर भी पूजन कर सकते हैं  

शिवलिंग कोई भी हो जब तक भक्त की भावना का संयोजन नही होता तब तक शिवकृपा नही मिल सकती।


11 फ़रवरी 2018

अघोरेश्वराय महाकालाय नमः




॥ ऊं अघोरेश्वराय महाकालाय नमः ॥

  • १,२५,००० मंत्र का जाप .
  • दिगंबर/नग्न  अवस्था में जाप करें
  • अघोरी साधक श्मशान की चिताभस्म का पूरे शारीर पर लेप करके जाप करते हैं. 
  • लेकिन गृहस्थ साधकों के लिए  चिताभस्म निषिद्ध है. वे इसका उपयोग नहीं  करें. यह गम्भीर  नुकसान कर सकता है.
  • गृहस्थ साधक अपने शरीर पर गोबर के कंडे  की राख से त्रिपुंड बनाएं . यदि सम्भव हो तो पूरे शरीर पर लगाएं.
  • जाप के बाद स्नान करने के बाद सामान्य कार्य कर सकते हैं.
  • जाप से प्रबल ऊर्जा उठेगी, किसी पर क्रोधित होकर या स्त्री सम्बन्ध से यह उर्जा विसर्जित हो जायेगी . इसलिए पूरे साधना काल में क्रोध और काम से बचकर रहें.
  • शिव कृपा होगी.
  • रुद्राक्ष पहने तथा रुद्राक्ष की माला से जाप करें.

10 फ़रवरी 2018

साधना सिद्धि विज्ञान -श्री द्वादश ज्योतिर्लिंग विशेषांक



साधना सिद्धि विज्ञान पत्रिका 
यह पत्रिका तंत्र साधनाओं के गूढतम रहस्यों को साधकों के लिये स्पष्ट कर उनका मार्गदर्शन करने में अग्रणी है. साधना सिद्धि विज्ञान पत्रिका में महाविद्या साधना भैरव साधनाकाली साधनाअघोर साधनाअप्सरा साधना इत्यादि के विषय में जानकारी मिलेगी . इसमें आपको विविध साधनाओं के मंत्र तथा पूजन विधि का प्रमाणिक विवरण मिलेगा . देश भर में लगने वाले विभिन्न साधना शिविरों के विषय में जानकारी मिलेगी . 
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वार्षिक सदस्यता शुल्क 250 रुपये मनीआर्डर द्वारा निम्नलिखित पते पर भेजें
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साधना सिद्धि विज्ञान शोप न. प्लाट न. 210 एम.पी.नगर भोपाल [म.प्र.] 462011 
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साधना सिद्धि विज्ञान एक मासिक पत्रिका है , 250 रुपये इसका वार्षिक शुल्क है . यह पत्रिका आपको एक साल तक हर महीने मिलेगी .
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पत्रिका सदस्यतासमस्या तथा विभिन्न साधनात्मक जानकारियों तथा निशुल्क दीक्षा के सम्बन्ध में जानकारी के लिए निचे लिखे नंबर पर संपर्क करें 
समय = सुबह दस बजे से शाम पांच बजे तक [ रविवार अवकाश ] phone -[0755]-4283681

8 फ़रवरी 2018

पारद शिवलिंग महिमा

शिवलिंग की महिमा
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भगवान शिव के पूजन मे शिवलिंग का प्रयोग होता है। शिवलिंग के निर्माण के लिये स्वर्णादि विविध धातुओंमणियोंरत्नोंतथा पत्थरों से लेकर मिटृी तक का उपयोग होता है।इसके अलावा रस अर्थात पारे को विविध क्रियाओं से ठोस बनाकर भी लिंग निर्माण किया जाता है
इसके बारे में कहा गया है कि,
मृदः कोटि गुणं स्वर्णमस्वर्णात्कोटि गुणं मणिः
 मणेः कोटि गुणं बाणोबाणात्कोटि गुणं रसः
रसात्परतरं लिंगं   भूतो  भविष्यति 
अर्थात मिटृी से बने शिवलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल 
सोने से बने शिवलिंग के पूजन से
स्वर्ण से करोड गुणा ज्यादा फल 
मणि से बने शिवलिंग के पूजन से, 
मणि से करोड गुणा ज्यादा फल 
बाणलिंग के पूजन से 
तथा 
बाणलिंग से करोड गुणा ज्यादा फल 
रस अर्थात पारे से बने शिवलिंग के पूजन से प्राप्त होता है।
 आज तक पारे से बने शिवलिंग से श्रेष्ठ शिवलिंग  तो बना है और  ही बन सकता है।




शिवलिंगों में नर्मदा नदी से प्राप्त होने वाले नर्मदेश्वर शिवलिंग भी 
अत्यंत  लाभप्रद तथा शिवकृपा प्रदान करने वाले माने गये हैं। यदि आपके पास शिवलिंग  हो तो 
अपने बांये हाथ के अंगूठे को 
शिवलिंग मानकर भी पूजन कर सकते हैं  

शिवलिंग कोई भी हो जब तक 
भक्त की भावना का संयोजन नही होता 
तब तक शिवकृपा नही मिल सकती।


6 फ़रवरी 2018

रोग निवारक : पारद शिवलिंग

|| ॐ ह्रीं तेजसे श्रीं कामसे क्रीं पूर्णत्व सिद्धिं पारदाय क्रीं श्रीं ह्रीं ॐ ||

  • कम से कम १०८ बार पारद शिवलिंग पर आचमनी से जल चढ़ाएं.
  • हर बार चढाते समय मंत्र का उच्चारण करें .
  • पूरा होने पर उस जल को अपने मुह आँख तथा शरीर पर छिडकें.
  • शेष जल को पी जाएँ.
  • ऐसा कम से कम १२० दिन तक करें.
  • जटिलतम रोगों में भी लाभप्रद है. 
  • पारद शिवलिंग यदि श्रेष्ट तांत्रिक गुरु द्वारा निर्मित हो तो अत्यंत श्रेष्ट होता है. उसमे भी यदि स्त्री गुरु द्वारा प्रदत्त हो तो सर्वश्रेष्ट होता है.
  • जो गुरु युगल रूप में अपनी शक्ति के साथ युक्त होते हैं उनके द्वारा प्रदत्त पारद शिवलिंग ज्यादा प्रभावशाली होता है.
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5 फ़रवरी 2018

रोग निवारक : सदाशिव कवच




[प्रातः स्मरणीय परम श्रद्धेय सदगुरुदेव परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानन्दजी]

ॐ नमो भगवते सदाशिवाय सकलतत्वात्मकाय सर्वमन्त्रस्वरूपाय सर्वयन्त्राधिष्ठिताय सर्वतन्त्रस्वरूपाय सर्वतत्वविदूराय ब्रह्मरुद्रावतारिणे नीलकण्ठाय पार्वतीमनोहरप्रियाय सोमसूर्याग्निलोचनाय भस्मोद्धूलितविग्रहाय महामणि मुकुटधारणाय माणिक्यभूषणाय सृष्टिस्थितिप्रलयकाल- रौद्रावताराय दक्षाध्वरध्वंसकाय महाकालभेदनाय मूलधारैकनिलयाय तत्वातीताय गङ्गाधराय सर्वदेवाधिदेवाय षडाश्रयाय वेदान्तसाराय त्रिवर्गसाधनाय अनन्तकोटिब्रह्माण्डनायकाय अनन्त वासुकि तक्षक- कर्कोटक शङ्ख कुलिक- पद्म महापद्मेति- अष्टमहानागकुलभूषणाय प्रणवस्वरूपाय चिदाकाशाय आकाश दिक् स्वरूपाय ग्रहनक्षत्रमालिने सकलाय कलङ्करहिताय सकललोकैककर्त्रे सकललोकैकभर्त्रे सकललोकैकसंहर्त्रे सकललोकैकगुरवे सकललोकैकसाक्षिणे सकलनिगमगुह्याय सकलवेदान्तपारगाय सकललोकैकवरप्रदाय सकललोकैकशङ्कराय सकलदुरितार्तिभञ्जनाय सकलजगदभयङ्कराय शशाङ्कशेखराय शाश्वतनिजवासाय निराकाराय निराभासाय निरामयाय निर्मलाय निर्मदाय निश्चिन्ताय निरहङ्काराय निरङ्कुशाय निष्कलङ्काय निर्गुणाय  निष्कामाय निरूपप्लवाय निरुपद्रवाय निरवद्याय निरन्तराय निष्कारणाय निरातङ्काय निष्प्रपञ्चाय निस्सङ्गाय निर्द्वन्द्वाय निराधाराय नीरागाय निष्क्रोधाय निर्लोपाय निष्पापाय निर्भयाय निर्विकल्पाय निर्भेदाय निष्क्रियाय निस्तुलाय निःसंशयाय निरञ्जनाय निरुपमविभवाय नित्यशुद्धबुद्धमुक्तपरिपूर्ण- सच्चिदानन्दाद्वयाय परमशान्तस्वरूपाय परमशान्तप्रकाशाय तेजोरूपाय तेजोमयाय तेजो‌sधिपतये जय जय रुद्र महारुद्र महारौद्र भद्रावतार महाभैरव कालभैरव कल्पान्तभैरव कपालमालाधर खट्वाङ्ग चर्मखड्गधर पाशाङ्कुश- डमरूशूल चापबाणगदाशक्तिभिन्दिपाल- तोमर मुसल मुद्गर पाश परिघ- भुशुण्डी शतघ्नी चक्राद्यायुधभीषणाकार- सहस्रमुखदंष्ट्राकरालवदन विकटाट्टहास विस्फारित ब्रह्माण्डमण्डल नागेन्द्रकुण्डल नागेन्द्रहार नागेन्द्रवलय नागेन्द्रचर्मधर नागेन्द्रनिकेतन मृत्युञ्जय त्र्यम्बक त्रिपुरान्तक विश्वरूप विरूपाक्ष विश्वेश्वर वृषभवाहन विषविभूषण विश्वतोमुख सर्वतोमुख माम# रक्ष रक्ष ज्वलज्वल प्रज्वल प्रज्वल महामृत्युभयं शमय शमय अपमृत्युभयं नाशय नाशय रोगभयम् उत्सादयोत्सादय विषसर्पभयं शमय शमय चोरान् मारय मारय मम# शत्रून् उच्चाटयोच्चाटय त्रिशूलेन विदारय विदारय कुठारेण भिन्धि भिन्धि खड्गेन छिन्द्दि छिन्द्दि खट्वाङ्गेन विपोधय विपोधय मुसलेन निष्पेषय निष्पेषय बाणैः सन्ताडय सन्ताडय यक्ष रक्षांसि भीषय भीषय अशेष भूतान् विद्रावय विद्रावय कूष्माण्डभूतवेतालमारीगण- ब्रह्मराक्षसगणान् सन्त्रासय सन्त्रासय मम# अभयं कुरु कुरु मम# पापं शोधय शोधय वित्रस्तं माम्# आश्वासय आश्वासय नरकमहाभयान् माम्# उद्धर उद्धर अमृतकटाक्षवीक्षणेन माम# आलोकय आलोकय सञ्जीवय सञ्जीवय क्षुत्तृष्णार्तं माम्# आप्यायय आप्यायय दुःखातुरं माम्# आनन्दय आनन्दय शिवकवचेन माम्# आच्छादय आच्छादय हर हर मृत्युञ्जय त्र्यम्बक सदाशिव परमशिव नमस्ते नमस्ते नमः ॥
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विधि :-
  1. भस्म से  माथे पर  तीन लाइन वाला तिलक त्रिपुंड बनायें.
  2. हाथ में पानी लेकर भगवान  शिव से रक्षा की प्रार्थना करें , जल छोड़ दें.
  3. एक माला गुरुमंत्र की करें . अगर गुरु न बनाया हो तो भगवान् शिव को गुरु मानकर "ॐ नमः शिवाय" मन्त्र का जाप कर लें.
  4. यदि अपने लिए पाठ नहीं कर रहे हैं तो # वाले जगह पर उसका नाम लें जिसके लिए पाठ कर रहे हैं |
  5. रोगमुक्ति, बधामुक्ति, मनोकामना के लिए ११ पाठ ११ दिनों तक करें . अनुकूलता प्राप्त होगी.
  6. रक्षा कवच बनाने के लिए एक पंचमुखी रुद्राक्ष ले लें. उसको दूध,दही,घी,शक्कर,शहद,से स्नान करा लें |अब इसे गंगाजल से स्नान कराकर बेलपत्र चढ़ाएं | ५१ पाठ शिवरात्रि कि रात्रि करें पाठ के बाद इसे धारण कर लें |

साधना में गुरु की आवश्यकता
Y   मंत्र साधना के लिए गुरु धारण करना श्रेष्ट होता है.
Y   साधना से उठने वाली उर्जा को गुरु नियंत्रित और संतुलित करता है, जिससे साधना में जल्दी सफलता मिल जाती है.
Y   गुरु मंत्र का नित्य जाप करते रहना चाहिए. अगर बैठकर ना कर पायें तो चलते फिरते भी आप मन्त्र जाप कर सकते हैं.
Y   रुद्राक्ष या रुद्राक्ष माला धारण करने से आध्यात्मिक अनुकूलता मिलती है .
Y   रुद्राक्ष की माला आसानी से मिल जाती है आप उसी से जाप कर सकते हैं.
Y   गुरु मन्त्र का जाप करने के बाद उस माला को सदैव धारण कर सकते हैं. इस प्रकार आप मंत्र जाप की उर्जा से जुड़े रहेंगे और यह रुद्राक्ष माला एक रक्षा कवच की तरह काम करेगा.
गुरु के बिना साधना
Y   स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
Y   जिन मन्त्रों में 108 से ज्यादा अक्षर हों उनकी साधना बिना गुरु के भी की जा सकती हैं.
Y   शाबर मन्त्र तथा स्वप्न में मिले मन्त्र बिना गुरु के जाप कर सकते हैं .
Y   गुरु के आभाव में स्तोत्र तथा सहश्रनाम साधनाएँ करने से पहले अपने इष्ट या भगवान शिव के मंत्र का एक पुरश्चरण यानि १,२५,००० जाप कर लेना चाहिए.इसके अलावा हनुमान चालीसा का नित्य पाठ भी लाभदायक होता है.
Y    
मंत्र साधना करते समय सावधानियां
Y   मन्त्र तथा साधना को गुप्त रखें, ढिंढोरा ना पीटें, बेवजह अपनी साधना की चर्चा करते ना फिरें .
Y   गुरु तथा इष्ट के प्रति अगाध श्रद्धा रखें .
Y   आचार विचार व्यवहार शुद्ध रखें.
Y   बकवास और प्रलाप न करें.
Y   किसी पर गुस्सा न करें.
Y   यथासंभव मौन रहें.अगर सम्भव न हो तो जितना जरुरी हो केवल उतनी बात करें.
Y   ब्रह्मचर्य का पालन करें.विवाहित हों तो साधना काल में बहुत जरुरी होने पर अपनी पत्नी से सम्बन्ध रख सकते हैं.
Y   किसी स्त्री का चाहे वह नौकरानी क्यों न होअपमान न करें.
Y   जप और साधना का ढोल पीटते न रहेंइसे यथा संभव गोपनीय रखें.
Y   बेवजह किसी को तकलीफ पहुँचाने के लिए और अनैतिक कार्यों के लिए मन्त्रों का प्रयोग न करें.
Y   ऐसा करने पर परदैविक प्रकोप होता है जो सात पीढ़ियों तक अपना गलत प्रभाव दिखाता है.
Y   इसमें मानसिक या शारीरिक रूप से विकलांग बच्चों का जन्म , लगातार गर्भपात, सन्तान ना होना , अल्पायु में मृत्यु या घोर दरिद्रता जैसी जटिलताएं भावी पीढ़ियों को झेलनी पद सकती है |
Y   भूत, प्रेत, जिन्न,पिशाच जैसी साधनाए भूलकर भी ना करें , इन साधनाओं से तात्कालिक आर्थिक लाभ जैसी प्राप्तियां तो हो सकती हैं लेकिन साधक की साधनाएं या शरीर कमजोर होते ही उसे असीमित शारीरिक मानसिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है | ऐसी साधनाएं करने वाला साधक अंततः उसी योनी में चला जाता है |
गुरु और देवता का कभी अपमान न करें.
मंत्र जाप में दिशा, आसन, वस्त्र का महत्व
Y   साधना के लिए नदी तट, शिवमंदिर, देविमंदिर, एकांत कक्ष श्रेष्ट माना गया है .
Y   आसन में काले/लाल कम्बल का आसन सभी साधनाओं के लिए श्रेष्ट माना गया है .
Y   अलग अलग मन्त्र जाप करते समय दिशा, आसन और वस्त्र अलग अलग होते हैं .
Y   इनका अनुपालन करना लाभप्रद होता है .
Y   जाप के दौरान भाव सबसे प्रमुख होता है , जितनी भावना के साथ जाप करेंगे उतना लाभ ज्यादा होगा.
Y   यदि वस्त्र आसन दिशा नियमानुसार ना हो तो भी केवल भावना सही होने पर साधनाएं फल प्रदान करती ही हैं .



4 फ़रवरी 2018

आनंद कंद भगवान् सदाशिव

भगवान शिव के समान :-

  • आनंदमय और निर्विकार रहने के लिए.
  • श्मशान में भी तटस्थ रहने की कला के लिए.
  • सर्व ऐश्वर्य के स्वामी होते हुए भी दिगंबर रहने के लिए .
और 

पास में कुछ भी न होते हुए भी निश्चिंत होकर मुस्कुराने के लिए .







निम्नलिखित मंत्र का उल्लास के साथ २४ घंटे जाप करते रहें धीरे धीरे आप आनंदमय कोष में प्रवेश करने लगेंगे .







||| आनंद कन्दाय नमः |||